ध्यान दर्शन-(साधना-शिविर)
ओशो
प्रवचन-पहला-(ध्यान: नया जन्म)
मेरे
प्रिय आत्मन्!
जीवन
में दो आयाम हैं,
दो प्रकार के तथ्य हैं। एक तो ऐसे तथ्य हैं, जिन्हें
जान लिया जाए तो ही किया जा सकता है। जानना जिनमें प्रथम है और करना द्वितीय है।
जानना पहले है और करना पीछे है। दूसरे ऐसे तथ्य भी हैं जिन्हें पहले कर लिया जाए
तो ही जाना जा सकता है। उनमें करना पहले है और जानना पीछे है।
विज्ञान
पहले तरह का आयाम है,
धर्म दूसरे तरह का।
विज्ञान
में पहले जानना जरूरी है,
तो ही पीछे किया जा सकता है। धर्म में पहले करना जरूरी है, तो ही पीछे जाना जा सकता है। विज्ञान में ज्ञान प्रथम और कर्म पीछे है,
धर्म में कर्म प्रथम और ज्ञान पीछे है। विज्ञान बहिर्यात्रा है,
बाहर के जगत के संबंध में है। धर्म अंतर्यात्रा है, भीतर के जगत के संबंध में है।
यहां
हम भीतर की यात्रा के लिए इकट्ठे हुए हैं, जहां करना पहले है और जानना पीछे
है। ध्यान हम करेंगे और जानने की कोशिश करेंगे। इसलिए ध्यान को पहले मैं समझाऊंगा
नहीं, पहले आपको करवाऊंगा। और उस करने से ही समझ को विकसित
करने की कोशिश करेंगे। इन पांच दिनों में हम करेंगे और जानने की कोशिश करेंगे।
इसे
ठीक से खयाल में ले लें,
आप करेंगे तो ही जान सकेंगे। और आप सोचते हों कि पहले जान लेंगे फिर
करेंगे, तो आप कभी भी नहीं कर सकेंगे। कुछ है जो कि करने के
पहले जाना ही नहीं जा सकता। जीवन का जो भी गहरा है, अंतरतम
है, भीतर है, उसे करने से ही जाना जा
सकता है।
जैसे
प्रेम है, प्रार्थना है, ध्यान है, परमात्मा
है, इन्हें हम करेंगे तो ही जान पाएंगे। इन्हें हम जानने की
कोशिश में पड़ेंगे तो जान तो पाएंगे ही नहीं और जानने की कोशिश में उस शक्ति को
गवां देंगे जो कर सकती थी और जान सकती थी।
इसलिए
आज एक पहले सत्य को ठीक से खयाल में ले लें: करना ही ध्यान में जानना है; डूइंग इज़
नोइंग। और करने के अतिरिक्त और कोई जानना नहीं है।
क्या
करेंगे? चार चरण हैं ध्यान के, उनके संबंध में थोड़ी सी बात
आपसे कह दूं और फिर हम करने में उतरें। और जो भी सवाल आपके हों, रोज आप उठाते जाएंगे, ताकि करने से उठे सवालों को हम
हल कर लेंगे।
और
ध्यान रखें, कोई बौद्धिक, कोई तार्किक, कोई
स्पेकुलेटिव सवाल नहीं उठाएंगे। ध्यान फिलासफी नहीं है। ध्यान प्रयोग है, एक्सपेरिमेंट है। ध्यान में प्रवेश प्रयोगशाला में प्रवेश है। वहां करने
की तो गुंजाइश है, सोचने की गुंजाइश नहीं है। वहां जानने का
तो मार्ग है, लेकिन वह तर्क से नहीं, अनुभव
से है। इसलिए आपसे मैं कहना चाहूंगा कि जो भी सवाल आप उठाएंगे वे आपके करने से आने
चाहिए। आपकी किताबों से नहीं, आपके शास्त्रों से नहीं। तो हम
पांच दिनों में बहुत गति कर पाएंगे।
चार
चरण हैं ध्यान के। दस-दस मिनट के लिए एक-एक चरण करना है।
पहला
चरण है: आमंत्रण। वह निमंत्रण है परमात्मा की शक्ति के लिए।
दूसरा
चरण है: रेचन,
कैथार्सिस। भीतर जो भी व्यर्थ और कचरा इकट्ठा है उसे फेंकने के लिए।
चित्त को निर्भार, अनबर्डन करने के लिए।
तीसरा
चरण है: जिज्ञासा,
इंक्वायरी। उस अंतरतम प्रश्न को उठाने के लिए कि मैं कौन हूं?
सत्य की खोज के लिए, स्वयं की खोज के लिए।
और
चौथा चरण है: प्रतीक्षा,
अवेटिंग। इन तीन चरणों में हमने जो किया है, उसके
परिणाम की प्रतीक्षा के लिए मौन रह जाने का।
पहले
चरण आमंत्रण में दस मिनट तक भस्त्रिका का प्रयोग करना है, तीव्र
श्वास का प्रयोग करना है, फास्ट ब्रीदिंग का प्रयोग करना है।
पहले चरण में दस मिनट तक जितनी तीव्रता से श्वास ले सकें, लेना
और छोड़ना है। अव्यवस्थित। किसी व्यवस्था से नहीं। ऐसे ही जैसे लोहार की धौंकनी
चलती है।
अव्यवस्थित
इसलिए कि जितनी अव्यवस्थित होगी श्वास, जितनी अनार्किक ब्रीदिंग होगी,
उतनी ही आपकी जो रूटीन चित्त की व्यवस्था है उसको तोड़ने में सहयोग
मिलता है। जैसी आप श्वास रोज लेते रहते हैं, वैसे ही श्वास
लेते रह कर, आपके चित्त को बदलने का उपाय नहीं है। आपकी
श्वास को बदलना ही पड़ेगा, तब आपके भीतर के चित्त के परिवर्तन
की संभावना पैदा होती है। तीव्रता पर ही ध्यान रखना है। इतने जोर से लेनी और छोड़नी
है दस मिनट तक श्वास कि आप भूल ही जाएं कि कुछ और भी बचा, श्वास
ही बची। सारी शक्ति श्वास पर लगा देनी है।
इसके
तीन परिणाम होंगे। पहला परिणाम तो यह होगा कि धीरे-धीरे आपको शरीर का बोध मिट
जाएगा और प्राण का बोध रह जाएगा, श्वास का बोध रह जाएगा। यह भीतर की यात्रा पर
पहला पड़ाव है। दूसरा परिणाम यह होगा कि सारे शरीर में विद्युत, बॉडी इलेक्ट्रिसिटी दौड़ने लगेगी। सारा शरीर कंपने लगेगा और विद्युत के
कंपन सारे शरीर में गूंजने लगेंगे। यह शरीर में विद्युत के कंपन का गूंजना अत्यंत
जरूरी है, इसके बिना भीतर प्रवेश नहीं हो सकता। हमारे पास
जितनी शक्ति है, वह पूरी की पूरी जग जाए तो ही छलांग लगा
सकते हैं।
और
तीसरा परिणाम यह होगा,
शब्द कुंडलिनी आपने सुना है, जैसे ही आपके
शरीर में विद्युत दौड़ने लगेगी, वैसे ही आपकी रीढ़ पर भी बहुत
तीव्र कंपन शुरू हो जाएंगे, कोई चीज रीढ़ पर उठनी शुरू हो
जाएगी, जैसे नीचे से कोई चीज ऊपर की तरफ यात्रा पर निकल गई।
ये
तीन परिणाम पहले प्रयोग में घटित होते हैं, अगर आपने पहला प्रयोग किया। इसमें
आपके सिर्फ करने का ही सवाल है। नहीं किया तो नहीं घटित होते हैं, किया तो घटित होते हैं। जितनी तीव्र श्वास आप ले सकें, अपनी पूरी शक्ति पहले दस मिनट में लगा देनी है। और पहला चरण ठीक होगा तो
ही दूसरा चरण हो पाएगा, अन्यथा नहीं हो पाएगा।
दूसरा
चरण कैथार्सिस का,
रेचन का है। जैसे ही शरीर की शक्ति जग जाएगी और कुंडलिनी पर आघात
शुरू होंगे, और आपको शरीर का बोध मिट जाएगा, प्राण का बोध रह जाएगा, और सारा शरीर बिजली के दौड़ते
हुए कंपन का प्रवाह मात्र बन जाएगा, वैसे ही आपके शरीर में
बहुत सी घटनाएं घटनी शुरू हो जाएंगी। जरूरत है कि आप उन्हें रोकें नहीं, बल्कि सहयोग करें। दूसरे चरण में शरीर जो भी करना चाहे, मन जो भी करना चाहे, उसको सहयोग देना है। रोकना नहीं
है, कोआपरेट करना है।
चार
तरह की घटनाएं आमतौर से घटेंगी या इनके मिश्रण घटित होंगे। या तो शरीर नाचने
लगेगा। यदि शरीर नाचने लगे तो पूरी ताकत लगा देनी है नाचने में। फिर पीछे नहीं
रुकना है। फिर खड़े नहीं रहना है। पूरी शक्ति नाचने में दे देनी है। या शरीर
चीखने-चिल्लाने लगेगा,
तो चीखने-चिल्लाने में पूरी शक्ति लगा देनी है। या हंसने लगेगा,
तो हंसने में पूरी शक्ति लगा देनी है। या रोने लगेगा, तो रोने में पूरी शक्ति लगा देनी है। ये चार मोटी बातें मैंने आपसे कहीं।
इन चारों के मिश्रण भी घटित हो सकते हैं। जो भी हो उसे पूरी तरह करना है।
कोई
सत्तर से लेकर अस्सी प्रतिशत लोगों को अपने आप शुरू हो जाएगा। सिर्फ उन्हें रोकना
नहीं है। ये जो सत्तर-अस्सी प्रतिशत लोग हैं, ये वे लोग हैं, जिन्होंने या तो अपने पिछले जन्मों में, या इस जन्म
में, ध्यान की दिशा में कोई भी कभी भी काम किया है। या वे
लोग हैं जिन्होंने काम तो नहीं किया, लेकिन जिनकी अभीप्सा
बहुत ज्वलंत है, जिनकी आकांक्षा बड़ी गहरी है, जिनकी लगन बहुत गहरी है; जो ध्यान के संबंध में
सिर्फ जिज्ञासु नहीं हैं, बल्कि ध्यान के संबंध में दांव पर
लगाने की जिनकी उत्सुकता है। या वे लोग होंगे, जिनका संकल्प,
जिनका विल पावर बहुत तीव्र है। या वे लोग होंगे, जिन्होंने किसी भी मार्ग से, किसी भी ध्यान की
पद्धति से, किसी भी प्रार्थना, उपासना,
पूजा से अपने भीतर एक आध्यात्मिक स्थिति की शुरुआत कर ली है। ये
सत्तर-अस्सी प्रतिशत लोग, जिनकी कोई भी आध्यात्मिक स्थिति है,
तत्काल दूसरे चरण में प्रवेश कर जाएंगे।
जो
बीसत्तीस प्रतिशत लोग बच जाएंगे, इनमें तीन-चार तरह के लोग होंगे। एक तो वे लोग
होंगे, जिनके पास संकल्प की कोई भी स्थिति नहीं है। लेकिन
संकल्प जगाया जा सकता है। या वे लोग होंगे, जो दूसरों से
बहुत भयभीत हैं, पब्लिक ओपिनियन का जिन्हें बहुत भय है,
जो बहुत भीरु हैं, जो इससे डरेंगे कि कोई क्या
कहेगा। लेकिन दूसरों का डर छोड़ा जा सकता है। या वे लोग होंगे, जो सदा ही सप्रेसिव रहे हैं; जिन्होंने अपने जीवन
में न तो कभी खुल कर हंसा है, न कभी खुल कर रोए हैं, न कभी नाचे हैं, न कभी चिल्लाए हैं; जिन्होंने जिंदगी में कभी कोई चीज समग्रता से नहीं की, सब रोक-रोक कर जीए हैं। लेकिन यह रुकावट छोड़ी जा सकती है। या वे लोग होंगे,
जिनके भीतर घटना तो घट रही है, लेकिन जो
कोआपरेट करने का, सहयोग करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं,
करेज नहीं जुटा पा रहे हैं। लेकिन साहस जुटाया जा सकता है।
इन
तीस प्रतिशत लोगों में,
जो मैंने चार बातें कहीं, अगर इनका ध्यान रखा,
तो करीब-करीब बीस प्रतिशत लोग दूसरे चरण में प्रवेश कर जाएंगे। पांच
या दस प्रतिशत लोग फिर भी शेष रह जाएंगे, जिनके कि जाल बहुत
गहरे हैं। इनके लिए मैं सुझाव देना चाहता हूं कि अगर आपको ऐसा लगे कि आप उन दस
प्रतिशत लोगों में से हैं जिनको कुछ भी नहीं हो रहा, तो चार
चीजों में से कोई भी एक चीज आप अपनी तरफ से शुरू कर दें। आज आप शुरू करेंगे,
कल वह अपने आप शुरू हो जाएगी। धारा टूट जाए एक बार, झरना फूट जाए एक बार, तो फिर बहना शुरू हो जाता है।
लेकिन मैं चाहूंगा कि कोई भी व्यक्ति दूसरे चरण में रुका न रह जाए।
तीसरा
चरण, जब दूसरे चरण में रोना, चीखना, नाचना, हंसना जोर से हो जाएगा तो आप एकदम हलके हो
जाएंगे। तीन परिणाम होंगे: वेटलेस हो जाएंगे, जैसे वजन खो
दिया, जैसे ग्रेविटेशन खो दिया, जैसे
जमीन आपको अब नहीं खींच रही है। मन से जैसे पत्थर नीचे गिर गए, बोझ अलग हो गया।
दूसरा
परिणाम होगा कि आपको साफ दिखाई पड़ने लगेगा कि शरीर और आप बिलकुल अलग हैं। वह जो
आइडेंटिटी है दोनों के बीच वह टूट गई मालूम पड़ेगी। शरीर नाचता हुआ मालूम पड़ेगा, आप देखते
हुए मालूम पड़ेंगे। शरीर रोता हुआ मालूम पड़ेगा, आप सुनते हुए
मालूम पड़ेंगे। शरीर चिल्लाता हुआ मालूम पड़ेगा, आप साक्षी बनेंगे।
आप अलग विटनेस रह जाएंगे। अगर दूसरा चरण पूरा हुआ, तो आप
साक्षी हो जाएंगे।
तीसरे
चरण में, इंक्वायरी में, जिज्ञासा में पूछना है भीतर--मैं कौन
हूं? लेकिन 'मैं कौन हूं?' इतने जोर से पूछना है जैसे सारे प्राण ही चुनौती पर लगा दिए हैं। ऐसे नहीं
पूछना है जैसे कि स्कूल में बच्चा प्रश्न पूछता है। ऐसे नहीं पूछना है कि उत्तर
मिल गया तो ठीक, नहीं मिला तो ठीक। ऐसे नहीं पूछना है कि चलो
पूछ लें। तीसरे चरण में ऐसे पूछना है जैसे किसी बच्चे की मां मर गई हो, और वह पूछ रहा है--मेरी मां कहां है? तीसरे चरण में
पूरे प्राण दांव पर लगा कर पूछना है। किसी के घर में आग लग गई हो, और वह पूछ रहा है--पानी कहां है? कोई मर रहा है,
और पूछ रहा है कि जीवन क्या है? इतनी त्वरा,
इतनी तीव्रता, इतनी इनटेंसिटी से पूछना है।
तो
तीसरे चरण को भीतर पूछना है--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?
आपकी
जो भी मातृभाषा हो उसमें पूछें तो अच्छा होगा। अगर मराठी है तो मराठी, गुजराती
है तो गुजराती, अगर अंग्रेजी में आदत है सोचने की तो
अंग्रेजी। अपनी मातृभाषा में पूछें कि मैं कौन हूं? क्योंकि
गहरा कुछ भी पूछना हो तो मातृभाषा में ही पूछा जा सकता है। इसलिए आप अपनी मातृभाषा
में पूछेंगे कि मैं कौन हूं? ताकि आपकी गहरी से गहरी परतों
में, जहां पहली दफा भाषा पहुंची है, वहां
से आवाज उठ सके। कुछ लोगों को जोर से पूछने में सुविधा होगी, तो वे जोर से पूछें। कुछ को भीतर ही पूछने में सुविधा हो, तो वे भीतर पूछें। जिन लोगों को भी जोर से पढ़ने की आदत है, जो धीरे पढ़ें तो उनकी समझ में कुछ नहीं आए, जो जोर
से पढ़ें तो ही समझ में आए, वे लोग जोर से ही पूछेंगे तो ही
उनके प्रश्न गहरा जा सकेगा, अन्यथा गहरा नहीं जा सकेगा।
इस
तीसरे प्रश्न के भी तीन परिणाम होंगे। एक, जैसे ही आप प्रश्न उठाएंगे आपको
पता चलेगा कि यह तो मुझे पता ही नहीं है कि मैं कौन हूं? और
ध्यान रहे, आपके सीखे हुए उत्तरों का कोई भी मूल्य नहीं है।
चाहे वह गीता, चाहे उपनिषद, चाहे कुरान,
चाहे बाइबिल, चाहे बुद्ध, चाहे महावीर, किसी से भी सीखे गए हों। आपको पता नहीं
है, तो पता नहीं है। इनफार्मेशन का कोई मूल्य नहीं है। तो
पहला तो जैसे ही आप तीव्रता से पूछेंगे कि मैं कौन हूं, तो
आपको लगेगा कि निपट अज्ञानी हूं, मुझे कुछ पता नहीं कि मैं
कौन हूं। ये शुभ लक्षण हैं। अज्ञान के बोध का लक्षण ज्ञान के मंदिर की पहली सीढ़ी
है।
दूसरे
चरण में आपको पता चलना शुरू होगा कि शरीर तो मैं नहीं हूं, मन तो मैं
नहीं हूं, यह पता चलना शुरू होगा। यह आपको नहीं सोचना है,
यह आपको दिखाई पड़ना शुरू होगा कि शरीर तो मैं नहीं हूं, मन तो मैं नहीं हूं, विचार तो मैं नहीं हूं। दूसरे
चरण में पता चलेगा कि क्या मैं नहीं हूं। पहले चरण में पता चलेगा कि मुझे पता नहीं
कि मैं कौन हूं। दूसरे चरण में पता चलेगा कि क्या मैं नहीं हूं। और तीसरे चरण में
प्रतीति होनी शुरू होगी कि कौन मैं हूं।
लेकिन
आप प्रतीक्षा करना,
आप अपनी तरफ से सब्स्टीटयूट मत कर देना कि मैं आत्मा हूं, मैं ब्रह्म हूं। यह कृपा करके आप मत दे देना मन को। यह आने देना। आप तो
पूछते चले जाना, आने देना भीतर से। किसी क्षण में वह घटना
घटती है और उत्तर आता है। तब उत्तर आता नहीं शब्दों में, तब
अनुभव में आता है।
ध्यान
रहे फर्क! शब्दों में उत्तर आए तो समझना कि आपकी स्मृति दे रही है। अनुभव में
उत्तर आए तो समझना कि भीतर से आया है। और अनुभव का उत्तर बहुत और है। शब्द बिलकुल
नहीं रहेंगे,
शब्द सब खो जाएंगे। लेकिन फिर भी आप जानेंगे कि आप कौन हैं। कोई
शब्द नहीं होगा, कोई विचार नहीं होगा। नहीं होगा अहं
ब्रह्मास्मि, नहीं होगा कि मैं शुद्ध बुद्ध हूं, नहीं होगा कि मैं आत्मा हूं। कोई शब्द नहीं होगा। मौन निःशब्द होगा और
अनुभव होगा कि मैं कौन हूं। वह अनुभव की प्रतीक्षा करनी है।
चौथा
चरण प्रतीक्षा का,
अवेटिंग का है। फिर आपको कुछ नहीं करना है।
कोई
खड़ा होगा, खड़ा रह जाएगा। कोई गिर गया होगा, गिर जाएगा। कोई
बैठा रह गया होगा, बैठा रह गया होगा। जो जैसा होगा, दस मिनट वैसा ही पड़ा रहेगा। प्रभु के अज्ञात चरणों में सिर डाल कर दस मिनट
सब छोड़ कर पड़े रहना है। कुछ करना नहीं है।
ध्यान
की असली गहराई चौथे चरण में आएगी। तीन चरण सिर्फ तैयारी के हैं, जंपिंग
बोर्ड हैं। चौथा चरण ध्यान है। यह मैंने आपके खयाल में आ जाए इसलिए कहा।
दो
बातें और। यह प्रयोग खड़े होकर करने का है, खड़े होकर ही करने का है। हम सब
दूर-दूर खड़े होंगे। प्रयोग आंख बंद करके करने का है। चालीस मिनट तक फिर आपको आंख
नहीं खोलनी, ताकि जगत भूल जाए, आप ही
रह जाएं। और जैसा मैं कहूं, ठीक मेरे सुझाव के अनुसार प्रयोग
करते रहें।
फिर
जो सवाल आपके हों,
वह रात हम बात करेंगे, कल सुबह हम बात करेंगे।
एक
बात और! रात का ध्यान बिलकुल दूसरा है। इसलिए कोई ऐसा न सोचे कि सुबह वह ध्यान
करवाया है तो रात जाने की जरूरत नहीं है। सुबह का प्रयोग बिलकुल अलग है, रात का
प्रयोग बिलकुल अलग है। इसलिए जो लोग भी सुबह उपस्थित हुए हैं, वे रात भी उपस्थित हों तो बहुत हितकर होगा, बहुत
मंगलदायी होगा।
और
एक आखिरी बात! पोस्टपोन न करें मन में। मन कहता है कि आज देख लें, कल कर
लेंगे। आज जरा देख लें कि दूसरे लोग क्या कर रहे हैं, फिर कल
हम कर लेंगे।
कल
का कोई बहुत पक्का नहीं है।
अभी
दो दिन पहले बबी बहन मेरे पास आई, उसको संन्यास लेने का खयाल था; उसने कहा, लेकिन मैं अभी सोचती हूं। मैंने कहा,
सोचने में कितना समय लगेगा? कल का कोई पक्का
है? उसने कहा कि नहीं, जल्दी मैं सोच
लूंगी। लेकिन अगले जन्मदिन तक तो मैं रुकना चाहती हूं। उसका अगला जन्मदिन जब आएगा
तब ले लूंगी। मैंने कहा, अगला जन्मदिन आएगा, यह पक्का है?
अभी
मैं आया दरवाजे पर तो पता चला कि उनकी मोटर एक्सीडेंट हो गई, यहां
ध्यान में आते वक्त। और वे करीब-करीब मरने के पहुंच गई हैं।
कल
का कोई पक्का नहीं है। एक क्षण बाद का भी कोई पक्का नहीं है। जीवन बिलकुल पानी पर
खींची गई लकीर जैसा है। अभी है और अभी नहीं है। इसलिए भूल कर भी पोस्टपोन न करें।
एक
बहुत पुरानी चीनी कहावत है: अच्छा काम करना हो तो अभी कर लें, बुरा काम
करना हो तो कल भी कर सकते हैं।
लेकिन
हम इससे ठीक उलटे चलते हैं। बुरा काम करना होता है तो अभी कर लेते हैं, अच्छा काम
करना होता है तो कल भी करने का सोचते हैं। क्रोध करते वक्त कोई भी नहीं कहता कि कल
कर लेंगे, अगले जन्मदिन पर कर लेंगे। ध्यान करते वक्त आदमी
सोचता है कल कर लेंगे। संन्यास लेते वक्त आदमी सोचता है अगले वर्ष ले लेंगे। हत्या
करते वक्त? हत्या करते वक्त अभी कर देता है। बुरा हम अभी कर
लेते हैं, अच्छा कल पर छोड़ देते हैं। इसलिए अगर अंततः जिंदगी
आखिर में बुरे का ही जोड़ सिद्ध होती है तो कोई आश्चर्य नहीं है।
अब
हम प्रयोग के लिए खड़े हो जाएं। सब दूर-दूर फैल जाएं। जितना फासला होगा उतनी सुविधा
होगी। बातचीत कोई भी नहीं करे। सब दूर-दूर फैल कर खड़े हो जाएं। और दूसरों की
प्रतीक्षा न करें,
आप ही बाहर निकल आएं; कभी कोई दूसरा नहीं
निकलता, आप ही निकल आएं। दूर-दूर हो जाएं, क्योंकि जब लोग नाचेंगे, कूदेंगे, तो चोट लग सकती है। आपके पास कोई धक्का दे देगा, तो
सब विघ्न हो जाएगा। दूर हट जाएं।
दूर-दूर
फैल जाएं। खड़े होकर ही प्रयोग शुरू करना है। अगर कोई बहुत वृद्ध हो, बीमार हो,
हृदय की किसी बीमारी से बहुत ज्यादा परेशान हो, तो बैठ कर करे। अन्यथा सारे लोग खड़े होकर करें। लेकिन जो भी बैठ कर करना
चाहे वह बाहर बैठे। अंदर बैठे तो कोई ऊपर गिर सकता है। बैठना चाहें तो बाहर निकल
आएं। अंदर नहीं बैठेंगे। बैठना हो तो बाहर निकल आएं।
ठीक।
आंख बंद कर लें। यह आंख चालीस मिनट के लिए बंद होती है। एक भी व्यक्ति आंख खोले
नहीं रहेगा। आंख बंद कर लें। और संकल्प कर लें कि चालीस मिनट तक कुछ भी हो जाए...
तीव्र
श्वास लें...दस मिनट के लिए अब जोर से श्वास लेना शुरू करें। पूरी शक्ति लगा
दें...। शुरू करें। आंख बंद रहे। तीव्र श्वास शुरू करें, पहले चरण
में प्रवेश करें। जोर से, जोर से, जोर
से...। देखें कोई भी खड़ा न रह जाए। खड़े रहना व्यर्थ है। प्रयोग किए बिना कुछ भी
नहीं होगा। जोर से...ध्यान करें अपनी तरफ, खड़े तो नहीं हैं।
तीव्र श्वास...तीव्र...ठीक धौंकनी की तरह, लोहार की धौंकनी
की तरह जोर से श्वास लें, छोड़ें। जोर से श्वास लें, छोड़ें। शरीर कंपे, कंपने दें...नाचने लगे, नाचने दें...कूदने लगे, कूदने दें...आप श्वास लेते
चले जाएं। शरीर डोले, डोलने दें...आप श्वास लेते चले जाएं...
जोर
से, जोर से...सब चिंता छोड़ दें, सब फिक्र छोड़ दें। आप
अकेले हैं। जोर से...देखें कोई पीछे न रहे, अन्यथा दूसरे चरण
में प्रवेश नहीं हो पाएगा। जोर से...कपड़े-वपड़े की फिक्र छोड़ें, उनको सम्हालने की फिक्र छोड़ें। आप सिर्फ श्वास लें।
बहुत
ठीक। बहुत ठीक। आधे मित्र ठीक से कर रहे हैं, आधे मित्र खड़े हैं। खड़े न रहें,
प्रयोग में गहरे उतरें। जोर से...जोर से...जोर से...शरीर को कुछ भी
हो रहा है, आनंद से होने दें। उसे परमात्मा के हाथ में छोड़
दें, और शरीर जो कर रहा है करने दें। आप श्वास लेते चले
जाएं। चोट करें...श्वास की चोट होगी तो कुंडलिनी जागेगी, अन्यथा
नहीं जागेगी। चोट करें...चोट करें...चोट करें...श्वास की चोट करें...भीतर कुंडलिनी
जागनी शुरू होगी...
आवाज
निकल जाए, फिक्र न करें। चीख निकल जाए, फिक्र न करें। आप चोट
करते जाएं। जोर से...जोर से...जोर से...जोर से...जोर से...जोर से...। रोकें नहीं,
श्वास की चोट करें, जोर से चोट करें...
पांच
मिनट बचे हैं। फिर हम दूसरे चरण में प्रवेश करेंगे। चोट करें, चोट
करें...। श्वास ही श्वास रह जाए...। छोड़ें सब, श्वास ही
श्वास रह जाए...। थका डालना है बिलकुल, श्वास ही श्वास रह
जाए...श्वास...श्वास...भीतर-बाहर, भीतर-बाहर। बस श्वास ही
श्वास रह जाए...श्वास ही श्वास रह जाए...
बहुत
ठीक। देखें कोई साठ प्रतिशत मित्र ठीक जगह आ गए हैं। चालीस प्रतिशत पीछे हैं...
श्वास
ही श्वास रह जाए...चार मिनट बचे हैं...आगे बढ़ें...कूद पड़ें...बिलकुल श्वास ही
श्वास रह जाए। जोर से...जोर से...थोड़ा सा ही समय है। तीन मिनट बचे हैं...श्वास ही
श्वास रह जानी चाहिए,
और सब भूल जाए।
शक्ति
जाग रही है, उसे रोकें मत। चोट करें, और जगने दें। शरीर में
बिजली दौड़ने लगेगी, कंपन शुरू हो जाएंगे, वायब्रेशंस होने लगेंगे, कुंडलिनी ऊपर उठने लगेगी,
चोट करें। जरा सा भी मौका खोएं मत...चोट करें...चोट करें...चोट
करें...
श्वास...श्वास...और
जोर से...और जोर से...और जोर से...और जोर से...और जोर से...और जोर से...। दो मिनट
बचे हैं...जब मैं कहूं--एक,
दो, तीन, तो पूरी शक्ति
लगा देनी है।
जोर
से...। एक! पूरी शक्ति लगा दें। दो! पूरी शक्ति लगा दें। तीन! पूरी शक्ति लगा दें।
एक मिनट की बात है,
पूरी शक्ति लगाएं। फिर हम दूसरे चरण में प्रवेश करेंगे। पूरी शक्ति
में आ जाएंगे, तो ही दूसरे में प्रवेश होगा। लगाएं पूरी
शक्ति। एक मिनट पूरी शक्ति लगा दें। श्वास ही श्वास रह जाए।
बहुत
ठीक। और आगे...और आगे...और जोर से...जोर से...जोर से...जोर से...
अब
ठीक है, दूसरे चरण में प्रवेश करें। शरीर जो करना चाहे करने दें, दस मिनट के लिए। रोना है रोएं, चिल्लाना है चिल्लाएं,
नाचना है नाचें, हंसना है हंसना, जो भी करना है। छोड़ दें, शरीर को कोआपरेट करें।
हंसें, नाचें, रोएं, चिल्लाएं, जो भी हो रहा है जोर से होने दें। नाचें,
नाचें, नाचें, डोलें,
कूदें...
हंसें, नाचें,
रोएं, जो भी हो रहा है जोर से होने दें। जोर
से...जोर से...जोर से... पूरी शक्ति लगा देनी है...। उछलें, कूदें,
नाचें, जो भी हो रहा है होने दें। जोर
से...जोर से...पीछे न रह जाएं। हंसना है, जोर से
हंसें...नाचना है, जोर से नाचें...कूदना है, जोर से कूदें...चिल्लाना है, जोर से चिल्लाएं...रोना
है, जोर से रोएं। शक्ति जाग रही है, उसे
काम करने दें। जो भी हो रहा है जोर से करने दें।
बहुत
ठीक। थोड़े से मित्र पीछे रह गए हैं। जोर से करें...जोर से...। सात मिनट बचे
हैं...पूरी शक्ति लगाएं...। शरीर को थका डालना है, पूरी शक्ति लगाएं...। शक्ति
को जागने दें। चिल्लाएं, नाचें, कूदें,
रोएं, हंसें, जोर से...।
बहुत
ठीक। और आगे बढ़ें,
फिर हम तीसरे चरण में प्रवेश करेंगे। पूरी शक्ति को जगा लेना जरूरी
है। जगाएं, कुंडलिनी भीतर जागती हुई मालूम पड़ेगी। नाचें,
कूदें, चिल्लाएं। जोर से...जो भी हो रहा है।
रोना है, जोर से रोएं...हंसना है, जोर
से हंसें... नाचना है, जोर से नाचें। पूरी शक्ति लगाएं।
व्यर्थ समय न खोएं। व्यर्थ न खड़े रहें।
पांच
मिनट बचे हैं। पूरे जोर में आ जाएं। जो भी हो रहा है। जोर से, जोर से,
जोर से...नाचें, कूदें, हंसें,
रोएं। जोर से, जोर से, जोर
से, जोर से, जोर से, जोर से। चार मिनट बचे हैं...जोर से, जोर से, जोर से, जोर से, जोर से...।
छोड़ें, शरीर अलग है, जो भी कर रहा है
करने दें। छोड़ें, जोर से छोड़ दें। शरीर अलग है, जो भी कर रहा है जोर से करने दें। जोर से, जोर
से...। तीन मिनट बचे हैं। पूरी शक्ति लगानी है। जोर से, जोर
से...नाचें, चिल्लाएं, हंसें, रोएं, जो भी हो रहा है, जोर से
कर लें। सारा बोझ मन का गिर जाएगा। शरीर एकदम हलका हो जाएगा। जोर से कर लें। मन के
सारे रोग गिर जाएंगे, गिर जाने दें। पूरे जोश में आएं...। अब
दो मिनट बचे हैं...। जब मैं कहूं--एक, दो, तीन, तो बिलकुल पागल हो जाएं।
एक!...बिलकुल
पागल होकर छोड़ दें। दो!...बिलकुल पागल हो जाएं। छोड़ें, चिल्लाएं,
नाचें, रोएं। तीन!...बिलकुल पागल हो जाएं। एक
मिनट के लिए सब भूल जाएं। एक मिनट की बात है, पूरी तरह छोड़
दें। फिर हम तीसरे चरण में प्रवेश करते हैं। छोड़ें, बिलकुल
पागल हो जाएं...चिल्लाएं, नाचें, हंसें,
रोएं, शक्ति जाग गई है, उसे
पूरा काम करने दें...नाचें, नाचें, नाचें,
चिल्लाएं, चिल्लाएं...
अब
तीसरे चरण में प्रवेश करें। पूछें भीतर--मैं कौन हूं? नाचते
रहें, डोलते रहें, पूछें भीतर--मैं कौन
हूं? दस मिनट के लिए पूरे प्राण लगा कर पूछें--मैं कौन हूं?
मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूछें, पूछें--मैं
कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?
नाचते रहें, डोलते रहें, पूछते रहें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूछें, पूछें,
पूछें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं
कौन हूं? मैं कौन हूं? एक धुन लगा दें।
बिलकुल धुन लगा दें। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूछें,
पूछें। जोर से पूछना है, जोर से पूछें...मन
में पूछना है, मन में पूछें। नाचें, डोलें,
पूछें। सात मिनट बचे हैं...पूछें, पूछें--मैं
कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?...
बहुत
ठीक। बहुत ठीक। पूछें। छह मिनट बचे हैं। फिर हम विश्राम करेंगे। पूरा थका डालना
है। जितने थक जाएंगे,
उतने विश्राम में जा सकेंगे। पूछें। नाचें, कूदें।
पूछें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं
कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?
मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? पूछें। गहरा, गहरा...।
पांच
मिनट बचे हैं...पूरी ताकत लगा दें...। नाचें, नाचें, कूदें।
पूछें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं
कौन हूं? आनंद से पूछें--मैं कौन हूं? नाचें।
पूछें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं
कौन हूं? ताकत लगाएं, ताकत लगाएं। चार
मिनट बचे हैं...पूरी ताकत लगा दें...। मैं कौन हूं? मैं कौन
हूं? तीन मिनट बचे हैं...पूरी शक्ति लगाएं...। नाचें,
कूदें, चिल्लाएं। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं
कौन हूं? फिर हम चौथे चरण में प्रवेश करेंगे। लगाएं शक्ति।
जब मैं कहूं--एक, दो, तीन, तो तूफान उठा दें।
मैं
कौन हूं? मैं कौन हूं? एक!...पूरी शक्ति लगा दें...तूफान उठा
दें बिलकुल, सारा मन पूछने लगे। नाचें, कूदें। दो!...तीन!...पूरी शक्ति लगाएं एक मिनट के लिए, फिर हम विश्राम करेंगे। थका डालें, कूदें, उछलें, नाचें, चिल्लाएं। मैं
कौन हूं? मैं कौन हूं?... छोड़ें सब
संकोच। पूछें जोर से। नाचें, कूदें। भूलें दूसरों को।
पूछें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं
कौन हूं?...पूरे जोश में जा जाएं एक मिनट के लिए, पूरी शक्ति लगा दें...
बहुत
ठीक! और बढ़ें,
और बढ़ें। फिर हम चौथे चरण में प्रवेश करेंगे। और जोर से, और जोर से, और जोर से...सारी शक्ति लगा दें...।
बस
अब रुक जाएं,
अब दस मिनट के लिए सब छोड़ दें। अब सब छोड़ दें। अब दस मिनट के लिए सब
छोड़ दें। न पूछें, न गहरी श्वास लें, न
नाचें, न डोलें। खड़े हैं खड़े, गिर गए गिर
गए, बैठे हैं बैठे, दस मिनट के लिए
बिलकुल मिट जाएं। परमात्मा के चरणों में गिर जाएं और खो जाएं--जैसे हैं ही नहीं;
जैसे मिट ही गए; जैसे मर ही गए। सब शांत हो
गया। सब मौन हो गया। सब शून्य हो गया। तूफान चला गया। पीछे गहरी शांति छूट गई है।
दस
मिनट प्रतीक्षा करें। उसके चरणों में पड़े रहें, अज्ञात चरणों में परमात्मा के।
प्रतीक्षा करें। जैसे मिट गए; जैसे मर गए; जैसे समाप्त हो गए; जैसे बचे ही नहीं। लहर जैसे खो
गई, सागर ही रह गया है।
प्रकाश
ही प्रकाश शेष रह जाएगा। चारों ओर अनंत प्रकाश शेष रह जाएगा। प्रकाश ही प्रकाश भीतर
भर जाएगा। रोएं-रोएं में प्रकाश ही प्रकाश अनुभव होने लगेगा। प्रकाश के एक पुंज ही
रह जाएंगे। प्रकाश ही प्रकाश शेष रह गया है। रोएं-रोएं में आनंद की धारा बहने
लगेगी। हृदय की धड़कन-धड़कन में आनंद बरसने लगेगा। आनंद ही आनंद शेष रह गया है, आनंद ही
आनंद शेष रह गया है।
अनुभव
करें, अनुभव करें, आनंद ही आनंद शेष रह गया है। प्रकाश ही
प्रकाश शेष रह गया है। अनंत प्रकाश है, अनंत आनंद है;
उसमें हम बूंद की भांति खो गए हैं। स्मरण करें, स्मरण करें, स्मरण करें, पहचानें,
स्मरण करें, प्रकाश ही प्रकाश, आनंद ही आनंद शेष रह गया है। बूंद की भांति खो गए हैं।
प्रकाश
ही प्रकाश, चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश की वर्षा हो रही है। आनंद ही आनंद, भीतर आनंद की धाराएं बह रही हैं। आनंद से भर जाएं, प्रकाश
से भर जाएं, अमृत से भर जाएं। प्रकाश ही प्रकाश शेष रह गया
है, आनंद ही आनंद शेष रह गया है।
पहचानें, स्मरण
करें, यही है स्वरूप। पहचानें, स्मरण
करें। परमात्मा के चरणों में पड़े रह गए। सब अशांति खो गई। शांति ही शांति शेष रह
गई।
आनंद
ही आनंद। आलोक ही आलोक। प्राणों में अमृत की वर्षा हो रही, स्मरण
करें, पहचानें, पहचानें, पहचानें, पहचानें, स्मरण करें।
परमात्मा में बूंद की भांति खो गए। न कोई अशांति, न कोई पीड़ा,
न कोई तनाव, सब विलीन हो गया। आनंद ही आनंद
शेष रह गया। रोआं-रोआं आनंद से पुलकित है। धड़कन-धड़कन आनंद से भर गई है। प्रकाश ही
प्रकाश, आनंद ही आनंद शेष रह गया।
अब
दोनों हाथ जोड़ लें,
और परमात्मा को धन्यवाद दे दें। दोनों हाथ जोड़ लें, उसके अज्ञात चरणों में सिर को झुका दें। दो मिनट--हाथ जोड़े, सिर झुकाए उसके चरणों में रह जाएं। धन्यवाद दे दें। प्रभु की अनुकंपा अपार
है। प्रभु की अनुकंपा अपार है। प्रभु की अनुकंपा अपार है। प्रभु की अनुकंपा अपार
है। प्रभु की अनुकंपा अपार है। प्रभु की अनुकंपा अपार है।
अब
हाथ छोड़ दें। धीरे-धीरे आंख खोल लें और अपनी जगह पर बैठ जाएं। आंख न खुले तो दोनों
हाथ आंख पर रख लें। जगह पर बैठते न बने तो दो-चार गहरी श्वास लें और फिर अपनी जगह
पर बैठ जाएं। जो गिर गए हैं, वे भी दो-चार गहरी श्वास लें और फिर अपनी जगह
पर बैठ जाएं।
दो
बातें आपसे कह दूं,
फिर हम विदा होंगे।
धीरे-धीरे
अपनी जगह पर बैठ जाएं। जो गिर गए हैं, वे दो-चार गहरी श्वास लें और अपनी
जगह पर बैठ जाएं। जो खड़े हैं, बैठते न बने, वे भी दो-चार गहरी श्वास लें, फिर अपनी जगह पर
बैठें। जल्दी न करें। दो-चार गहरी श्वास ले लें, फिर आहिस्ता
से बैठें। उठते न बने तो दो-चार गहरी श्वास लें, फिर अपनी
जगह पर बैठ जाएं। बैठते न बने तो घबड़ाएं न, दो-चार गहरी
श्वास लें, फिर बैठें। उठते न बने तो घबड़ाएं न, दो-चार गहरी श्वास लें, फिर आहिस्ता से उठ आएं।
दो-चार गहरी श्वास ले लें, उठ कर बैठ जाएं। जो भी पड़े हैं,
दो-चार गहरी श्वास ले लें, जो खड़े हैं,
वे भी दो-चार गहरी श्वास ले लें, फिर अपनी जगह
पर उठ कर बैठ जाएं।
दोत्तीन
बातें आपसे कह दूं। कोई पचास प्रतिशत मित्रों ने ईमानदारी से प्रयोग किया। आप अपने
लिए सोच लेना कि आपने ईमानदारी से किया या नहीं। नहीं ईमानदारी से किया हो तो कल
फिर कोशिश करें।
कुछ
दस-पांच मित्र तो आंख खोल कर खड़े रहे। वे अपना समय खराब न करें, न आएं। कल
से कोई भी भीतर आंख खोल कर खड़ा रहेगा तो उसे हमें बाहर निकालना पड़ेगा। क्योंकि आंख
खोल कर जब आप बीच में खड़े होते हैं, तो आप यहां के पूरे
साइकिक एटमास्फियर को खराब करते हैं। आप दूसरों को भी नुकसान पहुंचाते हैं। और
इतना ही नहीं कि आप दूसरों को नुकसान पहुंचाते हैं, आप अपने
को भी नुकसान पहुंचाते हैं। वह नुकसान तो आप पहुंचाते ही हैं जो आप खो रहे हैं,
लेकिन और तरह के भी नुकसान आप पहुंचाते हैं। इसलिए अपने को भी खयाल
में रख कर आप न आएं तो अच्छा। बीच में तो कोई आंख खोल कर न खड़ा रहे। क्योंकि जब
सारे लोगों के मानसिक रोग गिरने शुरू हो जाते हैं और अगर आप खाली खड़े हैं, तो आप गङ्ढा बन जाते हैं और अनेक तरह के वायब्रेशंस आप में प्रवेश कर
जाएंगे, जिनके लिए आपको पछताना पड़ेगा। तो सिर्फ आंख बंद करके
ही खड़े रहे और ध्यान न किया तो भी ठीक नहीं है, तो भी आप
बाहर खड़े रहें। ध्यान करना है तो ही भीतर रहें, अन्यथा मत
रहें।
जब
इतने लोग ध्यान का प्रयोग करते हैं और जब इतने लोगों की बॉडी इलेक्ट्रिसिटी जगती
है और जब इतने लोगों की कुंडलिनी पर परिणाम होने शुरू होते हैं, तो चारों
तरफ उसके वायब्रेशंस, उसकी तरंगें फैलनी शुरू हो जाती हैं।
और अगर आप खाली खड़े हैं तो आप व्यर्थ ही नुकसान में पड़ेंगे। आप बीच में खाली न खड़े
रहें। ध्यान करना हो तो ही खड़े रहें, अन्यथा मत खड़े रहें। और
ध्यान करना हो तो ही आएं, अन्यथा न आएं।
पचास
प्रतिशत लोग आज व्यर्थ ही खड़े रहे हैं। वे कल फिर से सोच कर आएं। सांझ जब आएं तो
सोच कर आएं, करना हो तो ही आएं। यहां भीड़ करने की कोई जरूरत नहीं है। यहां उन थोड़े से
लोगों को अपना काम करने दें जो करना चाहते हैं। आप कृपा करके उनको बाधा न दें।
आज
जो भी प्रयोग किया है,
जिन मित्रों को जो भी अनुभव हुए हों, उस संबंध
में कुछ पूछना हो तो लिख कर दे सकते हैं। अगर ऐसा कुछ पूछना हो जो निजी है और यहां
न पूछ सकते हों, तो कल दोपहर ढाई से साढ़े तीन के बीच मेरे
पास आकर पूछ सकते हैं। कुछ ऐसी बात हो जो वह सबके साथ न कहना चाहें तो अलग पूछ
सकते हैं। कुछ ऐसी बात हो जो सबके सामने पूछना चाहते हों तो लिख कर पूछ सकते हैं।
पचास
प्रतिशत मित्रों ने जिन्होंने श्रम लिया, उनमें से बहुतों को परिणाम हुए
हैं। सांझ का प्रयोग बिलकुल दूसरा है। हो सकता है किसी को सुबह का प्रयोग ठीक न
पड़े, उसे सांझ का प्रयोग ठीक पड़ सकता है। कोई एक सौ बारह
विधियां हैं ध्यान की। कभी किसी व्यक्ति को कोई विधि ठीक नहीं भी पड़ती है। इसलिए
सांझ और सुबह हम दो अलग विधियों पर काम करेंगे, सांझ अलग
विधि पर।
जिनको
सुबह की विधि काम पड़ी है,
उनको भी सांझ की विधि से और सहयोग मिल सकता है। जिनको काम नहीं पड़ी
है, उनके लिए सांझ की विधि काम पड़ सकती है। इसलिए जो सुबह
प्रयोग किए हैं वे तो सांझ प्रयोग करें ही।
हमारी
सुबह की बैठक पूरी हुई।
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