परम हंस तौता पुरी-(समाधि)
कभी-कभी इत्फाक भी चमत्कार से लगता है। हम (मैं ओर अदवीता) पूरी जगन्नाथ की यात्रा पर जाने की तैयारी कर रहे थे कि दो दिन पहले एक हीरा मन तोता न जाने कहां से आ गया ओर वह आने के बाद ऐसा व्यवहार करने लगा कि जैसे सालो से हमे जानता है। मैरे हाथ से खाये पेड पोधो पर किलकारी भरे मैं कम्पूटर पर कर करू तो अंदर आकर मेरे पास बैठ जाये।
कितना आनंद और उत्सव में सराबोर था, इस
टेहनी से उस टहनी पर कुदता फांदता कितना मन को मोह रहा था। मैं पेड पोधो को पानी
डालते उसे खुब नहलाया वह कैसे फंख खोल कर नहा रहा था। जैसे उसे वो सब चाहिए। तब हम
पूरी की और चले गये वहां पहुचने पर बेटी बोधी उनमनी में कहा की वह तोता तो अपको
चारो ओर ढूंढ रहा है वह बहुत शौर मचा रहा है मैंने उसे सेब आदि खाने के दिये परंतु
वह कुछ ढूढता सा प्रतित हो रहा है और मेरे नीचे चले जाने के बाद बहुत शौर मचा रहा
है काम करने वाली भी कह रही थी की मेरे पास आ कुछ कहना चाहता था। ओर उसका भी दिल
भर आया। कि शायद मम्मी-पापा को ढूंढ रहा है। ओर सच वह श्याम होते न होते उड गया।
बेटी ने फोन किया की पापा वह तोता तो उड गया....शयद आपको ढूंढता रहा...ओर आप उपर
नहीं आये तो चला गया।
पुरी जगन्ननाथ में परमहंस तोता पुरी की समाधी है। ये ये
मैने पहले ही पढा था ओर हम वहां जरूर जाना चाहते थे। सुबह तडके ही जगन्नाथ के
दर्शन कर वहीं से हमने लोगो से पूछ ताछ की कि तोता पुरी जी की समाधि कहां है परंतु
कम ही लोग ही जानते है परंतु एक पुलिस वाले से जानकारी पाकर हमने एक आटो वाले को
समझाया तो उसकी समझ में कुछ आया ओर वह हमे वहां की ले चला काफी ढ़ूढने पर हम वहा
पहूंचे। कितानी शांत ओर मनोहारी जगह है, वहां चारों ओर फालसे, जामुन, आम, तेजपत्ते
के वृक्ष फैले पडे है। परंतु सौदर्य ओर आकर्षण का कैंद्र तो विशाल बरगद का वह वृक्ष
है जो शायद सदीयों पूराना है। ओर जिसे तौता पुरी जी को यहां रहने को मजबुर कर दिया
होगा। शायद इस के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ होगा। क्योंकि तोता पूरी जी जो
साधना थी वह यही थी एक जगह तीन दिन से अधिक नहीं रूकना, राम कृष्ण के पास वह तीन
दिन ही रूके थे। चाहे सम्मान मिले या अपमान, यही तो साधक का संकप है। परंतु एक पूरी
धर्म की नगरी, जहां जगह-जगह आत्म बोध भरा है, दुसरा शायद ये वट वृक्ष जिसने उन्हें
हमेशा के लिए अपना बना कर यहां कर कर लिय।
तोता पुरी का क्या नाम है, कोई नहीं जानता, उनकी समाधी की छत
पर भी दो तोते बना रखे है, शायद उन्हें तोतो से अधिक प्रेम होगा, ओर पूरी में बस
गये, इस लिए नाम पड़ गया तोता पूरी, कितना अजीब इत्फाक है हमारे पास भी जो तोता आया
वह हीरा मन ही था ओर तीन दिन रहने के बाद चला गया....कुदरत को कैसी बेबुझी पहेली है।
बुद्ध पुरूष जहां भी रहे वह जगह जीवंत हो जाती है, आप किसी
भी स्थान को जाकर देख सकते है। तोता पुरी की समाधी आज भी जींवत है, कितना सुंदर उनका पलग, उस पर बिछी लाल रंग की चद्दर,
गाव तकीया ओर, सुंदर आराम दायक कुर्शी मोनों उनके
बैठने की कहानी आज भी अभी अपके सामने दोहरा देगी। एक तरफ रखी अलमारी में हिदुं धर्म
की अनेक पुस्तके रखी हे, उपनिषाद, पुरूण,
गीता....जिन्हें वो खुद कभी नहीं पढते थे वह आने वाले लागो को पढने के
लिए दे देते थे ओर कहते थे कुछ समझ में न आये तो पूछ सकते हो।, अब जिसे अध्यात्म में रूची होगी तो वह तो वहां रूकेगा बाकी भाग जायेगा,
वह बोलते बहुत कम थे, आप उनके पास जाकर बेठ सकते
थे, सुंदर बरांडा, जिस में हम घंटो बेठ रहे
जहां उनके चर्ण पड़े होगे।
चारो ओर हरीयाल, का उन्माद ओर उस पर पक्षियों का
कलरव गान वातवरण में अजीब सी मादकता भर रहा था। लग रहा था कुछ समय के लिए किसी ओर ही
लोक में आ गये है। मैंने ओर अदवीता ने वहां करीब तीन से चार घंटे गुजारे समय का पता
ही नहीं चला, आपकी चाह ही राह होती है। जिसे जो चाहिए उसे मिल
ही जाता है। एक सुंदर यात्रा का आगाज, जगन्ननाथ ओर तोता पूरी
की धर्मिक पवित्र जगह से शुरू हुआ ओर दस दिन बाद जब हम चलने लगे तो रेल 6 घंटे लेट
थी, तब हमने सोचा क्यों न इस शुभ समय को वहीं बिताया जाये ओर
हमने होटल खाली कर जगन्ननाथ ओर तोता पूरी पर छ घंटे फिर गुजारे...सुंदर शुरू आत के
साथ सुंदर अंत.....हमने भगवान को धन्यवाद वाद दिया की उन्होंने हमारी ट्रेन को लेट
किया....जय जगन्ननाथ....जय महान संत तोता पुरी की जय।
स्वामी आनंद प्रसाद
मां अदवीता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें