चमत्कार–(वैज्ञानिक चित का अभाव)
चमत्कार
शब्द का हम प्रयोग करते है, तो साधु-संतों का खयाल आता है। अच्छा होता कि
पूछा होता कि मदारियों के संबंध में आपका क्या ख्याल आता है। अच्छा तरह के
मदारी है—एक जो ठीक ढंग से मदारी हैं, ‘आनेस्ट‘ वे सड़क के
चौराहों पर चमत्कार दिखाते है। दूसरे: ऐसे मदारी है, डिस्आनेस्ट, बेईमान, वे साधु-संतों
के वेश करके, वे ही चमत्कार दिखलाते है। जो चौरस्तों पर
दिखाई जाते है। बेईमान मदारी सिनर है, अपराधी है, क्योंकि मदारी
पन के अधार पर वह कुछ और मांग कर रहा है।
अभी
मैं पिछले वर्ष एक गांव में था। एक बूढ़ा आदमी आया। मित्र लेकर आये थे और कहा कि
आपको कुछ काम दिखलाना चाहते है। मैंने कहा, दिखायें। उस
बढ़े ने अद्भुत काम दिखलाये। रूपये को मेरे सामने फेंका वह दो फिट ऊपर जाकर हवा
में विलीन हो गया। मैंने उस बूढे आदमी से कहा,बड़ा चमत्कार करते है आप। उसने कहा, नहीं यह कोई चमत्कार नहीं है। सिर्फ
हाथ की तरकीब है। मैंने कहा, तुम पागल हो। सत्य साई बाबा हो
सकते थे। क्या कर रहे हो। क्यों इतनी सच्ची बात बोलते हो?
इतनी ईमानदारी उचित नहीं है। लाखों लोग तुम्हारे दर्शन करते। तुम्हें मुझे
दिखाने ने आना होता, मैं ही तुम्हारे दर्शन करता।
वह
बह बूढ़ा आदमी हंसने लगा। कहने लगा, चमत्कार कुछ भी नहीं है। सिर्फ हाथ की तरकीब है। उसने सामने ही—कोई मुझे
मिठाई भेंट कर गया था—एक लडडू उठाकर मुंह में डाला,चबाया, पानी पी लिया। फिर उसने कहा कि नहीं, पसंद नहीं
आया। फिर उसे पेट जो से खींचा पकड़कर लडडू को वापिस निकालकर सामने रख दिया। मैंने
कहा, अब तो पक्का ही चमत्कार है। उसने कहा कि नहीं। अब
दुबारा आप कहिये, तो मैं न दिखा सकूंगा, क्योंकि लडडू छिपाकर आया आरे वह लडडू पहले मैंने ही भेट भिजवाये था।
इसके पहले जो दे गया है, अपना ही आदमी है।
मगर
वह ईमानदार आदमी है। एक अच्छा आदमी है। यह मदारी समझा जायेगा। इसे कोई संत समझता
तो कोई बुरा न था, कम से कम सच्चा
तो था। लेकिन मदारियों के दिमाग है, और वह कर रहे है यही काम। कोई राख की पुड़िया निकाल रहा है। कोई ताबीज
निकाल रहा है। कोई स्विस मेड घड़ियाँ निकाल रहा है। और छोटे—साधारण नहीं—जिनको हम
साधारण नहीं कहते है, गवर्नर, वाइस
चाइन्सलर है, हाईकोर्ट के जजेस है, वह
भी मदारियों के आगे हाथ जोड़े खड़े है। हमारे गर्वनर भी ग्रामीण से ऊपर नहीं उठ
सके है। उनकी बुद्धि भी साधारण ग्रामीण आदमी से ज्यादा नहीं। फर्क इतना है कि
ग्रामीण आदमी के पास सर्टिफिकेट नहीं है। उसके पास सर्टिफिकेट है। सर्टिफिकेट
ग्रामीण है।
यह चमत्कार—इस
जगत में चमत्कार जैसी चीज सब में होती नहीं, हो नहीं सकती। इस जगत में जो कुछ होता है, नियम से
होता है। हां, यह हो सकता है, नियम का
हमें पता न हो। यह हो सकता है कि कार्य, कारण को हमें बोध न
हो। यह हो सकता है कि कोई लिंक, कोई लिंक, कोई अज्ञात हो, जो हमारी पकड़ में नहीं आती, इसलिए बाद की कड़ियों को समझना बहुत मुश्किल हो जाता है।
बाकू
में—उन्नीस सौ सत्रह के पहले, जब रूस में क्रांति हुई थी—उन्नीस सौ सत्रह के पहले, बाकू में एक मंदिर था। उस मंदिर के पास प्रति वर्ष एक मेला लगता था। वह
दुनिया का सबसे बड़ा मेला था। कोई दो करोड़ आदमी वहां इकट्ठा होते थे। और बहुत
चमत्कार की जगह थी वह, अपने आप अग्नि उत्पन्न होती थी।
वेदी पर अग्नि की लपटें प्रगट हो जाती थीं। लाखों लोग खड़े होकर देखते थे। कोई
धोखा न था। कोई जीवन न था, कोई आग जलाता न था। कोई वेदी पास
आता न था। वेदी पर अपने आप अग्नि प्रगट होती थी। चमत्कार भारी था। सैकड़ों वर्षो
से पूजा होती थी। भगवान प्रगट होते, अग्नि के रूप में अपने
आप।
फिर
उन्नीस सौ सत्रह में रक्त क्रांति हो गयी। जो लोग आये,वह विश्वासी न थे, उन्होंने मड़िया उखाड़कर फेंक दी और गड्ढे खोदे। पता चला, वहां तेल के गहरे कुंए है—मिट्टी के तेल, मगर फिर
भी यह बात तो साफ हो गयी कि मिट्टी के तेल के घर्षण से भी आग पैदा होती है। लेकिन
खास दिन ही होती थी। जब तो खोज-बीन करन पड़ी तो पता चला कि जब पृथ्वी एक विशेष
कोण पर होती है। अपने झुकाव के, तभी नीचे के तेल में घर्षण
हो जाती है। इसलिए निश्चित दिन पर प्रतिवर्ष वह आग पैदा हो जाती थी। जब यह बात
साफ़ हो गयी। तब वहां मेला लगना बंद हो गया। अब भी वहां आग पैदा होती है। लेकिन अब
कोई इकट्टा नहीं होता है। क्योंकि कार्य कारण पता चल गया है। बात साफ़ हो गयी है।
अग्नि देवता अब भी प्रकट होते है, लेकिन वह केरोसिन देवता
होते है। अब वह अग्नि देवता नहीं रह गये। चमत्कार जैसी कोई चीज नहीं होती। चमत्कार
का मतलब सिर्फ इतना ही होती है कि कुछ है जो अज्ञात है, कुछ
है जो छिपा है, कोई कड़ी साफ़ नहीं है वह हो रहा है।
एक
पत्थर होता है अफ्रीका में, जो पानी को भाप को पी जाता है, पारस होता है। थोड़े
से उसमें छेद होते है। वह भाप को पी लेते है। तो वर्षा में वह भाप को पी जाता है, लेकिन वह स्पंजी है। उसकी मूर्ति बन जाती है। वह मूर्ति जब गर्मी पड़ती है, जैसे सूरज से
अभी पड़ रही है, उसमें से पसीना आने लगता है। उस तरह के पत्थर
और भी दुनियां में पाये जाते है। पंजाब में एक मूर्ति है, वह
उसी पत्थर की बनी हुई है। जब गर्मी होती है। तो भक्त गण पंखा झलते है, उस मूर्ति को की भगवान को पसीना आ रहा है। और बड़ी भीड़ इकट्ठी होती है।
क्योंकि बड़ा चमत्कार है—पत्थर की मूर्ति को पसीना आये।
तो
जब मैं उस गांव में ठहरा था तो एक सज्जन ने मुझे आकर कहा कि आप मजाक उड़ाते है।
आप सामने देख लीजिए चलकर भगवान को पसीना आता है। और आप मजाक उड़ाते है। आप कहते है, भगवान को सुबह-सुबह दतून क्यों रखते
हो,पागल हो गये हो, पत्थर को दतून
रखते हो। कहते हो, भगवान सोयेंगे, अब
भोजन करेंगे। जब उनको पसीना आ रहा है। तो बाकी सब चीजें भी ठीक हो सकती है। वह ठीक
कह रहा है। उसे कुछ पता नहीं है उसमें से पसीना निकलता है। जिस ढंग से आप में
पसीना बह रहा है। उसी ढंग से उसमें भी बहने लगता है। आप में भी पसीना कोई चमत्कार
नहीं है। आपका शरीर पारस है तो वह पानी पी जाता है। और जब गर्मी होती है। तो शरीर
की अपनी एअरकंडीशनिय की व्यवस्था है। वह पानी को छोड़ देता है, ताकि भाप बनकर उड़े, और शरीर को ज्यादा गर्मी न
लगे। वह पत्थर भी पानी पी गया है। लेकिन जब तक हमें पता नहीं है। तब तक बड़ा मुश्किल
होता है। फिर इस संबंध में जिस वजह से उन्होंने पूछा होगा,
वह मेरे ख्याल में है। दो बातें और समझ लेनी चाहिए।
एक
तो यह कि चमत्कार संत तो कभी नहीं करेगा। नहीं करेगा, क्योंकि कोई संत आपके अज्ञान को न
बढ़ाना चाहेगा। और कोई संत आपके अज्ञान का शोषण नहीं करना चाहेगा। संत आपके अज्ञान
को तोड़ना चाहता है। बढ़ाना नहीं चाहता है। और चमत्कार दिखाने से होगा क्या?
और बड़े मजे की बात है, क्योंकि पूछते है कि
जो लोग राख से पुड़िया निकालते है, आकाश से ताबीज गिराते
है.....काहे को मेहनत कर रहे हैं, राख की पुड़िया से किसका
पेट भरेगा। ऐटमिक भट्ठियाँ आकाश से उतारों, कुछ काम होगा। जमीन
पर उतारों, गेहूँ उतारों—गेहूँ के लिए अमरीका के हाथ जोड़ों, और असली चमत्कार हमारे यहां हो रहे है। तो गेहूँ क्यों नहीं उतार लेते
हो। राख की पुड़िया से क्या होगा, गेहूँ बरसाओ।
जब
चमत्कार ही कर रहे हो। तो कुछ ऐसा चमत्कार करो कि मुल्क को कुछ हित हो सके। सबके
ज्यादा गरीब मुल्क, जमीन पर उतारों
गेहूँ उतारों घन, सोना, चांदी, होने दो हीरे मोतियों कि बारिश, मिट्टी से बनाओ
सोना। चमत्कार ही करने है तो कुछ ऐसे करो। स्विस मेड घडी चमत्कार से निकालते
हो। तो क्या फायदा होगा। कम से कम मेड इन इंडिया भी निकालों तो क्या होने वाला
है। मदारी गिरी से होगा क्या? कभी हम सोचें कि हम इस पागलपन
में किस भ्रांति में भटकते है।
पिछले
दो ढाई हजार वर्षो से, इन्हीं
पागलों के चक्कर में लगे हुए है। और हम कैसे लोग है कि हम यह नहीं पूछते कि माना
कि आपने राख की पुड़िया निकाल ली, अब क्या मतलब है, होना क्या है? चमत्कार किया, बिलकुल चमत्कार किया, लेकिन राख की पुड़िया से
होना क्या है? कुछ और निकालों, कुछ
काम की बात निकाल लो। वह कुछ नहीं, नहीं वह मुल्क दीन क्यों
है, यहां तो एक चमत्कारी संत पैदा हो जाये तो सब ठीक हो
जाए।
एक हजार साल गुलाम रहे थे, और यहां ऐसे चमत्कारी पड़े है कि जिसका कोई हिसाब नहीं, गुलामी की ज़ंजीरें नहीं कटती। ऐसा लगता है कि अंग्रेज के सामने चमत्कार
नहीं चलता। चमत्कार होने के लिए हिंदुस्तानी होना जरूरी है। क्योंकि अगर खोपड़ी
में थोड़ी भी विचार चलता हो, तो चमत्कार के कटने का डर रहता
है। तो जहां विचार है, बिलकुल न चला पाओगे चमत्कार को। सब
से बड़ा चमत्कार यह है कि लोग चमत्कार कर रहे है। सबसे बड़ा चमत्कार यह है कि
हम खुद भी होते हुए चमत्कार देख रहे हे। और घरों में बैठकर चर्चा कर रहे है। कि
चमत्कार हो रहा है। और कोई इन चमत्कारी यों की जाकर गर्दन नहीं पकड़ लेता कि जो
खो गयी है घड़ी उसको बाहर निकलवा ले, कि क्या मामला है। क्या
कर रहे हो? वह नहीं होता है।
हम
हाथ पैर जोड़कर खड़े है.....उसका कारण है, हमारे भीतर कमज़ोरियाँ है। जब राख की पुड़िया निकलती है तो हम सोचते है
कि भई, शायद और भी कुछ निकल आयें, पीछे, राख की पुड़िया से कुछ होनेवाला नहीं है न, आगे कुछ
और संभावना बनती है। आशा बँधती है। और कोई बीमार है, किसी को
नौकरी नहीं मिली है, किसी की पत्नी मर गई है, किसी का किसी से प्रेम है, किसी का मुकदमा चल रहा
है, सबकी तकलीफ़ें है। तो लगता है जो आदमी ऐसा कर रहा है, अपनी तकलीफ भी कुछ कम कर रहा है। दौड़ों इसके पीछे।
बीमारी, गरीबी, परेशानी, उलझनें कारण हैं कि हम चमत्कारी यों के पीछे भाग रहे है। कोई धार्मिक
जिज्ञासा कारण है, धार्मिक जिज्ञासा से इसका कोई संबंध नहीं
है। धार्मिक जिज्ञासा से इसका क्या वास्ता। धार्मिक जिज्ञासा का क्या हल होगा, इन सारी बातों से, लेकिन लोग करते चले जाएंगे, क्योंकि हम गहरे अज्ञान में है, गहरे विश्वास में
है। लोग कहते चले जाएंगे और शोषण होता चला जायेगा। पुराने चित ने चमत्कारी पैदा
किया था। लेकिन जिन-जिन क़ौमों ने चमत्कारी पैदा किये उन-उन क़ौमों ने विज्ञान
पैदा नहीं किया।
ध्यान
रहे, चमत्कारी
चित वहीं पैदा हो सकता है जहां एंटी सांइटिफिक माइंड हो,
जहां विज्ञान विरोधी चित हो। जहां विज्ञान आयेगा वहां चमत्कारी मरेगा। क्योंकि
विज्ञान कहेगा, चमत्कार को कि हम काज़ और एफेक्ट में मानते
है। हम मानते है, कार्य और कारण में। विज्ञान किसी चमत्कार
को नहीं मानता है। उसने हजारों चमत्कार किये है। जिनमें से एक भी कोई संत कर देता
तो हम हजारों-लाखों साल तक उसकी पूजा करते। अब यह पंखा चल
रहा है, यह माइक आवाज कर रहा है। यह चमत्कार नहीं होगा। क्योंकि
यह विज्ञान ने किया है। और विज्ञान किसी चीज को छिपाता नहीं है। सारे कार्य-कारण
प्रगट कर देता है। आदमी का ह्रदय बदला जा रहा है। दूसरे का ह्रदय उसके काम कर रहा
है। आदमी के सारे शरीर के पार्ट बदले जा रहे है।
आज
नहीं कल, हम आदमी की
स्मृति भी बदल सकेंगे। उसकी भी संभावना बढ़ती जा रही है। कोई जरूरी नहीं है कि एक
आइंस्टीनी माइंड वह मर ही जाये। आइंस्टीन मरे—मरे, उसकी स्मृति
को बचाकर हम एक नये बच्चे में ट्रांसप्लांट कर सकते है। इतने बड़े चमत्कार घटित
हो रहे है। लेकिन कोई नासमझ न कहेगा कि ये चमत्कार है। कहेगा, ऐसा चमत्कार क्या है। और कोई आदमी की फोटो में से राख झाड़ देता है, हम हाथ जोड़कर खड़े हो जाते है चमत्कार हो रहा है,
बड़ा आश्चर्य है। अवैज्ञानिक विज्ञान विरोधी चित है। विज्ञान ने इतने चमत्कार
घटित किये है कि हमें पता ही नहीं चलता, क्योंकि विज्ञान
चमत्कार का दावा नहीं करता। विज्ञान खुला सत्य है, ओपन
सीक्रेट है।
और
यह जो बेईमानों की दुनिया है यहां.....इसलिए अगर किसी आदमी को कोई तरकीब पता चल
जाती है। तो उसको खोलकर नहीं रख सकता। क्योंकि खोले तो चमत्कार गया। इसलिए ऐसे
मुल्क का ज्ञान रोज बढ़ जाता है। अगर मुझे कोई चीज पता चल जाये और चमत्कार करना
हो तो पहली जरूरत हो यह है कि उसके पीछे जो राज है, उसको मैं प्रगट न करुँ। आयुर्वेद ने बहुत विकास किया, लेकिन आयुर्वेद का जो वैद्य था, वह वही चमत्कार कर
रहा था। इसलिए आयुर्वेद पिछड़ गया। नहीं तो आयुर्वेद की आज की स्थिति एलोपैथी से कहीं
बहुत आगे होती। क्योंकि ऐलोपैथी की खोज बहुत नयी हे। आयुर्वेद की खोज बहुत पुरानी
है। इसलिए एक वैद्य को जो पता है, वह अपने बेटे को भी न
बातयेगा, नहीं तो चमत्कार गड़बड़ हो जायेगा। मजा लेना चाहता
है।
मजा
लेना चाहता है—टीका, छाप लगाकर
और साफ़ा वगैरह बांधकर बैठा रहेगा और मर जायेगा। वह जो जान लिया था। वह छिपा
जायेगा। क्योंकि वह अगर पूरी कड़ी बता दे, तो फिर चमत्कार
नहीं होगा। लेकिन तब साइंस बंद करनी पड़ी। हिंदुस्तान में कोई साइंस नही बनती। जिस
आदमी को जो पता है, वह उसको छिपाकर रखता है। वह कभी उसका पता
किसी को चलने नहीं देगा। क्योंकि पता चला कि चमत्कार खत्म हो गया। इस वजह से
हमारे मुल्क में ज्ञान की बहुत दफे किरणें प्रगट हुई। लेकिन ज्ञान का सूरज कभी न
बन पाया। क्योंकि एक-एक किरण मर गयी। और उसे कभी हम बपौती न बना पाये कि उसे हम
आगे दे सकें। उसको देने में डर है, क्योंकि दिया तो कम से
कम उसे तो पता ही चल जायेगा कि अरे....।
एक
महिला मेरे पास प्रोफसर थी—वह संस्कृत की प्रोफेसर थी। वह इसी तरह एक मदारी के
चक्कर में आ गयी। जिनकी फोटो से राख गिरती है। और ताबीज निकलते है। उसने मुझ से
आकर आशीर्वाद मांगा कि मैं अब जा रही हूं। सब छोड़कर। मुझे तो भगवान मिल गये है।
अब कहां यहां पड़ी रहूंगी। आप मुझे आशीर्वाद दें। मैंने कहा, यह आशीर्वाद मांगना ऐसा है, जैसे कोई आये कि अब मैं जा रहा हूं कुएं में गिरने को और उसको मैं
आशीर्वाद दूँ। मैं न दूँगा। तुम कुएं में गिरो मजे से, लेकिन
इसमें ध्यान रखना कि मैंने आशीर्वाद नही दिया। क्योंकि मैं इस पाप में क्यों
भागीदार होऊंगा। मरो तुम, फंसू मैं। यह मैं न करूंगा। तुम
जाओ मजे से गिरो। लेकिन जिस दिन तुम्हें पता चल जाये कि कुएं में गिर गई हो और
अगर बच सकी हो, तो मुझे खबर जरूर कर देना।
पाँच-सात
साल बीत गए, मुझे याद भी
नहीं रहा, उस महिला का क्या हुआ। क्या नहीं हुआ। पिछले वक्त
बंबई में बोल रहा था सभा में,तो वह उठकर आयी और उसने मुझे
आगर कहा, आपने जो कहा, वह घटना हो गयी
है। तो मैं कब आकर पूरी बात बजा जाऊँ। लेकिन कृपा करके किसी और को मत बताना। मैंने
कहां, क्यों? उसने कहा वह भी मैं कल
बजाऊंगी। वह कल आयेगी उसने कहा, अब बड़ी मुश्किल हो गयी।
जिन ताबीजों को आकाश से निकालते देखकर मैं प्रभावित हुई थी। अब मैं उन्हीं संत की
प्राइवेट सेकेट्री हो गई हूं। अब मैं उन्हीं के ताबीज बाजार से खरीद कर लाती हूं।
बिस्तर के नीचे छिपा आती हूं। प्रगट होने का सब राज पता हो गया है। अब मैं भी
प्रगट कर सकती हूं। लेकिन बड़ी मुशिकल में पड़ गयी हूं। उसी चमत्कार से तो हम आये
भी। अब वह चमत्कार सब खत्म हो गया है। अब मैं क्या करुँ? अब
मैं छोड़कर आ जाऊँ, तो उसमें तो और भी मुश्किल है।
कालेज
में नौकरी करती थी, मुझे सात सौ
रूपये मिलते थे। अब मुझे कोई दो-ढाई हजार रूपये को फायदा,
महीने का होगा। और इतने रूपये आते है मेरे पास कि जितने उसमें से उड़ा दूँ, वह अलग है। उसका कोई हिसाब नहीं है। इसलिए मैं आ तो नहीं सकती। इसलिए में
आपको कहती हूं कृपा करके किसी और को मत कह देना। अब मेरी काम अच्छा चल रहा है।
नौकरी है, लेकिन अब तो चमत्कार वह अध्यात्म का कोई लेना
देना नहीं है।
तो इसलिए पता
न चल जाये—वह सारा त्याग चल रहा है। ज्ञान पता है—प्रगट होने
को उत्सुक होता है। बेईमानी सदा अप्रकट रहना चाहती है। ज्ञान सदा खुलता है, बेईमानी सदा छिपाती है। नहीं, कोई मिरेकल जैसी चीज
दुनिया में नहीं होती, न हो सकती है। और अगर होती होगी, तो पीछे जरूर कारण होगा। यह हो सकता है। और अगर होती होगी। तो पीछे जरूर
करण होगा। यह हो सकता है। आज कारण न खोजा जा सके, कल खोज
लिया जायेगा, परसों खोज लिया जायेगा।
यह हो सकता है, जीसस ने किसी के हाथ पर
हाथ रखा हो और आँख ठीक हो गयी हो, लेकिन फिर भी चमत्कार
नहीं है। क्योंकि पूरी बात अब पता चल गयी है। अब पता चल गयी है कि कुछ अंधे तो
सिर्फ मानसिक रूप से अंधे होते है। वे अंधे होते है ही नहीं सिर्फ मेंटल बलांइडनेस
होती है। उनको सिर्फ ख्याल होता है अंधे होने का और यह ख्याल इतना मजबूत हो जाता
है कि आँख काम करना बंद कर देती है। अगर कोई आदमी उनको भरोसा दिला दे तो उनकी आंखे
ठीक हो सकती है। तो उनका मन तत्काल वापस लौट आयेगा और आँख ठीक हो गयी, तो वह तत्काल उनका मन वापस लौट आयेगा और
आँख के तल पर काम करना शुरू कर देगा।
आज
तो यह बात जगत जाहिर हो गयी है। कि सौ में से पचास बीमारियां मानसिक है, इसलिए पचास बीमारियां तो ठीक की ही जा सकती
है। बिना किसी दवा के और सौ बीमारियों में से भी जो बीमारियां असली है, उनमें भी पचास प्रतिशत हमारी कल्पना से
बढ़ोतरी हो जाती है। यह पचास प्रतिशत कल्पना भी काटी जा सकती है। सौ सांप में से
केवल तीन सांप में जहर होता है। तीन प्रतिशत साँपों में। सतान्नबे प्रतिशत सांप
बिना जहर के होते है। लेकिन सतान्नबे
प्रतिशत साँपों के काटने से आदमी मर जाता है। इसलिए नहीं की उन में जहर है।
इस लिए की उसे सांप ने काटा है। सांप के काटने से कम मरता है, सांप ने कांटा मुझे, इसलिए ज्यादा मरता है।
तो
जिस सांप में बिलकुल जहर नहीं है, उससे आपको कटवाँ कर भी
मारा जा सकता है। तब एक चमत्कार तो हो गया। क्योंकि जहर था ही नहीं। कोई कारण
नहीं मरने का। जब सांप ने काटा यह भाव इतना गहरा है। यह मृत्यु बन सकती है। तब
मंत्र से फिर आपको बचाया भी जा सकता है।
झूठा सांप मार रहा है। झूठा मंत्र बचा लेता है। झूठी बीमारी को झूठी तरकीब बचा
जाती है।
मेरे
पड़ोस में एक आदमी रहते थे। सांप झाड़ने का काम करते थे। उन्होंने सांप पाल रखे
थे। तो जब भी किसी सांप का झड़वाने वाला आता, तब वह बहुत शोर-गुल मचाते। ड्रम पीटते और पुंगी बजाते और बहुत शोर गुल
मचाते, धुंआ फैलाते, फिर उनका ही पला हुआ सांप आकर एकदम सर पटकनें लग जाता। जब वह सांप, जिसको काटे,वह आदमी देखता रहे कि सांप आ गया। वह सांप को बुल देता है। वह
कहता है, पहले सांप से मैं पूछेगा की क्यों काटा?
मैं उसे डांटुगा, समझाऊंगा, बुझाऊंगा, उसी के द्वारा जहर वापस करवा दूँगा। तो
वह डाँटते, डपटते, वह सांप क्षमा
मांगने लगता,वह गिरने लगता, लौटने
लगता। फिर वह सांप, जिस जगह काटा होता आदमी को, उसी जगह मुंह को रखवाते। सब वह आदमी ठीक हो जाता।
कोई छह या सात साल पहले उनके लड़के को सांप
ने काट लिया। तब बड़ी मुश्किल में पड़े, क्योंकि
वह लड़का बस जानता है। वह लड़का कहता है, इससे मैं न बचूंगा, क्योंकि मुझे तो सब पता है। सांप घर का ही है। वह भागकर मेरे पास आये
कुछ करिये, नहीं तो लड़का मर जायेगा। मैंने कहां आपका लड़का
और सांप के काटने से मरे, तो चमत्कार हो गया। आप तो कितने
ही लोगो को सांप के काटने से बचा चुके हो। उसने कहा कि मेरे लड़के को न चलेगा। क्योंकि
उसको सब पता है कि सांप अपने ही घर का है। वह कहता है, यह तो
घर का सांप है। वह बूलाइये, जिसने काटा है। तो आप चलिए, कुछ करिये,नहीं तो मेरा लड़का जाता है। सांप के जहर
से कम लोग मरते है। सांप के काटने से ज्यादा लोग मरते है। वह काटा हुआ दिक्कत दे
जाता है। वह इतनी दिक्कत दे जाता है कि जिसका हिसाब नहीं।
मैंने सुना है कि एक गांव के बहार एक फकीर
रहता था। एक रात उसने देखा की एक काली छाया गांव में प्रवेश कर रही हे। उसने पूछा
कि तुम कौन हो। उसने कहां, मैं मोत हुं ओर शहर में महामारी फैलने
वाली है। इसी लिये में जा रही हूं। एक हजार आदमी मरने है,
बहुत काम है। मैं रूक न सकूँगा। महीने भर में शहर में दस हजार आदमी मर गये। फकीर
ने सोचा हद हो गई झूठ की मोत खुद ही झूठ बोल रही है। हम तो सोचते थे कि आदमी ही
बेईमान है ये तो देखो मौत भी बेईमान हो गई। कहां एक हजार ओर मार दिये दस हजार। मोत
जब एक महीने बाद आई तो फकीर ने पूछा की तुम तो कहती थी एक हजार आदमी ही मारने है।
दस हजार आदमी मर चुके और अभी मरने ही जा रहे है।
उस मौत ने कहां, मैंने तो एक हजार ही मारे है। नौ हजार तो घबराकर मर गये हे। मैं तो आज जा
रही हूं, और पीछे से जो लोग मरेंगे उन से मेरा कोई संबंध
नहीं होगा और देखना अभी भी शायद इतनी ही मेरे जाने के बाद मर जाए। वह खुद मर रहे
है। यह आत्म हत्या है। जो आदमी भरोसा करके मर जाता है। यदि मर गया वह भी आत्म हत्या
हो गयी। ऐसी आत्मा हत्याओं पर मंत्र काम कर सकते है ताबीज काम कर सकते है, राख काम कर सकती है। उसमें संत-वंत को कोई लेना-देना नहीं है। अब हमें
पता चल गया है कि उसकी मानसिक तरकीबें है, तो ऐसे अंधे है।
एक अंधी लड़की मुझे भी देखने को मिली,जो मानसिक रूप से अंधी है। जिसको डॉक्टरों ने कहा कि उसको कोई बीमारी नहीं
है। जितने लोग लक़वे से परेशान है, उनमें से कोई सत्तर
प्रतिशत लो लगवा पा जाते है। पैरालिसिस पैरों में नहीं होता। पैरालिसिस दिमाग में
होता है। सतर प्रतिशत।
सुना है मैंने एक घर में दो वर्ष से एक आदमी लक़वे
से परेशान है—उठ नहीं सकता है, न हिल ही सकता है।
सवाल ही नहीं है उठने का—सूख गया है। एक रात—आधी रात, घर में
आग लग गयी हे। सारे लोग घर के बाहर पहुंच गये पर प्रमुख तो घर के भीतर ही रह गया। पर
उन्होंने क्या देखा की प्रमुख तो भागे चले आ रहे है। यह तो बिलकुल चमत्कार हो
गया। आग की बात तो भूल ही गये। देखा ये तो गजब हो गया। लकवा जिसको दो साल से लगा
हुआ था। वह भागा चला आ रहा है। अरे आप चल कैसे सकते है। और वह वहीं वापस गिर गया।
मैं चल ही नहीं सकता।
अभी लक़वे के मरीजों पर सैकड़ों प्रयोग किये
गये। लक़वे के मरीज को हिप्रोटाइज करके, बेहोश
करके चलवाया जा सकता है। और वह चलता है, तो उसका शरीर तो कोई
गड़बड़ नहीं करता। बेहोशी में चलता है। और होश में नहीं चल पाता। चलता है, चाहे बेहोशी में ही क्यों न चलता हो एक बात का तो सबूत है कि उसके अंगों
में कोई खराबी नहीं है। क्योंकि बेहोशी में अंग कैसे काम कर रहे है। अगर खराब हो।
लेकिन होश में आकर वह गिर जाता है। तो इसका मतलब साफ है।
बहुत से बहरे है, जो झूठे बहरे है। इसका मतलब यह नहीं है कि उनको पता नहीं है क्योंकि
अचेतन मन ने उनको बहरा बना दिया है। बेहोशी में सुनते है। होश में बहरे हो जाते
है। ये सब बीमारियाँ ठीक हो सकती है। लेकिन इसमें चमत्कार कुछ भी नहीं है। चमत्कार
नहीं है, विज्ञान जो भीतर काम कर रहा है। साइकोलाजी, वह भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं है। आज नहीं कल, पूरी
तरह स्पष्ट हो जायेगा और तब ठीक ही बातें हो जायें।
आप एक साधु के पास गये। उसने आपको देखकर कह
दिया,आपका फलां नाम है? आप
फलां गांव से आ रहे है। बस आप चमत्कृत हो गये। हद हो गयी। कैसे पता चला मेरा गांव, मेरा नाम, मेरा घर? क्योंकि
टेलीपैथी अभी अविकसित विज्ञान है। बुनियादी सुत्र प्रगट हो चुके है। अभी दूसरे के
मन के विचार को पढ़ने कि साइंस धीरे-धीरे विकसित हो रही है। और साफ हुई जा रही है।
उसका सबूत है, कुछ लेना देना नहीं है। कोई भी पढ़ सकेगा,कल जब साइंस हो जायेगी, कोई भी पढ़ सकेगा। अभी भी
काम हुआ है। और दूसरे के विचार को पढ़ने में बड़ी आसानी हो गयी हे। छोटी सी तरकीब
आपको बता दूँ, आप भी पढ़ सकते है। एक दो चार दिन प्रयोग
करें। तो आपको पता चल जायेगा, और आप पढ सकते है। लेकिन जब आप
खेल देखेंगे तो आप समझेंगे की भारी चमत्कार हो रहा है।
एक छोटे बच्चे को लेकर बैठ जायें। रात
अँधेरा कर लें। कमरे में। उसको दूर कोने में बैठा लें। आप यहां बैठ जायें और उस
बच्चे से कह दे कि हमारी तरफ ध्यान रख। और सुनने की कोशिश कर, हम कुछ ने कुछ कहने की कोशिश कर रहे है। और अपने मन में एक ही शब्द ले
लें और उसको जोर से दोहरायें। अंदर ही दोहरायें, गुलाब, गुलाब, को जोर से दोहरायें,
गुलाब, गुलाब, गुलाब.......दोहरायें
आवाज में नहीं मन में जोर से। आप देखेंगे की तीन दिन में बच्चे ने पकड़ना शुरू कर
दिया। वह वहां से कहेगा। क्या आप गुलाब कह रहे है। तब आपको पता चलेगा की बात क्या
हो गयी।
जब आप भीतर जोर से गुलाब दोहराते है। तो
दूसरे तक उसकी विचार तरंगें पहुंचनी शुरू हो जाती है। बस वह जरा सा रिसेप्टिव होने
की कला सीखने की बात है। बच्चे रिसेप्टिव है। फिर इससे उलट भी किया जा सकता है।
बच्चे को कहे कि वह एक शब्द मन में दोहरायें और आप उसे तरफ ध्यान रखकर, बैठकर पकड़ने की कोशिश करेंगें। बच्चा तीन दिन में पकड़ा है तो आप छह
दिन में पकड़ सकते है। कि वह क्या दोहरा रहा है। और जब एक शब्द पकड़ा जा सकता
है। तो फिर कुछ भी पकड़ा जा सकता है।
हर आदमी के अंदर विचार कि तरंगें मौजूद है, वह पकड़ी जा रही है। लेकिन इसका विज्ञान अभी बहुत साफ न होने की वजह से
कुछ मदारी इसका उपयोग कर रह है। जिनको यह तरकीब पता है वह कुछ उपयोग कर रहे है।
फिर वह आपको दिक्कत में डाल देते है।
यह सारी की सारी
बातों में कोई चमत्कार नहीं है। न चमत्कार कभी पृथ्वी पर हुआ नहीं। न कभी होगा।
चमत्कार सिर्फ एक है कि अज्ञान है, बस और कोई
चमत्कार नहीं है। इग्नोरेंस हे, एक मात्र मिरेकल है। और
अज्ञान में सब चमत्कार हिप्नोटिक होते रहते हे। जगत में विज्ञान है, चमत्कार नहीं। प्रत्येक चीज का कार्य है, कारण है, व्यवस्था है। जानने में देर लग सकती है। जिस दिन जान जी जायेगी उस दिन हल
हो जायेगी उस दिन कोई कठिनाई नहीं रह जायेगी।
ओशो
स्वर्ण पाखी था जो कभी अब है भिखारी जगत का
भारत के जलते प्रश्न
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