हनि कभी कभार ही घर पर आता था। शायद दुकान पर
ही आ कर वहीं से ही कुछ खा पी कर चला जाता हो। ये मैं नहीं जानता था। पर घर पर कम
ही आता था। ऐसा शायद हम लोगों के आने के कारण ही हुआ होगा। क्योंकि वह शायद समझ
गया की अब मैरा इस घर से अधिकार खत्म हो गया। मैं बूढा हो गया हूं। पर जिस दवाई
ने मेरे शरीर पर कुछ असर दिखाया था। उसी दवाई का उसके शरीर पर कोई असर नहीं हुआ।
शायद मेरी भी यही हालत होती पर अभी मैं बच्चा था। मेरा शरीर अभी बलिष्ठ था। उस
की प्रतिरोधक शक्ति थोड़ी अधिक है। उस समय तक हानि का शरीर बूढा हो गया था। जो उस
ज़हरीले खरगोश के जहर को झेल नहीं पाया जिससे उसकी हालत इतनी खराब हो गई।
उसने भी ज्यादा नहीं
भागा। पर वह खरगोश इतना जहरीला था कि करीब एक महीने बाद उसकी मोत हो गई। पाप जी और
वरूण भैया उसे एक कपड़े में बाँध कर जंगल में किन्हीं झाड़ियों में छुपा आये। ताकी उसे कोई जंगली जानवर न खा कर बीमार न हो
जाये। पर ये भी कुदरत का एक चमत्कार है या रहस्य है। कि कोई भी मांसाहारी पशु
दूसरे मांसाहारी प्रणी को नहीं खाता। क्या मांसाहार से निर्मित शरीर कुछ विषाक्त
हो जाता है?
एक बार जब हम जंगल में घूमने गये तब मेंने उसे
देखा उसका शरीर सुख कर मम्मी बन गया था। पर किसी जंगली जानवर ने भी उसे नहीं खाया
था। एक तो वह झाड़ियों के अधिक बीच में था। और दूसरा उसे जो रोग था। वह उसके मांस
मज्जा में रच बस गया था। जंगली पशु हमारे कि तरह पागल थोड़े ही होते है। कि जो
चाहे खा लेते है।
अभी भी
में पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ था। मुझे लग रहा था। की अब हानि के बाद मेरी ही बारी
थी। पर जब भी हम जंगल में जाते में खूब भागता और शरीर को अति तक थका लेता, पूरे शरीर गर्म हो जाता था। फिर जो तालाब के आस पास
की चिकनी कीचड़ होती उस में खूब मस्त लेटता। वह मिट्टी इतनी चिकनी और मुलायम जैसे
मुल्तान मिट्टी। उस में लेटने के बाद शरीर में एक प्रकार की शांति आ जाती थी। फिर
में बहार जब आता तो पापा जी और दीदी भैया खूब मेरा मजाक बनाते। मेरा शरीर उस
मिट्टी के लेप के कारण सुकड़ कर चूहै की तरह हो जाता। फिर जब में बहार निकल कर दो
तीन बार शरीर को झाड़ता। कुछ मिट्टी इधर उधर गिर जाती। और में सुखी मुलायम रेत और
घास में आपने शरीर को खूब रगड़ कर साफ करता। और उसके बाद जोरों से मैं खूब भागता।
भागने के कारण थोड़ी ही देर में वह मिट्टी न जाने कहां गायब हो जाती और में एक दम
साफ सुथर और पहले से कुछ अधिक तंदरूस्त महसूस करता। एक दो दिन ऐसा करने के बाद
पापा जी ने जब दवाई लगाने के लिए मेरी गाँठें देखी तो वह बहुत खुश हुए और कहने लगे
मम्मी को कि देखा पोनी की गाँठें और जख्म बहुत कम हो गये है। ये राम तला की
कीचड़ में खूब लेटता है। सच वो तलाव राम तला ही था। मेरे 10—15 बार वहां स्नान
करने से लगभग मैं ठीक हो गया। इसे लगभग ही कहा जा सकता है। क्योंकि कुदरत ने
हमारा शरीर या किसी भी प्राणी का ही क्यों न हो चाहे वो मनुष्य ही ले
लीजिए। जब उस में कुछ गड़बड़ आ जाती है।
तो वह सौ प्रतिशत कभी ठीक हो ही नहीं सकता। सौ प्रतिशत तो परमात्मा ही हमे देता
है। अब मुझे आइसक्रीम नहीं मिलती थी हफ्ते में एक बार मेरे पूरे शरीर पर दही का
लेप होता। और फिर किसी खास साबुन से नहलाया जाता था। और उसके बाद एक कटोरा दही ही
खाने को दी जाती थी। ये उपचार मेरी कई महीने तक चलता रहा।
गाँठें
और खारिश तो उस मिट्टी में लेटने से कम हो गई। पर शरीर की चमड़ी पर जो सुखा पन था
उसका राम बाण दही ही है। वह चमड़ी की जड़ों को पोषित कर नरम और मुलायम कर देती थी।
जिससे उस पर से सफेद पपड़ी निकलनी बंद हो गई थी। और उस खाली जगह पर धीरे—धीरे नरम
और मुलायम बाल और रोया निकल आये थे। यानि उस चमड़ी को और मुझको एक नया जीवन मिल
गये। यही तो उसके स्वास्थ की पहचान है।
जैसे बंजर जमीन जब उपजाऊ
हो जाती है तो उसमें दूब और घास उग जाती है। पर एक बात थी जिस दिन से हमने वो
खरगोश खाया था। हम दोनों को अगल अलग तरह की शारीरक बिमारी हुई। पर टोनी के शरीर पर
ऐसे कुछ लक्षण अभी तक नजर नहीं आये। उसके महीन रेशमी मुलायम बाल साबुत थे। उसके
शरीर पर गाँठें भी नहीं पड़ी थी। मैं अंदर से यही दुआ कर रहा था। यह बिमारी जो
मेरे और हानि को लगी है। बेचार पोनी तो बच जाये। इस की मुझे खुशी भी थी। और अपने
अंदर यह सब बातें सोचता और मनन कर के यही निष्कर्ष निकालता की टोनी ने तो खाया भी
बहुत ही कम था। हो सकता है उसने खाया ही ने है। और न खाया हो यही बात मन को अधिक
तसल्ली देती थी।
बेचार टोनी उसकी गहरी
काली आंखे अदखुली कैसी नशीली दिखती थी। जब मैं उसे मारता या चिड़चिड़े पन के कारण
उसके साथ नहीं खेलता तब कितना उदास हो जाता था। कैसे मेरे पास आ मेरा महुँ चाटता
रहता था। वह बहुत ही प्यार वाला कुत्ता था। वह किसी भी खिलौने से खेलता हो जब में
उससे छिनता तो वह कभी ना नहीं करता था। पर मेरे जिराफ़ को उस दिन जब वह अंदर से
मुख में पकड़ कर खोलने के लिए लाया था तो मेरे बदन में कैसे आग लग गई थी। सच मेरे
अंदर जलन की भावन उन दोनों से कही अधिक थी। कुल मिलाकर जब याद करता हूं तो में उन
दोनों से बहुत ही खराब था। मुझे उन्होंने
प्यार दिया पर में अंदर से किसी को प्यार दे ही नहीं पाया। क्या कमी थी मेरे
विकास या मेरे जीन में ही कुछ ऐसा था। पर वह उस दिन से उदास रहने लगा था। मैं
सोचता था मेरे बीमार होने के कारण ऐसा है। क्योंकि उसे कोई साथी नहीं मिल पाता
रहा है,
खेलने के लिए। पर कारण कुछ और ही था जिसे हम नहीं जान पाये। पर उसके अंदर कुछ ओर ही चल रहा था। इसे
हम कोई भी नहीं देख पाये। कुछ ऐसा रेंग रहा था। जो उसे खत्म कर गया।
अब मैं धीरे—धीरे अच्छा महसूस कर रहा था। खेलने
का भी मन करता था भूख भी लगने लगी थी। एक दिन मैने टोनी को कहां की चलो खोलते है।
पर वह नहीं उठा। मैं उसे वैसे ही छोड़ कर इधर उधर खेलने लगा। पर वह बहुत देर तक
ऐसे ही लेटा रहा। ये उसके स्वभाव के विपरीत था। तब मैं उसके पास गया। और मैंने
उसका मुख चाट कर कहा की चलो उठो। पहर वह हिल भी नहीं रहा था। उसने अपनी गहरी नशीली
आँखों को खोल कर एक बार मुझे देखा। उन में कुछ दर्द था। एक लाचारी झलक रही थी।
क्योंकि पोनी की आंखें
आप ज्यादा देर तक देख नहीं सकते उनमें डूबने जैसा महसूस होता था। पर आज उसकी
आंखों में एक खास बेचैनी थी। उनमें वो पारदर्शीता जीवंतता कहीं दिखाई नहीं दे रही
थी। उसको पेचिस भी लग गये थे। साधारण पेचिस नही उनमें कुछ गाढा चिपचिप पदार्थ के
साथ खून भी था। श्याम होते उसकी आंखें अंदर को घस गई। मुहँ के किनारे जो लाल थे
वह सफेद और निर्जीव हो गये थे। मैं पास जा कर उसको सूँघने लगा एक अजीब सी दुर्गंध
उसके शरीर से आर ही थी।
जैसे किसी सड़े मास की। पर टोनी तो अभी जीवित है। फिर ये क्या? पापा जी सुबह से उसे तीन
चार बार चम्मच भर कर दवाई दे रहे थे। पर उसे कोई आराम ही नहीं हो रहा था। उसे दही
में दवाई डाल कर दी गई जो उसने सूंघ कर छोड़ दी मैं सोच रहा था। अगर यह उसे खा ले
तो इसके लिए अच्छा रहेगा। पर उसके अंदर कुछ जा ही नहीं रहा था। कुदरत कुछ रहस्य
अपने अंदर ही समेटे रहती है। जिन का पर्दा उठा कर हम कभी नहीं देखा पायेंगे।
पर रात को जब पापा जी चम्मच से उसे दवाई पिलाने
लगे तब उसका जबड़ा एक दम से अकड़ गया था। जबर दस्ती उसमें दवाई डाली जो बहार निकल
गई। उस की ये हालत देख कर मेरा भी कुछ खाने को मन नहीं कर रहा था। मैं समझ नहीं पा
रहा था कि क्या कारण हो सकता है टोनी कल तक एक दम ठीक था अचानक इसे क्या हो गया।
और मैं जो इतना अधिक बीमार था जिसके बचने की कोई उम्मीद नहीं थी।
मैं अब ठीक हो रहा हूं।
अब तो उससे उठा भी नहीं जा रहा था। पापा—मम्मी बहुत परेशान थे। रात हो गई थी। अब
किसी डा0 को भी नहीं दिखा सकते थे। फिर हमारी जाती का डा0 मिलना भी कोई आसान है।
शायद बात कर रहे थे कि सुबह इसे किसी डा0 को दिखाया जाये। उसकी जो गंध थी जिसे हम
पहचान करते थे। वह खत्म हो गई थी। वह एक अजीब सी हालत थी। जो मेरे लिए नई थी। ये
बातें मुझे बाद में पता चला कि क्यों ऐसा हो रहा था।
छ: महीने पूरे होते न होते प्रकृति अपनी आखिरी
परीक्षा वह प्रत्येक प्राणी की आयु के हिसाब से भिन्न होती है। वह हम सभी पर
आज़माती है। पर मुझे अपने और टोनी से ये सब ज्ञात हुआ। प्रकृति अपना विकास चाहती
है। वह कमजोर बीज, प्राणी को सहन नहीं
करती। जो सर्दी, गर्मी, और प्रकृति की हर बाधा को झेल ले वहीं जीवत रहने का
अधिकारी है। जो कमजोर होगा। वह उसे नहीं पनपने देती।
ये हम प्रकृति का बड़ा ही
भद्दा और कुरूप खेल लगेगा पर ये सत्य है। वह कमजोर बीज को नहीं उगने देगी। अगर
किसी कारण वश वह उग भी गया वह वृक्ष बनने की क्षमता नहीं रखता वह मर जायेगा। तो
वही बीज वृक्ष बनेगा जिसकी जीवेषणा प्रगाढ़ होगी। जो प्रत्येक बाधा को पार कर
पायेगा। मनुष्य ने विज्ञान का सहारा ले कर प्रकृति को भी विभ्रम में डाल दिया
होगा। कि ये मनुष्य शारीरक तोर पर जीने का अधिकारी नहीं है फिर भी जीवत है। खेर
मैंने देखा टोनी इसी प्रकृति के जाल को पार कर रहा है। पर ये मेरे लिए विरोध क्यों
शायद में अभी छ: माह का नहीं हुआ होगा। यहाँ इसी बिमारी के बीच में मेरा वो मध्य
काल भी साथ आ गय।
रात की नीरवता टोनी को मोत की और ले जा रही थी।
वह धीरे—धीरे मौत के जबड़े में जा रहा था। में उसके सामने बैठा देख रहा था। पर कर
कुछ नहीं सकता था लाचार था। शायद रात के एक या दो बजे होगें। आसमान में चाँद का
प्रतिबिम्ब अभी तक आया नहीं था। पूरा घर सो रहा था। दूर कही पर कभी कभार किसी मोर
के रोने की आवाज शांति को चिर देती थी। कभी कभार गीदड़ों की दर्द भरी हुंकार डरा
जाती थी। सब लोग दिन भर इतनी मेहनत करते है। रात यही तो चार घंटे सोने ओर आराम
करने को मिलते है। हम तो करीब 20 घंटे दिन में आराम से सोते होगें। फिर ये मनुष्य
चार घंटे सौ कर अपनी थकान को कैसे मिटा लेता है। जब की हमें तो दिन में कोई काम भी
नहीं करना होता है।
पर अचानक ऐसा लगा पीछे कोई आया है। मैंने पीछे
देखा पापा जी खड़े है। मैं उन्हें देख कर बहुत खुशी महसूस हुई और अपने चिर परिचित
पूछ हिला—हिला कर उनका स्वागत किया। उन्होंने पास कटोरी से एक चम्मच पानी लिया
और टोनी को पिलाने के लिए उनका मुहँ उपर उठाया। टोनी की असहाय आंखे पापा जी पर
टीकी है। शायद जीवन की अंतिम किरण या आस या शायद आंखों में वो छवि जो सामने उसका
सबसे प्रिय खड़ा हो उसे रख लेना चहा रहा था। उसने अध खुली आँखो को बंध नहीं किया।
उनमें एक ललक थी एक तमन्ना थी। पापा जी ने पानी टोनी के मुहँ में डाला पर वह भीतर
न जा कर मुहँ के दोनों तरफ बह गया। उसने मुहँ खोल कर कुछ कहना चहा। पर उसका मुख
अकड़ गया था। उसकी साँसे गहरी चलने लगी हो। और एक लंबी हिचकी कि साथ वह शांत हो
गया। पापा जी के हाथों में उनका निर्जीव मुहँ रह गया। टोनी हमें छोड़ कर चला गया।
पापा जी ने उसकी खुली आँखों को हथेली से बंध कर दिया। और उसे उसकी चादर से ढक
दिया। मैं ये सब देख रहा था। कुछ भी मेरी समझ में नहीं आ रहा था। वह एक गहरी शांत
निंद्रा में सो गया जिससे फिर कभी नहीं उठना होता। कहा चला गया टोनी, अब क्या नहीं उठ सकता। क्या मुझे भी यूहीं मरना
होगा। मरने के बाद क्या होता है। पहले हानि मरा, अब टोनी मरा कल मेरा नम्बर......ओर
में डर गया।
बच्चों
ने सुबह जब टोनी को मेरे हुए देखा तो उन्होंने पूछा, पापा जी टोनी क्या मर
गया। मरना क्या होता है। क्या सबको मरना होता है। अगर कोई न मरना चाहे तो उसे क्या
करना चाहिए। फिर ये बेचार टोनी ही अकेला क्या मर गया। ये उठना चाहे तो क्या उठ
नहीं सकता क्या उठ कर क्यों नहीं खड़ा हो सकता। दीदी ने कहां कि मैं तो कभी नहीं
मरूंगी, इसमें भी क्या है कौन रोकेगा। जब मरने
लगुंगा तो उठ कर खड़ी हो जाऊगी।
टोनी
बच्चों को प्रेम था। वो घर में आते ही पहले हम दोनों को प्यार करते थे। फिर कही
कुछ दूसरा काम करते थे। बच्चों ने अपने बहुत करीबी दोस्त को मरते देखा है। हानि
जब आया होगा तब तो ये बच्चे छोटे होगें। कुछ डरते भी होगें। पर हम उम्र के साथ जो
हिलनामिलना अधिक ही हो जाता है। वह बहुत गहरा में इन बच्चों के ही नहीं पूरे
परिवार के ह्रदय में बस गया था। बच्चे तो अकेले हुए पर मैं तो बिलकुल अनाथ ही हो
गया। जाति प्रेम भी कुछ होता है। वह मेरा सखा था। हमजोली था। कई महीनों तक में
टोनी की मोत को भूल नहीं पाया। मुझे बार—बार भ्रम हो जाये की अभी टोनी आया। अभी
वहां बैठा होगा। अभी वह भैया के खिलौने चोरी से छुपा कर कही खेल रहा होगा। और
उनमें दाँत गड़ा कर उन्हें फाड़ने की नाकाम कोशिश कर रहा होगा। पर ऐस था नहीं ये
मेरे मन का भ्रम था....। उसके दाँत बहुत मजबूत थे। मेरा प्यारा टोनी मुझे धोखा दे
गया। मोत मेरी तलाश में थी और उसे बेचारे को ले
कर चली गई।
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