रविवार, 24 दिसंबर 2017

स्वर्णिम बचपन-(ओशो आत्मकथा)-सत्र-13



सत्र-13  मैं पागल आदमी हूं

      मैं जीसस को नहीं भूल सकता। मैं उन्‍हें दुनिया के किसी भी ईसाई से कहीं अधिक याद करता हूं। जीसस कहते है, ‘धन्य भागी हैं वे’ जो छोटे बच्‍चे जैसे है, क्‍योंकि प्रभु का राज्‍य उनका है।
      यहां पर जो याद रखने बाला सबसे अधिक महत्वपूर्ण शब्‍द है वह है क्‍योंकि। जीसस के उन सब वक्तव्य में से जो ‘जो धन्‍य भागी है से आरंभ होता है और समाप्‍त होता है, ‘प्रभु के राज्‍य ’ के साथ। उनमें से केवल यही एक वक्तव्य अनोखा है। क्‍योंकि शेष सब वक्तव्य क‍हते है। ‘धन्‍यभागी है वे जो विनम्र है, दीन-हीन है, क्‍योंकि वे प्रभु के राज्‍य के उतराधिकारी होंगे।’ वे वक्तव्य तर्कपूर्ण है और वे भविष्‍य का वादा करते है—भविष्‍य, जिसका कोई अस्तित्‍व नहीं है। यही एकमात्र वक्तव्य है जो कहता है,.....क्‍योंकि प्रभु का राज्‍य उनका है।‘ इसमें न कोई भविष्‍य है, न तर्क है, न किसी लाभ का कोई वादा है। तथ्‍य का शुद्ध वक्तव्य है या यूं कहिए कि तथ्‍य का सीधा-सरल वक्तव्य है।

      मैं इस वक्तव्य से सदा बहुत प्रभावित रहा हूं, बहुत हैरान हूं। मैं विश्‍वास ही कर सकता कि कोई तीस साल तक एक ही वक्तव्य पर बार-बार हैरान हो स‍कता हो । हां तीस साल तक यह वक्‍तव्‍य निरंतर मेरे ह्रदय को आनंद से कंपित करता रहता है। ‘क्‍योंकि प्रभु का राज्‍य उनका है।’ कितना तर्कहीन और फिर भी कितना सच्‍चा।
      उस दिन मैं बता रहा था कि मेरे नाना कि मृत्‍यु ही मेरा मृत्‍यु से प्रथम साक्षात्‍कार था। हां, साक्षात्‍कार और कुछ और भी। केवल साक्षात्‍कार ही नहीं अन्‍यथा मैं इसके वास्‍तविक अर्थ से चूक जाता। मैंने मृत्‍यु को देखा, इसके अतिरिक्‍त कु  छ और भी जो कि मर नहीं रहा था। जो उसके ऊपर तैर रहा था। जो शरीर से पलायन कर रहा था, छूट रहा था....वे तत्‍व। इस साक्षात्‍कार ने मेरे समस्‍त जीवन-प्रवाह को निश्चित क‍र दिया। इसने मुझे एक विशेष दिशा दी या यूं कहो कि मुझे ए‍क ऐसा नया आयाम दिया जिसे मैं पहले नहीं जानता था।
      मैंने दूसरे लोगों की मृत्‍यु के बारे में सुना था, लेकिन केवल सुना था, मैंने देखा नहीं था। और अगर देखा भी होता तो उसका मेरे लिए कोई अर्थ नहीं था। जब तक कोई अपना प्रिय न मरे तब तक तुम सही में मृत्‍यु का साक्षात्‍कार नहीं कर सकते।
      इन शब्‍दों को रेखांकित कर लो, ‘मृत्‍यु को साक्षात्‍कार केवल किसी प्रिय की मृत्‍यु के समय ही होता है।’
      जब प्रेम तथा मृत्‍यु, दोनों एक साथ तुम्‍हें घेर ले तब परिवर्तन होता है। वह रूपांतरण इतना तीव्र होता है जैसे कि नये व्‍यक्ति का जन्‍म हो इसके बाद तुम पहले जैसे नहीं रहते।
      लेकिन लोग प्रेम नहीं करते और क्‍योंकि वे प्रेम नहीं करते इसलिए उन्‍हें मृत्‍यु का अनुभव वैसा नहीं होता जैसा अनुभव मुझे हुआ। बिना प्रेम के मृत्‍यु तुम्‍हें अस्तित्‍व की कुंजियों नहीं देती। प्रेम हो तो वह तुम्‍हें उस सबकी कुंजी दे देती है जो है।
       मृत्‍यु का मेरा पहला अनुभव कोई सरल साक्षात्‍कार नहीं था। वह कई प्रकार से जटिल था। जिनसे मैं प्रेम करता था वे मर रहे थे। उनको मैंने अपने पिता की तरह जाना था। उन्‍होंने मेरे पालन-पोषण के समय मुझे पूरी स्‍वतंत्रता दे रखी थी। मेरे लिए कोई आदेश नहीं था। कोई निषेध नहीं था। कोई दमन नहीं था। उन्‍होंने मुझसे कभी नहीं कहा कि ‘यह मत करो, या वो मत करो’। उनको आंतरिक सौंदर्य अब मेरी समझ में आता है। एक बूढे आदमी के लिए बहुत मुश्किल है किसी बच्‍चे को इस तरह कि हिदायत न देना। लेकिन उन्‍होंने ऐसा कभी नहीं कहा। जहां तक मुझे याद है, जब उन्हें लगता कि मैं कुछ गलत कर रहा हूं तो, वे अपनी आंखे बंद कर लेते और इस प्रकार वे अपने को वहाँ से हटा देते। एक बार मैंने उनसे पूछा: ‘नाना, जब मैं आपके पास बैठता हूं तो कभी-कभी आप अपनी आंखें क्‍यों बंद कर लेते हो।’
      उनहोंने कहा: ‘आज यह तुम्‍हारी समझ में नहीं आएगा, लेकिन शायद किसी दिन समझ जाओगे। मैं अपनी आंखें बंद कर लेता हूं ताकि तुम जो भी कर रहे हो उसे मैं रोकू न। चाहे वह गलत हो चाहे ठीक, तुम्‍हें किसी भी बात से रोकना मेरा काम नहीं है। मैंने तुम्‍हें तुम्‍हारे माता-पिता से ले लिया है। और अगर मैं तुम्‍हें स्‍वतंत्रता नहीं दे सकता तो तुम्‍हें माता-पिता से लेने का फायदा? इसीलिए तो मैंने तुम्‍हें उनसे ले लिया था ताकि वे तुम्‍हारे जीवन में कोई दखल ल दें। तो फिर मैं कैसे दखल दे सकता हूं।’
      ‘कभी-कभी तुम हद कर देते हो और तब मुझे अपने आपकेा रोकना मुश्किल हो जाता है। मुझे यह मालूम नहीं था, नहीं तो यह खतरा मोल न लेता। किसी तरह खोज-खोज कर, गलत काम करने में तुम बहुत कुशल हो। मुझे आश्‍चर्य होता है, कैसे तुम गलत करने के लिए ढेर सारी चीजें खोजते रहते हो। या तो मैं पागल हूं या तुम पागल हो।’
      मैंने कहा: ‘नाना, आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है। अगर कोई पागल है तो मैं हूं।‘
      और उसी दिन से मैं लोगों से कह रहा हूं, मुझसे परेशान मत होओ। मैं पागल आदमी हूं।
      यह तो मैंने नाना को दिलासा देने के लिए कहा था और अभी भी मैं यह उन लोगों को दिलासा दिलाने के लिए कहता हूं जो सचमुच पागल है। लेकिन जब तुम पागलख़ाने में होओ और सिर्फ अकेले तुम ही पागल न होओ तुम सिर्फ पागलों      से यह कहने के अलावा और कर भी क्‍या सकते हो कि घबड़ाएं मत, परेशान न हों, मैं पागल हूं, उसे गंभीरता से न लें।
      जीवन भर मैं यहीं करता रहा हूं।
      लेकिन कभी-कभी मैं अति कर बैठता था। उदाहरण के लिए एक दिन मैं अपने नौकर, भूरा की सवारी कर रहा था। मैंने उसे घोड़ा बनने के लिए कहा तो पहले वह थोड़ा घबड़ाया। लेकिन मेरी नानी ने उससे कहा: ‘तुम घोड़े जैसा अभिनय नहीं कर सकत, घोड़ा बनने में क्‍या मुश्किल है? सो उस बेचारे को घोड़ा बनना पडा और मैं उस पर सवार हो गया। नाना यह सहन न कर सके, उन्‍होंने अपनी आंखें बंद कर लीं और अपना मंत्र दोहराने लगे: नमो अरिहंताणं नमां.....नमो सिद्धाणं नमो।’
      मैंने खेल बंद किया, क्‍योंकि जब उन्‍होंने अपने मंत्र को जाप करना शुरू किया तो इसका अर्थ था कि उनकी सहन शक्ति समाप्‍त हो रही है। यह खेल बंद करने का समय था। मैंने उनको झकझोरते हुए कहा, नाना, वापस आ जाओ। अपने मंत्र के जपने की जरूरत नहीं हे। मैंने खेल बंद कर दिया है। क्‍या आप देख नहीं सकते कि यह सिर्फ एक खेल था।
      उन्‍होंने मेरी आंखों में देखा और मैंने उनकी आंखों में देखा। एक क्षण के लिए मौन छा गया। उन्‍होंने पहले मेरे बोलने का इंतजार किया, फिर उन्‍होंने कहा: ‘अच्‍छा मुझे ही पहले बोलना चाहिए।’
      मैंने कहा: ‘हां, यह ठीक है। क्‍योंकि अगर आप चुप रहते तो मैं जीवन भर चुप रहता। यह अच्‍छा हुआ कि आप बोले इसलिए अब मैं आपको उत्‍तर दे सकता हूं। आप क्‍या पुछना चाहते है।’
      उनहोंने कहा: ‘मैं तुमसे सदा एक ही बात पूछना चाहता हूं कि तुम इतने शैतान क्‍यों हो।‘
      मैंने कहा: ‘यह प्रश्‍न तो आपको भगवान से पूछने के लिए रखना चाहिए। जब आपकी भेंट भगवान से हो तब आप उनसे पूछना: आपने इस बच्‍चे को इतना शैतान क्‍यों बनाया? आप यह मुझसे नहीं पूछ सकते। मुझसे पूछना तो ऐसे है जैसे कि कहा जाए: तुम, तुम क्‍यों हो। अब इसका उत्‍तर क्‍या हो सकता है। जहां तक मेरा सवाल है मुझे तो इसकी कोई चिंता नहीं है। मैं अपने जैसा हूं। इस घर में अपने जैसा होने की इजाजत है या नहीं?
      हम लोग बाहर बग़ीचे में बैठे थे। उन्‍होंने मेरी और फिर से देखा और पूछा, ‘क्‍या मतलब है तुम्‍हारा।’
      मैंने कहा: ‘आपकेा अच्‍छी तरह से मालूम है कि मेरा क्‍या मतलब है। अगर मैं अपने जैसा नहीं हो सकता तो मैं इस घर में प्रवेश नहीं करूंगा। सो आपको यह बात साफ करनी होगी कि यस तो मैं अपने जैसा रह कर इस घर के भीतर जाऊँ या इस घर को भूल केर मैं आवारा घुमक्‍कड़ बन जाऊँ। साफ-साफ बताइए कि मुझे क्‍या करना है—जल्‍दी बताइए।’
      उन्‍होंने हंस कर कहा: ‘तुम घर के भीतर जा सकते हो। यह तुम्‍हारा घर है। अगर मैं तुम्‍हारे जीवन में दखल देने से अपने आप को न रोक सका तो मैं घर छोड़ दूँगा। तुम्‍हे घर छोड़ने जरूरत नहीं।’
      उन्‍होंने ऐसा ही किया। इस वार्तालाप के सिर्फ दो महीने बाद वे संसार से ही चल बसे। उनहोंने  सिर्फ अपना घर ही नहीं, अपना शरी भी छोड़ दिया जोकि उनका वास्‍तविक घर था।
      मैं नाना से बहुत प्रेम करता था, क्‍योंकि उनको मेरी स्वतंत्रता ब‍हुत प्रिय थी। मैं तभी प्रेम कर सकता हूं जब मेरी स्‍वतंत्रता का आदर किया जाए। अगर स्‍वतंत्रता देकर मुझे प्रेम मिले तो मुझे यह सौदा स्‍वीकार नहीं। कमजोर लोगों के लिए यह ठीक हो सकता है, लेकिन समझदार व्‍यक्ति किसी कीमत पर अपनी स्‍वतंत्रता को नहीं खोएगा।
      इस संसार में प्राय: हर व्‍यक्ति यह समझता है कि वह प्रेम करता है, लेकिन अगर तुम इन प्रेमियों को देखो तो ये प्रेमी एक-दूसरे के कैदी है। यह कैसा अजीब प्रेम जो एक-दूसरे को बंधन में डाल देता है। क्‍या प्रेम भी कभी बंधन हो सकता है? लेकिन निन्यानवे दशमलव नौ प्रति‍शत ऐसा ही होता है, क्‍योंकि आरंभ से ही प्रेम वहां नहीं था।
      सच तो यह है कि सामान्‍यत: लोग समझते हैं‍ कि वे प्रेम करते है, लेकिन वे प्रेम नहीं करते। क्‍योंकि तब प्रेम होता हे तो फिर कहां मैं और कहां तू? प्रेम के साथ आता है स्‍वतंत्रता का भाव, जिसमें अधिकार का भाव नहीं होता। लेकिन दुर्भाग्‍य से ऐसा प्रेम दुर्लभ है।
      अगर प्रेम में  स्‍वतंत्रता बनी रहे तो तुम राजा या रानी  से कम नहीं हो। वही तो परमात्‍मा का सच्‍चा राजय है—प्रेम स्‍वतंत्रता के साथ। प्रेम तुम्‍हारी जड़ें जमीन में मजबूत करता है और स्‍वतंत्रता तुम्‍हें पंख देती है।
      मेरे नाना ने मुझे ये दोनों दिए। मुझे उनसे जितना प्रेम मिला उतना तो नानी को या मेरी मां को भी नहीं मिला। साथ-साथ ही उन्‍होंने मुझे स्‍वतंत्रता भी दी, जो सबसे बड़ा उपहार है। जब वे मर रहे थे तो उन्‍होंने मुझे अपनी अंगूठी दी और आंखों में आंसू भर कर कहा: ‘तुम्‍हें देने को मेरे पास और कुछ नहीं है।‘ 
      मैंने कहा: ‘नाना आपने मुझे पहले से ही सबसे मूल्‍यवान उपहार दिया है।’
      उन्‍होंने अपनी आंखें खोली और पूछा, ‘वह क्‍या है।’
      मैंने हंसते हुए कहा: ‘आप भूल गए, आपने मुझे अपना प्रेम दिया और स्‍वतंत्रता भी दी। आपने जैसी स्‍वतंत्रता मुझे दी वैसी तो किसी बच्चे को नहीं। मुझे और क्‍या चाहिए, आप और क्‍या दे सकते है, मैं आपका आभारी हूं, अब आप शांति से विदा हो सकते है।‘
      इसके बाद मैंने कई लोगों को मरते देखा है, लेकिन शांतिपूर्वक मरना ब‍हुत मुश्किल है। मैंने केवल पाँच लोगों को शांतिपूर्वक मरते देखा है। पहले थे मेरे नाना, दूसरा था मेरा नौकर भूरा, तीसरी थी मेरी नानी, चौथे थे मेरे पिता और पांचवां था विमल कीर्ति।’   
      भूरा सिर्फ इसलिए मरा क्‍योंकि वह अपने मालिक के बिना इस संसार में जीने की सोच भी न सकता था। वह मर गया, सहजता से मर गया। वह हमारे साथ मेरे पिता के गांव आया था। क्‍योंकि वह बैलगाड़ी चला रहा था। जब उसे कुछ समय के लिए बैलगाड़ी के पर्दे के भीतर से कुछ भी सुनाई नहीं दिया तो उसने मुझसे पूछा: ‘बेटा सब ठीक है न,’ बार-बार भूरा ने पूछा, ‘सब चुप क्‍यों है’ कोई बोल क्‍यों नहीं रहा। वह पर्दे के बहार बैठा हुआ था, और उसने पर्दे को उठा कर देखने की कोशिश नहीं कि। वह ऐसी धृष्‍टता कैसे कर सकता था। क्‍योंकि भीतर नानी बैठी हुई थी। इसलिए वह बार-बार पूछ रहा था कि क्‍या बात है, सब चुप क्‍यों है, मैंने कहा: ’बात तो कुछ भी नहीं हम लोग मौन का मजा ले रहे है। नाना चाहते है कि हम चुप रहें।’
      यह झूठ था। क्‍योंकि नाना तो मर गए थे। लेकिन एक प्रकार से यह सच भी था, नाना चुप थे और वहीं उनका संदेश था हमारे लिए चुप रहने का। आखिर मैंने भूरा को कहा: ’सब ठीक है, लेकिन नाना चले गए है।’         
      वह विश्वास न कर सका, उसने कहा: ‘तब सब ठीक कैसे हो सकता है? उसके बिना मैं जिंदा नहीं रह सकता। और चौबीस घंटे के भीतर वह मर गया। ठीक ऐसे जैसे खिला हुआ फूल बंद हो जाता है और फिर दुबारा खुलने को तैयार नहीं होता। अब हम मेरे पिता के शहर में थे, जो कुछ बड़ा था, इसलिए हमने भूरा को बचाने की बहुत कोशिश की।’
      भारत के लिए मेरे पिता का शहर एक छोटा सा शहर था। वहां की जनसंख्‍या केवल बीस हजार थी। वहां पर एक अस्‍पताल का डाक्‍टर  आश्‍चर्यचकित था, उसे विश्‍वास ही नहीं हो रहा था कि भूरा भारतीय है, क्‍योंकि भूरा बिलकुल यूरोपीय दिखाई देता था। शायद वह जीव-विज्ञान का विचित्र उदाहरण था, मुझे पता नहीं। कुछ ठीक हो गया होगा। प्रचलित मुहावरे के अनुसार तो कहा जाता है, कुछ गड़बड़ हो गई होगी। लेकिन मैंने अपना मुहावरा बनाया है: ‘कुछ ठीक हो गया होगा।’ गड़बड़  ही क्‍यों कहा जाए?
      अपने मालिक की मृत्‍यु से भूरा को बहुत गहरा सदमा पहुंचा। जब तक हम शहर नहीं पहुंचे तब तक हम उसे झूठ बोलते रहे। शहर पहुंचने पर जब शव को बैलगाड़ी से बाहर निकाला गया तब भूरा ने देखा कि क्‍या हुआ है। उसने अपनी आंखें बंद कर ली और फिर कभी नहीं खोली। उसने कहा: ‘मैं अपने मालिक को मरा हुआ नहीं देख सकता।’ और यह था सिर्फ मालिक नौकर का संबंध, लेकिन उन दोनों के बीच एक ऐसा गहरा संबंध, एक ऐसी गहरी घनिष्‍ठता पैदा हो गई थी, जिसको परिभाषित नहीं किया जा सकता। इतना तो मैं निश्चित रूप से कह सकता हूं कि उसने दुबारा अपनी आंखें नहीं खोली। नाना के मरने के बाद वह कुछ घंटे ही जीवित रहा। मरने से पहले वह बेहोश हो गया, कोमा में चला गया।
      मरने से पहल नाना ने नानी से कहा था: ‘भूरा का ख्‍याल रखना। मुझे मालूम है कि तुम राजा की देखभाल अच्‍छी तरह से करेगी, उसके बारे मुझे तुमसे कुछ नहीं कहना, लेकिन भूरा का ध्‍यान रखना। उसने जैसी मेरी सेवा की है वैसी कोई नहीं कर सकता था।’
      मैंने डाक्टर से कहा: ‘क्‍या आप इन दोनों के बीच प्रेम और विश्‍वास को समझ सकते हो, डाक्‍टर ने मुझसे पूछा, ‘क्‍या यह यूरोपियन था।’
      मैंने कहा: ‘दिखाई तो ऐसा ही देता है।’
      डाक्‍टर ने कहा: ‘चालाकी मत करों, तुम हो तो सात-आठ साल कि बच्‍चे, लेकिन हो बहुत शैतान और चालाक। दूसरे को चक्‍कर में डाल देते हो। जब मैंने तुमसे पूछा कि क्‍या तुम्‍हारे नाना मर गए है, तो तुमने कहा कि नहीं। और वह सच नहीं था।’
      मैंने कहा: ‘नहीं वह सच था। वे मरे नहीं है। इतना प्रेमपूर्ण व्यक्ति‍’ मर ही नहीं सकता। अगर प्रेम मर सकता है ता दुनिया के लिए कोई आशा नहीं है। मैं तो विश्‍वास ही नहीं कर सकता कि जिस आदमी ने मेरी स्‍वतंत्रता का—एक छोटे बच्चे की स्‍वतंत्रता का इतना आदर किया वह मर गया है। सिर्फ इसलिए क्‍योंकि अब वह श्‍वास नहीं ले सकता। मैं मृत्‍यु और श्‍वास लेने को बराबर नहीं मानता। नहीं लेने का अर्थ मर जाना है।
      उस यूरोपियन डाक्टर ने शंकालु दृष्टि से मुझे देखा और मेरे चाचा से कहा: ‘या तो यह लड़का दार्शनिक बनेगा या पागल हो जाएगा।’
      उसकी बात गलत हो गई, क्‍योंकि मैं दोनों एक साथ हूं—‘या’ का तो कोई प्रश्‍न ही नहीं उठता। मैं सोरेन कीर्कगार्ड नहीं हूं—या यह वह का कोई प्रश्‍न ही नहीं है। लेकिन मुझे आश्‍चर्य है कि वह मेरी बात पर विश्‍वास क्‍यों नही कर सका। बात तो सीधी और सरल थी। लेकिन सरल बातों पर विश्‍वास करना बहुत मुश्किल है। मुश्किल बातों पर विश्‍वास करना सबसे आसान है। विश्‍वास क्‍यों करो? तुम्‍हारा मन कहता है, यह तो इतना सरल है। इसमें कोई जटिलता नहीं है। इस पर विश्‍वास करने का तो कोई कारण ही नहीं है।‘ जब तक तम तरतूलियनर न होओ—जिसका वक्तव्य मुझे बहुत प्रिय है।
      संसार की सभी भाषाओं के साहित्‍यों में से अगर मुझे एक वक्तव्य चुनना हो तो मुझे खेद हे कि जीसस क्राइस्‍ट से नहीं चुनूंगा, और मुझे खेद है कि गौतम बुद्ध से नहीं चुनूंगा, मोजेज, मोहम्‍मद, या च्‍वांगत्‍सु, या लाओत्से से भी नहीं चुनूंगा। मैं तो चुनूंगा इस अजीब आदमी से जिसके बारे में कुछ भी नहीं मालूम—तरतूलियनर। इस नाम का सही उच्‍चारण तो मैं नहीं जानता, इसलिए इसके अक्षरों का उच्‍चारण इस प्रकार करता हूं। तर-तू-लियन। मुझे सबसे प्रिय इसका उदाहरण है—‘क्रेडो कुआ एबसर्डम।’ अर्थात‍--मैं विश्‍वास करता हूं, क्‍योंकि यह बेतुका है, असंगत है।‘
      क्षण भर को तरतूलियनर को भूल जाओ। उस पर पर्दा गिरा दो इन गुलाबों को देखो। इनको तुम क्‍यों प्रेम करते हो। इनसे प्रेम करने का कोई कारण तो नहीं है। क्‍या यह बेतुकापन नहीं है। अगर कोई बार-बार तुमसे पूछे कि तुम गुलाबों को क्‍यों प्रेम करते हो, तो अंत में तुम अपने कंधे बिचका दोगे। यही कंधे बिचकाना—‘क्रेड़ो कुआ एबसर्डस।’ तरतूलियनर फिलासफी का यही अर्थ है।
      मेरी समझ में नहीं आ सका कि वह डाक्‍टर इस बात पर विश्‍वास क्‍यों नहीं कर सका कि मेरे नाना नहीं मेरे। मैं जानता था और वह भी जानता था कि जहां तक शरीर का प्रश्‍न है वह तो समाप्‍त हो गया था—इसमें तो कोई संदेह नहीं था, लेकिन शरीर के अतिरिक्‍त भी कुछ है, शरीर में होते हुए भी वह शरीर का अंश नहीं है। प्रेम उसको उदघाटित करता है, स्‍वतंत्रता उसे आकाश में ऊंची उडान के लिए पंख देती है।

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