मैं निर्वासित व्यक्ति था
जब मैं अपनी प्राथमिक पाठशाला में पढ़ा करता था। उस समय मेरा घर विद्यालय से बहुत निकट था। इसलिए जब विद्यालय के आरंभ होने की घंटी बजती, मेरे लिए वह स्नानागार मैं जाने का समय होता। मेरा पूरा परिवार दरवाजा खटखटा रहा होता, और मैं खामोश रहता—किसी बात का उत्तर भी न देता।
यह प्रतिदिन का क्रम था कि प्रधानाध्यापक मुझे ले जाने आया करते थे, क्योंकि मैं अपनी स्वयं की इच्छा से नहीं जाता था। और वे आ जाते, और पिता कहते, करें क्या? आप इस घंटी को बजाना बंद कर दीजिए, क्योंकि जिस क्षण इसे बजाते है वह तुरंत स्नानागार में चला जाता है। और दरवाजा बंद कर लेता है। और फिर निरर्थक है यह कि आप कुछ कर सकें, क्योंकि आप जो कुछ भी करते रहो, वह उत्तर नहीं देगा।
अंतत: विद्यालय ने घंटी न बजाने का निर्णय ले लिया। और प्रधानाध्यापक आया करते थे—पहले मुझको पकड़ लिया जाता था और तब अन्य बच्चों के लिए घंटी बजा दी जाती थी।
प्रत्येक बच्चे के स्वयं उसके हित के लिए कई बातों के लिए बाध्य करना पड़ता है। मैं उन प्रधानाध्यापक के प्रति आभारी हूं। वे वास्तव में दयालु व्यक्ति थे—बस एक छात्र के लिए उन्होंने विद्यालय की पूरी दिनचर्या ही बदल डाली।
मैं अपने माता-पिता का आभारी हुं मेरे प्रति उनके धैर्य के लिए। सारा परिवार स्नानागार
के बाहर खड़ा हो जाता और मुझको फुसलाता था। तुम बाहर आ जाओ। यदि तुम स्कूल नहीं जाना चाहते हो तो मत जाओ, वहां जाने कि तुम्हें कोई आवश्यकता नहीं है। हम प्रधानाध्यापक से तुमको आज की छुटटी देने के लिए कह देंगे। लेकिन मैं खामोश रहा करता।
और मैं आभारी हूं, क्योंकि मौन के उन क्षणों ने मुझे बहुत कुछ दिया है। और प्रत्येक व्यक्ति का चारों और चीखना-चिल्लाना और दौड़ना भागना—उस आपाधापी के बीच में मैं केंद्र हुआ करता था। वह फ़व्वारे के नीचे बैठ कर उसका आनंद लेता हुआ।
उस गांव में जहां मेरा जन्म हुआ था, कुम्हारों का एक मोहल्ला बसा हुआ था। और भारत में कुम्हार अपने बर्तन गधों पर ढोया करते है। भारत में बोझ ढोने का यही एक कार्य है, जिसके लिए गधों का उपयोग होता है। यह मोहल्ला मेरे घर के बस पड़ोस में ही था। और वहां अनेक सुंदर-सुंदर गधे थे, लेकिन वे गधे सारा दिन चीजों को ढोने में व्यस्त रहा करते थे। केवल रात में ही वे खाली होते थे। और मैं भी खाली होता था, इसलिए मैं एक गधे को पकड़ लेता था।
भारत में कोई भी गधे पर सवारी नहीं करता,क्योंकि गधे को अस्पर्शित, अछूत समझा जाता है। गधे की सवारी करना....मेरा पूरा परिवार उलझन में पड़ जाता था। क्योंकि पड़ोसी उनको बताया करते थे। हमने आपके पुत्र को गधे पर बैठ कर बाजार की और जाते देखा गया है। जब तक वह नदी पर न जाए और स्नान करके न लौटे उसको घर में मत घुसने देना।
मेरे पिता मुझको समझाने का प्रयास किया करते थे, तुम्हारे लिए हम दूसरी व्यवस्था कर सकते है। और यदि तुम्हें सवारी करने में इतनी रूचि है तो हम तुम्हारे लिए एक घोड़ा खरीद कर ला सकते है।
मैं कहता, मैं घोड़ों में जरा भी उत्सुक नहीं हूं, मेरी रूचि तो गधों में ही है। वे बहुत दार्शनिक प्रकार के जिनके बारे में कोई भविष्यवाणी न की जा सके, ऐसे लोग है। गधा किसी भी स्थान पर रूक सकता है। और आप चाहे जो कर लो, वह ही लेगा भी नहीं। आप अनुमान भी नहीं लगा सकते कि वह क्यों रूक गया है—और इस सामान्य धारणा के विपरीत कि गधे मूर्ख होते है। मेरा अनुभव यह है कि वे बहुत चालाक, चतुर राजनीतिज्ञ होते है।
मेरे पिता ने कहा: क्या तुम गधों पर कोई शोध पत्र लिखना चाहते हो, या क्या मामला है।
मैंने कहा: मैं शोधपत्र लिख सकता हूं, क्योंकि गधों के साथ मेरा अनुभव किसी और की तुलना में अधिक है।
गधे की सवारी करना एक कठिन कार्य है, घोड़ों पर सवारी करना कठिन नहीं है। गधे इतने चालाक होते है कि वे कभी सड़क के बीच में नहीं चलेंगे,वे सदा तुम्हारी टाँग को दीवाल से रगड़ते हुए चला करते है। स्वभावत: ऐसा होने पर तुम कूद कर उनके ऊपर से हट जाओगे।
उनको सड़क के बीच में रख पाना बहुत कठिन था, या तो बाएं या दाएं, लेकिन वह कभी सड़क के मध्य में नहीं चलेंगे। इसलिए मैंने अपने पिता से कहा: गधे दक्षिणपंथी या वामपंथी होते है। वे बुद्ध के अनुयायी मध्यमार्गी नहीं होते।
बुद्ध अपने शिष्यों को सिखाया करते थे: मध्यमार्ग का अनुगमन करो। गधे ही एक मात्र वे लोग है जिनको बुद्ध समझ नहीं पाए। और मैं ऐसा नहीं समझता कि वे मूर्ख लोग है। क्योंकि जब उन पर कोई सवारी नहीं कर रहा होता है तब वे मध्य में चलते है। चालाक होते है वे। और किसी गर्म दिन में तुम उनको वृक्ष के नीचे ठंडक में खड़ा हुआ देख सकते हो।
और गधे की शकल दार्शनिक तुल्य होती है। जैसे कि वह किसी महान मसले पर चिंतन—मनन करने में तल्लीन हों। जरा गधे की शकल पर नजर डालों और तुमको सदैव लगेगा कि वह बहुत कुछ सोच रहा है।
अंतत: मेरे परिवार ने निर्णय लिया कि मुझको रसोई घर में प्रवेश नही दिया जाना चाहिए—क्योंकि हमें ठीक से नहीं पता कि तुम गधे की सवारी कर रहे थे या नहीं। इसलिए मैं सदैव रसोई घर के बाहर बैठा रहता था। मुझे रसोई घर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी, विशेष तौर से मेरी दादी की अनुमति नहीं थी....मैं निर्वासित व्यक्ति था।
--ओशो
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