ज्योतिष: अद्वैत का
विज्ञान—3
तो साधारणत: देखने पर पता
चलता है कि इन ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति का किसी के बच्चे के पैदा होने से, होरोस्कोप से क्या संबंध हो
सकता है। यह तर्क सीधा और साफ मालूम होत है। फिर चाँद तारे एक बच्चे के जन्म की
चिन्ता तो नहीं करते? और फिर एक बच्चा ही पैदा नहीं होता, एक स्थिति
में लाखों बच्चें पैदा होते है। पर लाखों बच्चे एक से नहीं होते, इन तर्कों से ऐसा लगने लगा....। तीन सौ वर्षों से यह तर्क दिये जा रहे हे कि कोई संबंध
नक्षत्रों से व्यक्ति के जन्म का नहीं है।
लेकिन
ब्राउन,
पिकाडी और इन सारे लोगों की, तोमा तो....। इन सबकी खोज का एक
अद्भुत परिणाम हुआ है और वह यह कि ये वैज्ञानिक कहते है कि अभी हम यह तो नहीं कह
सकते कि व्यक्तिगत रूप से कोई बच्चा प्रभावित होता है। लेकिन अब हम यह पक्के
रूप से कह सकते है, लेकिन जीवन निश्चित रूप से प्रभावित
होता है। और अगर जीवन प्रभावित होता है तो हमारी खोज जैसे-जैसे सूक्ष्म होगी
वैसे-वैसे हम पाएंगे कि व्यक्ति भी प्रभावित होता हे।
इससे
एक बात और ख्याल में ले लेनी जरूरी है—जैसा सोचा जाता हे, वह तथ्य नहीं है। ऐसा सोचा
जाता है कि ज्योतिष विकसित विज्ञान नहीं है। प्रांरभ उसका हुआ फिर वह विकसित नहीं
हो सका। लेकिन मेरे देखे स्थिति उल्टी है, ज्योतिष किसी सभ्यता
के द्वारा बहुत बड़ा विकसित विज्ञान है लेकिन फिर वह सभ्यता खो गयी और हमारे हाथ
में ज्योतिष के अधूरे सूत्र रह गए।
ज्योतिष
कोई नया विज्ञान नहीं है जिसे विकसित होना है, बल्कि कोई विज्ञान है जो पूरी तरह विकसित हुआ था और फिर
जिस सभ्यता ने उसे विकसित किया वह खो गयी। और सभ्यताएं रोज आती हैं और खो जाती
है। फिर उनके द्वारा विकसित चीजें भी अपने मौलिक आधार खो देती है। सूत्र भूल जाते
हैं, उनकी आधार शिलाएं खो जाती हे।
विज्ञान, आज इसे स्वीकार करने के निकट
पहुंच रहा है कि जीवन प्रभावित होता हे। और एक छोटे बच्चे के जन्म के समय उसके
चित की स्थिति ठीक वैसी ही होती है जैसे बहुत सेंसिटिव फोटो-प्लेट की। इस पर दो-तीन बातें और ख्याल में ले लें,ताकि समझ में आ सके
कि जीवन प्रभावित होता है। और अगर जीवन प्रभावित होता है, तो
ही ज्योतिष की कोई संभावना निर्मित होती है। अन्यथा निर्मित नहीं होती।
जुड़वाँ
बच्चों को समझने की थोड़ी कोशिश करें। दो तरह के जुड़वाँ बच्चे होते हे। एक तो जुड़वाँ
बच्चे होते हे। जो एक ही अण्डे से पैदा होते है। और दूसरे जुड़वाँ बच्चे पैदा
होते हे। जो जुड़वाँ जरूर होते है लेकिन दोनों अलग-अलग अण्डे से पैदा होते है।
मां के पेट में दो अण्डे होते हे। दो बच्चे पैदा होते हे। कभी-कभी एक अण्डा
होता है और एक अण्डे के भीतर दो बच्चे होते है। एक अण्डे से जो दो बच्चे पैदा
होते हे। वे बड़े महत्वपूर्ण है। क्योंकि उनके जन्म का क्षण बिलकुल एक होता
हे। दो अण्डों से जो बच्चे पैदा होते हैं उन्हें हम जुड़वाँ बच्चे कहते जरूर है लेकिन उनके जन्म का क्षण एक नहीं
होता।
और
एक बात समझ लें कि जन्म दोहरी बात हे। जन्म का पहला अर्थ तो है गर्भधारण। ठीक
जन्म तो उसी दिन होता हे। जिस दिन मां के पेट में गर्भ आरोपित होता हे—ठीक जन्म, जिसको आप जन्म कहते है वह नम्बर
दो का जन्म हे—जब बच्चा मां के पेट से बाहर आता है। अगर हमें ज्योतिष की पूरी
खोजबीन करनी हो—जैसा कि हिन्दुओं ने की थी, अकेले हिन्दुओं
ने की थी और उसके बड़े उपयोग किए थे। तो असली सवाल यह नहीं है कि बच्चा कब पैदा
होता हे। असली सवाल यह है कि बच्चा कब गर्भ में प्रारम्भ करता है। अपनी यात्रा—गर्भ
कब निर्मित होता है। क्योंकि ठीक जन्म वहीं है।
इसलिए
हिन्दुओं ने तो यह भी तय किया था कि ठीक जिस भांति के बच्चे को जन्म देना हो
उसे उस भांति के ग्रह-नक्षत्र में यदि सम्भोग किया जाए और गर्भ धारण हो जाए तो उस
तरह का बच्चा पैदा होगा। अब इसमें मैं थोड़ा पीछे कुछ कहूंगा क्योंकि इस संबंध
में भी काफी काम इधर हुआ और बहुत सी बातें साफ हुई है। साधारण: हम सोचते हैं कि जब
एक बच्चा सुबह छह बजे पैदा होता है तो छह बजे पैदा होता हे। इसलिए छह बजे प्रभात
में जो नक्षत्रों की स्थिति होती है उससे प्रभावित होता हे।
लेकिन
ज्योतिष को जो गहरे से जानते है वे कहते है कि वह छह बजे पैदा होने की वजह से
ग्रह-नक्षत्र उस पर प्रभाव डालते हे—ऐसा नहीं। वह जिस तरह के प्रभावों के बीच पैदा
होना चाहता है उस घड़ी और नक्षत्र को ही अपने जन्म के लिए चुनता है। यह बिलकुल
भिन्न बात है। बच्चा जब पैदा हो रहा है, ज्योतिष की गहन खोज करने वाले
कहेंगे कि तब वह अपने ग्रह-नक्षत्र चुनता है कि कब उसे पैदा होना है। और गहरे
जाएंगे तो वह अपना गर्भा धारण भी चुनता है।
प्रत्येक
आत्मा अपना गर्भा धारण चुनती है, कि कब उसे गर्भ स्वीकार करना है,
किस क्षण में। क्षण छोटी घटना नहीं है। क्षण का अर्थ है कि पूरा विश्व उस क्षण
में कैसा है। और उस क्षण में पूरा विश्व किस तरह की सम्भावनाओं के द्वार खोलता
है। जब एक अण्डे में दो बच्चे एक साथ गर्भ धारण कर लेते है तो उनके गर्भा धारण
का क्षण एक ही होता है और उनके जन्म का क्षण भी एक होता है।
अब
यह बहुत मजे की बात है कि एक ही अण्डे से पैदा हुए दो बच्चों का जीवन इतना एक
जैसा होता है....इतना एक जैसा होता है कि यह कहना मुशिकल है कि जन्म का क्षण
प्रभाव नहीं डालता। एक अण्डे से पैदा हुए दो बच्चों का आई क्यू. उनका बुद्धि
माप करीब-करीब बराबर होता है। और जो थोड़ा सा भेद दिखता है, वे जो जानते है, वे कहते है वह हमारी मेजरमेन्ट की गलती के कारण है। अभी तक हम ठीक
मापदण्ड विकसित नहीं कर पाए हैं जिनसे हम बुद्धि का अंक नाप सकें। थोड़ा सा जो
भेद कभी पड़ता है वह हमारे तराजू की भूल-चूक है।
अगर
एक अण्डे से पैदा हुए दो बच्चों को बिलकुल अलग-अलग पाला जाए तो भी उनके
बुद्धि-अंक में कोई फर्क नहीं पड़ता—एक को हिन्दुस्तान में पाला जाए और एक को
चीन में पाल जाए और कभी एक दूसरे को पता भी न चलने दिया जाए। ऐसी कुछ घटनाएं घटी
है जब दोनों बच्चे अलग-अलग पले बड़े हुए लेकिन उनके बुद्धि अंक में कोई फर्क नहीं
पडा।
बड़ी
हैरानी की बात है,
बुद्धि-अंक तो ऐसी चीज है कि जनम की पोटेंशियलिटी से जुड़ी है। लेकिन यह जो चीन
में जुड़वाँ बच्चा है एक ही अण्डे का, जब उसको जुकाम होगा।
तब जो भारत में बच्चा है उसको भी जुकाम होगा। आमतौर से एक अण्डे से पैदा हुए बच्चे
एक ही साल में मरते हे। ज्यादा से ज्यादा उनकी मृत्यु में फर्क तीन महीने का
होता हे। और कम से कम तीन दीन का पर वर्ष वहीं होता है। अब तक ऐसा नहीं हो सका है
कि एक ही अण्डे से पैदा हुए बच्चों के बीच वर्ष का फर्क पडा हो। तीन महीने से ज्यादा
का फर्क नहीं पड़ता है। अगर एक बच्चा मर गया है तो हम मान सकते है कि तीन दिन के
बाद या तीन महीने के बीच दूसरा बच्चा भी मर जाएगा।.......क्रमश: अगले अंक में।
--ओशो
ज्योतिष: अद्वैत का
विज्ञान
वुडलैण्ड, बम्बई, दिनांक 9 जुलाई 1971
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