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शुक्रवार, 30 जून 2017

राम नाम जान्यो नहीं-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-01



राम नाम जान्यो नहीं-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

भीतर के राम से पहचान-प्रवचन पहला

प्रश्न-सार

1—आपने आज प्रारंभ होने वाली प्रवचनमाला को नाम दिया है: रामनाम जान्यो नहीं।
क्या सच ही मृत्यु सिर्फ उनके लिए है जो राम को नहीं जानते हैं? इस राम को कैसे जाना जाता है? और पूजा क्या है?

2—आपको पांच वर्ष से पढ़ता-सुनता हूं और शिविर में भी भाग लेता हूं, लेकिन संन्यास नहीं ले पाया। मैं विचित्तरसिंह खानदान से हूं, लेकिन बहुत ही डरपोक हूं। मेरी समझ में कुछ नहीं आता। कृपा करके मार्ग-दर्शन करें।

गुरुवार, 29 जून 2017

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन--12



रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

प्रार्थना की गूंज—बारहवां प्रवचन
दिनांक १० अप्रैल १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:

1—क्या लिखूं, कुछ समझ में नहीं आता। बस प्रणाम उठता है। कैसे करूं; करना भी नहीं आता! इतना संवारा आपने, आप ही आप रह गए हैं। अहंकार आपसे ही गलेगा। गलाएं और इस पीड़ा से छुड़ाएं, यही मेरी प्रार्थना है। मेरी प्रार्थना गूंजती है, आगे भी गूंजेगी--क्या ऐसी आशा रख सकता हूं।

1—तुसी सानूं परमात्मा दे दरसन करा देओ। तुहाडी बड़ी मेहरबानी होगी!

3—मेरे पतिदेव ऐसे तो बस देवता ही हैं, बस एक ही खराब लत है कि शराब पीते हैं। उनसे शराब कैसे छुड़वाऊं

4—आपने मा शीला को अपनी बारटेंडर, मधुबाला कहा है, इसका क्या अर्थ?

5—कई वर्षों से देख रहा हूं कि जो माला मा शीला अपने गले में लटकाए है, उसके लाकेट में आप उलटे हैं। समझ में नहीं आता कि शीला उलटी है या उसने आपको उलटा रखा है? इस उलटे-सीधे को जरा स्पशट करें। क्योंकि आपके चारों ओर जो चल रहा है, उसमें क्या सीधा है और क्या उलटा, जब तक आप ही स्पशट न करें, समझना जरा कठिन है!

बुधवार, 28 जून 2017

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-11



रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

समाधि के फूलग्यारहवां प्रवचन
दिनांक ९ अप्रैल; श्री रजनीश आश्रम, पूना।
प्रश्नसार:

1—इसका रोना नहीं कि तुमने क्यों किया दिल बरबाद,
इसका गम है कि बहुत देर में बरबाद किया।
मुझको तो नहीं होश तुमको तो खबर हो शायद,
लोग कहते हैं कि तुमने मुझे बरबाद किया।।

2—जीवन में तो कुछ मिला नहीं और अब मृत्यु द्वार पर खड़ी है। क्या मृत्यु में कुछ मिलेगा?

3—क्या परमात्मा तक पहुंचने के लिए दर्शन-शास्त्र पर्याप्त नहीं है?

4—मैं अपनी पत्नी का भरोसा नहीं कर पाता हूं। वह मेरी न सुनती है, न मानती है। उसके चरित्र पर भी मुझे संदेह है। इससे चित्त उद्विग्न रहता है। क्या करूं?

सोमवार, 26 जून 2017

रहिमन धागा प्रेम का-द्रप्रश्नोत्तर)-प्रवचन-10



रहिमन धागा प्रेम का-द्रप्रश्नोत्तर)-ओशो

कस्तूरी कुंडल बसै—दसवां प्रवचन
दिनांक ८ अप्रैल, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:

1—मैं कौन हूं, कहां से आया हूं और क्या मेरी नियति है?

2—आदर और श्रद्धा में क्या फर्क है?

3—मैं राजनीति में हूं। क्या आप मुझे भी बदलेंगे नहीं? क्या मुझ पर कृपा न करेंगे?

4—मोहम्मद ने चार शादियों की आज्ञा दी थी। आप कितनी शादियों की आज्ञा देंगे?

रविवार, 25 जून 2017

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-09



रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

अज्ञात का वरण करोनौवां प्रवचन
दिनांक ७ अप्रैल, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:

1—संन्यास का मार्ग अपरिचित है और भयभीत हूं। क्या करूं?

2—आप कहते हैं, अनुभव से सीखो। लेकिन हम सोए-सोए बेहोश आदमियों के अनुभव का कितना मूल्य! क्या झूठे आश्वासन दे रहे हैं? हम तो ऐसे गधे हैं जो बार-बार उसी गङ्ढे में गिरते चले जाते हैं। कृपा करके कुछ सीधा मार्ग-दर्शन दें!

शनिवार, 24 जून 2017

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-08



रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

स्वानुभव ही मुक्ति का द्वार है—आठवां प्रवचन
दिनांक ६ अप्रैल; श्री रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:

1—आप अतीत-विरोधी हैं। क्या इससे युवकों में अराजकता पैदा होने का डर नहीं है?

2—रहिमन बिआह व्याधि है, सकहु तो लेहु बचाय।
पांयन बेड़ी परत है, ढोल बजाया-बजाय।।
रहीम के इस दोहे से क्या आप सहमत हैं?

शुक्रवार, 23 जून 2017

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-07



रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

मैं मधुशाला हूंसातवां प्रवचन
दिनांक ५ अप्रैल १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:

1—जार्ज गुरजिएफ अपने शिशयों का अंतरतम जाने के लिए उन्हें भरपूर शराब पिलाया करता था। और जब वे मदहोश हो जाते थे तो उनकी बातों को ध्यान से सुनता था। आप भी ऐसा क्यों नहीं करते हैं?

2—एकटक आपकी ओर देखते हुए, अपलक आपके रूप को निहारते हुए, जब आपके मुख से झरते हुए पुशपों को आंचल में भरती हूं, तब एक प्रकार का नशा। जब नशे से बोझिल होती बंद आंखों में आपकी मधुर वाणी के स्वर कानों में गुंजित होते हैं तो एक प्रकार का नशा! आप जो रस पिला रहे हैं, उसको क्या नाम दूं?

3—आप क्या कर रहे हैं? क्या मुझे पागल बनाए दे रहे हैं? अकारण हंसती हूं, अकारण रोती हूं। हंसने में भी सजा है, रोने में भी सजा है। क्या कुक्कू ही बना कर छोड़ेंगे?

4—इक्कीस मार्च उन्नीस सौ अस्सी को शाम करीब आठ बजे, बंबई में ही था। ध्यान के समय शरीर गिर पड़ा, चश्मा और माला टूट गए। और जब होश आया तो नौ बज रहे थे। इस बीच क्या हुआ, कैसे हुआ, कुछ पता नहीं। प्रभु, मेरे मार्ग-दर्शन के लिए कुछ कहने की अनुकंपा करें!

5—आपको लोग कब समझेंगे? आप गीत देते हैं और लोग गालियां लौटाते हैं!

6—आप संन्यास में हो रहे दीक्षित व्यक्तियों को बस एक नजर देख कर उनका कैसे चुन लेते हैं?

7—आपका मंत्र-शक्ति के संबंध में क्या कहना है?

8—आप मरे हुओं को इतना क्यों मारते हैं? आप क्या मोरारजी भाई, जग्गू भैया और चरणसिंह में फिर प्राण फूंकने का चमत्तकार मरना चाहते हैं, जैसे जीसस ने मुरदों को फिर से जिला दिया था?

गुरुवार, 22 जून 2017

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-06



रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
प्रेम का मार्ग अनूठाछठवां प्रवचन
दिनांक १ अप्रैल, १९८०; श्री रजनीश आश्रम पूना,
प्रश्नसार:

ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी, मेरा दरद न जाने कोय।
न मैं जानूं आरती-वंदन, न पूजा की रीत,
लिए री मैंने दो नयनों के दीपक लिए संजोय।
ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी, मेरा दरद न जाने कोय!
आंसुओं के सिवाय कुछ नहीं है। मैं आपको क्या चढ़ाऊं?

आपका युवकों के लिए क्या संदेश है?

शिशय और अनुयायी में क्या फर्क है?

क्या काव्य में भी उतना ही सत्तय नहीं होता है जितना कि बुद्धपुरुषों के वचनों में?

आपने कहा था कि पूंछ भी जाएगी। आपके चरणों की कृपा से वह भी गई। संतत्तव कब घटेगा, मेरे मालिक? अब देरी क्यों?

अप्रैल फूल के इस महान धार्मिक दिवस पर कुछ कहें।

बुधवार, 21 जून 2017

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-05



रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

प्रार्थना और प्रतीक्षापांचवां प्रवचन
दिनांक ३१ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:

1—और कितनी प्रतीक्षा करूं? और कितनी देर है? प्रभु-मिलन के लिए आतुर हूं और अब और विरह नहीं सहा जाता है!

2—किन अज्ञात हाथों से पैरों में घुंघरू बांध दिए हैं कि अब मैं छम-छम नचंदी फिरां!

3—आपने कहा: कमा लिटिला नियर, सिप्पा कोल्डा बियर। मैं आपसे कहता हूं: आई एम हियर, व्हेयर इज़ दि बियर?

4—बंधी परंपराओं के विरुद्ध आपके विचार बहुत अच्छे व प्रेरणादायी लगते हैं, किंतु माला और भगवे कपड़े में बांधने के आपके प्रयास में हमें परंपरा की बू मालूम पड़ती है। हमें लगता है भगवान का संबोधन स्वीकार करने और माला तथा भगवे रंग के कपड़ों को देने के पीछे आपकी एक पीर-पैगंबर या अवतारी पुरुष होने की वासना छिपी हुई है। यह मेरा नितांत भ्रम भी हो सकता है। कृपा करके इसका निवारण करें।

5—आप संदेह की निवृत्ति के लिए हमें जूझने का आवाहन करते हैं। क्या आपका ऐसा आवाहन सभा-भवन में मात्र आपकी औपचारिक विचार-स्वतंत्रता की प्रीति और उदारता का परिचायक नहीं है, जब कि न तो हमारे प्रश्नों का जवाब ही मिलता है और न आपसे मिल पाने की छूट और सुविधा ही? यदि कल आप इस प्रश्न का जवाब दे देंगे, तो में अपना पूना आना सफल समझूंगा। यह प्रश्न ही पूना लाने का विशेष हेतु था--
मुक्त यौन संबंध के अंतर्गत क्या पिता-पुत्री और मां-बेटे के बीच भी यौन-संबंध हो सकता है? यदि नहीं, तो क्यों नहीं?

मंगलवार, 20 जून 2017

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-04



रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

श्रद्धा की अनिवार्य सीढ़ी: संदेहचौथा प्रवचन
दिनांक ३० मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:

1—क सिवाय ध्यान के आपकी हर बात को मैंने सहजता से स्वीकार नहीं किया--संन्यास भी, कपड़े भी और माला भी। हर बात पर मैंने विरोध किया, विद्रोह किया और अवज्ञा भी। बार-बार भागने को चाहा, और हर बार और ज्यादा खिंचता चला आया। फिर भी मुझ अपात्र को आपने स्वीकार किया। आज आपके प्रेम में डूबा जा रहा हूं। भीतर न कोई विरोध है, न विद्रोह; सब शांत और मौन है। फिर भी एक अपराध-भाव सताता है। प्रभु, आप जीते, मैं हारा। मुझे माफ कर दें। आपकी असीम अनुकंपा के लिए अनुगृहीत हूं। मेरे प्रणाम स्वीकार करें!

2—मैं संन्यास लेने के पहले आश्वस्त होना चाहता हूं कि मुझे निर्वाण पाने में सफलता मिलेगी या नहीं?

3—कल आपने एक कालेज के युवकों द्वारा आयोजित एक नाटक में बताया कि सीता मैया सिगरेट पी रही थीं। क्या आपको सीता मैया को सिगरेट पीते देख कर धक्का नहीं लगा?

4—क्या मारवाड़ी सच ही ऐसे गजब के लोग हैं?

सोमवार, 19 जून 2017

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-03



रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

रसो वै सः—तीसरा प्रवचन
दिनांक 29 मार्च, 1980; श्री रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:

1—ईश्वर को खोजना है। कहां खोजें?

2—आप कहते हैं, संन्यासी को सृजनात्मक होना चाहिए। सो मैंने काव्य-सृजन शुरू कर दिया है। मगर कोई मेरी कविताएं सुनने को राजी नहीं है। आपका आशीष चाहिए।

3—आपकी "नारी के समान अधिकार' की बातें बहुत अच्छी लगीं। इसके अतिरिक्त जो आप इच्छाओं को न दबाने और उनसे न लड़ने की बात कहते हैं, वह भी हृदय को स्पर्श करती है। किन्तु इसके साथ-साथ जब आद्य शंकराचार्य, पतंजलि और तुलसी वगैरह की बातें याद आ जाती हैं तो द्वंद्व खड़ा होता है। शंकराचार्य ने नारी की निंदा किस दृशिट से की है? अद्वय ब्रह्म का अनुभवी क्या ऐसी निंदा कर सकता है? क्या वे भी केवल एक विद्वान मात्र थे, अनुभवी नहीं? पतंजलि समाधि के लिए यम-नियम पर विशेष जोर देते हैं, आप नहीं। इसका क्या कारण हैं?

4—जब भी मैं भारतीयों को आश्रम दिखाने ले जाता हूं तो विदेशी स्त्रियों को देख कर, संन्यासिनियों को देख कर वे एकदम ठगे खड़े रह जाते हैं, एकदम उनके मुंह से लार टपकने लगती है। ऐसा क्यों?

5—क्या सच ही मारवाड़ियों को शैतान भी धोखा नहीं दे सकता?

रविवार, 18 जून 2017

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-02




रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

ध्यान ही मार्ग है-(दूसरा प्रवचन)
दिनांक 28 मार्च; 1980; श्री रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:
1—यह संसार माया है। यहां सब झूठ है। मुझे इसमें डूबने से बचाएं!

2—मैं अज्ञान में बच्चे पैदा करता चला गया। दस बच्चे हैं मेरे, अब क्या करूं?

3—वह पांचवां क क्या है? बहुत सोचा लेकिन नहीं सोच पाया। किसी और से पूछूं, हो सकता था कोई बता देता। लेकिन फिर सोचा आप से ही क्यों न पूछूं?

शनिवार, 17 जून 2017

रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-01



रहिमन धागा प्रेम का-(प्रश्नोत्तर)

ओशो
आंसू: चैतन्य के फूल—(पहला प्रवचन)
दिनांक २७ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना

प्रशनसार:
1--आपकी पहली मुलाकात आंसुओं से हुई थी। इतने साल बीत गए हैं, आंसू अभी मिटते नहीं, मिटने की संभावना लगती नहीं। चाहती हूं इसी तरह मिट जाऊं!
जीवन व्यर्थ लगता है। मैं क्या करूं?
2--आप हमेशा "लिवा लिटिल हॉट, सिप्पा गोल्ड स्पॉट' कहते हैं। आप इसके स्थान पर कभी ऐसा क्यों नहीं कहते--"लिव ए लिटिल हॉट, सिप ए कोल्ड बियर'? आखिर बियर में बहुत प्रोटीन रहता है।
3--कल एक सरदार जी आश्रम देखने आए। उन्होंने कहा: भगवान जी दे दर्शन सानूं अभी करा दो। हमने उत्तर दिया कि आपके दर्शन सुबह प्रवचन में ही होंगे, तो वे मानें ही न। वे बोले: दर्शन तो सानूं अभी ही करा दो। असी ऐनी दूर अमृतसर तो आए हां। साडी गड्डी अभी छूटण वाली है। वे मानें ही न। फिर मैंने अचानक घड़ी देखी, तो देखा बारह बजे हैं।
क्या बारह बजे का कोई विशेष रहस्य है?
4--क्या कारण है कि सभी संत बाल और दाढ़ी बढ़ाए रहते हैं? अगर वे लोग बाल और दाढ़ी न बढ़ाएं तो क्या संत नहीं कहाएंगे?
5--सती सक्कू बाई, सती अनसूया, सती सावित्री जैसी महान पतिव्रता साध्वियों की महिमा का शास्त्रों में बहुत उल्लेख है। आपकी दृशिट में पतिव्रता का क्या अर्थ है?

शुक्रवार, 16 जून 2017

प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-15



प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

प्रवचन—बारहवां  
दिनांक 10 अप्रेल सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।

प्रश्न-सार

1—परमात्मा मुझे कहीं भी दिखाई नहीं पड़ता है। मैं क्या करूं?
2--मैं संन्यास के लिए तैयार हूं। लेकिन यह कैसे जानूं कि परमात्मा ने मुझे पुकारा ही है?
यह मेरा भ्रम भी तो हो सकता है!
3—कल आपने प्रवचन में नसरुद्दीन की कहानी कही--कड़ाही के बच्चे होने वाली।
मैंने संजय को तपेली दी थी। तपेली मर गई, और बाद में छोटी-मोटी तपेलियां भी मर गईं। और अब फिर दिख रहा है कि कड़ाहियों के बच्चे हो रहे हैं।
दो वर्ष पहले आपसे प्रश्न पूछा था, काफी दुख की छाया में था, आपने सूफी कहानी का संदेश दिया था--यह भी गुजर जाएगा। बिलकुल वैसा ही हुआ है।
आपके अमूल्य सूत्र--वर्तमान में होने का और होश को जीवन में उतारने का प्रयत्न करता रहता हूं। प्रश्न कुछ भी नहीं है, फिर भी आपसे कुछ सुनने की प्यास जरूर है!
4—मैं तो प्रकाश से अपरिचित हूं, बस अंधेरे को ही जानता हूं। फिर प्रकाश के नाम पर जो पाखंडों का जाल फैला है, उससे भी डरता हूं। मुझे मार्ग दें, दृष्टि दें, प्रकाश दें!
5—मैं बच्चा था तो एक तरह की इच्छाएं मन में थीं। जवान हुआ तो और ही तरह की इच्छाएं जन्मीं। अब बूढ़ा हो गया हूं, तो ईश्वर को पाने की इच्छा जन्मी है। कहीं यह भी तो बस समय का ही एक खेल नहीं है? इस इच्छा में और अन्य इच्छाओं में क्या भेद है?

प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)--प्रवचन--14



प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

प्रवचन—चौदहवां  
दिनांक 09 अप्रेल सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।

प्रश्न-सार:

1—क्या मेरे सूखे हृदय में भी उस परम प्यारे की अभीप्सा का जन्म होगा?
2—आप वर्षों से बोल रहे हैं। फिर भी आप जो कहते हैं वह सदा नया लगता है।
इसका राज क्या है?
3—मैं संसार को रोशनी दिखाना चाहता हूं। मैं इस महत कार्य को प्रारंभ कैसे करूं?
सज्दों से अब तिश्नगी नहीं बुझती
4—जज्ब हो जाऊं रजनीश तेरे आस्ताने में।

प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)--प्रवचन--13



प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

प्रवचन—तैरहवां  
दिनांक 08 अप्रेल सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।

प्रश्न-सार:

1—यह भाव निरंतर उभर आता है कि हो न हो भगवान बुद्ध ने आप ही के रूप में पुनरावतार लिया है। आप बुद्धक्षेत्र निर्मित कर रहे हैं।
या कि आप लाओत्सु हैं, मैत्रेय भी नहीं?
2—मैं सुख को स्वीकार नहीं कर पाता हूं। ऐसा लगता है कि दुख मुझे भाता है। फिर भी चाहता हूं कि सुख मिले। सुख मिलता है तो लगता है कि सपना है। मेरी उलझन सुलझाएं!
3—मैं एक युवती के प्रेम में हूं। मैं आपके भी प्रेम में हूं। अब मैं क्या करूं? सब छोड़-छाड़ कर संन्यास में डूबूं? या फिर आप जैसा कहें! मेरी उम्र अभी केवल छब्बीस वर्ष ही है।

शुक्रवार, 9 जून 2017

प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-12



प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो

प्रवचन—बारहवां  
दिनांक 07 अप्रेल सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।

प्रश्न-सार:

1—संन्यास का जन्म इस देश में हुआ, उसे गौरीशंकर जैसी गरिमा मिली,
पर आज उसका सम्मान बस ऊपरी रह गया है।
संन्यास और संन्यासी की अर्थवत्ता क्यों कर खो गई, कृपा करके समझाएं!

2—मैं क्या करूं? मेरो मन बड़ो हरामी!

प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-11



प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
प्रवचन—ग्यारहवां  
दिनांक 06 अप्रेल सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।

प्रश्न-सार

1—तड़प ये दिन-रात की,
कसक ये बिन बात की,
भला ये रोग है कैसा?
सजन, अब तो बता दे!
अब तो बता दे, अब तो बता दे!
तड़प ये दिन-रात की...
2—प्रेम पाप है?
3—आपका जीवन-दर्शन इतना सरल, सहज और सत्य है, फिर भी भीड़ आपको गालियां क्यों दिए जाती है?
पहला प्रश्न:
तड़प ये दिन-रात की,
कसक ये बिन बात की,
भला ये रोग है कैसा?
सजन, अब तो बता दे!
अब तो बता दे, अब तो बता दे!
तड़प ये दिन-रात की...

पोनी-(एक कुत्ते की आत्म कथा)-अध्याय-14



(अध्‍याय—चौदहवां)—मेरा जंगल में खो जाना

 धीरे—धीरे मेरा स्‍वास्‍थ ठीक हो रहा था। अब खाना भी हजम होने के साथ—साथ मुझे भूख भी लगने लगी। इसी लिए पापा जी मुझे रोज जंगल में घुमाने के लिए ले जाते थे। पर इतवार या किसी छुटटी के दिन के तो क्‍या कहने थे। जब पूरा परिवार जंगल में जाने की तैयारी करता तो मेरे सब्र का बाध टूट जाता। एक—एक पल मुझे युगों की तरह से लगता। पर मनुष्‍य को हमारी तरह से नहीं जीना उसे तो न जाने कितने काम होते है। ये सब में देखता पर क्‍या करू मुझे खुशी बरदाश्त होती ही नहीं थी।
मेरे साथ बच्‍चे भी जूते कपड़े पहन कर तैयार हो जाते। पर मम्‍मी और मणि दीदी तो कछुवे की चाल से तैयार होती। मुझे लगता क्‍या जरूरत है इतना सब करने के लिए। कहीं खाना बनाया जाता। कहीं गंदे कपड़े साबुन एक बेग में भरे जाते। वरूण भैया अपना खेलने का सामन साथ ले कर चलते। कई बार तो पापा जी दूकान से भी आ जाते पर हमारी तैयारी पूरी नहीं होती। आखिर में रो—रो कर थक जाता। मेरे को दूध पीने के लिए कहा जाता पर मारे खुशी के दूध अंदर जाता ही नहीं था। लगता अभी पंख लग जाये और हम जंगल में पहुंच जाये।