ओशो
इन सूत्रों पर खूब मनन करना—बार—बार; जैसे कोई जूगाली करता है। फिर—फिर,
क्योंकि इनमें बहुतरस है। जितना तुम चबाओगे, उतना ही अमृत झरेगा।
वे कुछ सूत्र ऐसे नहीं है कि जैसे उपन्यास, एक दफे पढ़ लिया, समझ गए,
बात खत्म हो गई, फिर कचरे में फेंका। यह कोई एक बार पढ़ लेने वाली बात नहीं है, यह तो किसी शुभमुहूर्त में,किसी शांत क्षण में किसी आनंद की अहो—दशा में, तुम
इनका अर्थ पकड़ पाओगे। यह तो रोज—रोज, घड़ी भर बैठ कर, इन परम सूत्रों को फिर
से पढ़ लेने की जरूरत है। अनिवार्य है।
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