सोमवार, 9 अप्रैल 2018

अजहू चेत गवांर-(पलटू दास)-प्रवचन-10

अनंत भजनों का फल : सुरित-प्रवचन-दसवां
दिनांक 30 जूलाई 1977, ओशो आश्रम पूना।

प्रश्नसार:
1-क्या भजन जब पूरा हो जाता है, तब जो शेष रह जाता है, वही सुरति है?

2-रामकृष्ण परमहंस अपने संन्यासियों को कामिनी और कांचन से दूर रहने के लिए सतत चेताते रहते थे। आप प्रगाढ़ता से भोगने को कहते हैं। इस फर्क का कारण क्या है?

3-जहां ज्ञानी मुक्ति या मोक्ष की महिमा बखानते हैं, वहां भक्त उत्सव और आनंद के गीत गाते हैं। ऐसा क्यों है?

4-आपने कहा कि तुम जो भी करोगे गलत ही करोगे, क्योंकि तुम गलत हो। ऐसी स्थिति में आप हमें साफ-साफ क्यों नहीं बताते कि हम क्या करें?

अजहू चेत गवांर-(पलटू दास)-प्रवचन-09

भक्ति आंसुओ से उठी एक पूकार-प्रवचन-नौवा
दिनांक 29 जुलाई, 1977 ओशो आश्रम पूना।
सारसूत्र:

सोई सती सराहिए, जरै पिया के साथ।।
जरै पिया के साथ, सोइ है नारि सयानी।
रहै चरन चित लाय, एक से और न जानी।।
जगत् करै उपहास, पिया का संग न छोड़ै।
प्रेम की सेज बिछाय, मेहर की चादर ओढ़ै।
ऐसी रहनी रहै तजै जो भोग-विलासा।
मारै भूख-पियास याद संग चलती स्वासा।।
रैन-दिवस बेरोस पिया के रंग में राती।
तन की सुधि है नाहिं, पिया संग बोलत जाती।। 
पलटू गुरु परसाद से किया पिया को हाथ।
सोई सती सराहिए, जरै पिया के साथ।।
तुझे पराई क्या परी अपनी आप निबेर।।

अजहू चेत गवांर-(पलटू दास)-प्रवचन-08

धर्म का जन्म..एकांत में—प्रवचन-आठवां
प्रशनसार-

1-क्या ध्यान की तरह भक्ति भी एकाकीपन से ही शुरू होती है?

2-पलटूदास जी कहते हैं : "लगन-महूरत झूठ सब, और बिगाड़ैं काम'। और नक्षत्र-विज्ञान कहता है कि लग्न-मुहूर्त से काम बनने की संभावना बढ़ जाती है?

3-काम पकने पर उसमें रुचि क्षीण होने लगती है। प्रेम पकने पर क्या होता है?

4-सब कुछ दांव पर लगा देने का क्या अर्थ है?

5-प्रबल जीवेषणा के होते हुए भी किस भांति भक्त को अपने हाथ से अपना सीस उतारना संभव होता है?

6-संत पलटूदास उसे गंवार कहते हैं जो जगत् की झूठी माया में फंसा है और उसे बेवकूफ, जो प्रेम की ओर कदम बढ़ाता है। फिर बुद्धिमान कौन है?

अजहू चेत गवांर-(पलटू दास)-प्रवचन-07

सहज आसिकी नाहिं—(प्रवचन—सातवां)

दिनांक 27 जूलाई, 1977;
श्री रजनीश आश्रम, पूना।

सारसूत्र:


सीस उतारै हाथ से, सहज आसिकी नाहिं।।
सहज आसिकी नाहिं, खांड खाने को नाहीं।
झूठ आसिकी करै, मुलुक में जूती खाहीं।।
जीते जी मरि जाय, करै ना तन की आसा।
आसिक का दिन रात रहै सूली उपर बासा।।
मान बड़ाई खोय नींद भर नाहीं सोना।
तिलभर रक्त न मांस, नहीं आसिक को रोना।।
पलटू बड़े बेकूफ वे, आसिक होने जाहिं।
सीस उतारै हाथ से, सहज आसिकी नाहिं।।2।।


यह तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाहिं।।
खाला का घर नाहिं, सीस जब धरै उतारी।
हाथ-पांव कटि जाय, करै ना संत करारी।।
ज्यौं-ज्यौं लागै घाव, तेहुंत्तेहुं कदम चलावै
सूरा रन पर जाय, बहुरि न जियता आवै।।
पलटू ऐसे घर महैं, बड़े मरद जे जाहिं।
यह तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाहिं।।

अजहू चेत गवांर-(पलटू दास)-प्रवचन-06

जानिये तो देव, नहीं तो पत्‍थर—(प्रवचन—छठवां)

दिनांक 26 जुलाई, 1977;
श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍न सार:


1—कहावत हैः"मानिए तो देव, नहीं तो पत्थर'। क्या सब मानने की ही बात है?

2—आपके पास रहकर भी मुझे अपने को मिटाने में भय लगता है। मैं अपना यह भय कैसे दूर करूं?

3—मन से मुक्त होना असंभव-सा लगता है। हमें पता भी नहीं चलता कि मन कई तरह की वासनाओं में भटकने लगता है। और बहुत सावधानी रखकर थोड़ा-सा होश संभालता है कि फिर-फिर मन कल्पनाओं में बहने लगता है। कृपया इसे समझाएं।

4—जब आप अष्टावक्र, बुद्ध या लाओत्से पर बोलते हैं, तब आपकी वाणी में बुद्धि और तर्क का अपूर्व तेज प्रवाहित होता है। लेकिन जब वही आप भक्ति-मार्गी संतों पर बोलते हैं, तब बातें अटपटी होने लगती हैं। ऐसा क्यों?

अजहू चेत गवांर-(पलटू दास)-प्रवचन-05

जीवन : एक बसंत की बेला—(प्रवचन—पांचवां)

दिनांक 25 जुलाई, 1977;
श्री रजनीश आश्रम पूना।

सूत्र:


क्या सोवै तू बावरी, चाला जात बसंत।।
चाला जात बसंत, कंत ना घर में आए।
धृग जीवन है तोर, कंत बिन दिवस गंवाए।।
गर्व गुमानी नारि फिरै जोवन की माती
खसम रहा है रूठि, नहीं तू पठवै पाती।।
लगै न तेरो चित्त, कंत को नाहिं मनावै।।
कापर करै सिंगार, फूल की सेज बिछावै।।
पलटू ऋतु भरि खेलि ले, फिर पछतावै अंत।
क्या सोवै तू बावरी, चाला जात बसंत।।7।।


ज्यौं-ज्यौं सूखै ताल है, त्यौं-त्यौं मीन मलीन।।
त्यौं-त्यौं मीन मलीन, जेठ में सूख्यो पानी।
तीनों पन बन गए बीति, भजन का मरम न जानी।
कंवल गए कुम्हिलाए, हंस ने किया पयाना
मीन लिया कोऊ मारि, ठांय ढेला चिहराना
ऐसी मानुष-देह वृथा में जात अनारी।
भूला कौल-करार आपसे काम बिगारी।।
पलटू बरस औ मास दिन, पहर घड़ी पल छीन।
ज्यौं-ज्यौं सूखै ताल है, त्यौं-त्यौं मीन मलीन।।8।।

अजहू चेत गवांर-(पलटू दास)-प्रवचन-04

जीवन एक श्‍लोक है—(प्रवचन—चौथा)

दिनांक 24 जूलाई, 1977;
श्री रजनीश आश्रम, पूना।

प्रश्‍नसार:

।--आप कहते हैं कि शिष्य गुरु को नहीं खोज सकता; गुरु ही शिष्य को खोजता है। लेकिन कोई शिष्य यह कैसे समझे कि उसे सद्गुरु ने खोजा है?

2—हेतु के साथ प्रधानमंत्री के चरण छूने में और हेतु के साथ संत के चरण छूने में क्या कुछ भी फर्क नहीं है?

3—सुबह और शाम, रात और दिन आपका ही खयाल उठता है। घरवाले पागल कहते हैं। प्रभु, एक धक्का और दें कि गहरे ध्यान में डूबूं और आपसे छुटकारा हो।

4—आप तो बड़ी सरलता और सहजता से कह देते हैं कि दुःखी तुम अपने कारण हो, चाहो तो दुःख से मुक्त हो जाओ। आपके लिए तो बात छोटी-सी है; पर इस छोटी-सी बात को आप से सुन-सुन कर भी हम क्यों नहीं समझ पाते हैं?

5—चौरासी कोटि योनियों का अभिप्राय कृपा करके समझाइए और हमें भय से मुक्त करिए।

अजहू चेत गवांर-(पलटू दास)-प्रवचन-03


बड़ी से बड़ी खता—खुदी—(प्रवचन—तीसरा)

दिनांक 23 जूलाई, 1977;
श्री रजनीश आश्रम, पूना।

दीपक बारा नाम का, महल भया उजियार।।
महल भया उजियार, नाम का तेज विराजा
सब्द किया परकास, मानसर ऊपर छाजा।।
दसों दिसा भई सुद्ध, बुद्ध भई निर्मल साची
छूटी कुमति की गांठ, सुमति परगट होय नाची।। 
होत छतीसो राग, दाग तिर्गुन का छूटा।
पूरन प्रगटे भाग, करम का कलसा फूटा।।
पलटू अंधियारी मिटी, बाती दीन्ही बार।
दीपक बारा नाम का, महल भया उजियार। 4।।


हाथ जोरि आगे मिलैं, लै-लै भेंट अमीर।।
लै-लै भेंट अमीर, नाम का तेज विराजा
सब कोऊ रगरै नाक, आइकै परजा-राजा।।
सकलदार मैं नहीं, नीच फिर जाति हमारी।
गोड़ धोय षटकरम, वरन पीवै लै चारी।।
बिन लसकर बिन फौज, मुलुक में फिर दुहाई।
जन-महिमा सतनाम, आपु में सरस बढ़ाई।।
सत्तनाम के लिहे से पलटू भया गंभीर।
हाथ जोरि आगे मिलैं, लै-लै भेंट अमीर।। 5।