शायद सितम्बर का महीना था। बरसात अभी गई नहीं
थी। कभी कभार रिम—झिम फुहार पड़ ही जाती थी। वैसे धूप में गर्मी बहुत दी और बादलों
के बीच से जो छन का धूप आती थी और भी बहुत कर्कश ओर तेज चुभती थी। बरसात के इन दो
महीनों से हम लोग जंगल कम ही गये थे। क्योंकि इन दिनों जंगल में सांप वगैरह का ज्यादा
भय होता था। और खास कर श्याम के समय जब
पुरवा हवा चलती थी जो वह सांप को बहुत प्रिय होती है। दिन भर की तपीस को शांत करे
के लिए इस समय अकसर बिल के बहार निकल आते थे। वैसे कहते है कि हमारे यहां का सांप
बहुत शांत है, कम ही लोगों को डसा था,
जिस तादाद में सांप पाये जाते है उसकी बनस्पत। वरना जितने साँपों की तादाद है उस
हिसाब से बहुत लोगो का डस लेना चाहिए लेकिन कभी कभार ही सुनने में आता था कि फला
आदमी को सांप ने काट लिया।
पर एक बात और है सांप
यहां का जहरीला बहुत है आप को काटा नहीं की आप की मृत्यु शर्तिया समझो। पर अब तो
दिल्ली में बरसात के चौमासा नाम मात्र के कहने भर के रह गये है। भला ये बरसात चार बार भी हो जाये तो गनीमत समझो
माह की बात तो बहुत दूर की है। ये देशी नाम तो अब किताबी बन कर रह गये है। चौमासा
की वर्षा मात्र अब तो चार बार आई और फुर्र से चली गई। बेचारे ये पेड़ पौधे देखते
रह जाते है आसमान की ओर। और धरती का सीना प्यास ही रह जाता है। घास है की उगने से
पहले ही सूख जाती है। पर फिर भी प्रकृति बड़ी ही विस्मयकारी है। एक तरह तो वह
देखने में कितनी कुरूर लगती है।
जंगल
में आप जा कर कह नहीं सकते की इतनी कम बरसात हुई है। जंगल अपनी हरियाली को इतनी कम
बरसात के कारण भी खूब हरा भरा बनाये हुए था। एक तो बरसाती झरना। और दूसरा जो जंगली
काबुली कीकर, वह तो जितनी अधिक गर्मी होगी वह उतनी ही हरी
होती है। शारदी तो उसे बिलकुल अच्छी नहीं लगती। तब तो वे अपने सब पत्ते उतार कर
केवल टहानीयों को लिए खड़ी रहती है। उस समय आपको लगेगा की पूरा जंगल सूख गया है।
और जरा सी बसंती हवा चली नहीं की उसकी टहानीया अठखेलिया शुरू कर देंगी। तेज हवा
चलनी शुरू हो जायेगी। क्योंकि प्रकृति अपना काम बड़ी सहजता से करती है। पुराने
पत्तों को गिराना है तभी तो नये आ सकेगें। और उधर ज्यादा बरसात हो जाये तब भी वह
उदास हो जाती है। तो इधर का जो पोखरों और नालों में पानी रह जाता है। वह कितने
दिनों तक जंगल की गरमी में भी खूब हरा भरा बनाये रहता है। जो ज्यादा पानी वाले
पेड़ है, नाले के आस पास उगे मस्त झूम रहे होते है।
बस कुछ घास ही है जो ज्यादा बरसात में अपना विकास कर मनुष्य से भी उँची हो जाती
है। जब बरसात कम हो ती है तो वह कम ऊंची होती है। जंगल का कुछ खास हिस्सा ही आपको
बता देता है कि कितनी बरसात हुई है। टोनी को मरे हुए करीब दो महीने हो गये होंगे।
जब भी जंगल के उस हिस्से
से गुजरते जहां पर टोनी को दबाया था उसकी बहुत याद आती थी। बरसात के बाद उस जगह को
पहचाना भी अति कठिन था। शायद में अकेला होता तो कभी नहीं खोज भी नहीं पाता पर पापा
जी तो जंगल का एक—एक चप्पा जानते थे। वह जो नरम मुलायम मिटी पर पत्थर रखे थे उन
के बीच जो झेझरू, और घास फूस उग आई थी। दो
चार साल बाद तो उसे पहचानना ही जाना मुश्किल है। बेचारा टोनी अंदर पता नहीं किस
हाल में होगा। नमक के कारण सड़ गया होगा। जीवन के वे मधुर क्षण उसके साथ लड़ झगड़ा
और खेल कर गुजार थे। वे में कभी भूल नहीं पाया। वो यादें बाल पन के कारण अति अचेतन
में उतर गई थी। उसके साथ खेलना मस्ताना कितना अच्छा लगता था। कैसे हम आपस में
खेल—खेल में ही लड़ पड़ते थे। ज्यादातर तो वह लड़ाई मेरी ही तरफ से शुरू होती थी।
वह तो अपना बचाव करने की मुद्रा में ही सामना करता था। पर वह था मुझसे ज्यादा ही
समझदार। वह खेल—खेल में कैसे पीछे वाले पैरो पर खड़ा हो जाता था। वह मोटा था पर
अपना संतुलन कितने आराम से बना लेता था। वह किस तरह से अगले दोनों पैरो को पापा जी
या मम्मी के ऊपर रख कर मुंह खोल कर दाँत निकाल कर हंसता था।
उसको अपने अगले पैरों पर
खड़ा होने का बहुत शौक था। सब कहते थे टोनी का कुत्ते बनने का ये पहला जन्म है।
क्योंकि वह बहुत से कुत्ते के रिति रिवाज जानता ही नहीं। पिछले जन्म में भालू होने के उसके अंदर बहुत ज्यादा लक्षण
दिखाई देते थे। सच में वो ऐसा ही लगता था। वह तरबूज, केला, सेब, संतरा, बेलपत्र के लिए तो वह मुझ से लड़ जाता था। वह सभी फल
खाता था। मैंने उसकी देखा देखी बहुत से फल खाने की कोशिश जरूर की पर खा नहीं पाया।
केला तरबूज, बेलपत्र, सेब, चेरी....बस इन में आम ही मेरी प्रिय फल बन सका वरना
मैं और फलो के खाने कि कितनी नाकाम कोशिश करता रहा पर हर बार हार गया। उन्हीं
फलों को जब टोनी को खाते देखता तो मुझे बड़ा अचरज भी होता। शहद और शहद से बनी कोई
चीज देख कर वह पागल हो जाता था।
दीदी उसके लिए कितनी बार
शहद वाले बिस्किट लाती थी। वह दीमक चींटी, या उड़ते किसी कीड़े को पल भी में पकड़कर खा जाता
था। कितनी बार उसने उस पीले वाले ततैये को भी पकड़ा और मार कर खा गय। जो बहुत जोर
से डंक मरता था। जब भी मैंने उसकी देखा—देखी नकल की मेरा मुहँ सूज कर मोटा हो गया।
सब लोग मेरी उस आदत के कारण मेरा मजाक भी उड़ाते थे। उसकी सूँघने की शक्ति भी मुझ
से बहुत अधिक थी। वह टाँग उठा कर किसी बिजली के खंबे पर भी पेशाब नहीं करता था।
मुझे देख कर भी वह कभी नहीं सीख पाया। मैने अभी तक कोई भी ऐसा कुत्ता अपने जीवन
मैं नहीं देखा जो इस चिर परिचित आदत से अंजान हो पर टोनी ऐसा ही था। बस पहला और
आखरी टोनी ही था।
बहुत कुछ टोनी में इन
थोड़े से गुण अवगुणों को मैंने देखा जो, और वह आज भी मेरे चित पर उसी तरह से चिपके
हुए है। मैं कभी उन्हें अपने चित से
उतरता नहीं है। टोनी चला गया, और दे गये मीठी यादें और उनसे जुड़ा कुछ दर्द।
जंगल
गर्मी के मौसम में जैसा होता है, ठीक बरसात के बाद तो वह
पूर्णत: नया हो जाता है। आप एक बार वो सब रास्ते भूल जायेगे जो आपने दो महीने
पहले भली भाति जानें थे। अचानक कुछ दूर दौड़ने के बाद मेरे पेट में ऐंठन सी शुरू
हो गई। जैसे कोई मेरी आंतों को मरोड़ रहा हो। जी मिचलाने लगा। मैं खड़ा हो गया।
पापा जी थोड़ा आगे चले गये थे। मुझे अपने साथ आता ने देख उन्होंने पीछे मुड़ कर
मुझे आवज लगाई। पर आवाज भी मेरे कानों की उपरी परत को ही छू कर गुजर गई, और मुझे
लग रहा था मेरे ऊपर कोई बेहोशी की परत चढ़ती जा रही है।
जैसे आप पानी के अंदर
होते है और कोई आपको आवाज दे, या आप देखना चाहे उस के जैसा मुझे लग रहा था। मेरी
आंखों के सामने अँधेरा छा रहा था। शरीर में ठंड के कारण कपकपी छूट रही थी। जब में
दो तीन आवज के बाद भी पापा जी के पास नहीं पहुंचा तब पापा जी ने मुड़ के मेरी देखा और मुझे अपने पीछे आया ने
देख के मेरे पास लोट आये। मुझे यूं खड़ा हुआ देख कर कुछ असमंजस में पड़ गये शायद
मेरे चेहरे पर दर्द की छाया उन्हें दिखाई दे गई। वह मेरे पास बैठ कर मेरे सर और
पीठ पर हाथ फेरने लगे। मेरा पूरा शरीर ठंड से कांप रहा था। अचानक मेरे पेट में
दर्द उठा मैं दोहरा हो कर लेट गया। लगा की पेट का सब कुछ बहार निकलने के लिए तैयार
है। और जोर से पानी के साथ जो मैने खाया
था वह बहार आ गया। मेरी आंखे मारे दर्द के लाल हो गई।
उनसे पानी निकलने लगा। दो
चार कदम चलने के बाद मेरे बहुत जोर से पेचिश हुई जिस में खून की कुछ बुंदे भी थी।
तब पापा जी घबरा गये और मुझे चेन से बाँध कर घर की और चल दिये पर मेरे चलने की
हिम्मत जवाब दे गई थी फिर भी मैं किसी तरह चल रहा था। गांव के पास तालाब पर पहुंच
कर मैने दोबारा दस्त किये। अब की बार उनमें खून अधिक था। मेरे पखाने से इतनी बदबू
आ रही थी की जंगल जैसी खुली जगह पर भी पापा जी ने नाक पर कपड़ा रख लिया। अब पापा
को कोई शक नहीं रहा की मेरी भी हालत टोनी जैसी हो गई है। तब उन्होंने कपड़े खराब
होने की परवाह भी नहीं की ओर मुझे अपनी गोद में उठा लिया। तेज कदमों से घर की और चल दिये यो दौड़ने लगे।
मेरी आंखे बंद हो रही थी ऐसा लगा रहा था नींद आ रही है। थोड़ी दूर चलने के बाद
मेरे पेट में फिर दर्द उठा पर अगर में उलटी करता तो पापा जी के सारे कपड़े खराब हो
जाते। इतनी देर में हमारी दूकान आ गई पापा जी ने मुझे जमीन पर उतार दिया। मेरे
मुहँ में भरी उलटी वहां पर फेल गई।
मम्मी जी ने जब मेरी ऐसी
हालत देखी तो वह भी घबरा गई। क्योंकि टोनी को तो इस हालत के कारण वह खो चूके थे।
तब पापा जी ने कहां की वह जो डा. हमने उस दिन
देखा था, पटेल नगर में वह शायद कुत्तों का है। में दीदी (अन्नू) के पोनी को ले कर
जाते हूं, अब देर नहीं करनी ठीक नहीं है। देखा आपने टोनी बेचारा को एक ही रात में
मर गया। अब ये भी मर जायेगा तो बहुत दुःख होगा। मम्मी जी मेरे मरने के बारे में
सुन का कुछ उदास हो गई। दुकान से एक कपड़ा ले कर पापा जी ने पहले मुझे उस में
लपेटा और फिर मुझे गोद में उठा कर घर की
और चल दिये। घर पहुंच कर दीदी को आवज दे कर बुलाया की पोनी की हालत कुछ ठीक नहीं
है। दीदी भाग कर आई। मुझे देख कर कहने क्या हो गया इसे।
पापा जी ने कहा जल्दी
चलो। किसी डा. के पास ले जाना है। पोनी को दस्त और उल्टी हो गये है। दीदी तो यह
सून कर रोने लगी, वह मुझे सबसे अधिक चाहती
थी। हालाकि जब तब में उससे गुर्रा भी देता था। उस का रोना सुन कर अंदर से वरूण और
हैमान्शु भैया भी बहार निकल कर देखने लगे की दीदी क्यों रो रही है। पापा जी ने सब
को धीरज बधाया कि पोनी ठीक हो जायेगा। तुम घबराई मत। हम अभी इसे दवाई दिलाकर लाते
है। और देखना पोनी ठीक हो जायेगे। और मैं ये सब टूटे—टूटे शब्दों में सून रहा था।
आंखें मेरी बंद हो गई थी।
पापा जी स्कूटर पर मुझे ओर दीदी को बिठा कर चल दिये। इस बीच एक और कपड़ा मेरे
नीचे बिछा दिया। ताकी दीदी के कपड़े खराब न हो। एक मकान के नीचे जा कर घंटी बजाईं
दो तीन बार घंटी बजाने के बाद किसी ने दरवाजा खोला,पापा जी ने कुछ बात की
दीदी मुझे गोद में लिए बैठी रही। बात शायद नहीं बनी। हम आगे की और चल दिये, इधर उधर बहुत भटकते और पूछते हुऐ घूमते रहे। इस बीच
मुझे फिर एक बार उल्टी हुई। पास से जब कोई गाड़ी गुजरती या उस की रोशनी मेरी
आंखों में पड़ती तब में थोड़ी सी आँख खोलता वरना बंद कर लेता।
मैने टोनी को इस हालत में
देखा था मैं समझ गया की अब मेरा भी वक्त आ गया।
इतना ही जीवन लिखा था, जो कुछ अच्छा या कुछ
खराब किया अब कुछ करने के लिए शायद में कभी उस घर में लोट कर न आऊं और मुझे भी
टोनी के पास ही सुला दिया जायेगा। मेरी साँसे
गहरी हो रही थी। आंखों में एक प्रकार का नशा चढ़ रहा था। लगता था अब कोई छेड़े ना
में आराम से सो जाऊं। दिल की धड़कन
बहुत तेज हो गई थी शरीर पसीना —पसीना हो रहा था। सांस भी इतनी गर्म थी की मेरा मुहँ भी गर्मी के कारण जल रहा था। हाथ पैर
सुन हो गये थे। पूछ जो हमेशा मेरा कहा मानती थी, वह भी आज मेरी होकर मेरी
नहीं थी। में उसे हिलाना चाहूं तो नहीं हिला पा रहा था।
किसी तरह पूछते हुए हम एक बड़ी सी कोठी में
पहुँचे पापा जी ने स्कूटर खड़ा किया और अंदर चले गये। कुछ देर बाद आए और स्कूटर को अंदर खड़ा कर मुझे अपनी गोद में
उठा लिया। पापा जी की गोद में जाते ही
मुझे एक सुखद एहसास हुआ इस से पहले इस गौद का इतना सुख मैंने कभी महसूस नहीं किया।
मैं कुछ क्षण के लिए अपने दुख दर्द को भूल गया। दीदी बार मुझे छू कर कुछ कह रही थी
पर मेरा मस्तिष्क निष्क्रिय सा हो गया था। कोई संदेश उस तक नहीं पहुंच रहा था।
दीदी मेरी ऐसी हालत देख कर रो रही थी। पापा जी ने उसे समझाया की डरने की कोई बात
नहीं अब तो डा. का घर आ गया अभी दवाई देंगे। और देखना पोनी एक दम से ठीक हो
जायेगा। दीदी बेचारी बच्चा ही तो थी, घबरा रही थी न जाने मेरा क्या हो... फिर भी
पापा जी बात सून कर दीदी चुप हो गई, बेचारी इतना तो भरोसा बच्चों का अपने मा बाप
पर होता है कि वे जो कह रहे है वह सत्य है। तब उसके अंदर कुछ हिम्मत आई। और उसने
रोना बंद कर दिया। मुझे अंदर एक टेबल पर लिटा
दिया।
मेरा मुंह और आंखें खोल कर टौर्च से किसी
अंजान से आदमी ने देखी मैं छूटना चाहता था। पर मेरे शरीर ने मेरी आज्ञा नहीं मानी।
उस ने फिर मेरा पेट बजा कर देखा। फिर पूछ उठा कर मेरे हिप भी देखे। मैं से सब देख
रहा था पर हरकत करने की हिम्मत मेरे अंदर नहीं थी। डा. ने कुछ बात चीत पापा जी से
की और एक इंजेक्शन मेरी जांघ और पैर की नस में लगा दिया। मुझे कुछ थोड़ा सा दर्द
महसूस हुआ। तब मैने आपने पेर झटकनें चाहे पर उन्हें और मेरे पेर और शरीर को किसी
ने जोर से पकड़ रखा था। अब अगर न भी पकड़ते तो कोन में उन्हें हाला सकता था। पर
पापा जी को सामने देख कर मेरी आंखों में आंसू आ गये। कि पता नहीं ये प्यारा—मुखड़ा ये मधुर आवाज फिर सुन सकूँ या न
सकूँ। पापा जी मेरी बात को समझ गये और उन्होंने मुझे छू कर कहां तू ठीक हो
जायेगा। मुझे अचरज हो रहा था की पापा जी ने मेरे मन की बात कैसे महसूस कर ली, एक
आस एक उम्मीद के सहारे मैंने अपनी आंखे बंद कर ली।
मुझे इसी तरह कितनी देर तक लिटाए रखा। इस का
मुझे कुछ पता नहीं। हां बीच—बीच में दर्द का अहसास होता तब आंखे खोल कर देखने की
कोशिश करता। बाद में मुझे पता चला कि उस दिन मेरे साथ क्या किया गया था। मेरे
शरीर में पानी की कमी हो जाने के कारण डीहाईड्रेशन हो गया था। तब मुझे ग्लूकोज के
साथ कुछ दवाइयाँ और इंजेक्शन भी दिये गये।
जो मुझे अंदरूनी ताकत दे। डा. ने पापा जी को कहां की पक्का नहीं कहा जा सकता की
क्या होगा, हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। अब आगे भगवान की मर्जी....आज की
रात इस पर बहुत भारी होगी। वहां हमें काफी देर हो गई थी। रात काफी हो गई दी। डा. की लिखी कुछ दवाईयां
पापा जी लेने के लिए चले गये। मैं और दीदी अकेले रह गये। मुझे कुछ भय सा लग रहा
था। पर उस समय दीदी ने मुझे अपनी गोद में
लिटा रखा था।
फिर न जाने कब मुझे नींद
सी आने लगी। और मैं सो गया। कभी कभी कोई आवाज आती तो जाग जाता। पर में केवल आंखे
खोल कर देख भर रहा था। जो कुछ दृश्य सामने से गुजर रहे थे वो मेरी समझ से बहार थे।
कब घर आये इस बात का मुझे कुछ पता नहीं। रात भी कई—कई बार मम्मी और पापा जी ने
मुझे उठा कर दवाई दी। अचानक आधी रात के समय मुझे कुछ अजीब सा लगने लगा। एक घुटन सी
महसूस होने लगी। शरीर में इतनी बेचैनी फैल गई की
लगा ये जगह मुझे नहीं समा पा रही। मुझे लगेंगे लगा की यह कमरा कुछ छोटा है।
जो मुझे समा नहीं पा रहा ऐसा लगा कि कही दूर खुले आसमान में निकल जाऊं। जहां कोई
दीवार कोई बंधन न हो। न कोई अपना हो न में किसी को देखू। एक शून्य में जाने का मन
कर रहा था।
ऐसा पहले या बाद में मुझे
कभी महसूस नही हुआ। क्या उस समय शरीर छूटने का समय था जिस के कारण ये शरीर का
बंधन ये चार दीवारें की कैद खान सा लग रही थी। आरे में बहार की और भागता, जहां पेड़ पौधे उगे थे। वहां गीली मिटटी में थक कर
गिर गया। फिर कुछ देर बाद उठा और मैंने उलटी की, पर खड़ा नहीं रह सका। और फिर शरीर निर्जीव सा हो कर निढाल हो कर वहीं
गया। पापा जी आये और मुझे अपनी गोद में उठा कर अंदर ले गये। ये मेरी हरकत उन्हें
भी कुछ अजीब लग रही थी क्यों में गीली क्यारी में पेड़ो के बीच में जा कर लेट
जाता हूं। या कहीं बीच आँगन में गिरा हुआ पाता। मेरे कारण उस रात मम्मी पापा भी
सो नहीं सके।
कितना चाहते थे इस परिवार
के लोग अब में महसूस कर रहा था। पापा जी मुझे कपड़े में लपेट कर अपने सिने
से लगा कर अंदर लाये, और मेरे शरीर की गर्म पोटली से सिकाई करने लगे। जिससे
मुझे कुछ गर्मी मिले। पर में फिर कुछ ही देर में उठ कर बहार चला आता। शायद उलटी या
दस्त करने या किसी और कारण से। रात भर मेरी हालत कुछ ठीक नहीं रही! बस इतनी गनीमत
समझो की मैं मरा नहीं और किसी तरह से वो काली रात जो अपने में समान चाहती थी। मुझे
आपने आगोश में ले नहीं सकी। जिस का कारण पापा जी की सतत देख रेख ही करण बनी। और
मुझे उस रात अकेले नहीं रहने दिया...ताकी मोत जब आये तो मुझे अकेला समझ कर न चुरा
ले जाये। पापा जी मेरे पहरे दार बन पूरी रात डटे रह।
पर ये भी एक चमत्कार ही था की मैं रात भर जीवित
रह गया। शायद मनुष्य (पापा) के संग के कारण क्योंकि उसने आधुनिक औषधियों का
विकास कर लिया है। प्रकृति तोर पर तो वहीं मेरा जीवन समाप्ति है। क्या प्रकृति सोचती नहीं होगी जिसे जीना नहीं चाहिए। जो जीवन से हार गया है। फिर कैसे उसमें इतनी
शक्ति आ जाती है। और उस ने मुझे हरा दिया। उसे कुछ अचरज नहीं होता होगा। कि न
जाने कौन सी बाधा मेरे काम में रूकावट बन रही है। और वह मेरे हाथों से छुड़ा कर नव
जीवन दे रही है। उन्हें पुन: खेलने दौड़ने लग जाता है। और मुझे फिर उसका 5—10 साल तक इंतजार करना होता है।
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