मेरे पड़ोस में एक मंदिर था, कृष्ण का मंदिर, मेरे मकान से कुछ ही मकान आगे। मंदिर सड़क के दूसरी और था, मेरा मकान सड़क के इस और था। मंदिर के सामने वे सज्जन रहा करते थे जिन्होंने यह मंदिर बनवाया था। वे बहुत बड़े भक्त थे।
वह मंदिर कृष्ण के बाल-रूप का था। क्योंकि जब कृष्ण युवा हो गए तो उन्होंने अनेक उपद्रव ओर ऐसे अनेक प्रश्न निर्मित कर दिए,इसलिए ऐसे अनेक लोग हैं जो कृष्ण को बाल रूप में पूजते है—इसलिए उस मंदिर को बालाजी का मंदिर कहा जाता है।
बालाजी का यह मंदिर उन सज्जन के घर के ठीक सामने था जिन्होंने इसको बनवाया था। उस मंदिर के और उन सज्जन की भक्ति, लगातार चलने वाली भक्ति के कारण...वे स्नान करते—मंदिर के ठीक सामने एक कुआं था। वहां वे अपना पहला कार्य करते—स्नान। फिर वे घंटों अपनी प्रार्थना किया करते; और उनको बहुत धार्मिक समझा जाता था। धीरे-धीरे लोगों ने उनको बालाजी कहना आरंभ कर दिया। यह नाम मेरी स्मृति में इस भांति बस गया है कि मुझे स्वयं भी उनका असली नाम याद नहीं पड़ता।
क्योंकि जब तक मुझे मालूम हो पाता कि वे है। तब मैने उनका नाम बालाजी ही सुना था। किंतु यह उनका वास्तविक नाम नहीं हो सकता था। यह नाम इस लिए पड़ गया होगा क्योंकि उन्होंने बालाजी को मंदिर बनवाया था।
मैं उस मंदिर मैं जाया करता था। क्योंकि वह मंदिर बहुत सुंदर और बहुत शांत था। सिवाय इन बालाजी के जो वहां एक सतत उपद्रव थे। और कई घंटों तक—वे धनवान व्यक्ति थे,
इसलिए उनको समय की चिंता करने की आवश्यकता नहीं थी—तीन घंटे सुबह,तीन घंटे शाम को वे मंदिर के भगवान को सता रहे थे। वहां कोई नहीं जाया करता था। हालांकि यह मंदिर इतना सुंदर था कि वहां अनेक लोग गए होते। वे कुछ और दूर स्थित मंदिर में जाया करते थे। क्योंकि ये बालाजी ही बहुत अधिक थे। और उनका शोरगुल, इसको शोरगुल ही कहा जा सकता था। यह संगीत न था—उनका गायन इस भाति का था कि यह तुम्हें तुम्हारे सारे जीवन के लिए गायन को शत्रु बना देता।
लेकिन मैं वहां जाया करता था, और हमारी मित्रता हो गई। वे वृद्ध व्यक्ति थे। मैंने कहा: बालाजी, तीन घंटे सुबह और तीन घंटे शाम को आप क्या मांग रहे है? और हर रोज, और उसने आपको अभी तक कुछ दिया नहीं?
उन्होंने कहा: मैं सांसारिक वस्तुएं नहीं मांग रहा हूं, मैं अध्यात्मिक चीजें मांगता हूं। और यह कोई एक दिन का मामला नहीं है। तुम्हें अपने सारे जीवन प्रार्थना में लगे रहना पड़ता है और मोत के बाद यह सब दे दिया जाएगा। लेकिन यह निशिचत है कि वह चीजें दी जाएंगी: मैंने मंदिर बनवाया है, मैं प्रभु की सेवा करता हूं। प्रार्थना करता हूं, तुम देख सकते हो कि सर्दी तक में भीगे वस्त्रों में भी....भक्ति की विशिष्ट गुणवता समझी जाती है; भीगे हुए वस्त्रों में कंपकंपाना। मेरा अपना खयाल है कि ठिठुरते हुए गीत गाना सरल हो जाता है। तुम कंपकंपाना भूलने के लिए चिल्लाने लगते हो।
मैंने कहा: इसके बारे में मेरा खयाल अलग है, लेकिन मैं आपको बताऊंगा नहीं। बस एक बात मैं बताना चाहता हूं। क्योंकि मेरे दादा कहे चले जाते है, ये लोग केवल कायर होते है: ये बालाजी कायर है। वह दिन के छह घंटे व्यर्थ कर रहे है। और इतना छोटा जीवन है यह, और वे कायर है।
उन्होंने कहा: तुम्हारे दादा ने कहा कि मैं कायर हूं?
मैंने कहा: मैं उनको लेकर आ रहा हूं।
उन्होंने कहा: नहीं, उनको मंदिर में मत लेकर आना, क्योंकि यह एक बेकार की झंझट होगी—लेकिन मैं कायर नहीं हूं।
उस मंदिर के पीछे वह मैदान था जिसे भारत में अखाड़ा कहा जाता है। जहां लोग कुश्ती करते है, सीखते है। व्यायाम करते है। और भारतीय ढंग की कुश्ती लड़ते है। मैं वहां जाया करता था—वह मंदिर के ठीक पीछे मंदिर के साथ में ही था—इसलिए वहां के सभी पहलवान मेरे मित्र थे। मैंने उनमें तीन से कहा: आज की रात तुमको मेरी सहायता करनी पड़ेगी।
उन्होंने कहा: किया क्या जाना है?
मैंने कहा: हमें बालाजी की खाट उठानी है। वे अपने घर के बाहर सोते है, हमें बस उनकी खाट उठा कर लानी है और उस कुएं के उपर रख देनी है।
उन्होंने कहा: अगर वे खाट से कूद पड़ते है या कुछ हो जाता है। तो वे कुएं के भीतर गिर सकते है।
मैंने कहा: चिंता मत करो,कुआं इतना गहरा नहीं है। मैं कई बार उसके भीतर कूद चूका हूं—यह इतना गहरा भी नहीं है, न ही इतना खतरनाक है। और जहां तक मुझको पता है, बालाजी कूदने वाले भी नहीं है। वे खाट से चिल्लाएंगे,खाट पर बैठे रहेंगे, वे अपने बालाजी को पुकारेंगे—मुझे बचाओ।
कठिनाई से मैं तीन लोगों को राज़ी कर पाया: तुमको इससे कुछ लेना-देना नहीं है। अकेला मैं उनकी खाट उठा कर नहीं ले जा सकता था। और मैं तुम लोगों से इसलिए कह रहा हूं क्योंकि तुम सभी ताकतवर लोग हो। यदि वे रास्ते के बीच में ही जग जाते है तो कुएं तक पहुंच पाना कठिन हो जाएगा। मैं तुम लोगों की प्रतीक्षा करूंगा। वे नौ बजे सोने चले जाते है। दस बजे तक सड़कें खाली हो जाती है। और ग्यारह बजे का समय ठीक है, मौका नहीं गवाना है। ग्यारह बजे हम उन को ले जा सकते है।
केवल दो लोग पहुंचे; एक नहीं आया, इसलिए हम केवल तीन थे। मैंने कहा: कठिन है यह काम। अब खाट का एक हिस्सा....ओर अगर बालाजी जाग गये...... मैंने कहा: जरा ठहरो,मुझको अपने दादाजी को बुलाना पड़ेगा।
और मैंने अपने दादा जी से कहा: यह काम है जो हम करने जा रहे है। आपको हमारी थोड़ी सह सहायता करनी होगी।
उन्हेांने कहा: यह कुछ कठिन है। अपने स्वयं के दादा से इस बेचारे के साथ ये करने को कहना, जो किसी को हानि नहीं पहुँचाता है, सिवाय इसके कि यह रोज छह घंटे चीखता-चिल्लाता है......हमें इसकी आदत पड़ गई है।
मैंने कहा: मैं इस बारे में बहस करने नहीं आया हूं। आप बस आ जाएं। आपका यह सहयोग मुझ पर ऋण रहेगा। और किसी भी समय जो कुछ भी आप चाहें आप कह भर दें और में वहीं कर दूँगा। लेकिन इस कार्य के लिए आपको आना पड़ेगा। और यह कोई बड़ा काम नहीं है। बस बारह फुट की सड़क पर करनी है, वह भी बालाजी को बीना जगाए।
तो वे आ गए। यही कारण है कि मैं कहता हूं, वे बहुत दुर्लभ व्यक्ति थे—वे उस समय पचहतर वर्ष के थे। वे आ गए। उन्होंने कहा: ठीक है, हमें यह अनुभव कर लेने दो और देखने दो क्या होता है।
उन दो पहलवानों ने मेरे दादा को देख कर भागना आरंभ कर दिया। मैंने कहा: ठहरो, तुम लोग कहां भागे जा रहे हो।
उन्होंने कहा: तुम्हारे दादा आ रहे है।
मैंने कहा: मैं ही बुला कर ला रहा हूं। वे है चौथे व्यक्ति। यदि तुम भाग जाते हो तो मेरा काम और अटक जाएगा। मेरे दादा और मैं यह काम नहीं कर पाएंगे। हम बालाजी को उठा तो सकते है, लेकिन वे जाग जाएंगे। तुमको चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।
उन्होंने कहा: क्या तुमको अपने दादाजी पर भरोसा है? क्योंकि वे भी करीब-करीब उतनी ही उम्र के है: हो सकता है दोनों आपस में मित्र भी हों, और कोई दिक्कत पैदा हो जाए वे हमारी पोल खोल दे।
मैंने कहा: मैं भी इसमे शामिल हूं, वे मेरे लिए कोई परेशानी पैदा नहीं करेंगे,इसलिए तुम लोग भयभीत मत होओ,तूम किसी झंझट में नहीं फंसोगे। और वैसे भी वे तुम्हारा नाम और तुम्हारे बोर में कुछ नहीं जानते।
हमने बालाजी की चारपाई को उठाया और उनकी चारपाई को उनके छोटे से कुएं के ऊपर रख दिया। वहां पर वे केवल स्नान करते थे। और कभी-कभी मैं उसमें कूद जाता था। जिसके वे बहुत विरोध में थे। लेकिन तुम कर भी क्या सकते हो। एक बार में उसके भीतर कूद चुका होता, उनको मुझे बहार निकालने का उपक्रम करना पड़ता था। मैं कहता: अब आप क्या कर सकते है। एकमात्र काम यही है कि मुझे बाहर निकाला जाए। और यदि आप मुझे तंग करेंगे तो मैं प्रतिदिन इसमें कुदा करूंगा। और यदि आपने इसके बारे में मेरे परिवार को बता दिया तो आप जानते है कि मैं इसमें कूदने के लिए मित्रों को लेकर आना शुरू कर दूँगा। इसलिए इस समय इस रहस्य को हमारे बीच ही रहने दो। आप बाहर स्नान करे लें, मैं भीतर स्नान कर लेता हूं। इसमें कोई हानि नहीं होगी।
यह बहुत छोटा से कुआं था। इसलिए खाट उस पर पूरी तरह से बिछ गई। फिर मैंने अपने दादा जी से कहा: आप दूर चले जाए, क्योंकि आप पकड़े गए तो सारा नगर यह सोचेगा कि आपने तो हद कर डाली है।
और तब कुछ दूरी से हमने उनको जगाने के लिए कंकर फेंकना शुरू किए....क्योंकि यदि वे सारी रात सोते रहते, जागते नहीं तो वे करवट ले सकते थे और कुएं में गिर सकते थे। या और कोई दुर्धटना भी हो सकती थी। जिस क्षण वे जागे उन्होंने इस तरह चीख मारी कि....। हमने उनकी आवाज सुन रखी थी, लेकिन यह चीख...। सारे पड़ोसी इक्कठा हो गए। वे अपनी चारपाई पर बैठे थे। और उन्होंने कहा: किसने किया है यह? वे घबराए हुए थे और डरे हुए थे और थर-थर कांप रहे थे।
लोगों ने कहा: कम से कम खाट से उतर तो आइए, फिर खोजना कि क्या हुआ है।
मैं भीड़ में खड़ा हुआ था और मैं बोला: क्या बात है? आप कम से कम अपने बालाजी को तो पुकार सकते थे। लेकिन आपने उनको नहीं पुकार, आपने चीख मारी और आप बालाजी के बारे में सब कुछ भूल गए। आपने जीवन भी प्रतिदिन का छह घंटे का प्रशिक्षण कहां चला गया.....।
उनहोंने मुझको देखा और बोले: क्या यह भी कोई रहस्य कि बात है।
मैंने कहा: अब आप को दो रहस्य सम्हाल कर रखने पड़ेंगे। एक आप कई वर्षो से छिपाए हुए है। अब यह दूसरा रहस्य है।
लेकिन उस दिन से उन्होंने मंदिर में तीन घंटे का चिल्लाना छोड़ दिया। मैं हैरान रह गया। प्रत्येक व्यक्ति अचंभित था। उन्होंने कुएं में स्नान करना बंद कर दिया और प्रत्येक संध्या और प्रात: आकर थोड़ी सी पूजा-अर्चना करने लगे, बस और कुछ नहीं।
मैंने उनसे कहा: बालाजी क्या हो गया?
उन्होंने कहा: मैंने तुमसे झूठ कहा था कि मैं भयभीत नहीं हूं। लेकिन उस रात कुएं के ऊपर जाग पड़ना। अचानक निकली वह चीख मेरी नहीं थी। तुम उस चीख को प्राइमल स्क्रीम, आदि चीख कह सकते हो। यह चीख उनकी नहीं थी। यह निश्चित रूप से सत्य है। वह उनके गहनतम अवचेतन से ही आई थी। उन्होंने कहा: उस चीख ने मुझको सजग कर दिया कि वास्तव में मैं एक भयभीत व्यक्ति हूं, और मेरी सभी प्रार्थनाएं ओर कुछ नहीं बल्कि ईश्वर को मेरी रक्षा करने, मेरी सहायता करने, मुझे बचा लेने के लिए फुसलाने का प्रयास भर है।
लेकिन तुमने उन सब को नष्ट कर दिया, और जो कुछ भी तुमने किया वह मेरे लिए अच्छा था। में उस सारी मूढ़ता से छूट गया। मैंने अपने सारे जीवन भर अपने पड़ोसियों को सताया है, और यदि तुमने ऐसा न किया होता, तो शायद मैंने इस तरह से सताना जारी रखा होता। अब में सजग हूं कि मैं भयभीत हूं। और में अनुभव करता हूं कि अपने भय को स्वीकार कर लेना बेहतर है। क्योंकि मेरा सारा जीवन अर्थहीन रहा है ओर मेरा भय वैसा ही है।
केवल उन्नीस सौ सत्तर में मैं अंतिम बार आपने गांव गया। मेरा अपनी नानी के साथ ये वादा था कि जब वह मरेंगी—उन्होने इसे एक बचन के रूप में लिया था—मैं अवश्य आऊँगा। इसलिए मैं चला गया। मैं नगर में इधर-उधर घूम कर लोगों से मिला और तब मैंने बाला जी को देखा। वे बिलकुल भिन्न व्यक्ति दिखाई पड़ रहे थे। मैंने उनसे पूछा: क्या हुआ?
उन्होंने कहा: उस चीख ने मुझको पूरी तरह से बदल दिया। मैंने भय को जीना आरंभ कर दिया। ठीक है, यदि मैं कायर हूं तो मैं कायर हूं: मैं इसके लिए उत्तरदायी नहीं हूं। यदि भय है तो भय है। मेरा जन्म इसके साथ हुआ है। लेकिन धीरे-धीरे जैसे-जैसे मेरा स्वीकार भाव और गहराया, वह भय खो गया और कायरपन मिट गया।
वास्तवमें मैंने मंदिर से नौकर को भी हटा दिया, क्योंकि यदि मेरी प्रार्थनाएं नहीं सुनी जा रही है तब नौकर की प्रार्थनाएं कैसे सुन ली जाएंगी....एक नौकर जा पूरे दिन में तीस मंदिरों में जाता है?—क्योंकि उसको मंदिर से दो रूपये मिल जाते है। वह दो रूपये के लिए प्रार्थना कर रहा था। इसलिए मैंने उसकी छुटटी कर दी। और पूरी तरह से आराम में हूं। और मैं जरा भी चिंता नहीं करता कि परमात्मा है या नहीं। यह उसकी समस्या है, मैं चिंता में क्यों पडा रहूँ?
लेकिन अपनी वृद्धावस्था में मैं बहुत ताजगीभरा और युवा अनुभव कर रहा हूं। मैं तुमसे मिलना चाहता था। लेकिन में नहीं आ सका। में बहुत बूढा हूं। मैं तुमको धन्यवाद देना चाहता था कि तुमने वह शरारत की, वरना मैं लगातार प्रार्थना करता रहता। और मर जाता। और सब कुछ अर्थहीन और व्यर्थ था। अब मैं उस व्यक्ति की भांति मर रहा होऊंगा जो मुक्त हो गया। पूर्णत: मुक्त हो चुका है। वे मुझको अपने घर के भीतर ले गए पहले भी मैं वहां जा चुका था। सारी धार्मिक पुस्तकें हटा दी गई थीं। उन्होंने कहा: मैं इन सभी में अब जरा भी उत्सुक नहीं रहा।
--ओशो
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