शायद सितम्बर माह का ही
होगा, बरसात खत्म हो गई थी। शरद ऋतु आने में अभी कुछ देरी थी। दिन भर धूप तेज रहती थी।
परंतु सूर्य के अस्त होते ही एक मधुर सीतलता छा जाती थी। भारतीय तिथि में इसे कार्तिक माह कहा जाता था। यह एक प्रकार
का सुहाना बसंत ही है। जो गर्मी के बाद शरत ऋतु की और अग्रसर हो रहा होता था। इन्हीं
दिनों हिंदुओं की राम लीला शुरू होती थी। और बच्चों के स्कूल की छुट्टी हो गई
थी। इसी सब से यह तिथि मुझे आज भी याद है। क्योंकि पार्क में बहुत बड़ी सी स्टेज
बना कर रात—रात भर राम लीला खेली जाती थी। जब में पार्क में सुबह जाता तो वहां पर
हजारों लोगों के पद चाप की खुशबु महसूस होती थी। तभी मैं समझ जाता था, रात को यहां पर हजूम—हजूम लोग इक्कट्ठे हुए होंगे।
परंतु मैं वहां रात को कभी नहीं जा सकता था।
क्योंकि लोग नाहक कुत्तों
को देख कर इतना डर जाते है या घिन्न करते है। जबकि हम तो प्रत्येक मनुष्य का
सम्मान करते है। हमारे आँगन में जो भेल पत्र और अमरूद का वृक्ष था उस पर श्याम
के समय चिड़ियों के झुंड का झुंड अठखेलियाँ करते
थे।