ओ. के.। मैं तुम्हें एक सीधा-सादा सरल सा सत्य बताना चाहता था। शायद सरल होने के कारण ही वह भुला दिया गया है। और कोई भी धर्म उसका अभ्यास नहीं कर सकता। क्योंकि जैसे ही तुम किसी धर्म के अंग बन जाते हो वैसे ही तुम न तो सरल रहते हो और न ही धार्मिक। मैं तुम्हें एक सीधी सह बात बताना चाहता था। जो कि मैंने बड़े मुश्किल ढंग से सीखी है। शायद तुम्हें तो यह बहुत सस्ते में मिल रही है। साधी और सरल सदा सस्ता ही माना जाता है। यह सस्ता बिलकुल नहीं है। यह बड़ा कीमती है। क्योंकि इस सरल से सत्य के मूल्य को चुकाने के लिए अपने सारे जीवन को दांव पर लगाना पड़ता है। और वह है समर्पण, श्रद्धा।
ट्रस्ट, श्रद्धा को तुम लोग गलत समझते हो। कितनी बार मैं तुम्हें बता चुका हूं? शायद लाखों बार बताया है। परंतु क्या तुमने एक बार भी ध्यान से सुना है। अभी उस रात मेरी सैक्रेटरी रो रही थी और मैंने उससे पूछा कि वह क्यों रो रही है?
उसने कहा: मेरे रोने का कारण कह है कि आप मुझ पर बहुत श्रद्धा करते है। और मैं इस योग्य नहीं हूं। मैं इसे सहन नहीं कर सकती।
मैंने कहा: ये तुम पर श्रद्धा करता हूं। अब तुम रोना चाहती है तो रो सकती हो। अगर तुम हंसना चाहती हो तो हंस सकती हो।
अब, यह तो उसके लिए बहुत मुशिकल है। वह मुझे समझती है। उसके आंसू मेरे विरोध में नहीं वह रहे, वे मेरे लिए बह रह थे। मैंने उससे कहा: तुम क्या कर सकती हो। ज्यादा से ज्यादा तुम मुझसे यह घर छोड़ कर जाने के लिए कह सकते हो। इस घर में से जो भी मेरे साथ आना चाहेगा वह आएगा, नहीं तो मैं अकेला ही चला जाऊँगा। मैं अकला ही आया हूं ओर अकेला ही जाऊँगा। उस वास्तविक यात्रा पा तो मेरे साथ कोई नहीं चल सकता हां, इस बीच समय बिताने के लिए तुम सब तरह से खेल-खेल सकते हो।
मैंने उससे कहा: तुम सोच रही हो कि अब तुम मुझे धोखा दे सकती हो। ठीक है, इससे अच्छा मौका तुम्हें नहीं मिलेगा।
वह फिर रोने लगी और पैरों में गिरने लगी और उसने कहा: नही, नहीं। मैं आपकी धोखा देना नहीं चाहती। इसीलिए तो मैं रो रही थी। आपको धोखा नहीं देना चाहती।
मैंने कहा: तो फिर यह विचार कैसे आया, तुम ऐसा नहीं करना चाहती, मैं भी नहीं चाहता कि तुम करो, तो फिर हम समय क्यों बरबाद कर रहे है। अगर तुम मुझे धोखा देना चाहती हो। तो मैं इसके लिए राज़ी हूं। रोना तो मुझे चाहिए क्योंकि आरंभ से ही मैं एक समस्या ही बना रहा हूं। अभी भी मैं एक समस्या हूं—अपने लिए नहीं—मैं तो हूं ही नहीं। इसलिए यह प्रश्न ही नहीं उठता। परंतु दूसरों के लिए जो ‘’हैं’’ और जो बहुत ही ज्यादा, हैं.. जितना अधिक उनमें मैं हूं का भाव है, उतना ही अधिक उनका जीवन समस्यापूर्ण उसकी कोई समस्या नहीं है। और अगर वह तुम पर भरोसा करता है तो तुम्हारी देखभाल करने के लिए अस्तित्व पर्याप्त है।
परंतु अस्तित्व में किसी की कोई दिलचस्पी नहीं है—सब बातों में दिलचस्पी है सिवाय अस्तित्व के।
इससे मस्तो फिर वापस आ जाते है। मस्तो है ही ऐसे व्यक्ति जो कहीं भी टपक पड़ते है—बुलाए, बिन बुलाए, आमंत्रित, बिन आमंत्रित। और वह इतने प्रिय थे कि आमंत्रित हों या न हों, सब लोग उनका स्वागत करने के लिए तैयार रहते थे। मस्तो बार-बार बीच में आते है। वह पुरानी आदत है। इसका कोई इलाज नहीं है।
अब बेचारा देव गीत नोट ही लिखता रहता है, और यह काम वह बहुत अच्छी तरह से करता है। कभी-कभी उसे चेक करने के लिए बीच में ही मैं पूछ बैठता हूं के मैं क्या कह रहा था। और हव मुझे बिलकुल ठीक बता देता है। कि मैं क्या कह था। वह अपना काम करता है। मेरे प्रति उसकेा इतना अधिक प्रेम है कि वह अनायास ही ठंडी श्वास लेता है। उच्छवास लेता है। यह सोच कर कि कुछ अविश्वसनीय घट गया है और उसे अभी भी उस पर विश्वास नहीं होता। और मेरी मुश्किल यह है कि मैं समझता हूं कि वह चुपके-चुपके हंस रहा है वह हंस नहीं रहा, उसकी उत्तेजक श्वास से मुझे यह भ्रम हो जाता है कि वह हंस रहा है।
इसके बारे में उसने मुझे लिखा भी है। किंतु जब भी वह उच्छवास लेता है तो तत्काल मुझे उसकी दबी हुई हंसी का खयाल आ जाता है। कि वह फिर हंस रहा है। मेरी भी यह पुरानी आदत तब से है जब मैं प्रोफेसर था। अब तुम्हें तो मालूम ही है की प्रोफेसर तो आखिर प्रोफेसर ही होता है। और वह अपनी क्लास मैं ही-ही करके हंसने की इजाजत नहीं दे सकता। अब मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं है। मुझे अच्छा लगता है।
मेरी क्लास में लड़कियों की संख्या लड़कों से अधिक थी। इसलिए खूब हंसी सुनाई देती थी। और तुम मुझे जानते हो मुझे हंसी मजाक अच्छा लगता है। चुटकुले भी सुनाता था। परंतु मेरे सामने अकारण कोई हंसे तो वह मुसीबत में पड़ जाएगा। हां अगर चुटकुले के बाद कोई हंसे तो उस पर मुझे कोई आपति नहीं है। परंतु अगर कोई बिना किसी विशेष कारण से हंसे तो मैं उसको रंगे हाथों पकड़ लेता। मेरे चुटकुले के कारण वे नहीं हंस रहे थे—लड़के आरे लड़कियों के एक साथ होने के कारण हंस रहे थे। आदम और ईव की वही पुरानी कहानी। तब परमात्मा ने कहा था: इस ईदन के बग़ीचे से बाहर निकल जाओ। दोनों निकल जाओ। ‘हां, ऐसा ही कहा था परमात्मा ने।
वह पुराने ढंग का अध्यापक रहा होगा और यह सांप भी कोई पुराना, ऐसा पुराना नौकर रहा होगा जिसने बहुत से अदम और बहुत सी ईव का काम किया होगा—उनकी चिटठीयों को एक दूसरे के पास पहुंचाने में सहायता की होगी। दूसरी प्रकार के काम भी किए होगें किंतु उनका उल्लेख नकरना ही अच्छा है। हां, यह पर कोई भद्र महिलाएं उपस्थित नहीं है। किंतु अगर कोई भद्र पुरूष भद्र न होने का दिखावा कर रहा हो अगर कोई भ्रद महिला भ्रद न होने का दिखावा कर रही हो तो उन्हें अनावश्यक कष्ट होगा। मैं किसी को कोई कष्ट नहीं देना चाहता।
मुझे अपना प्रथम भाषण याद है....देखा, कैसे चीजें हो रही है इस शृंखला में। वह भाषण मैंने एक हाईस्कूल मैं दिया था। जिले के सभी हाई स्कूलों ने अपने-अपने वक्ताओं को वहां भेजा था। मुझे भी अपने स्कूल का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुन लिया गया था। इसलिए नहीं कि मैं सबसे अच्छा वक्ता था, मैं ऐसा नहीं कह सकता,बल्कि इसलिए कि मैं ही सबसे उपद्रवी था। अगर मुझे न चुना जाता तो मैं मुसीबत खड़ी कर देता, इतना पक्का था। तो उन्होंने मुझे चुना। किंतु उन्हें यह नहीं मालूम था कि मैं जहां कहीं भी जाऊँ मुसीबत अपने आप खड़ी हो जाती है।
मैंने अपना भाषण बिना किसी संबोधन के आरंभ कर दिया। किसी प्रकार की कोई औपचारिकता नहीं निभाई। मैंने न कहा सभापति महोदय, न कहा सज्जनों ओर देवियों...हुआ यह कि जब मैंने सभापति को ऊपर से नीचे तक देखा तो मैंने अपने आपसे कहा कि ‘यह तो सभापति जैसा दिखाई नहीं देता। फिर वहां उपस्थित लोगों की और देखा तो मैंने सोचा कि ‘ यहां पर तो न कोई सज्जन दिखाई देता है, न कोई देवी। इसलिए दुर्भाव से मुझे अपना भाषण बिना किसी संबोधन के ही आरंभ करना होगा। मैं सिर्फ कह सकता हूं कि जो कोई भी उपस्थित है, या जिससे भी इसका कोई ताल्लुक है।
बाद में मेरे प्रिंसिपल ने मुझे बुलाया, क्योंकि इसके बाद भी मैंने प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया।
मेरे प्रिसिंपल ने मुझे बुला कर कह कि ‘‘ तुम्हें क्या हुआ था? तुमने ऐसा अजीब व्यवहार क्यों किया। हमने तुम्हारे लिए जो भाषण तैयार किया था, उसमें से तुम एक शब्द भी नहीं बोले और तुमने सभापति को भी संबोधित नहीं किया। न सज्जनों और देवियों को।‘
मैंने कहा: मैंने चारों और देखा, तो मुझे कोई भी सज्जन दिखाई नहीं दिया। मैं उन सब लोगों को अच्छी तरह से जानता हूं, और उनमें से कोई भी सज्जन नहीं है। और जहां तक देवियों का सवाल है, वे तो और भी गई बीती थी। क्योंकि वे इन्हीं पुरूषों की पत्नियाँ थी। और सभापति। वह तो ऐसा लगता है जैसे कि परमात्मा द्वारा इस शहर में सिर्फ कभी सभाओं के सभापतित्व के लिए भेजा गया है। मैं तो उससे थक गया हूं। मैं उसे आदरणीय सभापति नहीं बुला सकता। क्योंकि मैं तो उसे थप्पड़ मारना चाहूंगा।
उस दिन जब सभापति ने मुझे पुरस्कार देने के लिए बुलाया तो मैंने कहा: याद रखिए आपको नीचे आना पड़ेगा आरे मुझसे हाथ मिलाना पड़ेगा।
उसने कहा: क्या, तुमसे हाथ मिलाऊं, मैं तो कभी तुम्हारी और देखूँगा भी नहीं। तुमने मेरा अपमान किया है।
मैंने कहा: मैं तुम्हें दिखाअुगा।
उस दिन से वह सभापति मेरा दुश्मन बन गया। मैं दुश्मन बनाने की कला को बहुत अच्छी तरह जानता हूं। वह उस शहर का जाना-माना राजनीतिज्ञ था और उसका नाम था श्रीनाथ भट्ट। वह गांधी वादी राजनैतिक दल का प्रभावशाली नेता था। उस समय भारत ब्रिटिश राज्य में था। जहां तक स्वतंत्रता का सवाल है, भारत अभी भी स्वतंत्र नहीं है। ब्रिटिश राज्य से वह भले ही स्वतंत्र हो गया हो परंतु अंग्रेजों ने जो नौकर शाही बनाई थी वह उससे स्वतंत्र नहीं हुआ।
मैं सदा श्रद्धा की बात करता रहा हूं किंतु मैं इसको अच्छी तरह से समझा नहीं सका। शायद इसमें मेरा कोई दोष नहीं है। श्रद्धा की बात नहीं की जा सकती, उसकी और केवल इशारा किया जा सकता है। जब कि मैं इसके बारे में कुछ निशचित कहने कि कठिन कोशिश करता रहा हूं। फिर भी मैं इसमे सफल नहीं हो सका। या तो यह तुम्हारे अनुभव हो जाए—तब इसको जानने की जरूरत ही नहीं रहती या जब यह तुम्हारा अनुभव ही नहीं बनता तब तुम्हें श्रद्धा के संबंध में सब जानकारी प्राप्त हो तो भी वास्तव में तुम उसके बारे में कुछ भी नहीं जानते।
मैं दुबारा तुम्हें बताने कि कोशिश कर रहा था—अपने को एक और मौका दे रहा था। शायद और सब प्रयासों के बारे में बात करना लगता है। उन प्रयासों के बारे में भी जो असफल हुए हैं। परंतु यह सोच कर गर्व होता है कि ये प्रयास ठीक दिशा में किए गए थे। प्रश्न तो दिशा का ही है। हां श्रद्धा तो बहुत कुछ है, किंतु सबसे पहले अपनी और एक प्रश्न दिशा में परिवर्तन।
हम जन्मते ही बाहर की और देखते है। अपने भीतर देखना शरीर –रचना का काम नहीं है। शरीर बाहर के सब काम अच्छी तरह से करता है। कही जाना हो तो वह तुम्हें ले जाता है। परंतु जैसे ही तुम पूछते हो कि मैं कौन हूं। तो उसकी समझ में नहीं आता कि वह क्या करे। और वह गड़बड़ा जाता है। क्योंकि वह प्रश्न इस तथाकथित संसार से संबंधित नहीं है।
इस संसार में दस आयाम या दस दशाएं है। आयाम तो बड़ा शब्द है ओर दिशा के लिए इसका प्रयोग नहीं होना चाहिए। ये दस दशाएं है। दो-एक ऊपर, एक नीचे, और चारो को हम जानते हैं। पूर्व, पश्चिम उतर, दक्षिण की तरह और चार कोने है। शेष चार कोने है। जब तुम पूर्व पश्चिम की और एंव अत्तर-दक्षिण की और रेखा खींचो तो उत्तर और पूर्व में पूर्व और दक्षिण में कोने होते है। इस तरह चार कोने होते है।
मुझे आयाम शब्द को प्रयोग नहीं करना चाहिए था। वह बिलकुल ही अलग है, वह देव गीत की छींक के समान बिलकुल भिन्न है। वह उसे दबाने की कोशिश करता है और ऐसा करना असंभव है। मैं उसे सलाह दूँगा कि वह छींक को आने दे, वह आ ही जाती है तो क्यों मुश्किल में पड़ना। दुबारा जब छींक दस्तक दे तो दरवाजा खोल कर उसका स्वागत करते हुए कहिए: मैडम भीतर आ जाओ। शायद छींक बिलकुल न आए। छींक अजीब चीज है। छींक लाने के लिए कोशिश करो तो योग की सब प्रक्रियाएं करनी पड़ेगी। और फिर भी शायद इसमें सफलता न मिले। किंतु जब इसे रोकने की कोशिश की जाती है तो यह जरूर आती है। तुम्हें तो मालूम है कि यह स्त्री है, और जब स्त्री तुम पर अधिकार करने की कोशिश करे तो उससे बचने के लिए उसे छींक कर बाहर कर देना चाहिए—रोकना ठीक नहीं है।
दिशा और आयाम उतने ही भिन्न है जितना उसकी छींक को मेरा यह समझना कि यह हंसी है। वह अपनी छींक को रोकने की कोशिश कर रहा था ओर मैं उसके बारे में बोलना शुरू कर रहा था। जिसके बारे में बोला नहीं जा सकता। और उसी समय उसने छीं दिया। इसी को तो कर्ला गुस्ताव जुंग सिन्क्रॉनिसिटी कहता है। यह बहुत अच्छा उदाहरण नहीं है। किंतु छोटा सा उदाहरण है।
यह अजीब बात है, खास कर भारत में, जब भी ऐसी बातों की चर्चा की जाती है...ओर मैं नहीं सोचता कि और कहीं लोगों ने हजारों वर्षो से ऐसी बात की हो—गू रू से मिलने के समय छींकना मना है। क्या? मेरी समझ में नहीं आता कि छींक को कैसे मना किया जा सकता है। छींक तो तुम्हारे सिपाहियों से या तुम्हारी बंदूकों से नहीं डरती। तुम उसे मना कैसे कर सकते हो। हां अगर नाक की प्लास्टिक सर्जरी की जाए तो शायद यह संभव है। पर वह ठीक नहीं होगा, क्योंकि छींक तो केवल यह सूचना देती है कि नाक के भीतर कुछ गलत घुस गया है। उसे कभी नहीं रोकना चाहिए।
इसीलिए मैं तुमसे कहता हूं,देव गीत, तुम मेरे शिष्य हो और मेरे शिष्यों को सब तरह से भिन्न होना चाहिए—छींक के मामले में भी। वे तो उस समय भी छींक सकते है जब गुरु श्रद्धा के बारे में बात कर रहा हो। इसमें तो कोई नुकसान नहीं है। किंतु कभी-कभी जब तुम उसे दबाने की या रोकने की कोशिश करते हो तो उसका प्रभाव तुम्हारी श्वास पर पड़ता है। तुम्हारे भीतर की सब चींजे उससे प्रभावित हो जाती है। और तब मुझे यह गलतफहमी हो जाती है कि तुम हंस रहे हो। तुम्हें तो यह सोच कर खुश होना चाहिए कि मेरा गुरु अगर कभी-कभार मुझे गलत भी समझता है तो वह सही समझता है कि मैं हंस रहा हूं।
ये वही लोग होंगे जिन्होंने उस आदमी को मार डाला था और अभी भी वे उसके ताबुत पर कीलें ठोके जा रहे है। की वह बहार न निकल आए। ये वहीं लोग है जो अभी भी उसे सूली पर लटका रहे है। और वह तो दो हजार साल पहले मर चुका है। अब उसे सूली पर चढ़ाने की कोई जरूरत नहीं है। परंतु वह अपनी सम्रझदारी से सूली पर मरने से बच गया। ठीक समय पर वहां से भाग गया था। आम जनता के लिए तो उसने सूली पर चढने का नाटक किया और जब लोग घर चले गए तो वह भी घर चला गया। मेरा यह अर्थ नहीं है कि वह परमात्मा के पास चला गया, ऐसा मत समझना। वह सचमुच आने घर चला गया।
अभी भी ईसाइयों को जो गुफा दिखाई जाती है। के जिसमें जीसस के शरीर को रखा गया था—वह सब बकवास है। कुछ घंटों के लिए उनके शरीर को वहां रखा गया था। शायद रात भर भी रखा गया हो किंतु उस समय वे जीवित थे। यह बात बाइबिल द्वारा ही सिद्ध होती है। बाईबिल में कहा गया है कि जब उन्होंने समझा कि जीसस मर गए तो एक सिपाही ने उनके शरीर में भाला भोंक दिया ओर खून निकल आया। परंतु मरे हुए आदमी के शरीर से खून नहीं निकलता। जैसे ही आदमी मरता है वैसे ही उसका खून विघटित होना शुरू हो जाता है। अगर बाईबिल में यह कहा गया होता कि पानी निकलता तो मुझे यह विश्वास होता कि वे सच कह रहे है। परंतु यह लिखना भी बहुत मूखतापूर्ण लगता कि पानी बाहर निकला। सच तो यह है कि जीसस यरूशलम में कभी मरे ही नहीं। वे तो पहल गाम में मरे थे।
पहल गाम शब्द का वही अर्थ है जो मेरे गांव के नाम का अर्थ है। पहलगाम इस संसार में बहुत ही सुंदर स्थान है। जीसस यहीं पर मर के और उस समय उनकी उम्र एक सौ बाहर वर्ष की थी। किंतु वे अपने ही लोगों से इतने परेशान हो गए थे कि उन्होंने स्वयं ही यक अफवाह फैला दी कि वे सूली पर मर गए है।
सूली उनको अवश्य लगी थी। किंतु तुम्हें यह समझ लेना चाहिए कि सूली देने का जो यहूदी तरीका था वह अमरीका जैसा नहीं था कि कुर्सी पर बिठा कर बस बटन दबाया और आदमी मर गया। इतना भी समय नहीं मिलता कि कोई यह कहे कि है भगवान, इन लोगों को क्षमा करना जो बटन दबा रहे है। इन्हें नहीं मालूम कि वह क्या कर रहे है। वे जानते है कि वे क्या कर हैं । वे बटन दबा रहे है। और तुम्हें नहीं मालूम कि वह क्या कर रहे है।
अगर जीसस को वैज्ञानिक ढंग से सूली दी जाती तो उनको कोई समय नहीं मिलता। यहूदियों का ढंग बहुत बर्बर और असभ्य था। कभी-कभी तो मरने मैं चौबीस घंटे से भी अधिक समय लगता था। कभी-कभी तो यहूदियों की सूली पर चढ़ाएं जाने के बाद लोग तीन-तीन दिन जीवित रहते थे। क्योंकि वे सिर्फ आदमी के हाथों और पैरों में कीले ठोंक देते थे। खून में जमने कि क्षमता होती है वह थोड़ी देर बहने के बाद जमने लगता है। आदमी को ताक बहुत पीडा होती है। वह परमात्मा से प्रार्थना करता है कि जल्दी से जल्दी समाप्त करो। जीसस का भी शायद यही मतलब था जब वे कह रह थे कि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे है। आपने मुझे क्यो त्याग दिया है। पीड़ा बहुत अधिक हुई होगी। क्योंकि अंत में उन्होंने कहा था कि तेरी मर्जी पूरी हो।
मैं नहीं सोचता कि वे सूली पर मरे। नहीं, मुझे तो यह भी नहीं कहना चाहिए कि ‘’मैं नहीं सोचता’’…. मैं जानता हूं कि वे सूली पर नहीं मरे। उन्होंने कहा था: तेरी मर्जी पूरी हो। यह उनकी स्वतंत्रता थी। अब वे जो चाहे कह सकते थे। सच तो यह है कि रोम के गर्वनर पांटियस को उनसे प्रेम हो गया था। किसे न होता, जो भी ठीक से देख सकता था उसके लिए यह स्वभाविक ही था।
परंतु जीसस के अपने लोग तो पैसे गिनने में व्यस्त थे। उनके पास इतना समय ही कहां था कि से जीसस की आँखो में झांक कर देख सके? जीसस के पास पैसा भी नहीं था। पांटियस पायलट ने तो एक बार यह भी सोचा कि वह उनको छोड़ दे क्योंकि उन्हें मुक्त करने का अधिकार उसे था। किंतु वह उन लोगों की भीड़ से डर गया। और वह इस प्रकार की किसी मुसीबत में पड़ना नहीं चाहता था। उसे मालूम था कि जीसस यहूदी है और ये लोग भी यहूदी है। इसीलिए इन्हें आपस में निपटने दो—इन्हें स्वयं ही फैसला करने दो। पायलट न यह भी सोचा लिया कि अगर इन्होंने जीसस के पक्ष में निर्णय नहीं लिया तो फिर मुझे कोई दूसरा रास्ता खोजना पड़ेगा।
और उसने रास्ता खोज लिया। राजनीतिज्ञ सादा कोई न कोई रास्ता खोज ही लेते है। वे घुमा-फिरा कर काम करते है। वे सीधे नहीं जाते। अगर उन्हें ‘क’ के पास जाना हो तो वे पहले ख के पास जाते है। राजनीति में काम ऐसे ही होता है। और यह बड़ा कारगर तरीका होता है। किंतु जब कोई व्यक्ति राजनीतिज्ञ नहीं होता तो यह तरीका कारगर नहीं होता। पांटियस पायलट ने अपने को किसी मुसीबत में डाले बिना जीसस के मामले को बहुत अच्छी तरह से सुलझा दिया।
शुक्रवार दोपहर को जीसस को सूली लगी थी। इसीलिए उस दिन को गुड फ्रायड कहते है। अजीब दुनिया है। इतने अच्छे आदमी को सूली लगी और तुम उस दिन को अच्छा शुक्रवार कहते है, किंतु इसका कारण था, क्योंकि यहूदी....मेरा ख्याल है कि देव गीत, तुम फिर मेरी सहायता कर सकते हो। अपनी छींक से नहीं क्या शनिवार उनका धार्मिक दिन है?
हां ओशो।
अच्छा...क्योंकि शनिवार को कुछ भी किया जाता। शनिवार यहूदियों के लिए अच्छा दिन है। सब काम बंद कर दिए जाते है। इसीलिए शुक्रवार का दिन चुना गया था। और वह भी दोपहर बाद का जब सूर्य अस्त होने वाला था, सूर्य अस्त होने के बाद शरीर नीचे उतार लिया गया। क्योंकि अगर शनिवार को भी वह लटकता रहे, तो वह भी एक प्रकार का काम हो जाएगा। और शनिवार को यहूदियों की छुटटी होती है। राजनीति में ऐसे ही काम होता है, धर्म में नहीं। रात को जीसस के एक अमीर अनुयायी ने जीसस के शरीर को उस गुफा से बाहर निकाल लिया। इसके बाद रविवार का तो सब लोगों को छुटटी होती है। सोमवार तक तो जीसस बहुत ही दुर चले गए थे।
इजराइल बहुत ही छोटा सा देश है। पैदल चल कर भी चौबीस घंटों में उसे पार किया जा सकता है। जीसस भाग गए और इसके लिए हिमालय से अच्छा और कौन सा स्थान हो सकता है। पहल गाम एक छोटा सा गांव है, जहां पर कुछ एक झोपड़ियों है। इसके सौंदर्य के कारण जीसस ने इसको चुना होगा। जीसस ने जिस स्थान को चुना वह मुझे भी बहुत प्रिय है।
मैंने बीस साल तर निरंतर कश्मीर में रहने की कोशिश की। परंतु कश्मीर का कानून बड़ा अजीब है। केवल कश्मीरी लोग ही वहां रह सकते है। दूसरे भारतीय भी नहीं। यह तो अजीब बात है। किंतु मुझे मालूम है कि नब्बे प्रतिशत कश्मीरी मुसलमान है और उनको यह डर है कि अगर भारतीयों को वहां बसने की अनुमति मिल जाएगी तो हिंदुओं की संख्या अधिक हो जाएगी। क्योंकि वह भारत का ही हिस्सा है। अब तो यह खेल वोटों का है—हिंदुओं को वहां नहीं बसने दिया जाएगा।
मैं हिंदू नहीं हूं किंतु सरकारी नौकर मंदबुद्धि वाले होते है। इनको तो मानसिक अस्पतालों में रखना चाहिए। वे मुझे वहां रहने की अनुमति ही नहीं देते है। मैं कश्मीर के मुख्यमंत्री से भी मिला था जो पहले कश्मीर का प्रधानमंत्री माना जाता था। उसे प्रधानमंत्री से मुख्यमंत्री पद पर लाने के लिए संघर्ष करना पडा था। अब एक देश में दो प्रधानमंत्री कैसे हो सकते है। किंतु यह व्यक्ति शेख अब्दुल्ला इस बात को मानने के लिए राज़ी ही नहीं था। उसको कई वर्ष तक कैद में रखना पडा तब कश्मीर के सारे संविधान को बदल दिया गया। किंतु यह अजीब खँड़ वैसे का वैसा ही बना रहा, इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ। शायद कमेटी के सब सदस्य मुसलमान थे और वे नहीं चाहते थे कि कोई कश्मीर मे प्रवेश कर सके। मैंने बहुत कोशिश कि किंतु सफल न हो सका। इन राजनीतिज्ञों की मोटी खोपड़ी में कुछ भी नहीं घुस सकता।
मैंने शेख से कहा: तुम पागल हो क्या, मैं हिंदू नहीं हूं। तुम्हे मुझसे डरने की कोई जरूरत नहीं है। और मेरे लोग तो सारी दुनिया से आ रहे है। वे तुम्हारी राजनीति पर कोई प्रभाव नहीं डालेंगे।
उसने कहा: फिर भी हमें सावधान तो रहना ही चाहिए।
मैंने कहा: अच्छा,तुम सावधान बने रहो ओर इस प्रकार तुम मुझे और मेरे लोगो को खो बैठोगे।
कश्मीर को कितना लाभ होता। परंतु ये राजनीतिज्ञ जन्म से ही बहरे होते है। उसने सुन कर भी नहीं सुना।
मैंने उससे कहा: आपको पता है कि मैं तो आपकेा बहुत वर्षो से जानता हूं। और मुझे कश्मीर से बहुत प्रेम है।
उसने कहा: मैं आपको जानता हूं। इसीलिए तो मुझे आपसे डर है। आप राजनीतिज्ञ नहीं है। आप बिलकुल दूसरे ही वर्ग के हो, ऐसे लोगों पर हम विश्वास नहीं करते। उसने अविश्वास शब्द का प्रयोग किया और मैं तुमसे ‘विश्वास’ की बार कर रहा हूं।
इस समय मैं मस्तो को नहीं भूल सकता। बहुत समय पहले उसने ही मुझे अब्दुल्ला से परिचय करवाया था। बाद में जब मैं कश्मीर में प्रवेश करना चाहता था, विशेषत: पहल गाम में तो मैंने शेख को इस परिचय की याद दिलाई।
शेख ने कहा: हां, मुझे याद है कि यह आदमी भी खतरनाक था, और आप तो उससे भी अधिक खतरनाक हो। चुंकी आपका परिचय मस्तो बाबा ने दिया था इसीलिए आपको कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं बनने दूँगा।
मस्तो ने मेरा परिचय बहुत से लोगों से कराया था। उन्होंने सोचा था कि शायद मुझे उनकी जरूरत पड़ जाए। और निश्चित ही मुझे उनकी जरूरत थी। अपने लिए नहीं अपने काम के लिए। परंतु कुछ एक को छोड़ कर अधिकांश लोग तो कायर निकले। उन सबने यही कहा। हमें मालूम है कि आप समाधिस्थ हो, जाग्रत हो।
मैने कहा: बस वहीं रूक जाओ। तुम लो्ंगो के मुहँ से ये शब्द निकलते ही पवित्रता खो देते है। या तो तुम लोग मेरी बात मान लो या सीधे इनकार कर दो। दूसरी किसी प्रकार की बकवास न करो।
वे सब नम्र होते थे। उनको मस्तो; याद थे, और कुछ को तो पागल बाबा भी याद थे। किंतु वे मेरे लिए कुछ भी नहीं करना चाहते थे। मैं ज्यादातर लोगों की बात कर रहा हूं। मस्तो ने जिन सैकड़ों लोगो से मुझ परिचय कराया। उनमें से केवल एक प्रतिशत ने मेरी सहायता की। बेचारे मस्तो वे चाहते थे कि मुझे कभी कोई कठिनाई नही और उनके परिचित मेरी हर आवश्यकता को पूरा करते रहें।
मैंने उनसे कहा: मस्तो तुम मेरे लिए सब प्रकार की कोशिश कर रहे हो। किंतु तुम जब इन मूर्खों से मेरा परिचय कराते हो तो में शिष्टाचार वश चुप रहता हूं। अगर तुम वहां पर न होते तो मैं मुसीबत खड़ी कर देता। उदाहरण के लिए वह आदमी तो मुझे कभी न भूल पाता। तुम्हारे कारण ही मुझे अपने आप को नियंत्रण में रखना पड़ता है। जब कि मैं नियंत्रण में विश्वास नहीं करता परंतु तुम्हारे लिए मुझे यह भी करना पड़ता है।
मस्तो ने हंस कर कहा: मुझे मालूम है। किसी बड़े नामी आदमी से तुम्हारा परिचय कराते समय जब मैं तुम्हारी और देखता हूं तो मैं हंसता हूं अंदर ही अंदर और सोचता हूं कि उस मूरख को मारने की अपनी इच्छा को तुम कितनी मुशिकल से रोके हुए हो।
शेख अब्दुल्ला के साथ भी मुझे यही कोशिश करनी पड़ी। उसने मुझे कहा: अगर मस्त बाबा ने आपका परिचय न दिया होता तो मैं आपको कश्मीर में रहने की इजाजत अवश्य दे देता।
मैने शेख से पूछा: ऐसा क्यों?.....आप तो उनके बड़े प्रशंसक दिखते थे।
उसने कहा: हम किसी के प्रशंसक नहीं होते। हम तो अपने ही प्रशंसक है। किंतु मुझे मस्त बाबा का प्रशंसक बनना पडा, क्योंकि कश्मीर में उनके बहुत से अमीर लोग अनुयायी थे। मैं उनका स्वागत करने के लिए और उन्हें विदा देने के लिए हवाई अड्डे पर जाता था। अपने सब काम छोड़ कर उनके पीछे भागता था। किंतु वह आदमी खतरनाक था। क्योंकि उनहोंने आपका परिचय मुझसे कराया था इसलिए आप कश्मीर में नहीं रहा सकते, जब तक कि मैं शासन कर रहा हूं। एक पर्यटक की तरह आप आ जा सकते हो।
अच्छा ही हुआ कह जीसस ने शोख अब्दुल्ला से पहले ही कश्मीर में प्रवेश कर लिया,उन्होंने अच्छा ही किया की दो हजार साल पहले जन्म ले लिया,वे शेख अब्दुल्ला से डर गये होगें। जीसस की कब्र अभी भी वहां है। इजराइल से जो लोग उनके साथ आए थे। उनके वंशज अभी भी उसकी देखभाल करते है। यह तो तुम समझ सकते हो कि मेरे जैसे लोग अकेले नहीं जा सकते। कुछ लोग जीसस के साथ वहां भी चले गए होंगे। यद्यपि वे इजराइल से बहुत दूर चले गए, फिर भी कुछ लोग उनके साथ चले गए होगें।
मस्तो ने ही मेरा परिचय इंदिरा से भी कराया था। इंदिरा के पिता पंडित जवाहर लाल नेहरू।
मस्तो भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मित्र थे। वे बहुत ही सुंदर और अनोखे व्यक्ति थे। राजनीति के क्षेत्र में रह कर शायद ही कोई इतना सुंदर रह सकता है। जब गूंगा बहरी और अंधी विश्वविख्यात महिला, हेलर केलर नेहरू से मिली तो उसने उनके चेहरे का स्पर्श करके अपनी संकेत-भाषा द्वारा कहा कि इस व्यक्ति के चेहरे को छूकर मुझे ऐसा लग रहा है। जैसे कि मैं किसी संगमरमर की मूर्ति को छू रही हूं।
बहुत से लोगों न जवाहरलाल नेहरू के बारे में बहुत कुछ लिखा है परंतु बिना आंख, कान और जबान की इस महिला ने बडी सरलता से बहुत ही महत्व पूर्ण बात कह दी।
जब मस्तो ने मेरा उनसे परिचय कराया तो मेरा भी यही खयाल था। उस समय मैं केवल बीस वर्ष का था और एक वर्ष के बाद ही मस्तो मुझे छोड़ कर जाने वाले थे। इसलिए वे चाहते थे कि मरा अधिक से अधिक लोगों से परिचय करा दें। वे मुझे प्रधान मंत्रि के घर ले गए। जवाहर लाल नेहरू के साथ मेरी यह भेंट बहुत ही सुंदर रही। मुझे ऐसी आशा नहीं थी क्योंकि राजनीतिज्ञों से मिल कर मैं सदा निराश हुआ था। में तो कभी सोच भी नहीं सकता था कि प्रधानमंत्री और राजनीतिज्ञ ने हो। किंतु वे नहीं थे।
हम लोग जब नेहरू से विदा ले रहे थे और वह हमें छोड़ने के लिए गलियारे में आ रहे थे उसी समय संयोग से इंदिरा गांधी भी वहां पर आ गई। उस समय वे किसी पद पर नहीं थीं—कम आयु की युवती थीं। उनके पिता ने ही उनका मुझसे परिचय कराया था। मस्तो भी वहीं थे किंतु मुझे यह नहीं मालूम कि इंदिरा मस्तो को जानती थी या नहीं। मेरी जवाहरलाल नेहरू से यह भेट इतनी महत्वपूर्ण सिद्ध हुई कि इसके कारण उनके परिवार के प्रति मेरा दृष्टिकोण ही बदल गया।
नेहरू ने मेरे साथ स्वतंत्रता और सत्य के बारे में चर्चा की। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था। मैंने उनसे कहा: क्या आपको मालूम है कि मैं केवल बीस वर्ष का हूं।
उन्होने कहा: उम्र की चिंता न करो आयु से कुछ नहीं होता। क्योंकि मेरा अनुभव तो ये है कि बड़ी उम्र में भी गधा-गधा ही रहता है। वह घोड़ा नहीं बन सकता। खच्चर भी नहीं बनता तो फिर घोड़ा कैसे बन सकता है। इसलिए अपनी उम्र की चिंता मत करो। बात जारी रखते हुए उन्होने कहा। हम दोनो की आयु के अंतर को भूल जाओ और जो चर्चा चल रही है उसे आगे बढ़ने दो बिना किसी उम्र जाति, धर्म या पद की बाधा को बीच में लाए। और फिर उन्होनें मस्तो से कहा बाबा, क्या आप कृपया दरवाजा बंद कर देंगे ताकि कोई अंदर न आ सके । मैं नहीं चाहता के मेरा प्राइवेट सैक्रेटरी भी भीतर आ सके।
बस फिर हमने अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर बात की और मुझे यह देख कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि वे मेरी बात को इतने ध्यान से सुन रहे थे। जैसे तुम सुनते हो। और उनका चेहरा इतना सुंदर था जो कि सिर्फ कश्मीरियों का ही हो सकता है। भारतीय कुछ काले होते है। और जैसे-जैसे दक्षिण की और जाएं वैसे-वैसे लोगों का रंग काला होता जाता है। और अंत में उस बिंदु पर भी पहुच जाते है जहां पर पहली बार यह समझ में आता है कि वास्तव में काला क्या होता है।
परंतु कश्मीरी सचमुच सुंदर होते है। जवाहर लाल नेहरू निश्चित ही सुंदर थे। इसके दो कारण थे। मेरा अपना यह खयाल है कि गोरा आदमी—केवल गोरा आदमी कुछ खोखला सा दिखाई देता है। क्योंकि सफेदी में कोई गहराई नहीं होती। इसीलिए तो कैलिफ़ोर्निया कि सब लड़कियां धूप मैं बैठ कर अपने को सांवला कर रही है। उन्हें मालूम है कि जब धूप से चमड़ी तांबे के रंग की हो जाती है तो उसमें ऐसी गहराई आ जाती है जो गोरी चमड़ी में नहीं होती। किंतु काली चमड़ी तो कुछ अधिक ही जल जाती है। उसे गहराई नहीं कहा जा सकता, वह तो मृत्यु है परंतु कश्मीरियों का रंग एकदम बीच का है। वे बहुत सुंदर है। गोरे होते हुए भी जन्म से ही कुछ-कुछ तांबे के रंग के है। ये यहूदी है।
मैंने जीसस की कब्र को कश्मीर में देखा है। उनकी तथाकथित सूली के बाद वे यहीं पर भाग आए थे। मैं इसे तथा कथित ही कहता हुं क्योंकि इसका सारा इंतजाम बड़ी कुशलता से किया गया था। इसका सारा श्रेय तो मिलता है पांटियस पायलट को जब जीसस को गुफा में से निकल जाने दिया गया तो प्रश्न यह खड़ा हो गया कि वे कहां जाए? इजराइल से बहार कश्मीर ही एक ऐसा स्थान था जहां पर वे शांति से रह सकते थे। क्योंकि वह एक छोटा इज्राईल था। यहां पर केवल जीसस ही,मोजेज भी दफ़नाए गए थे।,
इससे तुम और भी चौंक जाओगे। मैने उनकी कब्र को भी देखा है। दूसरे यहूदी मोज़ेज से यह बार-बार पूछ रहे थे कि हमारा खोया हुआ कबीला कहांहै।
रेगिस्तान में चालीस साल तक निरंतर समय एक जाति खो गई थी। यहां पर मोज़ेज गलती कर गए। अगर वे दाएं न जाकर बाएं चले जाते तो यहूदी बग तक तेल के राजा बन गए होते। किंतु यहूदी तो यहूदी ही होते है। इनके बारे में कुछ नहीं कहां जा सकता। कि वह कब क्या कर बैठेंगे। मोज़ेज को ईजिप्त से इजराइायल तक की यात्रा करने में चालीस साल लगे।
मैं न तो यहूदी हूं, न ईसाई। और इससे मेरा कोई सरोकार नहीं है। किन्तु केवल उत्सुकतावश मेरे मन में यह प्रश्न उठता है। उन्होंने इजराइल को ही क्यों चुना? मोज़ेज ने इजराइल की खोज क्यों कि। वे एक सुंदर स्थान की खोज कर रहे होंगे—खोजते-खोजते बूढ़े हो गए....चालीस साल रेगिस्तान में कठिन यात्रा करने के बाद...मैं तो ऐसा नहीं कर सकता था। चालीस साल, मैं तो चालीस घंटे भी नहीं कर सकता था। मैं नहीं कर सकता.....मैं तो हाराकिरी कर लेता। हाराकिरी तो तुम जानते हो। साधारण भाषा में इसका अर्थ है आत्महत्या, और हाराकिरी आत्महत्या नहीं है।
चालीस साल यात्रा करने के बाद मोजेज इजराइल पहुंचे और वह उस धूल भरे और बदसूरत स्थान येरूशलम में आए। और इस सबके बाद—यहूदी आखिर यहूदी ही होते है—उन्होंने अपने खोए हुए कबीले को खोजने के लिए फिर यात्रा करने की जिद की। मेरा अनुमान है कि इन लोगों से छुटकारा पाने के लिए वे चले गए। किंतु वह खोजते कहां, सबसे नजदीक और सुंदर स्थान हिमालय ही था। ओर वह उसी घाटी में पहुंच गए।
वह बहुत अच्छा हुआ कि जीसस और मोजेज दोनों भारत में मरे। भारत न तो ईसाई है और नहीं यहूदी। परंतु जो आदमी, या जो परिवार इन क़ब्रों की देखभाल करते है वह यहूदी है। दोनों कब्रें भी यहूदी ढंग से बनी है। हिंदू कब्र नहीं बनाते। मुसलमान बनाते है किन्तु दूसरे ढंग कि। मुसलमान की कब्र की सिर मक्का की और होता है। केवल वे दोनों कब्रे ही कश्मीर में ऐसी है जो मुसलमान नियमों के अनुसार नहीं बनाई गई।
किंतु ये नाम भी तुम्हारी आशा के अनुसार नहीं है। अरबी में मोज़ेज को मुसा कहते है। उनकी कब्र पर भी मूसा लिखा है। अरबी में जीसस को अरेमेक की तरह येशु कहा जाता है। जो कि हिब्रू भाषा के जोशुआ का परिवर्तित रूप है। और यह उसी प्रकार लिखा जाता है। तुम यह गलत समझ सकते हो कि येशु जीसस है या मूसा मोजेज। मूल शब्दों को अंग्रेजी में गलत उच्चरण के कारण ही मोजेज और जीसस बन गए।
जोशुआ धीरे-धीरे येशु ही बन जाएगा। जोशुआ कुछ भारी भरकम है। येशु ठीक है। भारत में हम जीसस को यीशु कहते है। हमने इस नाम को और अधिक सुंदर बना दिया है। जीसस ठीक है, पर तुम्हें मालूम है कि इसके साथ क्या किया है। जब कभी कोई कोसना चाहता है तो वह कहता है। जीसस, इस ध्वनि में जरूर कुछ है। अब अगर किसी को जोशुआ कह कर कोसना हो तो मुश्किल हो जाएगा। यह शब्द ही तुम्हें ऐसा करने से रोक देगा। यह शब्द इतना स्त्रैण, इतना सुंदर इतना गोल है कि तुम इससे किसी को चोट ही नहीं पहुंचा सकते।
समय क्या हुआ है?
ग्यारह बज कर बीस मिनट,ओशो।
अच्छा अब इसे समाप्त करो।
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