रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
मैं मधुशाला हूं—सातवां प्रवचन
दिनांक ५ अप्रैल १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:
1—जार्ज गुरजिएफ अपने शिशयों का अंतरतम जाने के लिए उन्हें
भरपूर शराब पिलाया करता था। और जब वे मदहोश हो जाते थे तो उनकी बातों को ध्यान से
सुनता था। आप भी ऐसा क्यों नहीं करते हैं?
2—एकटक आपकी ओर देखते हुए, अपलक आपके रूप को निहारते
हुए, जब आपके मुख से झरते हुए पुशपों को आंचल में भरती हूं,
तब एक प्रकार का नशा। जब नशे से बोझिल होती बंद आंखों में आपकी मधुर
वाणी के स्वर कानों में गुंजित होते हैं तो एक प्रकार का नशा! आप जो रस पिला रहे
हैं, उसको क्या नाम दूं?
3—आप क्या कर रहे हैं? क्या मुझे पागल बनाए दे रहे
हैं? अकारण हंसती हूं, अकारण रोती हूं।
हंसने में भी सजा है, रोने में भी सजा है। क्या कुक्कू ही
बना कर छोड़ेंगे?
4—इक्कीस मार्च उन्नीस सौ अस्सी को शाम करीब आठ बजे, बंबई में
ही था। ध्यान के समय शरीर गिर पड़ा, चश्मा और माला टूट गए। और
जब होश आया तो नौ बज रहे थे। इस बीच क्या हुआ, कैसे हुआ,
कुछ पता नहीं। प्रभु, मेरे मार्ग-दर्शन के लिए
कुछ कहने की अनुकंपा करें!
5—आपको लोग कब समझेंगे? आप गीत देते हैं और लोग
गालियां लौटाते हैं!
6—आप संन्यास में हो रहे दीक्षित व्यक्तियों को बस एक नजर देख
कर उनका कैसे चुन लेते हैं?
7—आपका मंत्र-शक्ति के संबंध में क्या कहना है?
8—आप मरे हुओं को इतना क्यों मारते हैं? आप क्या
मोरारजी भाई, जग्गू भैया और चरणसिंह में फिर प्राण फूंकने का
चमत्तकार मरना चाहते हैं, जैसे जीसस ने मुरदों को फिर से
जिला दिया था?