मेरे बचपन में—क्योंकि उसके बारे में मैं तुमसे अधिक अधिकार पूर्वक बात कर सकता हूं; मैं तुम्हारे बचपन के बारे में नहीं जानता, केवल अपने बचपन के बारे में जानता हूं—यह प्रश्न प्रतिदिन का था। मुझसे लगातार सत्यभाषी होने के लिए कहा जाता था। मैंने अपने पिता को कहा: ‘जब कभी आप मुझसे सत्यभाषी होने के लिए कहते है, आपकेा एक बाप स्मरण रखनी चाहिए कि सत्य को पुरस्कृत किया जाना चाहिए, अन्यथा आप मुझको सत्य भाषण न करने भाषण न करने के लिए बाध्य कर रहे है। में सत्य भाषण के लिए राज़ी हूं।’
बहुत सालता से मैंने जान लिया था कि सत्य से कुछ नहीं मिलता, तुमको दंड दिया जाता है। असत्य से मिलता है: पुरस्कृत किए जाते हो तुम। अब यह प्रश्न बहुत निर्णायक था, बहुत अधिक महत्व का था। इसलिए मेंने अपने माता-पिता से यह मामला स्पष्ट कर दिया था कि यह बात बहुत साफ-साफ समझ जी जानी चाहिए, यदि आप चाहते है कि मैं सत्यवादी रहूँ तो सत्य को पुरस्कृत किया जाना चाहिए, और पुरस्कार भविष्य के जीवन में नहीं वरन अभी और यहीं मिलना चाहिए।
क्योंकि में अभी और यहीं सत्य भाषण कर रहा हूं। और यदि सत्य को पुरस्कृत नहीं किया गया, यदि मुझको इसके लिए दंडित कर दिया गया, तो आप मुझे झूठ बोलने के लिए बाध्य कर रहे है। इसलिए इसे स्पष्ट रूप से समझ लेना फिर मेरे लिए कोई समस्या नहीं है, मैं सदा सत्यवादी रहूँगा।‘
जो हुआ वह इस प्रकार से है: मेरे परिवार के मकान से कोई दो या तीन मकान छोड़ कर एक ब्राहमण परिवार, बहुत दकियानूसी ब्राहमण लोग रहा करते थे। ब्राहमण लोग अपने सर के सारे बाल काट लेते है। और सिर के पृष्ठभाग पर, सातवें चक्र के ऊपर एक छोटी सा भाग छोड़ देते है। इस प्रकार बालों का भाग बढ़ता रहता है। वे इसमें गांठ बाँध लिया करते है। और उसको अपनी टोपी या अपनी पगड़ी के भीतर रखा करते है। और मैंने जो कर डाला वह यह था, कि मैंने उस परिवार के मुखिया के बाल काट लिए। भारत में गर्मी के दिनों में लोग मकान के बाहर गली में सोया करते है। वह अपने बिस्तर, अपनी चारपाइयों गली में बिछा लेते है। रात में सार नगर गलियों में सोया करता है, क्योंकि भीतर बहुत गर्मी होती है।
तो यह ब्राहमण बाहर गली में सो रहा था—और इसमें मेरा कोई दोष भी नहीं है....उसकी इतनी लंबी चोटी थी; बालों के इस गुच्छे को चोटी कहा जाता है। मैंने पहले कभी इसको नहीं देखा था। क्योंकि वह सदा उसको पगड़ी के भीतर छिपा के रखता था। अब जब वह सो रहा था, वह नीचे लटकी हुई थी और गली को छू रही थी। उसकी खाट से लेकर वह इतनी लंबी थी, कि मैं प्रलोभित हो गया। मैं अपने आपको रोक नहीं पाय, मैं दौड़ कर घर गया, कैंची लेकर आया, उसे पूरी तरह काट लिया, उसको पकड़ा और उसे अपने कमरे में रख दिया।
प्रात: साँकर उठने के बाद उन्हें पता लग गया कि वह नहीं रही। उन्हें इस बात पर विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि उनकी सारी शुद्धता इसी चोटी में थी। उनका सारा धर्म इसी में था—उनकी पूरी आध्यात्मिकता नष्ट हो गई थी। लेकिन पड़ोस में हर व्यक्ति को पता था कि यदि कुछ गड़बड़ हो जाती है....तो सबसे पहले वे दौड़ कर मेरे पास आया करते थे। और वे तुरंत उस गए। सुबह-सुबह वे आने बाले हे यह भलीभाँति जान कर मैं बाहर बैठा हुआ था। उस ब्राहमण ने मुझको देखा। मैंने भी उसकी और देख। उनहोंने मुझसे कहा: ‘क्या देख रहे हो तुम।’
मैं बोला: ‘आप क्या देख रहे है, वही चीज?’
उन्होंने कहा: ‘’वही चीज?’
मैंने कहा: ‘हां, वही चीज। आप उसका नाम बताइए।’
उन्होंने कहा: ‘पिता जी कहा है?’ मैं तुमसे कोई बात करना नहीं चाहता।‘
वे भीतर चले गए। वे मेरे पिता को लेकर बाहर आए और मेरे पिताजी ले पूछा: ‘क्या तुमने इन सज्जन के साथ कुछ गड़बड़ काम किया है?’
मैंने कहा: ‘मैंने इन सज्जन के साथ कुछ भी नहीं किया है। लेकिन मैंने एक चोटी काट ली है जो निश्चित रूप से इनका अंग नहीं है, क्योंकि जब में उसको काट रहा था तो ये क्या कर रहे थे? ये उसे काटे जाने से रोक सकते थे।’
उन सज्जन ने कहा: ‘मैं सोया हुआ था।’
मैंने कहा: ‘यदि मैंने आपके हाथ कि अंगुलि काट ली होती तो भी क्या आप सोए रहते?’
उन्होंने कहा: ‘यदि मेरी अंगुलि काट रहा हो तो मैं कैसे सोया रह सकता हूं?’
मैंने कहा: ‘इसी बात से यह निश्चित तौर पर सिद्ध हो जाता है कि बाल मृत होते है, आप उनको काट सकते है, इससे व्यक्ति को कोई कष्ट नहीं होता है, न रक्त निकलता है, तो यह हंगामा किस लिए? यहां एक मुर्दा चीज लटकी हुई थी...ओर मैंने सोचा कि आप व्यर्थ में ही इस मुर्दा चीज को अपने सारे जीवन अपनी पगड़ी में सम्हाल कर रखे रहेंगे—तो क्यों न आपको छुटकारा दिलाया जाए? वह चोटी मेरे कमरे में रखी हुई है। और मेरा पिताजी के साथ सत्य बोलने का समझौता है।‘
इसलिए मैं वह चोटी बाहर लेकर आया और कहा: ‘यदि आपको इसमें रूचि है, तो आप इसे वापस ले सकते है। यदि यही आपकी आध्यात्मिकता, आपका ब्राह्मणत्व है, तो उसकी गांठ काक पहले की भांति आप अपनी पगडी में रख सकते है। यह चोटी तो हर प्रकार से मुर्दा ही है। जब यह आपसे जुड़ी हुई थी तब भी यह मुर्दा थी, और जब मैंने इसे आपसे अलग किया था तब भी यह मुर्दा थी। आप इस कटी हुई चोटी को अपनी पगड़ी में भीतर रख सकते हो।’
और तब उन सज्जन के सामने ही मैंने अपने पिता से कहा: ‘मेरा पुरस्कार?’
उन सज्जन ने पूछा: ‘यह लड़का किस बात पुरस्कार मांग रहा है?’
मेरे पिता जी ने कहा: ‘यही तो परेशानी है। कल इसने प्रस्ताव रखा था कि यदि यह सत्य बोलता है...ओर इस समय तो यह पूरी निष्ठा के साथ सत्य बोल रहा है, यह न केवल सत्य बता हरा है बल्कि यह तो अपने कृत्य को समर्थन में प्रमाण भी दे रहा है। उसने पूरी कहानी सुना दी है—और इसके पीछे छिपा हुआ तर्क भी उसके पास है—कि सह एक मुर्दा चीज थी, इसलिए एक मुर्दा चीज की चिंता के क्यों पड़ना? और वह कोई बात छिपा भी नहीं रहा है।‘
उन्होंने मुझको पाँच रूपये का पुरस्कार दिया। उस समय उस छोटे से गांव में पाँच रूपये एक बड़ा पुरस्कार था। वे सज्जन मेरे पिता के प्रति क्रोध से पगला गए।
उनहोंने कहा: ‘आप इस लड़के को बिगाड़ देंगे। उसको पाँच रूपये देने के स्थान पर आपको इसे पीटना चाहिए था। अब वह अन्य लोगों की चोटियों काट डालेगा। यदि उसे प्रत्येक चोटी काटने के लिए पाँच रूपये मिल जाते है, तब नगर के सभी ब्राहमण तो गए काम से, क्योंकि वे सभी रात में अपने घर के बाहर सोया करते है। और जब आप सो रहे होते हे तो सारी रात अपनी चोटी अपने हाथ में पकड़े नहीं रह सकते। और इस प्रकार पुरस्कार देकर आप यह क्या कर रहे है?’ यह इसकी शैतानियां के समर्थन में उदाहरण बन जाएगा।‘
मेरे पिता ने कहा: ‘लेकिन यह मेरा समझौता है। यदि आप उसे दंड देना चाहते है तो यह आपका काम है, मैं बीच में नहीं आऊँगा। मैं उसकी शरारत के लिए पुरस्कार नहीं कर रहा हूं। मैं उसके द्वारा बोले गए सत्य के लिए उसे पुरस्कृत कर रहा हूं—और अपने सारे जीवन भर मैं उसके सत्य के लिए उसको पुरस्कार देता रहूंगा। जहां तक शरारत का संबंध है आप उसके साथ कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है।’
उन सज्जन ने मेरे पिता से कहा: ‘आप मुझको और बड़ी मुसीबत में डाल रहे है। यदि में इस लड़के के साथ कुछ करता हुं तो आप सोचते है कि मामला वहीं समाप्त हो जाएगा? मैं धर गृहस्थी वाला आदमी हूं—मेरी पत्नी है, मेरे बच्चे है, मेरा मकान है—हो सकता है कि कल मेरे मकान में आग लगा दी जाए ? वे बहुत क्रोधित थे, और उन्होंने कहा: ‘खासतौर से अब यक एक समस्या बन जाने वाली है, क्योंकि कल मैं उस गांव में ऐ आयोजन करवाने जा रहा हूं, और जब लोग मुझको बिना चोटी के देख लेंगे....’
मैंने कहा: ‘चिंता करने की कोई बात नहीं है—मैं यह चोटी आपको वापस किए दे रहा हूं। आपकी चोटी वापस करने के लिए आप भी मुझको पुरस्कार दे सकते है। उस गांव में आप बस अपनी पगड़ी मत उतारना; रात में सोते समय भी अपनी पगड़ी लगाए रखना। बस निबट जाएगा मामला। यह कोई बडी समस्या नहीं है, यह एक रात का सवाल है। और रात में कौन आपकी चोटी देखने वाला है? हर आदमी सोया हुआ होगा।‘
उन्होंने कहा: ‘मुझे सलाह मत दो। मेरा मन तो तुझको पीटने का हो रहा है, लेकिन मुझे बेहतर पता है क्योंकि उससे घटनाओं की एक पूरी शृंखला निर्मित हो जाएगी।’
मैंने कहा: ‘घटनाओं की यह शृंखला तो बन चुकी है। आप शिकायत करने आ गए है, आप मुझे नितांत पूर्णता से ईमानदार एवं निष्ठावान होने का, और आपको यह बता देने का कि मैं आपकी चोटी को देख कर उसे काट लेने की अपनी इच्छा रोक नहीं पाया, कोई पुरस्कार भी नहीं दे रहे हैं। और मैंने किसी को कोई हानि भी नहीं पहुँचाई है, न ही कोई हिंसा हो गई है—आपकी चोटी से खून की एक बूंद तक नहीं निकली। मेरे पिता से शिकायत करके ही आपने प्रतिक्रिया की एक शृंखला निर्मित कर ली है।’
उन्होंने कहा: ‘देखिए....।’
मेरे पिता ने कहा: ‘यह मेरा काम नहीं है।’
और मैंने अपने पिता से कहा: ‘पूरा ब्राह्मणवाद जिसे सिखाता है यही है वह बात—प्रतिक्रियाओं की श्रृंखला।’
मेरे पिता ने कहा: ‘अपना दर्शन शास्त्र तुम अपने पास रखो। और साधुओं, और मुनियों और महात्माओं के इन प्रवचनों में जाना बंद कर दो, क्योंकि उन प्रवचनों से जो कुछ
भी तुम सीखते हो, उससे इस भांति अजीबो-गरीब हरकतें कर गुजरते हो।’
भी तुम सीखते हो, उससे इस भांति अजीबो-गरीब हरकतें कर गुजरते हो।’
मैंने कहा: ‘किंतु यह तो वही है जो मैं कहा रहा हूं, और यह अजीबो-गरीब नहीं है। यह ठीक वही है जो कर्म का सिद्धांत है: तुम एक कर्म करो, उसका प्रतिकर्म आ जाएगा। इन्होंने मेरे विरूद्ध शिकायत करने का कर्म किया है। अब प्रतिकर्म पीछे से आएगा।’
और पीछे से प्रतिकर्म हुआ, क्योंकि उन्होनें कहा था कि वे उस गांव में जा रहा है..वे मेरे प्रति अत्यधिक क्रोध में थे, लेकिन जब तुम क्रोध में हो जब तुम क्रोध में ही हो...ओर वे पूरी तरह से, वास्तविक रूप से क्रोध से आविष्ट थे। इसलिए वे अपनी पत्नी से, बच्चों से क्रोधित थे....मैंने सभी कुछ देखा, और किसी तरह से उन्होंने अपनी सारा सामान एकत्रित किया और घोड़ा गाड़ी में बैठ कर चल गए।
जैसे ही वे गए, मैंने उनकी पत्नी से कहा: ‘क्या आपको समझ में आया कि वे कहां जा रहे है’? वे सदा के लिए जा रहे है—और आपको नहीं पता। वह यह बात मेरे पिता से कहने आए थे। कि वे सदा के लिए जा रहे है। और वे दुबारा कभी लोट कर नहीं आएंगे।
उनकी पत्नी ने अचानक रोना और चिल्लाना शुरू दिया, ‘हाय, उनको रोको कोई?’
दूसरे लोग दौड़े-दौड़े गए और उन्होंने उनकी घोड़ा गाड़ी रोक ली।
उन्होंने कहा: ‘आप मुझे क्यों रोक रहे हो। मुझको ट्रेन पकड़नी है।’
उन लोगों ने का: ‘आज नहीं। आपकी पत्नी रो रही है और अपनी छाती पीट रही है, वे मर जाएगी।’
उन्होंने कहा: ‘लेकिन अजीब बात है, क्यों वे खुद को पीटेगी और क्यों वे रोएंगी?’
वह व्यक्ति जो घोड़ा गाड़ी चला रहा था, बोला, मैं आपको नहीं ले जाऊँगा, यदि मामला ऐसा है कि आप अपनी पत्नी को छोड़ कर जा रहे है। तो मैं ऐसा काम कदापि नहीं करूंगा।
उस ब्राह्मण ने कहा: ‘में छोड़ कर नहीं जा रहा हूं, में वापस लौट कर आऊँगा, लेकिन अभी मेरे पास आप लोगों को बताने के लिए समय नहीं है। ट्रेन छूट जाएगी, स्टेशन मेरे घर से दो मील दूर है।’
लेकिन उनकी बात कोई नहीं सुन रहा था। और मैं लोगों को भड़का रहा था: ‘उनको रोक लो, वरना उनकी पत्नी, उनके बच्चे....उनकी देखभाल आप लोगों को करना पड़ेगी—उनको खाना कोन देगा?’
वे लोग उनको उनके सामान सहित वापस ले आए। और निस्संदेह वे क्रोध में थे। उन्होंने अपनी बैग पत्नी के ऊपर फेंक दिया। उनकी पत्नी ने पूछा: ‘हमने किया ही क्या है? आप क्यों इस तरह से घर छोड़ कर भागे जा रहे थे... ?’और मैं बाहर भीड़ में खड़ा था।
उन्होंने कहा: ‘किसी ने कुछ नहीं किया है। इस लड़के ने मुझसे कहा था कि प्रतिकर्म ’होगा। कारण यह है कि ती दिन पहले मंदिर में मैं कर्म और प्रतिकर्म दर्शनशास्त्र सिखा रहा था। और यह लड़का उपस्थित था। अब यह मुझको सिखा रहा है।
उन्होंने मुझसे कहा: ‘मुझको क्षमा कर दो और मैं इस कर्म और प्रतिकर्म के बारे में एक भी शब्द नहीं कहूंगा। और यदि तुम चाहो तो किसी की भी चोटी काट सकते हो, तुम मेरा सर काट सकते हो। और मैं शिकायत नहीं करूंगा, क्योंकि में इस शृंखला को पूरी तरह से रोक देना चाहता हूं। इसके चक्कर में मेरी ट्रेन छूट गई है।’
फिर तो प्रत्येक व्यक्ति पूछने लगा, मामला क्या है? हम कुछ समझे नहीं? आपकी चोटी किसने काट ली है।‘
मैंने कहा इस शृंखला को रोक पाना असंभव है। ये लोग पूछ रहे है, किसकी चोटी ? उसे किसने काट लिया है? चोटी कहां है? जरा इनकी पगड़ी के भीतर उसके सर पर देखिए। और एक व्यक्ति जो नगर में पहलवान समझा जाता था आगे बढा और उसने उसकी पगड़ी उतार ली और चोटी निकल कर नीचे गीर पड़ी।
मेरे पिता भी वहां पर थे, और उन्होंने यह सभी कुछ देखा। जब हम लोग घर लौट रहे थे उन्होंने मुझसे कहा, ‘मैं तुम्हें पुरस्कृत करूंगा परंतु हमारे समझौते का लाभ मत उठाओ।’
मैंने कहा: ‘मैं लाभ नहीं उठा रहा हूं। आपसे और मेरे बीच का समझौता इस प्रकार है भी नहीं। मेरा समझौता यह है कि आपसे सदा सत्य कहूंगा और इसके लिए आप मुझको पुरस्कृत करेंगे।’ और उन्होंने इस समझौते का सदैव पालन किया। मैंने जा कुछ भी कर डाला हो, भले ही उनके अनुसार कितना भी गलत हो, उन्होंने लगातार मुझको पुरस्कार दिया। लेकिन उन जैसा पिता पाना कठिन है। पिता को तुम पर अपने खयाल जबरदस्ती थोपने पड़ते है।
मेरे पिता की सारे नगर में निंदा की जाती थी। आप बच्चे को बिगाड़ दे रहे हो।
उन्होंने कहा: ‘यदि बिगड़ जाना ही उसकी नियति है तो बिगड़ जाने दे उसको। मैं उसकी नियति में हस्तक्षेप करने का उत्तरदायी तो न होऊंगा; वह कभी न कह पाएगा कि मेरे पिता ने मुझे बिगाड़ दिया है। और यदि वह बिगड़ जाने में प्रसन्न है तो बिगाड़े जाने में ही क्या गलत है। उसके जीवन में जहां भी जो कुछ घटित होता है मैं हस्तक्षेप करन नहीं चाहता। मेरे पिता ने मेरे जीवन में हस्तक्षेप किया था और में जानता हूं कि यदि उन्होंने ऐसा न किया होता तो मैं एक भिन्न व्यक्ति बन गया होता।’
और मुझे पता है कि वह सही है, कि प्रत्येक पिता बच्चे को एक पांखड़ी के रूप में बदल देता है। क्योंकि में पांखड़ी के रूप में बदला जा चुका हूं। जब में हंसना चाहता हूं, तो में गंभीर बना रहता हूं। तब में गंभीर होना चाहता हूं, तब मुझको हंसना पड़ता है। कम से कम एक व्यक्ति तो उस समय ले जम मैं हंसना चाहता हूं। और उस समय जब वह गंभीर होना चाहता है उसे गंभीर हो जाने दो।
उनहोंने कहा: मेरे ग्यारह बच्चें है, लेकिन मैं स्वयं को दस बच्चों बाला ही समझता हूं। और उन्होंने सदा सही सोचा कि उनके केवल दस बच्चे हैं। मुझको उन्होंने कभी अपनी बच्चों में नहीं गिना, क्योंकि वे बोले, मैंने उसको स्वयं वही होने की पूर्ण स्वतंत्रता दे रखी है। वह क्यों मेरी कोई प्रतिमा ढोता फिरे?
---ओशो
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