ओशो
(ओशो द्वारा अष्टावक्र—संहिता के 152 से 196 सूत्रों पर प्रश्नोत्तर सहित दिनांक 26 नवंबंर से 10 दिसंबर 1976 तक ओशो कम्यून इंटरनेशनल, पूना में दिए गए पंद्रह अमृत प्रवचनों का संकलन।)
अष्टावक्र कह रहे है: तुम शरीर से तो छूट ही जाओ, परमात्मा से भी छूटो। संसार की तो भाग—दौड़ छोड़ ही दो, मोक्ष की दौड़ भी मन में मत रखो। तृष्णा के समस्त रूपों को छोड़ दो। तृष्णा—मुक्त हो कर खड़े हो जाओ।
इसी क्षण परम आनंद बरसेगा। बरस ही रहा है। तुम तृष्णा की छतरी लगाये खड़े हो तो तुम नहीं भीग पाते। संत वही है जिसका संबंध ही गया। भोग तो व्यर्थ हुआ ही हुआ। त्याग भी व्यर्थ हुआ। भोग के साथ ही त्याग भी व्यर्थ हो जाये। तो तुम्हारे जीवन में क्रांति घटित होती है। अनिति के साथ ही साथ निति भी व्यर्थ हो जाती है। आशुभ के साथ ही शुभ भी व्यर्थ हो जायेगा। क्योंकि वे दोनों एक सिक्के के दो पहलू है। उसमें भेद नहीं।
ओशो
अष्टावक्र: महागीता
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