मंगलवार, 2 जनवरी 2018

ज्‍योतिष और अध्‍यात्‍म-भाग-03



(ज्‍योतिष और अध्यात्म)


      जगत में न मालूम कितनी घ्‍वनियां है जो चारों तरफ हमारे गुजर रही है। भंयकर कोला हाल है—वह पूरा कोलाहल हमें सुनाई नहीं पड़ता, लेकिन उससे हम प्रभावित तो होते हे। ध्‍यान रहे, वह हमें सुनाई नहीं पड़ता, लेकिन उससे हम प्रभावित तो होते हे। वह हमारे रोएं-रोएं को स्‍पर्श करता है। हमारे ह्रदय की धड़कन-धड़कन को छूता है। हमारे स्‍नायु-स्‍नायु को कंपा जाता है। वह अपना काम तो कर ही रहा है। उसका काम तो जारी है। जिस सुगंध को आप नहीं सूंघ पाते उसके अणु आपके चारों तरफ अपना काम तो कर ही जाते हे। और अगर उसके अणु किसी बीमारी को लाए है तो आप को दे जाते है। आपकी जानकारी आवश्‍यक नहीं है। किसी वस्‍तु के होने के लिए।
      ज्‍योतिष का कहना है कि हमारे चारों तरफ ऊर्जाओं के क्षेत्र है, एनर्जी फील्‍डस है और वह पूरे समय हमें प्रभावित कर रहे है। जैसे ही बच्‍चा जन्‍म लेता है तो वह जगत के प्रति, जगत प्रभावों के प्रति फंस जाता है। जन्‍म को वैज्ञानिक भाषा में हम कहें एक्‍सपोजर, जैसे कि फिल्‍म को हम ऐक्सपोज करते है। कैमरे में, जरा सा शटर आप दबाते है एक क्षण के लिए कैमरे की खिड़की खुलती है और बंद हो जाती है। उस क्षण में जो भी कैमरे के समक्ष आ जाता है। वह फिल्‍म पर अंकित हो जाता है। फिल्‍म ऐक्सपोज हो गई। अब दुबारा उस पर कुछ अंकित न होगा—और अब यह फिल्‍म उस आकार को सदा अपने भीतर लिए रहेगी।

      जिस दिन मां के पेट में पहली दफा गर्भाधान होता है तो पहला एक्‍सपोजर होता है। जिस दिन मां के पेट से बच्‍चा बाहर आता है, जन्‍म लेता है, उस दिन दूसरा एक्‍सपोजर होता है। और वह दोनों एक्‍पोजर संवेदनशील चित पर फिल्‍म की भांति अंकित हो जाते है। पूरा जगत उस क्षण में बच्‍चा अपने भीतर अंकित कर लेता है। और उसकी एम्‍पेथीज, समानुभूति निर्मित हो जाती है।
      ज्‍योतिष इतना ही कहता है कि यदि यह बच्‍चा जब पैदा हुआ है तब अगर राज है...ओर जानकर आप हैरान होंगे की सत्‍तर से लेकर नब्‍बे प्रतिशत बच्‍चे रात में पैदा होते है, यह थोड़ा हैरानी की बात है….क्‍योंकि आमतौर से पचास प्रतिशत होने चाहिए। चौबीस घंटे का हिसाब है, इसमें कोई हिसाब भी न हो,बेहिसाब भी बच्‍चे पैदा हों, तो बारह घंटे रात, बारह घंटे दिन, साधारण संयोग और कांबिनेशन से ठीक है, पचास-पचास प्रतिशत हो जाएं। कभी भूल चूक दो चार प्रतिशत इधर-उधर हो, लेकिन नब्‍बे प्रतिशत तक बच्‍चे रात में जन्‍म लेते है—दस प्रतिशत तक बच्‍चे मुशिकल से दिन में जन्‍म लेते है। अकारण नहीं हो सकती यह बात, इसके पीछे बहुत कारण है।
      समझें, एक बच्‍चा रात में जन्‍म लेता है तो उसका जो एक्‍सपोजर है, उसके चित की जो पहली घटना है जगत में अवतरण की वह अंधेरे से संयुक्‍त होती है। प्रकाश से संयुक्‍त नहीं होती। यह तो उदाहरण के लिए कह रहा हूं, क्‍योंकि बात तो और विस्‍तीर्ण है। सिर्फ उदाहरण के लिए कह रहा हूं। उसके चित पर जो पहली घटना है वह अंधकार है। सूर्य अनुपस्‍थित है। सूर्य की ऊर्जा अनुपस्‍थित है। चारों तरफ जगत सोया हुआ है। पौधे अपनी पत्‍तियों को बंद किए हुए है। पक्षी अपने पंखों को सिकोड़कर आंखे बंद किए हुए अपने घोंसलों में छिप गए है। सारी पृथ्‍वी पर निद्रा है। हवा के कण-कण में चारों तरफ नींद है। सब सोया हुआ है। जागा हुआ कुछ भी नहीं है। वह पहला इम्‍पेक्‍ट है बच्‍चे पर।
      अगर हम बुद्ध और महावीर से पूँछें तो वह कहेंगे कि अधिक बच्‍चे इसलिए रात में जन्‍म लेते है क्‍योंकि अधिक आत्‍माएं सोयी हुई हे—एस्‍लीप है। दिन को वे नहीं चुन सकते पैदा होने के लिए। दिन को चुनना कठिन है। और हजार कारण है, एक कारण महत्‍वपूर्ण है यह भी—अधिकतम लोग सोये हुए है। अधिकतम लोग तंद्रित है, अधिकतम लोक निद्रा में है। अधिकतम लोग आलस्‍य में प्रमाद में है। सूर्य के जागने के साथ उनका जन्‍म ऊर्जा का जन्‍म होगा,सूर्य के डूबे हुए अंधेरे की आड़ में उनका जन्‍म नींद का जन्‍म होगा। रात में एक बच्‍चा पैदा हो रहा है तो एक्‍सपोजर एक तरह का होने वाला है। जैसे कि हमने अंधेरे में एक फिल्‍म खोली हो या प्रकाश में एक फिल्‍म खोली हो तो एक्‍सपोजर भिन्‍न होने वाले है। एक्सपोजर की बात थोड़ी और समझ लेनी चाहिए क्‍योंकि वह ज्‍योतिष के बहुत गहराइयों से संबंधित है।
      जो वैज्ञानिक एक्‍सपोजर के संबंध में खोज करते है वे कहते है कि एक्‍सपोजर की घटना बहुत बड़ी है, वह छोटी घटना नहीं है। क्‍योंकि जिंदगी भर वह आपका पीछा करेगी। हम कहते है कि मां के पीछे भाग रहा है। वैज्ञानिक कहते है, नहीं, मां से कोई संबंध नहीं है। एक्सपोजर का सवाल है। हम कहते, अपनी मां के पीछे भाग रहा है लेकिन वैज्ञानिक कहते है। नहीं, पहले हम भी ऐसे सोचते थे कि मां के पीछे भाग रहा है, लेकिन बात ऐसी नहीं है। और अब सैकड़ों प्रयोग किए गए तो बात स्‍पष्‍ट हो गयी है।
      वैज्ञानिकों ने सैकड़ों प्रयोग किए। मुर्गी का बच्‍चा जन्‍म रहा है। अंडा फूट रहा है, चूजा बहार निकल रहा है तो उन्‍होंने मुर्गी को हटा लिया और उसकी जगह एक रबर का गुब्‍बारा रख दिया। बच्‍चे ने जिस चीज को पहली दफा देख वह रबर का गुब्बार था, मां नहीं थी। आप चकित होंगे यह जानकर कि वह एक्‍सपोजर हो गया। इसके बाद वह रबर के गुब्‍बारे को ही मां की तरह प्रेम कर सका । फिर वह अपनी मां को नहीं प्रेम कर सका। रबर का गुब्‍बारा हवा में वह गुब्बार उड़ेगा यह सरकेगा, तो वह पीछे भागेगा। उसकी मां भागती रहेगी तो उसकी फिक्र ही नहीं करेगा। रबर के गुब्‍बारे के प्रति वह आश्चर्य जनक रूप से संवेदनशील हो गया। जब थक जाएगा तो गुब्‍बारे के पास टिककर बैठ जाएगा। गुब्‍बारे को प्रेम की कोशिश करेगा। गुब्‍बारे में चोंच लड़ाने की कोशिश करेगा—लेकिन मां से नहीं।
      इस संबंध में बहुत काम लारेंज नाम के वैज्ञानिक ने किया है और उसका कहना है वह जो फ़र्स्ट मूवमेंट ऑफ एक्‍सपोजर है बड़ा महत्‍वपूर्ण है। वह  मां से इसलिए संबंधित हो जाता है—मां होने की वजह से नहीं, फ़र्स्ट एक्‍सपोजर की वजह से। इसलिए नहीं कि वह मां है। इसलिए उसके पीछे दौड़ता है; इसलिए कि वह सबसे पहले उसको उपलब्‍ध होती है—इसलिए उसके पीछे दौड़ता है।
      अभी इस पर काम चल रहा है। जिन बच्‍चों को मां के पास बड़ा न किया जाए वह किसी स्‍त्री को जीवन में कभी प्रेम करने को समर्थ नहीं हो पाता—एक्‍सपोजर ही नहीं हो पाता। अगर एक बच्‍चे को उसकी मां के पास बड़ा ने किया जाए तो स्‍त्री का जो प्रतिबिंब उसके मन में बनना चाहिए वह बनता ही नहीं। और अगर पश्‍चिम में आज होमोसेक्सुअल टी बढ़ती हुई प्रतीत हो रही है। उसके एक बुनियादी कारणों में वह भी एक कारण है।
      हेट्रोसेक्‍सुअल, विजातीय यौन के प्रति जो प्रेम है वह पश्‍चिम में कम होता जा रहा है। और सजातीय यौन के प्रति प्रेम बढ़ता चला जाता है, जो कि विकृति है—लेकिन वह विकृति होगी, क्‍योंकि दूसरे यौन के प्रति जो प्रेम है पुरूष का स्‍त्री के प्रति और स्‍त्री का पुरूष के प्रति वह बहुत सी शर्तों के साथ है। पहला तो एक्‍सपोजर जरूरी है। बच्‍चा पैदा हो तो उसके मन पर क्‍या एक्‍सपोजर हो, अब यह बहुत सोचने जैसी बात है। दुनिया में स्त्रीयां तब तक सुखी न हो पाएंगी जब तक उनका एक्‍सपोजर मां के साथ हो रहा हे। उनका प्रथम एक्‍सपोजर पुरूष के साथ होना चाहिए। पहला इम्पेक्ट लड़की के मन पर पिता का पड़ना चाहिए तो ही वह किसी पुरूष को भरपूर मन से प्रेम करने में समर्थ हो पाएगी । अगर पुरूष स्‍त्री से जीत जाता है तो उसका कुल कारण इतना है कि लड़कियां दोनों ही मां के पास बड़े होते हे।
      लड़के को एक्‍सपोजर तो बिलकुल ठीक होता है। स्‍त्री के प्रति, लेकिन लड़की का एक्‍सपोजर बिलकुल ठीक नहीं होता। इसलिए जब तक दुनिया में लड़की को पिता का एक्‍सपोजर नहीं मिलता तब तक स्त्रीयां कभी भी पुरूष के समकक्ष खड़ी नहीं हो सकती है। न राजनीति के द्वारा, न नौकरी के द्वारा, न आर्थिक स्‍वतंत्रता के द्वारा। क्‍योंकि मनोवैज्ञानिक अर्थों में एक कमी उनमें रह जाती है। अब तक की पूरी संस्‍कृति उस कमी को पूरा नहीं कर पायी। अगर एक छोटा सा गुब्बारा मुर्गी के लिए इतना प्रभावी हो जाता है इतना ज्‍यादा कि उनका चित...कि उसका चित सदा के लिए उससे निर्मित हो जाता है। तो ज्‍योतिष कहता है। जो भी चारों तरफ मौजूद है, द होल यूनिवर्स वह सभी का सभी उस प्रथम एक्‍सपोजर के क्षण में, उस चित के खुलने के क्षण में भीतर प्रवेश कर जाता है। और जीवन भर की सिम्‍पैथीज ओर एन्‍टीपैथीज निर्मित हो जाती है। उस क्षण जो नक्षत्र पृथ्‍वी को चारों तरफ से घेरे हुए है वह सभी अनंत अर्थों में चित को संकेत कर जाते है। नक्षत्र घेरे हुए है, उनका कुल मतलब इतना है कि उस क्षण पृथ्‍वी के ऊपर उन नक्षत्रों की रेडियों एक्टिविटी का प्रभाव पड़ रहा है।
      अब वैज्ञानिक मानते है कि प्रत्‍येक ग्रह की रेडियो एक्टिविटी अलग हे। जैसे—वीनस, उससे जो रेडियो सक्रिय तत्‍व  हमारी तरफ आते है। वह चाँद के रेडियो सक्रिय तत्‍वों से भिन्‍न है। जैसे जुपिटर—उससे जो रेडियो तत्‍व हम तक आते है वह सूर्य से रेडियो तत्‍वों से भिन्‍न है। क्‍योंकि इन प्रत्‍येक ग्रहों के पास अलग तरह की गैसों और अलग तरह के तत्‍वों का वातावरण है। उन सबसे अलग-अलग प्रभाव पृथ्‍वी की तरफ आते है। और जब एक बच्‍चा पैदा हो रहा है तो पृथ्‍वी के चारों तरफ क्षितिज को घेरकर खड़े हुए जो भी नक्षत्र है—ग्रह है, उपग्रह है, दुर आकाश के महा तारे है, वे सब के सब उस एक्‍सपोजर के क्षण में बच्‍चे के चित पर गहराइयों ते प्रवेश कर जाते है। फिरा उसकी कमज़ोरियाँ, उसकी ताक़तें, उसका सामर्थ्‍य सब सदा के लिए प्रभावित हो जाता है।
अब जैसे हिरोशिमा में एटम बम के गिरने के बाद पता चला, उसके पहले पता नहीं था। हिरोशिमा में एटम जब तक नहीं गिरा था तब तक इतना ख्‍याल नहीं था कि एटम गिरेगा तो लाखों लोग मरेंगे। लेकिन यह पता नहीं था की पीढ़ियों तक आनेवाले बच्‍चे प्रभावित हो जाएंगे। हिरोशिमा और नागासाकी में जो लोग मर गए—मर गए, वह तो क्षण की बात थी। समाप्‍त हो गई। लेकिन हिरोशिमा में जों वृक्ष बच गए, जो जानवर बच गए, जो पक्षी बच गए, जो मछलियाँ बच गई, जो आदमी बच गए वे सदा के लिए प्रभावित हो गए।
      अब वैज्ञानिक कहते है कि दस पीढ़ियों में हमें पूरा अंदाजा लग पायेगा कि क्‍या-क्‍या परिणाम हुए। क्‍योंकि इनका सब कुछ रेडियो एक्टिविटी से प्रभावित हो गया। अब जो स्‍त्री बच गई उसके शरीर में जो अंडे है वह प्रभावित हो गए है। अब वह अंडे कल उनमें से एक अंडा बच्‍चा बनेगा वह बच्‍चा वैसा ही बच्‍चा नहीं है। वह लँगड़ा हो सकता है, लूला हो सकता है, अंधा हो सकता है। उसकी चार आंखें भी हो सकती है। आठ आंखे भी हो सकती है।
      कुछ भी हो सकता है, अभी हम कुछ भी नहीं कह सकते वह कैसा होगा। उसका मस्‍तिष्‍क बिलकुल रूग्‍ण भी हो सकता है। प्रतिभाशाली भी हो सकता है। वह जीनियस भी पैदा हो सकता है। जैसा जीनियस कभी पैदा न हुआ हो। अभी हमें कुछ भी पता नहीं कि वह क्‍या होगा। इतना पक्‍का पता है कि जैसा होना चाहिए—साधारणत: आदमी वैसा वह नहीं होगा।
      अगर एटम की रेडियो उर्जा ऐसा कर सकती है जो कि बहुत छोटी ताकत है—हमारे लिए वह बहुत बड़ी है। एक एटम एक लाख बीस हजार आदमियों को मार पाया हिरोशिमा और नागासाकी में—फिर भी तुलनात्‍मक दृष्‍टि में वह बहुत छोटी ताकत है। सूर्य के ऊपर जो ताकत है उसका हम इससे कोई हिसाब नहीं लगा सकते है—जैसे अरबों एटम बम एक साथ
फूट रहे हो। उतनी रेडियो एक्टिविटी सूरज के ऊपर है: और असाधारण है यह।
      क्‍योंकि सूरज चार अरब वर्षों से तो पृथ्‍वी को गर्मी दे रहा है। और उससे पहले से और अभी भी वैज्ञानिक कहते है कि कम से कम चार हजार वर्ष तक तो उसके ठंडे होने की कोई भी संभावना नहीं। प्रतिदिन इतनी गर्मी...और सूरज दस करोड़ मील दूर है पृथ्‍वी से। हिरोशिमा में जो घटना घटी है उसका प्रभाव दस मील से ज्‍यादा दूर नहीं पडा। दस करोड़ मील दूर सूरज है चार अरब वर्षो से तो वह हमें सब सारी गर्मी दे रहा है। फिर भी अभी रिक्‍त नहीं हुआ। पर यह सूरज कुछ भी नहीं है। इससे भी महा सूर्य है। ये सब तारे जो है आकाश में, ये महा सूर्य है। और इसमें से प्रत्‍येक से अपनी व्‍यक्‍तिगत और निजी क्षमता की सक्रियता हम तक प्रवाहित होती है।
      एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक, जो अंतरिक्ष में फैलती ऊर्जाओं के संबंध में अध्‍ययन कर रहा है। माइकेल गाकलिन, उसका कहना है कि जितनी ऊर्जाऐं हमें अनुभव में आ रही है। उनमें से हम एक प्रतिशत के संबंध में भी पूरा नहीं जानते। जब से हमने कृत्रिम उपग्रह छोड़े है पृथ्‍वी के बाहर,तब से उन्‍होंने हमें इतनी खबरें दी है कि हमारे पास न शब्‍द है उन खबरों को समझने के लिए,न हमारे पास विज्ञान है। और इतनी ऊर्जाऐं इतनी एनजी्र चारों तरफ बह रही होंगी; इसकी हमें कल्‍पना ही नहीं थी। इस संबंध में एक बात और ख्‍याल में ले लेनी जरूरी है।
      ज्‍योतिष कोई विकसित होता हुआ नया विज्ञान नहीं है। हालत उल्‍टी है। ताजमहल अगर आपने देखा है तो यमुना के उस पार कुछ दीवारें आपको उठी हुई दिखाई पड़ी होंगी। कहानी यह है कि  शाहजहाँ न मुमताज के लिए तो ताजमहल बनवाया और अपने लिए,जैसा संगमरमर का ताजमहल है ऐसा अपनी कब्र के संगमूसा का काला पत्‍थर का महल वह यमुना के उस पार  बना रहा था। लेकिन यह पूरा नहीं हो पाया।
      ऐसी कथा सदा से प्रचलित थी, लेकिन अभी इतिहासज्ञों ने खोज की है तो पता चला है कि वह जो उस तरफ दीवारें उठी खड़ी है। वह किसी बनने वाले महल दीवारें नहीं है। वह किसी बहुत बड़े महल की गिर चुका है। खंडहर है, पर उठती दीवारें और खंडहर एक से मालूम पड़ सकते है। एक नये मकान की दीवारें उठ रही है—अधूरी है, मकान बना नहीं है। हजारों सालों बाद तय करना मुशिकल हो जाएगा कि नये मकान की बनी दीवारें है या किसी बने हुए मकान की।  जो गिर चूका—उसके बचे खुचे अवशोष है,खंडहर है।
           
      पिछले तीन सौ सालों से यही समझा जाता था कि वह जो दूसरी तरफ महल खड़ा हुआ हे, वह शाहजहाँ बनवा रहा था, वह पूरा नहीं हो पाया। लेकिन अभी जो खोजबीन हुई है उससे पता चलता है। कि वह महल पूरा था। और न केवल यह पता चला है। वह महल पूरा था, बल्‍कि यह भी पता चलाता है कि ताजमहल शाहजहाँ ने कभी नहीं बनवाया। वह भी हिंदुओं का बहुत पुराना महल है, जिसको उसने सिर्फ कनवर्ट किया। जिसको सिर्फ थोड़ा सा फर्क किया। और कई दफा इतनी हैरानी होती है। कि जिन बातों को हम सुनने के आदी हो जाते है फिर उससे भिन्न‍ बात को हम सोचते भी नहीं।
      ताज महल जैसी एक भी कब्र दुनिया में किसी ने नहीं बनवायी। कब्र ऐसी बनायी भी नहीं जाती। क्रब ऐसी बनायी ही नहीं जाती। ताजमहल के चारों तरफ सिपाहियों के खड़े होने के स्‍थान है। बंदूकें और तोप लगाने के स्‍थान है क्रबों की बंदूकें और तोपें लगाकर कोई रक्षा नहीं करनी पड़ती। वह महल है पुराना उसको सिर्फ कनवर्ट किया गया है। वह दूसरी तरफ भी एक पुराना महल है जो गिर गया, जिसके खंडहर शोष रह गए।
      ज्‍योतिष भी खंडहर की तरह है। एक बहुत बड़ा महल था, पूरा विज्ञान था, जो ढह गया। कोई नयी चीज नहीं है। कोई नया उठता मकान नहीं है। लेकिन जो दीवारें रह गयी है उनसे कुछ पता नहीं चलता कि कितना बड़ा महल उसकी जगह रहा होगा। बहुत बार सत्‍य मिलते है और खो जाते है।
      अरिस्‍टिकारस नाम का एक यूनानी ने जीसस से दो सौ वर्ष पूर्व यह सत्‍य खोज निकाला था कि सूर्य केंद्र है, पृथ्‍वी केंद्र नहीं है। अरिस्‍टिकारस का यह सूत्र, हेलियो सेंट्रिक सिद्धांत कि सूरज केंद्र पर है। जीसस के तीन सौ वर्ष पहले खोज निकाला गया था। लेकिन जीसस के सौ वर्ष बाद टोलिमी ने इस सूत्र को उलट दिया और पृथ्‍वी को फिर केंद्र बना दिया। और फिर दो हजार साल लग गए केपलर और कोपरनिसक को खोजने में वापस, कि सूर्य केंद्र है, पृथ्‍वी केंद्र नहीं है। दो हजार साल तक अरिस्टिकारस का सत्‍य दबा पडा रहा। दो हजार साल बाद जब कोपरनिसक ने फिर से कहा तब अरिस्टिकारस की किताबें खोजी गयी। लोगों ने कहा, यह तो हैरानी की बात है।   
      अमरीका कोलंबस ने खोजा,ऐसा पश्‍चिम के लोग कहते है। एक बहुत प्रसिद्ध मजाक प्रचलित है, ऑस्कर वाइल्‍ड का। वह अमरीका गया हुआ था। उसकी मान्‍यता थी कि अमरीका और भी बहुत पहले, खोजा जा चुका है। और यह सच है। यह सच्‍चाई है कि अमरीका बहुत दफा खोजा जो चुका है और पुन: पुन: खो गया। उससे संबंध सूत्र टूट गए।
      एक व्‍यक्‍ति ने ऑस्कर वाइल्‍ड को पूछा कि हम सुनते है कि आप कहते है, अमरीका पहले ही खोजा जा चुका है। तो क्‍या आप नहीं मानते कि कोलंबस ने पहली खोज की। और अगर कोलंबस ने पहली खोज नहीं की तो अमरीका बार-बार क्‍यों खो गया। तो ऑस्कर वाइल्ड ने मजाक में कहा कि कोलंबस ने पुन: खोज की ही है, रि-डिस्‍कवर्ड अमेरिका, इट वाज डिस्क वर्ड से मेनी टाईम, बट एवरी टाइम हश्‍ड-अप। हर बार इसको दबाकर चुप रखना पडा। क्‍योंकि उपद्रव को बार-बार दबाना यहाँ भुलाना जरूरी था।
      महाभारत अमरीका की चर्चा करता है। अर्जुन की एक पत्‍नी मेक्‍सिको की लड़की है। मेक्‍सिको में जो प्राचीन मंदिर है वह हिंदू मंदिर है जिन पर गणेश की मूर्तियां तक खुदी हुई है। बहुत बार सत्‍य खोज लिए जाते है और खो जाते हे। बहुत बार हमें सत्‍य पकड़ में आ जाता है, फिर खो जाता है।
      ज्‍योतिष उन बड़े से बड़े सत्‍यों में से एक है जो पूरा का पूरा ख्‍याल में आ चुका ओ खो गया है। उसे फिर से ख्‍याल में लाने के लिए बड़ी कठिनाई है। इसलिए मैं बहुत सी दिशाओं से आपसे बात कर रहा हूं। क्‍योंकि ज्‍योतिष पर सीधी बात करने का अर्थ होता हे। कि वह जो सड़क पर ज्‍योतिषी बैठा हे, शायद मैं उस संबंध में कुछ कह रहा हूं। जिसको आप चार आने देकर और अपना भविष्‍य फल निकलाव आते है। शायद उसके संबंध में या उसके समर्थन में कुछ कह रहा हूं।
      नहीं ज्‍योतिष के नाम पा सौ में से निन्‍यान्‍नबे धोखाधड़ी है। ओ वह जो सौवां आदमी हे, निन्‍यान्‍नबे को छोड़कर उसे समझना बहुत मुश्किल है। क्‍योंकि वह कभी इतना डागमेटिक नहीं हो सकता कि कह दे कि ऐसा होगा ही। क्‍योंकि वह जानता है कि ज्‍योतिष बहुत बड़ी घटना है। इतनी बड़ी घटना है कि आदमी बहुत झिझक कर ही वहां पैर रख सकता है।
      जब मैं ज्‍योतिष के संबंध में कुछ कह रहा हूं तो मेरा प्रयोजन है कि मैं उसे पूरे-पूरे विज्ञान को आपको बहुत तरफ से उसके दर्शन करा दूँ। इस महल के । तो फिर आप भीतर बहुत आश्‍वस्‍त होकर प्रवेश कर सकें। और मैं जब ज्‍योतिष की बात कर रहा हूं तो ज्‍योतिषी की बात नहीं कर रहा हूं। उतनी छोटी बात नहीं है। पर आदमी की उत्‍सुकता उसीमें है कि उसको पता चल जाए कि उसकी लड़की की शादी होगी कि नहीं होगी। इस संबंध में यह भी आपको कह दूँ कि ज्‍योतिष के तीन हिस्‍से है।
      एक—जिसे हम कहें अनिवार्य, एसेंशियल, जिसमें रत्‍तीभर फर्क नहीं होता। वह सर्वाधिक कठिन है उसे जनना । फिर उसके बाहर की परिधि हे—नान एसेंशियल, जिसमें सब परिवर्तन हो सकते है। अगर हम उसी को जानने को उत्‍सुक होते है और उन दोनों के बीच में एक परिधि है—सेमी एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य जिसमें जानने से परिवर्तन हो सकते है। न जानने से कभी परिवर्तन नहीं होगें। तीन हिस्‍से करते है।  उसे जानने के बाद उसके साथ सहयोग करने के सिवाय कोई अपाय नहीं है।
      धर्मों ने इस अनिवार्य तथ्‍य की खोज के लिए ही ज्‍योतिष की ईजाद की—उसके बाद दूसरा है—सेमी एसेंशियल, अर्द्ध अनिवार्य—अगर जान लेंगे तो बदल सकते है। अगर नहीं जानेंगे तो नहीं बदल पाएंगे। अज्ञान रहेगा तो जो होना है वहीं होगा। ज्ञान होगा तो अल्‍टरनेटिव्‍ज, विकल्‍प है—बदलाहट हो सकती है। और तीसरा सबसे ऊपर का सरफेस  यह है—नान एसेंशियल उसमें कुछ भी जरूरी नहीं है। सब सांयोगिक है। लेकिन हम जिस ज्‍योतिष की बात समझते है। वह नान एसेंशियल का ही मामला है।
      एक आदमी कहता है, मेरी नौकरी लग जाएगी या नहीं लग जाएगी। चाँद-तारों के प्रभाव से आपकी नौकरी के लगने, न लगने को कोई भी गहरा संबंध नहीं है। एक आदमी पूछता है मेरी शादी हो जाएगी या नहीं हो जाएगी। शादी के बिना भी समाज हो सकता है। एक आदमी पूछता है कि मैं गरीब रहूंगा कि अमीर रहूंगा। एक समाज कम्‍युनिस्‍ट हो सकता है। कोई गरीब और अमीर नहीं होगा।
      ये नान एसेंशियल हिस्से है जो हम पूछते है। एक आदमी पूछता है कि अस्‍सी साल में मैं सड़क पर से गुजर रहा था। और एक संतरे के छिलके पर पैर पड़ कर गिर पडा तो मेरे चाँद तारे का इसमें कोई हाथ है या नहीं। अब चाँद-तारे से तय नहीं किया जा सकता कि फंला-फंला ना के संतरे से और फंला-फंला सड़क पर आपका पैर फिसले। वह निपट गँवारी है। लेकिन हमारी उत्‍सुकता इसमें है कि आज हम निकलेंगे सड़क पर, छिलके पर पैर पड़ कर फिसल तो नहीं जाएगा। यह नान एसेंशियल है। यह हजारों कारणों पर निर्भर है लेकिन इसके होने की कोई अनिवार्यता नहीं है। इसका बी इंग से, आत्‍मा से कोई  संबंध नहीं है। यह घटनाओं की सतह है। क्रमश:  अगल  अंक  में............

ओशो
 ‘’ज्‍योतिष अर्थात अध्‍यात्‍म’’ प्रश्नोत्तर चर्चा
वुडलैण्ड, बम्‍बई, दिनांक  10 जुलाई 1971,


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