ओ.के.। अभी उस दिन मैं तुम लोगों को मस्तो के गायब हो जाने के बारे में बता रहा था। मुझे लगता है कि वह अभी भी जीवित है। सच तो यह है कि मैं जानता हूं कि वह जीवित है। पूर्व में यह एक अति प्राचीन प्रथा है। मरने से पहले व्यक्ति हिमालय में खो जाता है। किसी और जगह रहने से तो इस सुंदर स्थल में मरना ज्यादा मूल्य बान है। वहां पर मरने में भी शाश्वतता का कुछ अंश है। इसका कारण शायद यह है कि हजारों वर्षों तक ऋषि मुनि वहां पर जो मंत्रोच्चार कर रहे थे। उसकी तरंगें अभी भी वहां के वातावरण में पाई जाती है। वेदों की रचना वहां हुई, गीता वहां लिखी गई। बुद्ध वहां पर जन्मे और मरे। लाओत्से भी अपने अंतिम दिनों में हिमालय में ही खो गया था। और मस्तो ने भी ऐसा ही किया।
किसी को यह मालूम नहीं है कि लाओत्से मरा या नहीं। इसके बारे में निश्चय रूप से कोई कैसे कुछ कह सकता है। इसलिए जनश्रुति कहती है कि वह अमर हो गया। लेकिन लोगों को उसकी मृत्यु की कोई जानकारी नहीं है। अगर कोई चुपचाप बिलकुल एकांत में निजी ढंग से मरना चाहे तो यह उसका अधिकार है। वह ऐसा कर सके, ऐसा होना चाहिए।
मस्तो ने मेरी देखभाल पागल बाबा से भी अधिक अच्छी तरह से की। पहली बात कि पागल बाबा तो सच मुच्छ पागल थे। दूसरा, वे कभी-कभी ही आंधी की तरह मुझसे मिलने आते और उसी तरह गायब हो जाते। यह तो कोई ढंग नहीं है। किसी की देखभाल करने का। एक बार तो मैंने उनसे कहा भी कि आप सबको बताते हो कि आप इस बच्चे की देखभाल कितनी अच्छी तरह से करते हो। लेकिन आप यह बात फिर से कहो उससे पहले मेरी भी सुनो।
उन्होंने हंस कर कहा: मुझे मालूम हे। तुम्हें कहने की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन मैं जल्दी ही तुम्हें अच्छे हाथों में सौंप दूँगा। सच में मैं तुम्हारी देखभाल करने योग्य नहीं हूं। क्या तुम समझ सकते हो कि मैं नब्बे बरस का हूं और अब मेरे शरीर छोड़ने का समय हो गया है। लेकिन मैं रुका हुआ हूं ताकि मैं तुम्हें किसी योग्य और उपयुक्त व्यक्ति को सौंप दूँ। एक बार ऐसा व्यक्ति मिल जाए तो मैं आराम से मृत्यु की गोद में सो जाऊँगा।
उस समय मैं नहीं जानता था कि वह सच मच गंभीर थे, लेकिन उन्होंने ठीक ऐसा ही किया। उन्होंने अपने उत्तर दायित्व को मस्तो को सौंप दिया और हंसते हुए मर गए। यहीं अंतिम काम था जो उन्होंने किया।
जरथुस्त्र शायद हंसा हो, जब वह जन्मा था...इसका कोई गवाह नहीं है। लेकिन वह निश्चित हंसा होगा क्योंकि उसका समस्त जीवन इसकी और ही संकेत करता है। और उसकी इसी हंसी ने ही पश्चिम के सर्वाधिक प्रतिभाशाली व्यक्ति, फ्रेड्रिक नीत्शे को आकर्षित किया था। लेकिन पागल बाबा तो मरते समय सचमुच हंसे थे। हम यह भी नहीं पूछ सके कि आप क्यों हंस रहे है। हम पूछ भी नहीं सकते थे। वे दार्शनिक नहीं थे और अगर जीवित भी रहते तो भी वे इसका अत्तर देने बाले नहीं थे। लेकिन उनके मरने का भी क्या ढंग था। और याद रखना, वह मात्र मुस्कुराहट नहीं थी। सचमुच हंसी थी हंसी।
वहां पर उपस्थित सब लोग एक दूसरे की और देखने लगे कि ‘ आखिर क्या बात है।‘ वे इतनी जोर से हंसे कि सब लोगों ने समझा कि पहले तो ये थोडे-थोड़े पागल थे, अब ये पूरी तरह से पागल हो गए है। वे सब वहां से चले गए। शिष्टाचार वश न तो कोई जन्म के समय हंसता है। न मरने के समय हंसता है। ब्रिटिश आचरण शिष्टाचार से बंधा रहता है।
बाबा सदा शिष्टाचार में विश्वास रखने वाले लेागों के खिलाफ थे। इसीलिए तो वे मुझसे प्रेम करते थे। इसीलिए तो वे मस्तो से प्रेम करते थे। और जब वे मेरी देख भाल करने के लिए उपयुक्त आदमी की खोज कर रहे थे, स्वभावत: उन्हें मस्तो से अधिक अच्छा व्यक्ति कहीं नहीं मिल सकता था।
बाबा जितना सोच सकते थे, मस्तो तो उससे भी आगे बढ़ गया। उसने मेरे लिए इतना किया, इतना किया कि उसके बारे में बात करते भी मेरा दिल दुखता है। वह इतनी निजी बात है कि उसकी चर्चा नहीं की जानी चाहिए। इतनी निजी बात है कि जब कोई अकेला हो तब भी इसे बोलना नहीं चाहिए।
बाबा मस्तो से अधिक उपयुक्त आदमी और कोई नहीं मिल सकता था। मस्तो उनका सबसे बढ़िया चुनाव था। मैं किसी भी तरह से और अच्छे आदमी की कल्पना भी नहीं कर सकता। सिर्फ यहीं नहीं कि वह ध्यानी था....वह ध्यानी तो था ही अन्यथा हम दोनों में इतना गहन संवाद होना संभव नहीं था। और ध्यान का अर्थ है मन का न रहना—कम से कम जब तक तुम ध्यान कर रहे हो। लेकिन सिर्फ यही नहीं था, इसके अतिरिक्त उनमें और भी अनेक गुण थे। वह बहुत अच्छे गायक थे। लेकिन उन्होने कभी लोगों के सामने नहीं गया। हम दोनों इस पर हंसते थे—दि पब्लिक, लोक जन। यह बहुत ही मंदबुद्धि बच्चों से बनती है। आश्चर्य की बातें है कि वे कैसे किसी खास समय पर किसी स्थान पर इकट्ठे हो जाते है। मैं समझा नही सकता। मस्तो ने भी कहा था कि वह भी नहीं समझा सकता। यह समझाया ही नहीं जा सकता।
उन्होंने कभी आम लोगो के लिए नहीं गया। वे केवल उन थोड़े से लोगों के लिए गाते थे जो उनसे प्रेम करते थे। और उनको यह वादा करना पड़ता था कि वे इसके बारे में कभी बात नहीं करेंगे। उनकी आवाज इतनी मधुर थी कि जब वे गाते थे तो ऐसा लगता था जैसे आस्तित्व उनके माध्यम से प्रवाहित हो रहा हो। यही सही शब्द है जो मैं उपयोग कर सकता हूं—वे अपने माध्यम से अस्तित्व को प्रवाहित होने देते थे। वे प्रवाह को रोकते नहीं थे, यहीं उनकी विशेषता थी।
मस्तो सितार भी बहुत बढ़िया बजाते थे। लेकिन मैंने उन्हें कभी भीड़ के सामने बजाते नहीं देखा। ज्यादातर जब वे सितार बजाते थे तो सिर्फ मैं ही वहाँ पर होता और वे मुझसे दरवाजा बंद करने को कहते। कहते, दरवाजा बंद कर दो और चाहे कुछ भी हो जाए, दरवाजा खोलना मत जि तक कि में मर न जाऊँ। और वे जानते थे कि अगर मैं दरवाजा खोलना चाहूं तो पहले मुझे उन्हें मारना होगा फिर ही दरवाजा खोल सकता हूं। मैं अपना वादा निभाता। लेकिन उनका संगीत गजब का था...दुनिया उनको नहीं जानती थी: उनकी इस कला से वंचित ही रह गई।
वे कहते थे: ये बातें इतनी निजी है कि उनको लोगों के सामने रखना एक प्रकार से वश्या वृति होगी। यही उनका शब्द था। ‘ वेश्या वृति ‘ वे बहुत बड़े दार्शनिक विचारक और तर्कपूर्ण व्यिक्त थे—मेरे जैसे नहीं। पागल बाबा और मुझ में सिर्फ एक ही समानता था: वह थी हम दोनों के पागलपन की । मस्तो और उनमें बहुत सी बातों कह समानता थी। पागल बाबा की दिलचस्पी अनेक चीजों में थी। निश्चित ही में पागल बाबा का प्रतिनिधि नहीं हो सकता, लेकिन मस्तो था। मैं तो किसी का भी प्रतिनिधि नहीं हो सकता।
मस्तो ने हर प्रकार से मेरे लिए इतना किया कि मुझे अचरज होता है कि बाबा को कैसे मालूम हुआ कि मेरे लिए वहीं ठीक आदमी होगा। मैं तो बच्चा ही था और मुझे पथ-प्रदर्शन की आवश्यकता थी। और मैं सीधा-साधा, भोला-भाला बच्चा भी नहीं था, में आसानी से किसी कि बात मानने को तैयार नहीं था। जब तक मुझे अच्छी तरह से समझाया न जाता तब तक मैं टस से मस न होता।
मुझे एक किस्सा याद आ रहा है। मैं इस किस्से को चुटकुले की तरह सुनाता था। बहुत से चुटकुलों को मैं इधर-उधर से रंग रोगन करके ऐसा बना देता हूं कि वे चुटकुले लगें लेकिन उनमें से अधिकांश चुटकुले वास्तविक जीवन से आते है, और वास्तविक जीवन एक प्रकार से चुटकुलों की पुस्तक से कहीं अधिक बड़ी मजाक की किताब है। मुझे कैसे मालूम है कि यह चुटकुला वास्तविक जीवन से ही लिया गया है। क्योंकि अन्यथा हो ही नहीं सकता, और कोई तरीका ही नहीं है। मुझे याद है, मैं इस चुटकुले को सुनाया करता था और इस प्रकार सुनाया करता था।
एक बच्चा स्कूल में देर से आया, बहुत देर से। बारिश हो रही थी। अध्यापिका ने उसे अपनी पथरीली आंखों से देखा। और ये पथरीली आंखें केवल अध्यापकों और पत्नियों को ही दी गई है। और तुम्हारी शादी किसी ऐसी औरत से हो जाए जो अध्यापिका है,तब तो भगवान ही तुम्हें बचा सकता है। तब तुम्हारे लिए केवल प्रार्थना ही कर सकते है। तब उस औरत की चार पथरीली आंखे हो जाएगी जो चारों और देखेगी। स्कूल की अध्यापिका से सदा बच कर रहना। कदापि नहीं, कभी भी स्कूल अध्यापिका से शादी मत करना। कुछ भी हो जाए, फंसने से पहले ही भाग खड़े होना। और कहीं भी फंस जाना, मगर स्कूल अध्यापिका के साथ मत फंसना। अगर वह अंग्रेज हुई तब तो मुसीबत और भी अधिक बढ़ जाएगी।
छोटा बच्चा, पहले ही बहुत डरा हुआ, पूरी तरह पानी से भीगा हुआ, किसी तरह स्कूल पहुंच गया। लेकिन अध्यापिका तो अध्यापिका ही है। उसने पूछा: तुम इतनी देर से क्यों आये।‘
बच्चे ने सोचा था कि चह काफी सबूत है कि इतने जोर की बारिश हो रही है, मूसलाधार बारिश, और वह पूरा भीगा है। पानी टपक रहा है। और फिर भी वह पूछ रही है कि तूम देर से क्यों आये।
उस बच्चे ने एक अच्छा बहाना बनाया, जैसा कोई भी बच्चा बनाता। उसने कहा: सड़क पर इतनी फिसलन है कि जब मैं एक कदम आगे बढ़ता था तो दो कदम पीछे फिसल जाता था।
अध्यापिका ने कठोर आवाज में कहा: यह कैसे हो सकता है। अगर तुम एक कदम आगे बढ़ाते और दो कदम पीछे फिसल जाते थे तो तूम कभी भी स्कूल नहीं पहुंच सकते थे।
उस बच्चे ने कहा: जरा समझने की कोशिश कीजिए: मैं अपने घर की और मुड़ा और मैं स्कूल से भागने लगा, इसी तरह मैं यहां पहुंचा हूं।
मैं कहता हूं कि यह कोई चुटकुला नहीं है। स्कूल की अध्यापिका वास्तविक है, लड़का वास्तविक है और बारिश भी वास्तविक है, स्कूल अध्यापिका का निष्कर्ष वास्तविक है, और छोटे बच्चे का निष्कर्ष भी इससे अधिक वास्तविक नहीं हो सकता था। मैंने हजारों चुटकुले सुनाए हैं और उनमें से बहुत से वास्तविक जीवन से ही लिए गए है। जो वास्तविक जीवन से नहीं आ रहे है, वे भी वास्तविक जीवन से ही आ रहे है—जो ऊपर से दिखाई नहीं देता, लेकिन नीचे छिपा हुआ है। उसे ऊपर आने ही नहीं दिया जाता।
मस्तो अत्यंत गुणी थे, उनमें बहुआयामी गुण थे। वे अच्छा संगीतज्ञ,अच्छे नर्तक, अच्छे गायक और भी न जाने क्या-क्या थे। लेकिन वे सदा लोगों की आंखों से बचते थे। वे उनकी आंखों को बदसूरत कहते थे। वे कहते थे, ‘ मेरी कला इन लोगों के लिए नहीं है। ये लोग देख नहीं सकते। लेकिन सिर्फ विश्वास करते है कि उनको दिखाई देता है।‘
मेरा तो कोई दोस्त नहीं था। फिर भी मस्तो मुझे बार-बार याद कराते कि मुझे कभी किसी दोस्त को या किसी परिचित को आंमत्रित नहीं करना चाहिए। लेकिन जब एक बार मैंने उनसे पूछा कि क्या मैं कभी किसी को आमंत्रित कर सकता हूं। उन्होंने कहा कि अगर में अपने किसी या अंतरंग व्यक्ति को लाना चाहता हु तो अपनी नानी को साथ ला सकता हूं। उनके बारे में तो तुम्हें मुझसे पूछने की भी जरूरत नहीं है। लेकिन अगर वह नआना चाहें तो में इसके बारे में कुछ नहीं कर सकता।‘
और यही हुआ। जब मैंने नानी से यह बात कही, तो उन्होंने कहा: मस्तो से कहो कि वह घर आए और अपनी सितार यहां बजाए। और वे इतने विनम्र आदमी थे कि उन्होंने घर आकर नानी के लिए सितार बजाईं, और बहुत खुशी से बजाईं। और मैं बहुत खुश था कि उन्होने मना नहीं किया और वे आए वे आए। मुझे यही चिंता हो रही थी वे शायद मना न कर दे।
और मेरी नानी, वह वृद्धा अचानक नवयुवती सी दिखाई देने लगी, उनका तो जैसे कायाकल्प ही हो गया। जैसे-जैसे वे सितार की झंकार में लीन होती गई वे कम उम्र की दिखाई देने लगीं। मैंने यह चमत्कार होते देखा। और जब मस्तो ने सितार बजाना बंद किया, तो वह फिर से बूढी हो गई। मैंने कहा: नानी, यह ठीक नहीं है। मस्तो को भी तो यह देखने का अवसर मिलना चाहिए कि तुम्हारे जैसे व्यक्ति पर उसके संगीत का क्या प्रभाव पड़ता है। नानी ने कहां: यह मेरे बस की बात नहीं है। मुझे मालूम है कि मस्तो इसको समझ जाएगा, यह होता है तो होता है, अगर नहीं होता तो नहीं होता—कोई कुछ कर नहीं सकता।‘
मस्तो न कहा: हां,में इस बात को समझता हूं।
लेकिन मैंने जो देखा वह अविश्वसनीय था। मैं बार-बार अपनी आंखों को झपका रहा था कि क्या मैं स्वप्न देख रहा हूं या सचमुच उनके यौवन को वापस आते देख रहा हूं। आज भी मुझे यह विश्वास नहीं हो रहा कि वह मेरी कोरी कल्पना थी, शायद उस दिन....लेकिन आज तो मेरे पास कोई कल्पना ही नहीं है। मुझे चीजें वैसी ही दिखाई देती है जैसी वे है।
दुनिया मस्तो से अपरिचित ही रह गई, क्योंकि वह लोगों की भीड़-भाड़ से सदा बचता रहा। और जब मेरी तरफ उसका कर्तव्य, पागल बाबा से किया गया उसका वायदा पूरा हो गया, तो वह हिमालय में गायब हो गया।
हिमालय शब्द का अर्थ है- हिम-आलय अर्थात बर्फ का घर। वैज्ञानिक कहते है कि अगर किसी दिन हिमालय की बर्फ पिघल जाए तो संसार में बाढ़ आ जाएगी। सारी दुनिया—कोई एकाध हिस्सा नहीं—सभी साग़रों का पानी चालीस फीट ऊँचा उठ जाएगा। इस पर्वत का हिमालय बिलकुल नाम ठीक दिया गया है। हिम का अर्थ है: बर्फ और आलय का अर्थ घर।
इसके सैकडों शिखरों की बर्फ कभी पिघलती ही नहीं है। और उनके चारों और मौन छाया रहता है। वातावरण की शांति कभी भंग नहीं होती...वह केवल पुराना ही नहीं है, इसमें एक अजीब अपनापन है..क्योंकि ध्यान की गहराई में डूबे हुए हजारों लोगों ने वहाँ शरण ली है। उनकी अविश्वसनीय ध्यानस्थता, असीम प्रेम, प्रार्थना और मंत्रोच्चार सह वही का वातावरण तरंगित रहता है।
सारे संसार में अभी भी हिमालय पर्वत अनोखा है, बेजोड़ है। आल्प्स पर्वत तो हिमालय के सामने बच्चा है। स्विटज़रलैंड सुंदर है, लेकिन सुंदरता वहां पर उपलब्ध सुखसुविधाओं पर अधिक निर्भर है। लेकिन मैं हिमालय की उन मौन रातों को कभी नहीं भूल सकता—चारों और कोई नहीं है, शांत, निर्जन शांति आकाश में टिमटिमाते तारे।
मैं भी मस्तो की भांति वहीं पर अदृश्य हो जाना चाहता हूं। मैं उसे समझ सकता हूं। और तुम लोगों को आश्चर्य नहीं होना चाहिए अगर एक दिन मैं अदृश्य हो जाऊँ। हिमालय तो भारत से कही अधिक बड़ा है। इसके कुछ भाग ही भारत में है। कुछ भाग नेपाल का है, कुछ पाकिस्तान और बर्मा का है—हजारों मील दूर तक केवल पवित्रता ओरा पावनता ही पावनता है। इसके दूसरी और है रूस, तिब्बत, मंगोलिया, चीन, इन सबके पास हिमालय का कोई न कोई हिस्सा है।
यह आश्चर्य नहीं होगा अगर किसी दिन मैं गायब हो जाऊँ और किसी सुंदर चट्टान के पास लेट कर अपना शरीर छोड़ दूँ। शरीर-त्याग के लिए इससे अधिक सुंदर स्थान दूसरा कोई नहीं हो सकता है। लेकिन शायद मैं ऐसा नहीं करूं, तुम तो मुझे जानते ही हो। मेरे बारे में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता, मेरी मृत्यु के बारे में भी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती।
शायद मस्तो जल्दी चाहते थे, लेकिन वह सिर्फ अपने गुरू, पागल बाबा द्वारा दिए अंतिम काम को पूरा कर रहे थे। उन्होंने मेरे लिए इतना कुछ किया कि उसकी लिस्ट बनाना भी कठिन है। मेरी परिचय ऐसे लोगों से कराया कि अगर कभी भी मुझे पैसे की जरूरत हो तो मुझे सिर्फ उनसे कहना होगा और पैसा आ जाएगा। मैंने मस्तो से पूछा कि क्या ये लोग पूछे गे नहीं कि पैसे की क्यों आवश्यकता है।
उन्होंने कहा: उसकी तुम चिंता मत करो। मैंने उनके सब प्रश्नों का उत्तर दे दिया है। लेकिन यह कायर लोग है। ये अपना पैसा तो तुम्हें दे सकते है। लेकिन अपना ह्रदय तुम्हें नहीं दे सकते, इसलिए उनसे वह मत मांगना।‘
मैंने कहा: मैं कभी किसी से उनके की मांग नहीं करता, इसे मांगा नहीं जा सकता। वह अपने आप चला जाता है या नहीं जाता। इसलिए मैं इन लोगों से सिवाय पैसे के और किसी चीज की मांग नहीं करूंगा और वह भी तभी जब उसकी आवश्यकता होगी।
और सचमुच उन्होंने ऐसे लोगों से मुझे मिलाया जिनका नाम सदा अज्ञात रहा, लेकिन जब भी मुझे पैसे की जरूरत होती, पैसा लगातार आ रहा था। जब मैं जबलपुर मैं था, वहां विश्वविद्यालय में पढ़ा रहा था, और नौ साल से ज्यादा रहा, पैसा लगातार आ रहा था। मेरा वेतन अधिक नहीं था। इसलिए लोगो को यह देख कर आश्चर्य होता कि इतने कम वेतन में मैं एक कार और बाग़-बग़ीचे वाला सुंदर बगला कैसे रख सकता हूं। और एक दिन किसी ने पूछ लिया कैसे इतनी सुंदर कार...ओर उसी दिन दो और कारें आ गई। तब मेरे पार तीन कारें हो गई और उन्हें रखने की जगह ही नहीं थी।
पैसा निरंतर आता ही रहा। मस्तो ने सारा प्रबंध कर दिया था। हालांकि मेरे पास तो कुछ भी नहीं है, बिलकुल भी पैसा नहीं है, लेकिन फिर भी कही न कहीं से वह आ ही जाता है।
मस्तो...तुमसे विदा लेनी मुश्किल है, इसका सीधा सा कारण है कि मुझे यह विश्वास नहीं होता कि तुम अब नहीं रहे। तुम अभी भी हो, भले ही मैं तुम्हें फिर से न मिल सकूं, वह कोई बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। मैंने तुम्हें इतना देखा है कि मेरा अंतर्तम तुम्हारी सुगंध से सुगंधित है। लेकिन इस कहानी में कही पर तो मुझे तुम्हारी चर्चा समाप्त करनी पड़ेगी। इसके लिए मेरा दिल दुखता है। मेरे लिए बहुत मुश्किल है....लेकिन मुझे इसके लिए क्षमा करना।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें