ध्यान दर्शन-(साधना-शिविर)
ओशो
प्रवचन-तीसरा-(ध्यान: गुह्य आयामों में प्रवेश)
मेरे प्रिय आत्मन्!
कल प्रयोग हमने समझा है। आज उसकी गहराई बढ़नी चाहिए। संकल्प की कमी पड़
जाए, तो ही ध्यान में बाधा पड़ती है। और संकल्प की कमी
कभी-कभी बहुत छोटी-छोटी बातों से पड़ जाती है।
जिंदगी में बहुत बड़े-बड़े अवरोध नहीं हैं, बहुत छोटे-छोटे अवरोध हैं। कभी आंख में एक छोटा सा तिनका पड़ जाता है,
तो हिमालय भी दिखाई पड़ना बंद हो जाता है। जरा सा तिनका आंख में हो
तो हिमालय भी दिखाई नहीं पड़ता। कोई अगर विचार करे और तर्क करे और गणित लगाए,
तो जरूर सोचेगा कि जिस तिनके ने हिमालय को ओट में ले लिया, वह तिनका हिमालय से बड़ा होना चाहिए।
वह तिनका हिमालय से बड़ा नहीं है, तिनका तिनका ही है।
लेकिन छोटा सा तिनका भी आंख को बंद कर देता है। हिमालय ढंक जाता है। ठीक ऐसे ही
छोटे-छोटे तिनकों से हमारे ध्यान की सामर्थ्य, ध्यान की आंख
ढंकी रह जाती है। वह जो तीसरी आंख है, वह जो थर्ड आई है,
वह बहुत छोटे-छोटे तिनकों से ढंकी है। कोई बहुत बड़े पहाड़ उसके ऊपर
नहीं हैं। लेकिन छोटे-छोटे तिनकों को हम सम्हाले चले जाते हैं।
तो दोत्तीन बातें, आज आपका संकल्प बढ़ सके, इसलिए कहूं। फिर कुछ प्रश्न पूछे हैं, उनकी आपसे बात
करूं।
एक तो जो भी आप कर रहे हों, अपनी ओर से सारी
शक्ति लगा कर करें। ऐसा जरा भी खयाल न रह जाए भीतर कि मैंने कुछ बचाया है। यह आपको
ही तय करना है, कोई दूसरा तय नहीं कर सकता। यह आपको ही समझना
होगा कि मैं पूरी शक्ति लगा रहा हूं या नहीं लगा रहा हूं। और स्मरण रखें, जब तक आपकी पूरी शक्ति न लग गई हो, तो जितनी शक्ति
नहीं लगेगी, वही तिनके का काम करेगी। और ऐसा भी हो सकता है
कि आपने निन्यानबे प्रतिशत लगा दी और एक प्रतिशत बचा ली, तो
वह एक प्रतिशत तिनके का काम करेगी और निन्यानबे प्रतिशत को बेकार कर देगी।
आपका सौ प्रतिशत लगाना जरूरी है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी
ताकत कितनी है। जितनी भी हो! किसी के पास दो पैसे की ताकत है, किसी के पास चार पैसे की, किसी के पास छह पैसे की।
सवाल यह नहीं है कि कितनी ताकत लगाई। सवाल यह है कि आपने पूरी लगाई या नहीं। अगर
कमजोर से कमजोर आदमी भी अपनी पूरी ताकत लगा दे--सौ प्रतिशत, तो
शक्तिशाली से शक्तिशाली आदमी के पहले ध्यान में प्रवेश कर जाएगा, अगर वह निन्यानबे प्रतिशत लगा रहा हो। कितना लगाया, यह
सवाल नहीं है। पूरा लगाया या नहीं, यही सवाल है।
सौ डिग्री पर जैसे पानी भाप बन जाता है, ऐसा अपनी शक्ति की सौ
डिग्री पर आप भी ध्यान में वाष्पीभूत हो जाते हैं, आप भी भाप
बन जाते हैं, आप भी एवोपरेट हो जाते हैं। लेकिन सौ प्रतिशत
लगना जरूरी है। अब इसके लिए बाहर से कोई कुछ नहीं कर सकता। आपको ही स्मरण रखना
होगा कि मैं बचा तो नहीं रहा हूं अपने को!
अब मैं देखता हूं कि अनेक मित्र अपने को बचा रहे हैं। हमारा दिमाग
बहुत कंट्राडिक्ट्री है। ध्यान भी कर रहे हैं, ध्यान से बचा भी रहे
हैं। एक महिला ने मुझे आकर कहा कि मैं आती भी हूं और डरती भी हूं कि कहीं ध्यान हो
न जाए!
अब तो बड़ी कठिनाई है! अगर हम ध्यान करना भी चाहते हैं और डरते भी हैं
कि कहीं हो न जाए! कहीं हो न जाए, यह डर जरा सा भी भीतर रह
गया...यह डर ध्यान का नहीं है, यह डर और छोटी बातों का है।
नहीं तो ध्यान करने ही नहीं आएगा कोई, अगर ध्यान का ही डर
है। डर बहुत छोटी बातों का है। किसी को डर है कि उसका कहीं कपड़ा नीचे न गिर जाए।
किसी को डर है कि कहीं जोर से उछले-कूदे, कोई देख न ले। कहीं
पास-पड़ोस में खबर न पहुंच जाए। किसी को डर है कि अगर रोएंगे, हंसेंगे, तो लोग पागल समझ लेंगे। ये छोटे-छोटे डर
हैं। इनसे लगता है कि कहीं हो न जाए। अगर ऐसे डर मन में हैं, तो नहीं होगा। फिर व्यर्थ मेहनत नहीं करनी चाहिए। फिर मेहनत में पड़ना ही
नहीं चाहिए।
दूसरी बात: जब आप प्रयोग शुरू करते हैं, तो पहले चरण के बाद
असली कठिनाई दूसरे चरण में शुरू होती है। पहले चरण में तो आपको तीव्र श्वास लेनी
है इसलिए ले लेते हैं, दूसरे चरण में असली कठिनाई शुरू होती
है। दूसरे चरण में हमारा जो सप्रेसिव माइंड है, जो हमने दबा
कर रखा है सब कुछ, वह हर तरह की बाधा डालता है। हजार
इन्हिबिशंस हैं, टैबू हैं, वे मन को
पकड़े हुए हैं जोर से। उनसे जरा भी इंच भर यहां-वहां होने में घबड़ाहट लगती है।
लेकिन दूसरे चरण के बिना तीसरे में प्रवेश नहीं होगा। एक-एक चरण की अपनी वैज्ञानिक
शृंखला है, पूरा करेंगे तो ही आगे बढ़ पाएंगे। इसलिए दूसरे
चरण पर ध्यान दें।
कल अधिकतम मित्रों ने पहला चरण ठीक से किया, कोई दस प्रतिशत को छोड़ कर। लेकिन दूसरे चरण में, उन
दस प्रतिशत लोगों में कोई चालीस प्रतिशत लोग और सम्मिलित हो गए। दूसरे चरण में
पचास प्रतिशत लोग नहीं कर पाए।
दूसरे चरण में आपको साहस करना पड़ेगा। और ध्यान रहे, दूसरे चरण के दो हिस्से हैं। एक तो दूसरे चरण में जो आवाजें, नाचना, चिल्लाना, हंसना निकलता
है, उसका एक कारण तो यह है कि हमने यह सब दबाया हुआ है,
और इसका निकल जाना आपके हित में है। यह आपके भीतर दबा रहे तो यह
पच्चीस तरह की मानसिक और शारीरिक बीमारियों में निकलेगा, निकलता
है। अब तो वैज्ञानिक कहते हैं कि कोई सत्तर प्रतिशत बीमारियों का कारण मन में है।
सत्तर प्रतिशत! और यह प्रतिशत रोज बढ़ता जा रहा है। यह जैसे-जैसे समझ बढ़ रही है,
वैसे-वैसे पता चल रहा है कि शरीर की अधिकतम बीमारियां मन की
बीमारियों का परिणाम हैं।
अब मन की क्या बीमारियां हैं?
यही सब बीमारियां हैं, यह जो रोका गया है,
यह जो दबाया गया है, वह फूटने की कोशिश करता
है--मन से, शरीर से। रोज पागल बढ़ते जाते हैं। कोई भी व्यक्ति
किसी भी दिन पागल हो सकता है। अगर इतना ज्यादा उसने भीतर दबा लिया कि उसकी खुद की
ताकत कम पड़ गई और दबी हुई चीजों की ताकत ज्यादा हो गई, तो वह
किसी भी दिन पागल हो सकता है, बैलेंस किसी भी दिन खो सकता
है।
तो आपको यह जो पागलपन निकलता दिखाई पड़ता है, है तो पागलपन निकल रहा है, लेकिन ध्यान रखें कि यह
संभावित पागलपन से बचने का एकमात्र उपाय है यह कैथार्सिस। अगर यह आपके भीतर से
निकल गया तो यह आपकी संभावना समाप्त हो गई। सिर्फ वही व्यक्ति पागल नहीं हो सकता
जो ध्यान में उतरा है, बाकी सभी लोग कभी भी पागल हो सकते
हैं। ऐसे भी पागल और गैर-पागल में बहुत फर्क नहीं होता, थोड़ा
सा मात्रा का ही फर्क होता है। जब मात्रा आपकी भी पूरी हो जाएगी और पलड़े पर आखिरी
वजन रख जाएगा, तो आप भी टूट जाएंगे।
इसको निकल जाने दें, यह आपके हित में है, इसको बाहर फिंक जाने दें। इसको रोकें मत, इसको सहयोग
करें। एक! और दूसरा कारण, नाचने, कूदने,
हंसने का दूसरा कारण भी है। और वह कारण है--जब आपके भीतर नई शक्ति
का उदभव होता है, या जब चारों ओर से परमात्मा की शक्ति आपकी
तरफ बहने लगती है, तो आपके मन, प्राण,
शरीर, सब में कंपन शुरू हो जाते हैं, होंगे ही। ये दोनों ही एक साथ भी चल सकती हैं घटनाएं। इसलिए यह भी हो सकता
है कि जिसके मन से सारा रोग निकल गया, उसका भी नृत्य,
हंसना, नाचना, आनंदित
होना चलता रहे। और निकल जाएगा तो भी चल सकता है। पर उसका अर्थ बिलकुल बदल जाएगा।
और ये दोनों ही आपके सहयोग की अपेक्षा रखते हैं, अन्यथा नहीं
होंगे।
कुछ मित्रों ने पूछा है...एक मित्र ने पूछा है कि
रात में बहुत सावधान रहने पर भी थोड़ी-थोड़ी देर बाद पलकें गिर जाती थीं।
आप सावधान रहने की फिक्र करें। आप अपनी तरफ से नहीं गिराएं, इतना काफी है। अगर पलक अपने से गिर जाए, तो आप फिक्र
न करें। फिर आप जारी कर दें। आप न गिराएं।
लेकिन बारीक है फासला। लगता है हमें कि अपने आप गिर रही है, सौ में नब्बे मौके पर हम ही गिरा रहे होते हैं। इतना भर ध्यान रखें कि आप
नहीं गिरा रहे हैं, फिर गिर जाए तो बहुत फिक्र नहीं है। थोड़ा
नुकसान होगा, लेकिन एक-दो दिन में वह ठीक हो जाएगी, वह नहीं गिरेगी। क्योंकि शरीर का कोई भी हिस्सा मन के बिलकुल विपरीत नहीं
जा सकता। आप नहीं गिराएंगे, इतना स्मरण काफी है। और थोड़ी
मेहनत करें, और थोड़े सावधान रहें।
और आंख की पलक के बाबत ज्यादा फिक्र न करें, मेरी तरफ देखने की फिक्र ज्यादा करें। अगर आपने पलक का ध्यान रखा तो गिर
जाएगी। दो बातें हैं: जब आप मेरी तरफ देख रहे हैं रात में, तो
आप मेरी तरफ ध्यान रखें, पलक की फिक्र छोड़ें। अगर आपने पलक
की तरफ ध्यान दिया तो आप खुद ही कमजोर पड़ जाएंगे पांच-सात मिनट में और लगेगा कि
इतनी देर नहीं चल सकता। और जैसे ही लगेगा कि इतनी देर नहीं चल सकता, पलक गिर जाएगी। अगर पलक को आप भूल कर मेरी तरफ देखते रहें, आप पलक की फिक्र ही मत करें कि पलक है भी, तो पलक
नहीं गिरेगी। ध्यान मेरी तरफ हो, पलक की तरफ न हो। पलक की
तरफ हुआ तो आप घबड़ा जाएंगे थोड़ी देर में, कहेंगे--बहुत देर
हो गई, इतनी देर पलक कैसे रुक सकती है, जलने लगेगी, अब यह होगा, अब वह
होगा। और यह मन की जो भावना है, वह पलक को गिरा देगी। आप
मुझे देखें, पलक को जाने दें।
किसी और ने पूछा है कि वे प्रयोग छह महीने से
करते हैं, लेकिन अभी भी कैथार्सिस जारी है, अभी भी रेचन जारी है। रोना, चिल्लाना, कूदना, हंसना जारी है। यह कब तक रहेगा?
घबड़ाएं न! क्योंकि हमारे जो उपद्रव हैं मन के, वे एक जन्म के नहीं, अनेक जन्मों के हैं। लेकिन
जल्दी निकल सकते हैं अगर इनटेंसिटी बढ़ जाए। तो हम इनटेंसिटी बढ़ने नहीं देते। तो
फिर धीरे-धीरे निकलते हैं, तो बहुत वक्त ले लेते हैं।
एक दिन में भी निकल सकते हैं, अगर आप पूरा सहयोग दे
दें। टोटल पार्टिसिपेशन अगर आपका हो तो एक दिन में भी निकल सकते हैं। लेकिन वह
होता नहीं, तो धीरे-धीरे निकलते हैं। बड़ा रिजर्वायर है भीतर
उपद्रव का। अब एक-एक बूंद आप निकालते हैं, तो बहुत वक्त लग
जाता है। तोड़ दें दीवार, तो आज भी निकल सकता है, एक क्षण में भी निकल सकता है। उतनी ही देर लग जाएगी, जितने धीरे-धीरे आप सहयोग करेंगे। सहयोग पूर्ण होगा तो जल्दी हो जाएगा।
भयभीत न हों, उसको निकलने दें।
एक बहन ने लिखा है: कल रात को आपने खड़े रहने के
लिए कहा, खड़े रहने में अच्छा परिणाम मिलेगा। मगर मुझे बैठने
में बहुत आह्लाद मिला। आपकी ओर देखते-देखते शरीर का बोझ छूट गया। पहली पुकार थी:
हेल्प मी! उसका रूपांतर हेल्प देम में हो गया। और बाद में अपूर्व शांति, साइलेंस अनुभव हुई। वह शांति पीछे आनंद बन गई और अब तक मौजूद है। क्या
मेरा ध्यान ऑनेस्ट था?
सवाल खड़े होने और बैठने का उतना नहीं है, प्रत्येक व्यक्ति को थोड़ा-थोड़ा फर्क पड़ेगा। अगर किसी को बैठ कर ठीक पड़ता
हो, तो बिलकुल बैठ कर कर सकता है। खड़े होकर ठीक पड़ता हो,
खड़े होकर कर सकता है।
साधारणतः मैं चाहता हूं कि शुरू में खड़े होकर करें, क्योंकि खड़े होने में दूसरा चरण ठीक से हो पाता है। बैठे में दूसरा चरण
उतने ठीक से नहीं हो सकता, क्योंकि बॉडी मूवमेंट के लिए
सुविधा नहीं होती। पर आपको बैठ कर लगे कि ज्यादा अच्छा होता है, तो आप ही निर्णायक हैं। बिलकुल बैठ कर करें, होगा।
और बैठने से कोई बुनियादी भेद नहीं पड़ता। बैठ कर भी हो जाएगा। और यह जो हुआ,
बिलकुल ठीक हुआ है।
एक मित्र ने कहा है कि कुछ मित्र नये आए हैं, इसलिए मैं सुबह के ध्यान के संबंध में थोड़ी सी बात कह दूं, फिर हम प्रयोग को बैठेंगे।
चार चरण हैं सुबह के ध्यान के। पहले चरण में दस मिनट तक तीव्र श्वास
लेनी है। और इतनी तीव्रता से लेनी है कि रोआं-रोआं शरीर का कंप जाए। बढ़ते ही जाना
है तीव्रता में। दस मिनट पर क्लाइमेक्स आ जाना चाहिए। शरीर विद्युत का नाचता हुआ
आवेग भर रह जाए। बस ऐसा लगे जैसे विद्युत कण नाच रहे हैं, बाकी सब खो गया। लगेगा ही! अगर आपने पूरी तीव्रता से श्वास ली और श्वास की
गहरी चोट की तो शरीर में छिपी हुई शक्तियां जागने लगेंगी और शरीर सिर्फ नाचता हुआ
एक ऊर्जा, एक एनर्जी मात्र रह जाएगी।
इस दस मिनट में जरा सी भी कंजूसी की तो आगे का सारा प्रयोग भटक जाता
है। इस दस मिनट में पूरी ही शक्ति लगा देनी है। फिर दस मिनट के बाद श्वास की फिक्र
छोड़ देनी है। फिर श्वास जैसी चले, चले। अगर आपको अच्छा लगे कि जारी
रखना है तो रख सकते हैं। आपको लगे कि अब छोड़ देना है तो छोड़ सकते हैं। लेकिन दस
मिनट आपको लगे भी कि छोड़ना है, तो नहीं छोड़ना है। दस मिनट
आपको श्वास तेज से तेज लेते जाना है। हैमरिंग करनी है श्वास से।
श्वास की चोट से ही कुंडलिनी जागती है। उसकी जितनी चोट होगी उतना ही
भीतर कुछ उठेगा और ऊपर की ओर जाने लगेगा। उसका ऊपर की ओर जाना ही अपूर्व आनंद है।
और उसका ऊपर की ओर जाना ही शरीर के लिए अदभुत कंपन और नृत्य से भर जाएगा। उसकी चोट
से ही आपके भीतर दबे हुए रोग फूटने शुरू होंगे। और उसकी चोट से ही, आपके भीतर आनंद दबा हुआ है, वह भी प्रकट होना शुरू
होगा।
इसलिए श्वास की चोट पर जरा सी भी कंजूसी नहीं करनी है। और दस मिनट तेज
श्वास से कुछ होने वाला नहीं, थोड़े-बहुत थक ही सकते हैं ज्यादा
से ज्यादा, तो आधा घंटे बाद ठीक हो जाएंगे। उसमें कुछ भय
लेने की जरूरत नहीं है।
दूसरे दस मिनट में अगर आपको अच्छा लगे श्वास को जारी रखना तो रखें, अगर आपको न लगे तो छोड़ दें। दूसरे दस मिनट में शरीर में बहुत तरह की
क्रियाएं होनी शुरू होंगी--नाचेगा, कूदेगा, रोएगा, हंसेगा, चिल्लाएगा। तो
जो भी क्रिया आपके भीतर होनी शुरू हो जाए, आप पूरी शक्ति
उसमें लगा दें। अगर यह हाथ इतना कंप रहा है, तो आप इसको पूरी
ताकत दे दें। सारा शरीर इस हाथ में डाल दें कि यह हाथ पूरी तरह कंप ले।
आपको पता नहीं है कि इस हाथ के कंपने से क्या निकल रहा है। आपको पता
भी नहीं हो सकता, क्योंकि हमें खयाल ही नहीं है कि हमारे शरीर के
प्रत्येक कंपन का मन के कंपन से कोई संबंध है। जब आप किसी को जोर से चांटा मार
देते हैं, तो आपको पता है, आपका क्रोध
एकदम शांत हो जाता है। चांटा मारने में होता क्या है? सिर्फ
आपका हाथ एक विशेष रूप से कंपता है। लेकिन उस कंपन में आपका क्रोध तिरोहित हो जाता
है।
अभी तो मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि अगर क्रोध आ रहा हो और किसी को मारना
न हो, तो आप अगर तकिए को भी मार दें तो भी निकल जाएगा। करके
देखें, और हैरान होंगे! क्योंकि शरीर में जो वेग पैदा हुआ है,
उस वेग की निर्जरा होनी चाहिए, उसका गिरना
होना चाहिए।
तो जब आपका हाथ कंप रहा है तो आपको पता नहीं कि वह कितनी चीजें उसमें
कंप रही हैं और निकल रही हैं। उसको पूरी ताकत दे दें। अगर आपका सिर कंप रहा है, तो उसको पूरी ताकत दे दें। अगर पैर नाच रहे हैं, तो
उनको पूरी ताकत दे दें। जो भी हो रहा है, उसे पूरी ताकत दे
दें।
कोई सत्तर प्रतिशत लोगों को स्पांटेनियसली, सहज रूप से कुछ न कुछ होना शुरू हो जाएगा। तीस प्रतिशत लोगों को थोड़ी सी
अड़चन होगी। अगर आपको लगे कि आप तीस प्रतिशत लोगों में हैं, कि
आपको कुछ भी नहीं हो रहा है--न हंसना आ रहा है, न रोना आ रहा
है, न नाच रहे हैं, न कंप रहे हैं--कुछ
भी नहीं हो रहा है, तो आपको जो भी इन चार में से सूझे,
आप वह अपनी ओर से करना शुरू कर दें। पहले दिन आप करेंगे, दूसरे दिन वह आना शुरू हो जाएगा। लेकिन खड़े मत रह जाएं।
तीसरे चरण में पूछना है--मैं कौन हूं? अगर आपको अच्छा लगे
कि अब भी श्वास जारी रखनी है, तो आप रख सकते हैं। अच्छा लगे
कि आपको नाचना अब भी जारी रखना है, तो रख सकते हैं। लेकिन
एंफेसिस तीसरे चरण में देनी है कि मैं कौन हूं? इसे भीतर
पूछना है तीव्रता से। दो 'मैं कौन हूं?' के बीच में जगह न रह जाए। सारा मन एक अंधड़ बन जाए, एक
आंधी बन जाए और 'मैं कौन हूं?' पूछने
लगे। ठीक लगे तो चिल्ला कर पूछें, ठीक लगे तो भीतर पूछें।
आपको जैसा सुविधाजनक हो। लेकिन दस मिनट में पसीना-पसीना हो जाएं, इतनी सामर्थ्य और शक्ति से पूछें।
जितने आप इन तीन चरणों में थक जाएंगे, उतनी ही चौथे चरण में
आपकी शांति की गहराई होगी। अनुपात वही होगा, जितना आपने श्रम
किया होगा, उतना ही गहरा विश्राम मिलेगा। जितना आपने इन तीन
चरणों में टेंशन पैदा किया होगा--ये तीन चरण टेंशन पैदा करने के हैं--उतने ही गहरे
रिलैक्सेशन में आप चौथे चरण में प्रवेश कर जाएंगे। इसलिए चौथा चरण परिणाम है।
जिन्होंने तीन चरण में जरा भी कमजोरी दिखाई है, वे चौथे चरण
में प्रवेश नहीं कर पाएंगे। चौथा चरण ही ध्यान है। तीन चरण सिर्फ सीढ़ियां हैं।
चौथा चरण मंदिर है। वह प्रवेश है।
चौथे दस मिनट में आपको कुछ भी नहीं करना है। न श्वास लेनी, न नाचना, न रोना, न चिल्लाना।
खड़े हैं, खड़े हैं; गिर गए हैं, गिर गए हैं; बैठे हैं, बैठे
हैं; जैसे रह गए हैं--मृत, मुर्दा हो
जाना है। हो ही जाएंगे, अगर तीन चरण ठीक से किए तो चौथे चरण
में आप मिट जाएंगे। और जो रह जाएगा वही आनंद है, वही प्रकाश
है, वही परमात्मा है--उसे जो भी नाम हम देना चाहें। उसकी
छोटी सी भी झलक अनंत जीवन के अंधकार को मिटा जाती है। उसकी छोटी सी भी झलक अनंत
जन्मों के दुखों को तिरोहित कर देती है। उसकी छोटी सी भी झलक जीवन को रूपांतरित,
ट्रांसफार्म कर देती है। नया जीवन शुरू हो जाता है। बहुत निकट है
नया जीवन, लेकिन थोड़े से कदम भी उठाने के लिए जो कमजोर हैं
उनके लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता।
मैं इधर आपको बार-बार बीच में याद दिलाऊंगा कि जोर से करें। जब मैं
याद दिलाऊं तब पूरी ताकत फिर से इकट्ठी करके लगा दें। हमारा मन ऐसा है कि दो क्षण
में भूल जाते हैं। दो क्षण श्वास लेते हैं तेज, फिर धीमा हो जाता है।
मैं फिर आपको कहूंगा, मैं आपको यहां से चोट करता ही रहूंगा।
और जब भी मैं आपको कहूं--जोर से! तो आप फिर सारी ताकत लगा कर जोर में आ जाएं।
अब हम प्रयोग करें। थोड़े फासले पर दूर-दूर खड़े हो जाएं। जिनको बैठना
हो वे बाहर की तरफ बैठें, बीच में नहीं। थोड़े दूर-दूर हो जाएं, जगह तो बहुत है। इतने पास रहेंगे--कोई नाचेगा, कूदेगा,
आपको लग जाएगा तो उतने में ध्यान आपका टूट जाएगा। थोड़े फासले पर हो
जाएं। अपने चारों तरफ देख लें कि आप नाचें-कूदें तो आपके लिए जगह है। और अगर किसी
का आपको धक्का भी लग जाए तो आंख नहीं खोलनी है। लग गया, लग
गया। आप अपना काम जारी रखें।
अब मैं मान लूं कि आप...हां, किन्हीं को भी कपड़े,
कोट इत्यादि अलग करने हों, वे चुपचाप अलग करके
रख दें। चश्मा है, कुछ भी आपको तकलीफ हो--कि बीच में वही
आपके लिए अड़चन बन जाए कि कहीं गिर न जाए, कहीं चोट न लग
जाए--उसको अलग कर दें। आज पूरी ताकत लगानी है, इसलिए पूरी
तैयारी से लगना है। क्योंकि कल हो गया आपका प्राथमिक, अब
बाकी चार दिनों में पूरी ताकत लगा देनी है।
ठीक है। आप खयाल कर लें कि छोटी-मोटी कोई चीज आपको बाधा नहीं देगी। जो
भी छोटी चीज बाधा देने की हो, उसको अलग कर दें। चश्मा उतारना
है, रख दें। कोई कपड़ा अलग करना है, अलग
कर दें। दूर हटना है, दूर हट जाएं। और जिनको भी पता है कि वे
बहुत जोर से कूदेंगे-फांदेंगे, वे जरा बाहर आ जाएं। नहीं तो
वे दूसरों को दिक्कत दे देंगे। और अपनी जगह नहीं छोड़नी है, अपनी
जगह पर ही कूदना है।
आंख चालीस मिनट बंद रहेगी। अब आंख बंद कर लें और मेरे साथ यात्रा पर
निकलें। आंख बंद करें। और एक भी आदमी बीच में आंख खोले हुए नहीं खड़ा रहेगा। किसी
को देखना हो, आंख खोलनी हो, तो बाहर होकर खड़ा
हो जाए, बाहर से देखे, भीतर नहीं।
आंख बंद कर लें, दोनों हाथ जोड़ कर परमात्मा के
सामने संकल्प कर लें। पूरे हृदय से संकल्प करें: मैं प्रभु को साक्षी रख कर संकल्प
करता हूं कि ध्यान में अपनी पूरी शक्ति लगा दूंगा, पूरी! मैं
प्रभु को साक्षी रख कर संकल्प करता हूं कि ध्यान में अपनी पूरी शक्ति लगा दूंगा,
पूरी! मैं प्रभु को साक्षी रख कर संकल्प करता हूं कि ध्यान में अपनी
पूरी शक्ति लगा दूंगा, पूरी! आप अपने संकल्प को स्मरण रखना,
प्रभु आपके संकल्प को स्मरण रखता ही है। हाथ छोड़ दें। पहला चरण शुरू
करें।
तीव्र श्वास लेनी है, जैसे कि लोहार की धौंकनी चलती है,
ऐसा फेफड़ों को चलाना है। तीव्र...तीव्र...पहले से ही पूरा तूफान
उठाएं, धीरे-धीरे न चलें। चालीस मिनट में एक बहुत बड़ी यात्रा
करनी है, इसलिए पहले से ही, पहले से ही
तेज...तेज...चोट करनी है, धीमे तो चोट हो नहीं सकती। तेज चोट
करें...कंपे शरीर, कंपने दें...नाचे, डोले,
डोलने दें...आप चोट करें। तेज...तेज...छोड़ें सारे भय, छोड़ें सारे संकोच। बच्चों जैसी बातें छोड़ें, दूसरों
का खयाल छोड़ें। तेज चोट करें...तेज...तेज...श्वास ही श्वास रह जाए। श्वास ही श्वास
रह जाए, सारा जगत भूल जाए, बस श्वास के
अतिरिक्त कुछ भी न बचे। श्वास ले रहे, छोड़ रहे...ले रहे,
छोड़ रहे...ले रहे, छो॰? रहे...जोर
से...जोर से...
खयाल कर लें, सौ प्रतिशत लगानी है शक्ति, अन्यथा
व्यर्थ हो जाएगा। कोई फिक्र नहीं, आवाज निकले, निकलने दें...शरीर डोले, डोलने दें...नाचे, नाचने दें...आप चोट किए जाएं श्वास की...
तेज...तेज...तेज...बहुत ठीक। कोई पचास प्रतिशत मित्र ठीक गति में आ गए
हैं। तेज...तेज...तेज...तेज...तेज...पूरा सौ प्रतिशत लगाना है...संकल्प स्मरण करें
और लगाएं। आठ मिनट बचे हैं, पूरी शक्ति लगाएं...। शरीर डोलने लगेगा, शरीर बिजली से भर जाएगा, विद्युत की तरह कूदने
लगेगा...तेज करें...तेज करें...तेज करते जाएं...
बहुत ठीक! कोई पीछे न रह जाए, कोई खाली न रह जाए।
तेज...तेज...तेज... शरीर को भूलें, दूसरों को भूलें...तेज
श्वास...तेज श्वास...तेज श्वास...और जोर से... और जोर से...और जोर से...। आनंद से
भरें...आनंद से भरें और श्वास लें। आनंद से श्वास लें... आनंदमग्न होकर श्वास लें
तेज...तेज...तेज...तेज श्वास...तेज श्वास...तेज श्वास...तेज...थोड़ा ही समय बचा है,
फिर पीछे रह जाएंगे। पहला चरण चूका कि आप चूके...तेज श्वास लें...तेज
श्वास लें...तेज श्वास लें...भूलें, छोड़ें शरीर का खयाल।
नाचते हैं, नाचें...कूदते हैं, कूदें...डोलते
हैं, डोलें...आनंद से श्वास लें। चोट करनी है, हैमरिंग करनी है, भीतर चोट करनी है, कुंडलिनी को जगाना है, जोर से चोट करें...
छह मिनट बचे हैं। लगाएं...शक्ति लगाएं...शक्ति लगाएं। देखें, छोटे-छोटे खयालों में मत पड़ें...शक्ति लगाएं...शक्ति लगाएं। भूलें,
बाकी सब भूलें, सिर्फ श्वास ही रह
जाए...और...और...और...और...स्मरण करें, संकल्प करें, और तीव्र... तीव्र...तीव्र...जोर से...जोर से...जोर से...श्वास ही श्वास
रह जाए। पांच मिनट बचे हैं...आधा समय हुआ, पांच मिनट बचे हैं,
लगाएं शक्ति। फिर दूसरे चरण में मौका नहीं रह जाएगा। जगा लें...ठीक
से जगा लें। नाच रहे हैं, कूद रहे हैं, फिक्र छोड़ें, शरीर का ध्यान छोड़ें। स्त्री हैं,
पुरुष हैं, इसकी फिक्र छोड़ें। जोर से...जोर
से...जोर से...जोर से...
बहुत ठीक! गति आ रही है, शक्ति जग रही है,
उसे और जगा लें। फिर वही शक्ति काम पड़ेगी। जितनी जग जाएगी, उतना काम पड़ेगी। चार मिनट बचे हैं, जोर में आ
जाएं...बिलकुल आंधी की तरह श्वास लें...श्वास ही श्वास रह जाए...श्वास ही श्वास
बची है...सब मिट गया...शरीर नहीं, श्वास ही श्वास बची है।
शरीर है एक विद्युत का यंत्र मात्र रह गया...डोल रहा...कंप रहा। तीन मिनट बचे हैं,
तेजी में आ जाएं। फिर हम दूसरे चरण में प्रवेश करेंगे।
जोर से...जोर से...जोर से...जोर से...जोर से...जोर से...जोर से...कोई
फिक्र नहीं, शरीर डोले, नाचे, कूदे, आवाज निकले, चीख निकले,
आने दें। जोर से...जोर से...जोर से...दो मिनट बचे हैं। जब मैं
कहूं--एक, दो, तीन, तो आप बिलकुल पागल होकर श्वास लें।
एक! पूरी शक्ति लगा दें...सौ प्रतिशत...जोर से। दो! पूरी शक्ति लगा
दें। तीन! पूरी ताकत लगा कर कूद पड़ें। बहुत ठीक! कुछ सेकेंड...पूरी ताकत...पूरी
ताकत...रोना आए, हंसना आए, चिल्लाना आए, आने दें...फिर हम दूसरे चरण में प्रवेश करते हैं।
श्वास...श्वास...श्वास...बस श्वास ही श्वास बचे, और सब मिट
जाए। श्वास ही श्वास रह गई...श्वास ही श्वास रह गई...
अब दूसरे चरण में प्रवेश करें। शरीर को छोड़ दें। जो करना हो--नाचना है, कूदना है, चिल्लाना है, रोना
है, हंसना है--जो भी शरीर करे, करने
दें। दस मिनट के लिए शरीर की सब बीमारियां बाहर फेंक देनी हैं।
शुरू करें! जोर से...जोर से...जो भी आ रहा है...जोर से...आनंद
से...जोर से करें। नाचें आनंद से, डोलें आनंद से, कूदें आनंद से, हंसें, रोएं,
जो भी हो रहा है... चिल्लाएं...जो भी हो रहा है। जोर से...जोर
से...जोर से...ताकत पूरी लगानी है। नहीं, धीमे नहीं...जोर
से...जोर से...जोर से...जोर से...। इतने लोग हैं, तूफान आ
जाना चाहिए। जोर से...जोर से...
इतने धीमे नहीं चलेगा, पूरी ताकत लगाएं। जो
भी हो रहा है, होने दें। संकोच न करें, रोकें नहीं। नाचें, कूदें, हंसें,
रोएं, चिल्लाएं। शक्ति जाग गई है, उसे पूरा काम करने दें। ताकत पूरी लगा दें, जो भी हो
रहा है, पूरी ताकत लगा दें। चिल्लाएं...चिल्लाएं...
नाचें...नाचें... नाचें...आनंद से भर जाएं। छह मिनट बचे हैं...जोर से ताकत
लगाएं... धीमे नहीं, जोर से...तूफान आ जाना चाहिए...इतने लोग
हैं, पूरा...
शक्ति जाग गई है, उसे काम करने दें। पांच मिनट बचे
हैं, पूरी ताकत लगाएं। फिर हम तीसरे चरण में प्रवेश करेंगे।
नाचें...नाचें...आनंद से भर जाएं...नाचें...कूदें... चिल्लाएं...
हंसें...रोएं...जो भी हो रहा है, होने दें। संकोच छोड़ें,
बिलकुल पागल हो जाएं। पांच मिनट बचे हैं, पूरी
ताकत लगा दें...जोर से...जोर से...
चार मिनट बचे हैं...जोर से...शक्ति का पूरा उपयोग करें...
बहुत ठीक! और गति लाएं...और गति लाएं...और गति लाएं...। जो भी हो रहा
है, जोर से करें। कूदें...नाचें...चिल्लाएं...बिलकुल तूफान उठा दें। सारे
पागलपन को बाहर फेंक देना है। तीन मिनट बचे हैं, जोर में आ
जाएं, पूरे जोर में आ जाएं। सौ प्रतिशत...सौ
प्रतिशत...संकल्प स्मरण करें...शक्ति स्मरण करें...
एक!...पूरी शक्ति लगाएं...बढ़ें...जोर से बढ़ें। दो!...और आगे।
तीन!...पूरी ताकत में आ जाएं। चिल्लाएं...चिल्लाएं...चिल्लाएं...चिल्लाएं...बिलकुल
पागल हो जाएं एक मिनट के लिए। बिलकुल पागल हो जाएं। सारी बीमारी को बाहर फेंक दें।
नाचें...नाचें...जोर से कूदें...नाचें...चिल्लाएं...
बहुत ठीक! कुछ सेकेंड और, फिर हम तीसरे चरण में
प्रवेश करते हैं। पूरे क्लाइमेक्स में, पूरे चरम में आ जाएं।
लगाएं पूरी...अपनी जगह पर रहें...अपनी जगह पर चिल्लाएं... कूदें...नाचें। जोर
से...जोर से...और जोर से...और जोर से...और जोर से...और जोर से...पीछे न रह
जाएं...पीछे न रह जाएं...एकबारगी पूरी ताकत लगा दें...
अब तीसरे चरण में प्रवेश करें। अब तीसरे चरण में प्रवेश करें।
पूछें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?
मैं कौन हूं? बिलकुल वर्षा कर दें--मैं कौन हूं? एक ही सवाल भीतर
पूछें, बाहर पूछें--मैं कौन हूं? मैं
कौन हूं? डोलते रहें, नाचते रहें,
पूछें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? धीमे
नहीं, ताकत से पूछें--मैं कौन हूं? शरीर
का रोआं-रोआं पूछने लगे--मैं कौन हूं?...
मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?
मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?...आखिरी चरण है, पूरी ताकत लगा दें। नाचें, कूदें, पूछें--मैं कौन हूं?...
बहुत अच्छा! बहुत अच्छा! और जोर से...और जोर से...और ताकत लगाएं...मैं
कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?
मैं कौन हूं?...जोर से...जोर से...तूफान उठा
देना है...मैं कौन हूं?...नाचें, कूदें,
पूछें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?...जोर से पूछना है, जोर से पूछें--मैं कौन हूं?
मैं कौन हूं?...
मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?...सात मिनट बचे
हैं, फिर हम विश्राम में जाएंगे। थका डालें अपने को। मैं कौन
हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?...नाचें, कूदें, चिल्लाएं,
पूछें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?...
बहुत ठीक! थोड़ा ही वक्त और है, पूरी ताकत लगा
दें...मैं कौन हूं?...मैं कौन हूं?...पागल
होकर पूछें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?...संकोच छोड़ें...संकोच छोड़ें... संकल्प स्मरण करें। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? नाचें, कूदें,
पूछें, डोलते रहें, पूछें--मैं
कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?
मैं कौन हूं?...
पांच मिनट बचे हैं, शक्ति लगाएं...शक्ति लगाएं...
बहुत ठीक! कोई पीछे न रह जाए। जोर से...ताकत लगाएं...ताकत लगाएं...।
नाचें, आनंद से नाचें, डोलें, पूछें--मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?...बिलकुल करीब आ गए हैं, किनारे पर हैं, जरा ताकत लगाएं और चौथे चरण में
प्रवेश हो जाएगा। मैं कौन हूं?...चार मिनट बचे हैं, ताकत लगाएं, ताकत लगाएं। किनारा बिलकुल पास है,
पूरी ताकत लगाएं। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं?...तीन मिनट बचे हैं, पूरी ताकत लगा दें...। किनारा
बिलकुल करीब है। मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? नाचें, कूदें,
चिल्लाएं... अब जोर से चिल्लाएं...। नाचें, कूदें,
चिल्लाएं...मैं कौन हूं?...इतने लोग हैं,
बिलकुल तूफान आ जाना चाहिए तीन मिनट के लिए...मैं कौन हूं?...
एक! पूरी ताकत लगाएं। दो! पूरी ताकत लगा दें। तीन! पूरी शक्ति लगा दें, सौ प्रतिशत। कुछ सेकेंड और हैं...पूरी ताकत लगा दें...जोर से...जोर से...।
नाचें, कूदें, चिल्लाएं। एकबारगी पूरी
ताकत लगा दें, फिर हम चौथे चरण में प्रवेश करेंगे। मैं कौन
हूं?...छोड़ें सब, भूलें सब, एक सवाल--मैं कौन हूं?...
बस अब रुक जाएं, अब ठहर जाएं, चौथे चरण में प्रवेश करें। अब न पूछें, अब रुक जाएं,
अब न डोलें, अब न नाचें। खड़े हैं, खड़े...गिर गए हैं, गिर गए...बैठे हैं, बैठे... दस मिनट के लिए परिपूर्ण शांति में प्रवेश हो रहा है। सब छोड़
दें...पड़ जाएं, रह जाएं। खड़े हैं, खड़े...गिर
गए हैं, गिर गए...बैठे हैं, बैठे...।
जैसे मर ही गए; जैसे मिट ही गए। बूंद जैसे सागर में खो जाए,
ऐसे खो गए। सब मौन, सब शांत हो गया। सब मौन,
सब सूना हो गया। गहरी शांति में उतर गए। गहरे शून्य में डूब गए।
बूंद जैसे सागर में खो जाए, ऐसे खो गए। सब खो गया, केवल प्रकाश ही प्रकाश रह गया है। दूर तक अनंत तक फैला हुआ प्रकाश रह गया
है। उसी प्रकाश के सागर में डूब गए हैं। प्रकाश ही प्रकाश, अनंत
प्रकाश, चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश। उसी प्रकाश के सागर में
खो गए हैं।
भीतर आनंद के झरने फूटने शुरू हो गए हैं। रोआं-रोआं आनंद से भर जाएगा।
हृदय की धड़कन-धड़कन आनंद से भर जाएगी। भीतर आनंद के झरने फूटने शुरू हो गए हैं।
आनंद ही आनंद की धाराएं भीतर बह रही हैं, उन्हीं में डूब गए
हैं, उन्हीं में खो गए हैं। आनंद ही आनंद शेष रह गया है।
आनंद, अनंत आनंद शेष रह गया है। चारों ओर आनंद के अतिरिक्त
और कुछ भी नहीं है। बाहर और भीतर आनंद ही आनंद शेष रह गया है। देखें, अनुभव करें, स्मरण करें, चारों
ओर आनंद के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। आनंद की पुलक रोएं-रोएं में भर गई है।
प्रकाश है, आनंद है, परमात्मा है।
आज इतना ही।
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