04-कौतुक घटित हुआ कैसा?
आई तेरे द्वार प्रभु, तुम तो
थे ध्यानस्थ
अर्धखुली आंखों से तेरी बरस रहा था अमृत
मंदिर में जो भक्त खड़े थे, नाच रहे थे मस्त
झोली सबकी भरी हुई थी, निधि अमूल्य थी हस्त
मैं अभागी पहुंची देरी से, खाली झोली लिए हुए
कोने में इक खड हुई थी, नैनन अविरल अश्रु बहे
देखा तो वह क्या?मेरी भी
झोली भरी हुई है
देखते में तो कछु न हुआ, वह कौतुक घटित हुआ कैसा?
झूम-झूम के नाच उठी, अपना ही
लिया मुझ को प्रभु ने
मेरे अश्रु बन गए अर्षाश्रु, मेरे आंसू बन गए हर्षाश्रु
(20 फरवरी, डायोजिनीस बंबई)
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