बहुरि ने ऐसा दावं—(प्रश्नोतर) –ओशो
दिनांक 01-08-1980 से 10-08-1980 तक
आशो आश्रम पूना।
नए सूर्य को नमस्कार-(प्रवचन-दसवां)
पहला प्रश्न: भगवान,
कहते हैं कि बुद्ध पुरुष जहां वास करते हैं, जहां भ्रमण करते हैं, वे स्थान तीर्थ बन जाते हैं।
यह बात तो समझ में आती है। लेकिन श्रीमद्भागवत में उल्लेख है कि संत स्वयं तीर्थों
को पवित्र करते हैं। स्वयं हि तीर्थानि पुनन्ति संतः। यह बात समझ में नहीं आती।
भगवान, समझाने की अनुकंपा
करें।
सहजानंद,
पहली बात अगर समझ में आती है तो दूसरी भी जरूर समझ में आएगी। और यदि
दूसरी समझ में नहीं आती तो पहली भी समझ में आई नहीं, सिर्फ समझने का भ्रम
हुआ है। क्योंकि पहली बात ज्यादा कठिन है, दूसरी बात तो बहुत
सरल है।
पहला सूत्र है कि जहां उठते बैठते, जहां बुद्ध
चलते-विचरते, वहां तीर्थ बन जाते हैं। तीर्थ का अर्थ.समझो।
तीर्थ का अर्थ होता है: जहां से व्यक्ति अज्ञात में प्रवेश कर सके। तीर्थ का अर्थ
होता है: जहां से व्यक्ति मन से छलांग लगा सके--अमन में। तीर्थ का अर्थ होता है:
जहां से व्यक्ति समय को पीछे छोड़ दे और समयातीत का अनुभव करे। प्रभु का
साक्षात्कार जहां हो जाए, वहीं तीर्थ है। और प्रभु का
साक्षात्कार तो बुद्धों की सन्निधि में हो सकता है। वे ही सेतु है।