जो घर बारे आपना-(साधना-शिविर)
ओशो
प्रवचन-दूसरा-(ध्यान के संबंध में)
मेरे प्रिय आत्मन्!
ध्यान के संबंध में दोत्तीन बातें हम समझ लें, और फिर प्रयोग के लिए बैठेंगे।
एक बात तो यह समझ लेनी जरूरी है, ध्यान में हम सिर्फ
तैयारी करते हैं, परिणाम सदा ही हमारे हाथ के बाहर है। लेकिन
यदि तैयारी पूरी है, तो परिणाम भी सुनिश्चित रूप से घटित
होता है। परिणाम की चिंता छोड़ कर श्रम की ही हम चिंता करें। और परिणाम की चिंता
छोड़ कर पूरी चिंता हम अपने श्रम की कर सकें, तो परिणाम भी
सुनिश्चित है। लेकिन परिणाम की चिंता में श्रम भी पूरा नहीं हो पाता और परिणाम भी
अनिश्चित हो जाते हैं।
पहले तीन चरण आपकी तैयारी के चरण हैं। चौथे चरण में आपको सिर्फ
प्रतीक्षा करनी है, और कुछ भी नहीं करना है। जैसे कोई द्वार खोल कर बैठ
जाए और घर में सूर्य की किरणों के आने की प्रतीक्षा करे। हम द्वार ही खोल सकते हैं,
सूर्य का आना न आना सूर्य पर ही निर्भर है। यह बहुत मजे की बात है!
हम चाहें तो द्वार को बंद रख कर सूर्य को आने से रोक सकते हैं, लेकिन सिर्फ द्वार खोल कर हम सूर्य को भीतर नहीं ला सकते। लेकिन द्वार
खुला हो तो सूर्य के आगमन पर प्रकाश हमारे घर के भीतर भी आ ही जाता है।
ध्यान के पहले तीन चरण द्वार को खोलने के चरण हैं। चौथा चरण प्रतीक्षा
का, अवेटिंग का है। ये तीन चरण जितनी तीव्रता, जितने
संकल्प, जितनी गहनता, गहराई से किए
जाएंगे, उतना ही द्वार खुल सकेगा। जरा सी भी कृपणता, जरा सी भी कंजूसी, श्रम में जरा सा भी बचाव परिणाम
में बाधा बन जाएगा। जैसे लोहार लोहा गरम हो तभी चोट करता है और लोहे को मोड़ लेता
है। हम भी जब अपने श्रम की पूरी गरमी में होते हैं तभी हमारे भीतर रूपांतरण की
घटना घटती है।
इसलिए पूरे श्रम पर ध्यान रखना जरूरी है। अब मैं देखता हूं, आप नाच रहे हैं, तो उस नाचने में भी आप व्यवस्था
रखने की कोशिश करते हैं। उस नाचने में भी आप मर्यादा और सीमा बनाने की कोशिश करते
हैं। उस नाचने में भी ऐसा नहीं मालूम पड़ता कि आपने पूरी ताकत लगा दी है। कुछ सदा
ही पीछे बचा रह जाता है। वह जो पीछे बचा रह गया है वही बाधा बन जाएगा। आप चिल्ला
रहे हैं; जब चिल्ला ही रहे हैं, तो धीरे
नहीं, पूरी शक्ति से! प्रत्येक चरण अपनी पूरी शक्ति पर होगा
तभी दूसरे में प्रवेश होगा। जैसे आपको कार चलाने का पता हो, तो
एक गेयर जब अपनी पूरी शक्ति में होगा तो दूसरे गेयर में मशीन को डाला जा सकता है।
दूसरा पूरी शक्ति में होगा तो तीसरे गेयर में डाला जा सकता है। तीसरा पूरी शक्ति
में हो तभी हम चौथे गेयर में गाड़ी को डाल सकते हैं।
ठीक वैसे ही हमारे शरीर और चित्त की भी व्यवस्था है। वहां जब हम एक
चरण पूरा करें, तो ही दूसरे चरण में प्रवेश कर सकते हैं। दूसरे चरण
का प्रवेश-द्वार पहले चरण की क्लाइमेक्स, चरम सीमा पर ही
संभव होता है। इसलिए मैं कहूंगा कि आज सुबह से--कल तो हमने प्रयोग के लिए ध्यान
किया था ताकि आपके खयाल में आ जाए--आज सुबह से तो प्रयोग नहीं है, कल आपने समझ लिया है, आज से करना ही है, पूरी शक्ति लगा देनी है। और थकने का थोड़ा भी खयाल न लेना। यह भी समझा देना
जरूरी है कि आप थक सकते हैं अगर आपने अपने को रोका। अगर आपने नहीं रोका, आप कभी नहीं थकेंगे।
यह मुझे सैकड़ों मित्रों पर प्रयोग करके बहुत हैरानी का अनुभव हुआ कि
जो लोग अपने को जरा सा रोक लेंगे, वे थक जाएंगे। क्योंकि उनके भीतर
दोहरे काम शुरू हो जाएंगे। दोहरे काम थका डालते हैं। वे नाच भी रहे हैं और रोक भी
रहे हैं। तो उनकी हालत वैसी है जैसे कोई कार में एक्सीलरेटर भी दबा रहा है और
ब्रेक भी लगा रहा है, एक साथ। आप चिल्ला भी रहे हैं और रोक
भी रहे हैं। तो आप अपने भीतर उलटी शक्तियां पैदा कर रहे हैं जो आपको थका देंगी।
अगर आप जो कर रहे हैं उसमें पूरे ही बह गए हैं, तो आप थकेंगे
नहीं, ध्यान के बाद आप और भी हलके, और
भी ताजे, और भी स्वस्थ हो जाएंगे। इसलिए जरा सा भी रोकना,
आपको थकान लाने वाला सिद्ध होगा। इसलिए जरा भी न रोकें।
दूसरी बात जो समझ लेनी जरूरी है वह यह है कि कई बार ऐसा होता है कि
किन्हीं मित्रों को पता ही नहीं चलता कि उनके भीतर न तो नाचने का भाव उठ रहा है, न चिल्लाने का भाव उठ रहा है, न रोने का भाव उठ रहा
है, न हंसने का भाव उठ रहा है, वे क्या
करें?
श्वास लेना तो हमारे हाथ में है, तो हम पहला चरण पूरा
कर लेते हैं। और "मैं कौन हूं?' पूछना भी हमारे हाथ में
है, तो हम आखिरी चरण भी पूरा कर लेते हैं। लेकिन दूसरे चरण
में कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि कोई भाव नहीं उठ रहा, तो
क्या करें? तो दूसरा चरण अगर रुक गया तो पहले और तीसरे चरण
बेकार हो जाएंगे। तो दूसरे चरण में खोज कर लें शीघ्रता से, जो
भी आपके खयाल में आ जाए। अगर कुछ भी खयाल में न आए...कई बार ऐसा होता है, हमारे दमन इतने गहरे हैं, हमने अपने को इस भांति
दबाया और रोका है कि हो सकता है हमारी कोई भी वृत्ति प्रकट होने के लिए हिम्मत न
जुटा पाए...ऐसी हालत में अगर आपने ठीक से पहला चरण पूरा किया है, तो दूसरे चरण में आपको कुछ भी न सूझे तो आप सिर्फ अपनी जगह पर नाचना शुरू
कर दें। कुछ भी न सूझता हो, उस हालत में सिर्फ नाचना शुरू कर
दें। संभावना यह है कि नाचना शुरू करते ही, एक मिनट आप
नाचेंगे, एक मिनट के बाद नाचना आपके भीतर फूट पड़ेगा। फिर और
चीजें भी फूट सकती हैं।
प्रत्येक व्यक्ति के भीतर दूसरे चरण में एक सी चीज नहीं घटेगी। कोई रो
सकता है, कोई चिल्ला सकता है, कोई हंस
सकता है, कोई नाच सकता है, कोई गिर कर
लोट सकता है, कुछ भी हो सकता है। इसलिए दूसरे चरण में किसको
क्या हो रहा है, इसकी फिक्र न करें; स्वयं
को क्या हो रहा है, इसकी फिक्र करें। और जो भी हो रहा है उसे
पूर्ण सहयोग दे दें। जरा से सहयोग की कमी पूरे श्रम को व्यर्थ कर देगी।
तीसरे चरण के संबंध में भी एक बात समझ लें कि जब हम "मैं कौन हूं?' पूछते हैं, तो दो "मैं कौन हूं?' के बीच में जगह नहीं छोड़नी है। और तीसरे चरण में जब "मैं कौन हूं?'
पूछ रहे हैं, तब नाचना जारी रखेंगे तो
"मैं कौन हूं?' पूछने में बहुत आसानी होगी। नाचने के
रिदम पर "मैं कौन हूं?' पूछ सकेंगे तो बहुत तीव्रता आ
जाएगी। और यह इतने जोर से भीतर पूछना है कि अगर बाहर निकल जाए तो इसकी चिंता नहीं
लेनी, उसे निकल जाने देना।
तीन चरण पूरे हो जाने के बाद चौथे चरण में सिर्फ साक्षी रह जाना, भीतर देखते रहना, क्या हो रहा है। बहुत कुछ होगा,
और जो कुछ भी हो उसकी बातचीत आपस में आप नहीं करेंगे।
दोपहर तीन से चार तो मेरे पास मौन में बैठेंगे। चार से पांच के बीच
व्यक्तिगत रूप से जिन्हें कुछ भी कहना हो वे मुझसे आकर कह जाएंगे।
तीन से चार जो हम मौन में बैठेंगे, उस संबंध में दोत्तीन
बातें समझ लें।
हॉल के भीतर बैठेंगे तीन से चार। जो मित्र भी हॉल के बाहर भी मौन हैं
वे तो ठीक, जो मौन नहीं हैं वे भी हॉल के द्वार से ही मौन हो
जाएंगे। हॉल के भीतर एक भी शब्द का उच्चारण नहीं करना है, किसी
को भी नहीं। बस चुपचाप आकर बैठ जाना। मैं आपके बीच बैठा रहूंगा, आप आंख बंद किए बैठे रहें। किसी को गहरी श्वास लेना हो, ले सकता है। किसी को नाचना हो, नाच सकता है। किसी को
रोना हो, रो सकता है। जिसको जो हो। और किसी को मेरे पास आने
जैसा लगे तो वह दो मिनट के लिए मेरे पास आकर बैठ सकता है। लेकिन दो मिनट के बाद
वहां से हट जाए, क्योंकि और लोगों को भी आने का खयाल हो सकता
है। दो मिनट से ज्यादा कोई मेरे पास नहीं बैठेगा।
अब हम ध्यान के लिए खड़े हो जाएं। काफी फैल कर खड़े
हों, और एक बात ध्यान रखें कि कोई मैदान में दौड़े नहीं।
कुछ लोग पीछे भी आ सकते हैं लॉन में।...
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