देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—ओशो
इक्कीसवां प्रवचन,
गांधीवादी कहां हैं?
मेरे प्रिय आत्मन्!
मैं
निरंतर सोचता रहा,
व्हेअर आर द गांधीयंस? गांधीवादी कहां हैं?
लेकिन मेरे भीतर सिवाय एक उत्तर के और कुछ शब्द नहीं उठे। मेरे भीतर
एक ही उत्तर उठता रहा--वहीं हैं, जहां हो सकते थे। यही सोचते
हुए रात मैं सो गया और सोने में मैंने एक सपना देखा। उसी से मैं अपनी बात शुरू
करना चाहता हूं। शायद यही सोचते हुए सोया था कि गांधीवादी कहां हैं, इसलिए वह सपना निर्मित हुआ होगा।
मैंने
देखा कि राजधानी के एक बहुत बड़े बगीचे में जहां गांधीजी की प्रतिमा खड़ी है, मैं उस
पत्थर की प्रतिमा के नीचे पड़ी बेंच पर बैठा हूं। दोपहर है और बगीचे में सन्नाटा है,
कोई भी नहीं है। मैं सोचने लगा कि गांधीजी से ही क्यों न पूछ लिया
जाए कि गांधीवादी कहां हैं? लेकिन इसके पहले कि मैं पूछता,
मैंने देखा कि गांधीजी की प्रतिमा कुछ बड़बड़ा रही है। तो मैं गौर से
सुनने लगा।