भिक्षु गृहस्थों के घर निमंत्रित होने पर भोजनोपरांत दानानुमोदन करते थे। किंतु तीर्थक सुखं होतु आदि कहकर ही चले जाते थे। लोग स्वभावत: भिक्षुओं की प्रशंसा करते और तीर्थको की निंदा करते थे। यह जानकर तीर्थको ने हम लोग मुनि हैं मौन रहते हैं श्रमण गौतम के शिष्य भोजन के समय महाकथा कहते हैं बकवासी हैं ऐसा कहकर प्रतिक्रिया में निंदा शुरू कर दी।
बुद्ध ने अपने भिक्षुओं को सदा कहा है कि जितना लो, उससे ज्यादा लौटा देना। कहीं ऋण इकट्ठा मत करना। इसलिए बुद्ध का भिक्षु जब भोजन भी लेता कहीं तो भोजन के बाद, धन्यवाद कै रूप में, जो उसको मिला है उसकी थोड़ी बात करता था। जो आनंद उसने पाया, जो ध्यान उसे मिला है, जो शील की संपदा उसे मिली है, जो नयी—नयी किरणें और नयी—नयी उमंगों के तूफान उसके