रविवार, 1 अप्रैल 2018

ज्‍यों की त्‍यों धरि दीन्‍ही चदरिया—(पंच महाव्रत)-ओशो

ज्‍यों की त्‍यों धरि दीन्‍ही चदरिया—(पंच महाव्रत)

ओशो
(ओशो द्वारा पंच महाव्रत पर दिए गए तेरह अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन।)

र्म एक चुनौती है। और चुनौती सीख जायें तो कहीं से भी वह चुनौती मिल सकती है। जीवन बंधे—बंधाये—सूत्र नहीं है। जीवन कहीं से भी आपको पकड़ ले सकता है। खुले रखें द्वार मन के।। राह चलते, सोते, उठते, बैठते, सीखते रहे। लेते रहे चुनौती। किसी दिन चोट गहरी पड़ जाएगी। और वीणा झंकृत हो जाएगी।
जिंदगी दूसरे का अनुसरण नहीं, जिंदगी स्‍वयं का उदघाटन है। जिंदगी दूसरे जैसे होने की प्रक्रिया नहीं, स्‍वयं जैसे होने का आयोजन है। और जो इस स्‍वयं होने की चुनौती को स्‍वीकार करता है, वह महावीर का अनुयायी नहीं बनेगा। लेकिन वहीं पहुंच सकता है;उसी ऊँचाई पर, जहां जीसस पहुंचे है; उसी ऊंचाई पर जहां बुद्ध पहुंचे हे। उसी समाधि उसी निर्वाण में, उसी मोक्ष में उसी स्‍वर्ग में उसी प्रभु के राज्‍य में प्रत्‍येक का प्रवेश हो सकता है।

ओशो

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