तैरना एक युक्ति है
मेरे गांव में एक बहुत सुंदर वृद्ध भले व्यक्ति थे। उनको प्रत्येक व्यक्ति प्रेम करता था। वे बहुत सरल और बहुत भोले थे, यद्यपि वे अस्सी वर्ष के ऊपर के थे। और मेरे गांव के साथ में ही एक नदी बहा करती थी। उन्होंने उस नदी में अपना स्वयं को एक स्थान बना रखा था, जहां पर वे अपना स्नान किया करते थे। गांव में जहां तक कोई भी स्मरण कर पाता था उन्हें सदैव उनको वर्षो से प्रतिदिन वहीं पर देखा था। भले ही वर्षा हो, गर्मी हो या शीत ऋतु , इससे कोई अंतर नहीं आत था। भले ही वे अस्वस्थ हो या स्वस्थ , जरा भी भेद नहीं पड़ता था। वे प्रात: ठीक पाँच बजे अपने स्थान पर होते। और वह नदी का र्स्वाधिक गहरा स्थान था। इसलिए सामान्य: वहां कोई नहीं जाया करता था। और वह स्थान गांव से काफी दूर भी था।
लोग नदी पर जाया करते थे, वह मेरे घर से कोई आधा फर्लांग दूर थी—वह स्थान कोई दो मील दूर था। और जैसे कि हमारे यहां पहाड़ियां नदी को घेरे हुए है। तुमको एक पहाड़ पार करना पड़ता है, फिर एक और पहाड़, फिर एक और पहाड़ पर करना पड़ता है, तब तुम उस स्थान पर पहुंच सकोगे। लेकिन यह बहुत सुंदर स्थान था। जैसे ही मुझको इसके बारे में पता लगा मैंने वहां जाना आरंभ कर दिया।
और हम तुरंत ही मित्र बन गए। क्योंकि.....तुम मुझको जानते हो कि मैं किस प्रकार का व्यक्ति हुं। यदि वे वहां प्रात: पाँच बजे पहुंचते थे तो मैं वहां तीन बजे पहुंच जाता था। एक दिन, दो दिन, तीन दिन ऐसा हुआ। फिर उन्होंने कहा: मामला क्या है? क्या तुमने मुझको हराने की ठान ली है।
मैंने कहा: नहीं, यह बात नहीं है,लेकिन मैं यहां तीन बजे ही पहुंचने वाला हुं। जिस तरह आपने पाँच बजे यहां पहुंचने का निर्णय ले रखा है।
उन्होंने कहा: क्या तुम जानते हो कि तैरा कैसे जाए?
मैंने कहा: मुझे नहीं पता, लेकिन आप चिंता न करें। यदि दूसरे लोग तैर सकते है तो मैं भी तैर सकता हूं। यदि आप तैर सकते है तब इसमें समस्या ही क्या है? एक बात निश्चित है, यदि यह मानव के लिए संभव हो तो यह पर्याप्त है। अधिक से अधिक मैं डूब सकता हूं—तो क्या? एक दिन तो प्रत्येक को मरना ही है। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता।
उन्होंने कहा: तुम खतरनाक हो। मैं तुम्हें सिखाऊंगा कि कैसे तैरा जाए।
मैंने कहा: नहीं। मैंने उनसे कहां: आप बस यहां बैठे रहे और मैं कूद जाऊँगा। यदि मैं मर रहा होऊं तो मुझको बचाने का प्रयास मत करें, भले ही मैं चिल्ला कर आपको आवज दूँ। आप उसे सुनिए गा मत।
उन्होंने कहा: किस प्रकार के बच्चे हो तुम। तुम चिल्ला रहे होओगे: मुझे बचाओ ओ मुझको तुम्हें नहीं बचाना है।
मैंने कहा: जी हां,में नहीं चिल्लाऊंगा। मैं इस बात को पूरी तरह से निशचित ही कर रहा हूं। संभवत: जिस समय मैं डूब रहा होऊं, या मर रहा होऊं या पानी मेरे नाक में और मुंह मैं घुस रहा हो, मैं चिल्लाना आरंभ कर सकता हूं, मुझे बच्चाओं। लेकिन मैं स्पष्ट कह देता हूं: मैं किसी भी हालत में किसी के द्वारा बचाया जाना नहीं चाहता। या तो मैं जान से जाऊँगा कि तैरना क्या है या मैं यह जान लुंगा कि तैरना मेरे लिए नहीं है, इसे त्याग दूँगा।
और इससे पहले कि वे मुझे रोके सकें, मैने नदी में छलांग लगा दी। निश्चित रूप से मुझे दो या तीन बार पानी में डुबकी खानी पड़ी। और वे वहां प्रतीक्षा में खड़े हुए थे, जिससे कि यदि में उनको पुकारें....लेकिन मैंने बस अपना हाथ इनकार में हिलाया,बचाने के लिए पुकारने वाला नहीं हुं। तीन या चार बार मैं नीचे डूबा,ऊपर आया,अपने हाथ इधर-उधर फेंके, लेकिन मुझे कोई खयाल ही नहीं कि कैसे तैरा जाये। लेकिन तुम कर क्या सकते हो, जब तुम डूब रहे होते हो तो तुम वह प्रत्येक संभव कार्य करते हो जो तुम कर सकते हो। और पाँच मिनटों के भीतर ही मैंने तैरने की युक्ति जान ली।
और मैं वापस लौटा और मैंने उनसे कहा: आप मुझे यह सिखाने का आमंत्रण दे रहे थे—जिसे मैं पाँच मिनट में सीख गया। मुझे खतरों उठाना था, और यह तथ्य स्वीकार करना था: अधिक से अधिक इसका अर्थ है मृत्यु।
तैरना एक युक्ति है, यह कोई कला नहीं है जिसे किसी व्यक्ति को सीखना पड़े। तुमको बस पानी में फेंका भर जाना है। तुम अपने हाथों से छप-छप करोगे और तुम्हें अपने हाथ और अपने पैर इधर-उधर फेंकना ही पड़ेंगे। और शीध्र ही तुम पाओगें कि यदि तुम अपने हाथ और पैर एक लयबद्ध ढंग से, सम क्रमिकता में चलाते रहोगे तो पानी स्वयं तुम्हें ऊपर बनाए रखता है।
मैंने उन वृद्ध सज्जन से कहा: मैंने लाशों को नदी में बहते हुए देखा है। जब एक मुर्दा आदमी तैर सकता है, तो क्या आपको मुझसे कहने का यह अर्थ है कि मैं जिंदा हूं और मैं तैर नहीं सकता। मृत व्यक्ति भी तैरने की यह कला जानता है।
वर्षा काल में जब नदी में बाढ़ आती थी, ऐसा अनेक बार हो जाता कि पूरे के पूरे गांव नदी में समा जाते—अनेक लोग,पानी में आदमियों की लाशें,जानवरों की लाशें बहती हुई दिखती। इसलिए मैंने कहा: मुर्दा लोग भी तेजी से बहते पानी में डूबते नहीं तैरते चले जाते है। और मैं जीवित हूं इसलिए मुझको इसे अपने आप से सीख लेने का एक अवसर मिलने दो, क्योंकि मेरी अनुभूति यह है कि यह केवल एक युक्ति है, इससे कौन सी कला हो सकती है। यह कोई शिल्पकला नहीं है या कोई ऐसी कठिन कला नहीं है जिसे समझा जाए। जो मुझे दिख पड़ता है वह मामला कुल इतना है कि लोग अपने हाथ चला रहे है—इसलिए मैं भी अपने हाथ चला सकता हूं।
--ओशो
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें