रविवार, 31 दिसंबर 2017

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-17



ज्‍योतिष अद्वैत  का विज्ञान—6

     
      जैसा मैं आपसे कह रहा था पैरासेल्‍सस के संबंध में। आधुनिक चिकित्‍सक भी इस नतीजे पर पहुंचे रहे है। कि जब भी सूर्य पर अनेक बार धब्‍बे प्रकट होते है....ऐसे भी सूर्य पर कुछ धब्‍बे है, डाट्स, स्‍पाट्स होते है—कभी वे बढ़ जाते है, कभी वे कम हो जाते है। जब सूर्य पर स्पाट्स बढ़ जाते है तो जमीन पर बीमारियां बढ़ जाती है। और जब सुर्य पर काले धब्‍बे कम हो जाते है, तो जमीन पर बीमारियां कम हो जाती है। और जमीन से हम बीमारियां कभी न मिटा सकेंगे जब तक सूर्य के  स्पाट्स कायम है।
      हर ग्‍यारह वर्ष में सूरज पर भारी उत्‍पात होता है, बड़े विस्‍फोट होते है। और जब ग्‍यारह वर्ष में सूरज पर विस्‍फोट होता है, और उत्‍पात होते है तो पृथ्‍वी पर युद्ध ओर उत्‍पात होते है। पृथ्‍वी पर युद्धों का जो क्रम है वह हर दस वर्ष का है। महामारी का जो क्रम है वह दस वर्ष के बीच का है। क्रान्ति यों का जो क्रम है दस वर्ष और ग्‍यारह वर्ष के बीच का है।

      एक बार ख्‍याल में आना शुरू हो जाए कि हम अलग और पृथक नहीं है, संयुक्‍त है, आगें निक है तो फिर ज्‍योतिष को समझाना आसान हो जाएगा। इस लिए ये में सारी बातें आपसे कह रहा हूं।
      कुछ आदमी को ऐसा ख्‍याल पैदा हो गया था—अब भी है कि ज्‍योतिष एक सुपरस्‍टीशन, एक अन्‍ध विश्वास है। बहुत दूर तक यह बात सच भी मालूम पड़ती हे। असल में वहीं चीज अन्‍ध विश्वास मालूम पड़ने लगती है जिसके पीछे हम वैज्ञानिक कारण बताने में असमर्थ हो जाएं। वैसे ज्‍योतिष बहुत वैज्ञानिक है और विज्ञान का अर्थ ही होता है कि कॉज और एफेक्‍ट के बीच, कार्य और कारण के बीच संबंध की तलाश।
      ज्‍योतिष कहता यही हे कि इस जगत में जो भी घटित होता है उसके कारण है। हमें ज्ञात न हो, ये हो सकता है। ज्‍योतिष यह कहता है कि भविष्‍य जो भी होगा वह अतीत से विच्‍छिन्‍न नहीं हो सकता, उससे जुड़ा हुआ होगा। आज कल जो भी होगा वह आज का ही जोड़ होगा। आज तक जो भी आप पर बीते हुए कल का जोड़ है।
      ज्‍योतिष बहुत वैज्ञानिक चिन्‍तन है। वह यह कहता है कि भविष्‍य अतीत से ही निकलता है। आपका आज कल से निकला है, आपका कल आज से निकलेगा। और ज्‍योतिष यह भी कहता है कि जो कल होने वाला है वह किसी सूक्ष्‍म अर्थों में आज भी मौजूद होना चाहिए।
      अब इसे थोड़ा समझ ले। अब्राहम लिंकन ने मरने के तीन दिन पहले एक सपना देखा। जिसमें उसने देखा कि उसकी हत्‍या कर दी गई है। और व्‍हाइट हाऊस के एक खास कमरे में उसकी लाश पड़ी हे। उसने नंबर भी कमरे का देखा। उसकी नींद खुल गई। वह हंसा, उसने अपनी पत्‍नी को कहा कि मैने एक सपना देखा है कि मेरी हत्‍या कर दी गयी है....फलां-फलां नंबर, उसी मकान में तो वह सोया हुआ था। व्‍हाइट हाउस मे। इस मकान के फलां नम्बर के कमरे में मेरी लाश पड़ी है। मेरे सिरहाने तू खड़ी हुई है और आस-पास फलां-फलां लोग खड़े हुए है। हंसी हुई, बात हुई—लिंकन सो गया, पत्‍नी सो गई। तीन दिन बाद लिंकन की हत्‍या हुई और उसी कमरे में और उसी जगह उसकी लाश तीन दिन बाद पड़ी थी। और उसी क्रम में आदमी खड़े थे।
      अगर तीन दिन बाद जो होने वाला है वह किसी अर्थों में आज ही न हो गया हो ताह उसका अपना कैसे निर्मित हो सकता है। उसकी सपने में झलक भी कैसे मिल सकती है। सपने में झलक तो उसी बात की मिल सकती है जो किसी अर्थ में अभी भी कहीं मौजूद हो। तो हम उसकी एक ग्‍लिम्‍प्‍स, खिड़की खोले और हमें दिखायी पड़ जाए लेकिन खिड़की के बाहर मौजूद हो, लेकिन कहीं मौजूद हो। ज्‍योतिष का मानना है कि भविष्‍य हमारा अज्ञान है इसलिए भविष्‍य है। अगर हमें ज्ञान हो तो भविष्‍य जैसी कोई घटना नहीं है। वह अभी भी कहीं मौजूद है।
      महावीर के जीवन में एक घटना का उल्लेख है, जिस पर एक बहुत बड़ा विवाद चला। और महावीर के अनुयायियों का एक वर्ग टूट गया। और पाँच सौ महावीर के मुनियों ने अलग पंथ का निर्माण कर लिया उसी बात से। महावीर कहते थे जो हो रहा है वह एक अर्थ में हो ही गया है। अगर आप चल पड़े तो एक अर्थ में पहुंच ही गए।  अगर आप बूढ़े हो रहे है तो एक अर्थ में बूढ़े हो ही गए।
      महावीर कहते थे, जो हो रहा है, जो क्रियमाण है—वह हो ही गया। महावीर का एक शिष्‍य वर्षा काल में महावीर से दूर जा रहा था। उसने अपने एक शिष्‍य को कहा कि मेरे लिए चटाई बिछा दो। उसने चटाई बिछानी शुरू की। मुड़ी हुई, गोल लिपटी हुई चटाई को उसने थोड़ा सा खोला, तब महावीर के उस शिष्‍य को ख्‍याल आया कि ठहरो, महावीर कहते है—जो हो रहा है वही हो ही गया। तू आधे में रूक जा, चटाई खुल तो रही है, लेकिन खुल नहीं गयी है—रूक जा।
      उसे अचानक ख्‍याल हुआ कि यह तो महावीर बड़ी गलत बात कहते हे। चटाई आधी खुली है, लेकिन खुल कहां गई है। उसने चटाई वहीं रोक दी। वह लौटकर वर्षा काल के बाद महावीर के पास आया और उसने कहा कि आप गलत कहते है कि जो हो रहा है, वह हो ही गया। क्‍योंकि चटाई अभी भी आधी खुली रखी है—खुल रही थी, लेकिन खुल नहीं गई। तो मैं आपकी बात गलत सिद्ध करने आया हूं। महावीर न उससे जो कहा,वह नहीं समझ पाया होगा, वह बहुत बुद्धि का राह होगा, अन्‍यथा ऐसी बात लेकर नहीं आता।
      महावीर ने कहा, तूने रोका—रोक ही रहा था....ओर रूक ही गया। वह जो चटाई तू रोका—रोक रहा था...रूक गया। तूने सिर्फ चटाई रुकते देखी,एक और क्रिया भी साथ चल रही थी, वह हो गयी। और फिर कब तक तेरी चटाई रुकी रहेगी। खुल नी शुरू हो गयी है—खुल ही जाएंगी....तू लोट कर जा वह जब लौटकर गया तो देखा  एक आदमी खोलकर उस पर लेटा हुआ है। विश्राम कर रहा था। इस आदमी ने सब गड़बड़ कर दिया। पूरा सिद्धांत ही खराब कर दिया।    
      महावीर जब यह कहते थे जो हो रहा है वह हो ही गया तो वह हय कहते थे, जो हो रहा है वह तो वर्तमान है, जो हो ही गया वह भविष्‍य है। कली खिल रही है। खिल ही गई—खिल ही जाएगी। वह फूल तो भविष्‍य में बनेगी, अभी तो खिल ही रही है। अभी तो कली ही है। जब खिल ही रही है तो खिल ही जाएगी। उस का खिल जाना भी कहीं घटित हो गया।
      अब इसे हम जरा और तरह से देखें, थोड़ा कठिन पड़ेगा।
      हम सदा अतीत से देखते है। कली खिल रही है। हमारा जो चिन्‍तन है, आमतौर से पास्‍ट ओरिएंटेड़ है, वह अतीत से बंधा है। कहते है कली खिल रही हे, फूल की तरफ जा रही है। कली फूल बनेगी...लेकिन इससे उल्‍टा भी हो सकता है। यह ऐसा है जैसे मैं आपको पीछे से धक्‍के दे रहा हूं, आपको आगे सरका रहा हूं। ऐसा भी हो सकता है कोई आपको आगे खींच रहा हो। गति दोनों तरफ हो सकती है। मैं आपको पीछे से धक्‍का दे रहा हूं,और आप आगे जा रहे हो।     
      ज्‍योतिष का मानना है कि यह अधूरी कि अतीत धक्‍का दे रहा है और भविष्‍य हो रहा हे। पूरी दृष्‍टि यह है कि अतीत धक्‍का दे रहा है और भविष्‍य खींच रहा है। कली फूल बन रही है,इतनी ही नहींफूल कली को फूल बनने के लिए पुकार रहा है। खींच रहा है, भविष्‍य आगे हे। अभी वर्तमान के क्षण में एक कली है। पूरा अतीत धक्‍का दे रहा हे। खुल जाओ। पूरा भविष्‍य आह्वान दे रहा है, खुल जाओ, अतीत और भविष्‍य दोनों के दबाव में कली फूल बनेगी।
      अगर कोई भविष्‍य न हो तो अतीत अकेला फूल न बना पाएगा। क्‍योंकि भविष्‍य में आकाश चाहिए फूल बनने के लिए। भविष्‍य में जगह चाहिए स्‍पेस चाहिए। भविष्‍य स्‍थान दे तो ही कली फूल बन पाएगी। अगर कोई भविष्‍य न हो तो अतीत कितना ही सिर मारे, कितना ही धक्‍का माने—मैं आपको पीछे से कितना ही धक्‍का मारू, या दूँ।  लेकिन सामने एक दीवार हो तो मैं आपको आगे न हटा पाऊँ गा। आगे जगह चाहिए। मैं धक्‍का दूँ और आगे की जगह आपको स्‍वीकार कर ले, आमंत्रण दे-दे कि आ जाओ,अतिथि बना लें, तो ही मेरा धक्‍का सार्थक हो पाए। मेरे धक्‍के के लिए भविष्‍य में जगह चाहिए। अतीत काम करता है भविष्‍य जगह देता है।
      ज्‍योतिष की दृष्‍टि यह है कि अतीत पर खड़ी हुई दृष्‍टि अधूरी है, आधी—वैज्ञानिक हे, भविष्‍य पूरे वक्‍त पुकार रहा है, पूरे वक्‍त खींच रहा है। हमें पता नहीं हमें दिखाई नहीं पड़ता। यह हमारी आँख की कमजोरी है, यह हमारी दृष्‍टि की कमजोरी है। हम दूर नहीं देख पाते हमें कल कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता।
      कृष्‍ण मूर्ति की जन्‍म कुण्‍डली देखें कभी तो हैरान होंगे। अगर ऐनि बी सेन्ट और लिड बिटर ने फिक्र की होती और कृष्‍ण मूर्ति की जन्‍म कुण्‍डली देख ली होती तो भूलकर भी कृष्‍ण मूर्ति के साथ मेहनत नहीं करनी चाहिए थी। क्‍योंकि जनम कुण्‍डली में साफ है बात की कृष्‍ण मूर्ति जिस संगठन से सम्‍बन्‍धित होंगे—उस संगठन को नष्‍ट करनेवाले होंगे। जिस संस्‍था से सम्‍बन्‍धित होंगे,उस संस्‍था को विसर्जित करवा देंगे—जिस संगठन के सदस्‍य बनेंगे, वह संगठन मर जाएगा।
      लेकिन ऐनि बीसेन्ट भी मानने को तैयार नहीं होती। कोई सोच भी नहीं सकता था, लेकिन हुआ वही। थियोसाफी ने उन्‍हें खड़ा करने की कोशिश की थी। थियोसाफी को उनकी वजह से इतना धक्‍का लगा की वह सदा के लिए मर गया आन्‍दोलन। फिर ऐनि बी सेन्ट ने ‘’स्‍टार ऑफ दी ईस्‍ट‘’ नाम से बड़ी संस्‍था खड़ी की। फिर एक दिन कृष्‍ण मूर्ति उस संस्‍था को विसर्जित करके अलग हो गए। ऐनि बी सेन्ट ने पूरा जीवन उस संस्‍था को खड़ा करने में समर्पित किया और नष्‍ट किया अपने को। लेकिन उसमें कृष्‍ण मूर्ति का भी कुछ बहुत हाथ नहीं है। वह जिन नक्षत्रों की छाया में पैदा हुए है उन नक्षत्रों की सीधी सूचना है। वह किसी संस्‍था में भी डिस्ट्रिक्ट सिद्ध होंगे। किसी भी संस्‍था के भीतर वह विघटनकारी सिद्ध होंगे।
--ओशो
ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान
वुडलैण्‍ड, बम्‍बई, दिनांक 9 जुलाई 1971

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