मैं बहुत छोटा था, शायद बारह वर्ष का रहा होऊंगा, जब एक बहुत विचित्र व्यक्ति हमारे घर में आया। मेरे पिता उनको लेकर आए थे। क्योंकि वे विद्वान थे। और न केवल विद्वान थे बल्कि उनके अपने कुछ प्रमाणिक अध्यात्मिक अनुभव भी थे। संभवत: उस समय तक वे संबुद्ध नहीं थे। मेरे लिए बिलकुल ठीक से उनको याद रख पाना संभव नहीं है। मैं उनका चेहरा भी याद नहीं कर पा रहा हूं। उन्होने सोचा कि शायद ये रहस्यदर्शी कुछ कर पाएंगे, कुछ सुझाव दे पाएंगे, मुझे किसी बात पर राज़ी कर पाएंगे, क्योंकि मेरे बारे में प्रत्येक व्यक्ति चिंचित था। यद्यपि मैं उनके घर में रह रहा था। लेकिन उन सभी को लगता था कि मैं उनके मध्य एक अजनबी था। और वे गलत भी नहीं थे। और अंतत: मेरी उपस्थिति कुछ इस भांति की थी नहीं जैसे कि कोई उपस्थित हो।
मेरे पिता उन सूफी रहस्यदर्शी को यह सोच कर घर पर लाए थे कि संभवत: कुछ सहायक हो सकेंगे। और मेरे पिता तो हैरान हो गए,मेरा परिवार भी हैरान हुआ, क्योंकि उन सज्जन ने जो किया...उन्होंने मुझको एक अलग कमरा दे रखा था। जिससे कि मैं उनके लिए सतत उपद्रव न बना रहूँ, क्योंकि बस वहां पर बैठे रहना,कुछ भी न करना,उनको बेचैन करने के लिए पर्याप्त था—वे सभी कुछ न कुछ कर रहे है, प्रत्येक व्यक्ति कार्य कर रहा है, और मैं आंखें बंद किए बैठा हूं, ध्यान कर रहा हूं।
इस लिए उन्होंने मुझे ऐसा कमरा दे रखा था। जिसका प्रवेश द्वार अलग था। वे सूफी मेरे पिता के साथ आए और वे दीवालों को सूँघते रहे, इस कोने पर उस कोने पर मेरे पिता ने कहा: है भगवान, मैं उन्हें लेकर आया था कि वे तुम्हें ठीक करे दें। लेकिन वे तुमसे बहुत आगे प्रतीत हो रहे है।
मेरा पूरा कमरा खाली था। मैंने सदैव खालीपन को प्रेम किया है। क्योंकि केवल खालीपन ही नितांत निर्मल हो सकता है। तुम अपने कमरे में चाहे जो कुछ भी एकत्रित करते चले जाओ, आज नहीं तो कल व्यर्थ हो जाता है। इसलिए मेरे कमरे में कुछ भी न था।
मेरे पिता ने उनको देखा,मुझ पर निगाह डाली और उन्होंने कहा: मैंने उनको आमंत्रित किया है, इसलिए मुझे देखना चाहिए कि वे क्या करते है।
फिर वे आए और मुझको सुगंध पता चल रही है। और उसकी सुगंध भी पता चल रही है। यह मौन की सुगंध है। मौन की महक है। आपको अनुगृहीत होना चाहिए कि आपको ऐसा पुत्र मिला है। मुझे दोनों को सुधना पडा। जिससे में यह जान सकूं कि यह क्या उसकी उपस्थिति से संबंधित है। यह कमरा उसकी उपस्थिति से आपूरित है। उसके लिए बाधा उत्पन्न न करें। और उन्होंने मुझसे यह कह कर क्षमा मांगी: मुझको माफ कर दो, तुम्हारे कमरे में आकर मैंने तुम्हें बाधा पहुँचाई है।
मेरे पिता उनको लेकर बाहर चले गए और वे वापस लौटे और कहा: मैं सोचता था कि केवल तुम ही पागल हो, और अधिक पागल लोग भी है—कमरे को सूंघने वाले।
लेकिन मैंने उनसे कहा: आपका आवास आपका विस्तर है। सूक्ष्म ढंग से यह आपका प्रतिनिधित्व करता है। और आप जिन सज्जन को लेकर आए थे, वे निश्चित रूप0 से एक महान व्यक्ति, अंतर्दृष्टि और समझ के व्यक्ति है।
--ओशो
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