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शनिवार, 31 मार्च 2018

जिन खोजा तिन पाइयां--(प्रवचन--03)

ध्यान है महामृत्यु—(प्रवचन—तीसरा)

(कुंडलिनी—योग साधना शिविर)
नारगोल

 महामृत्यु : द्वार अमृत का:

प्रश्‍न:

एक मित्र पूछ रहे हैं कि ओशो कुंडलिनी जागरण में खतरा है तो कौन सा खतरा है? और यदि खतरा है तो फिर उसे जाग्रत ही क्यों किया जाए?

 तरा तो बहुत है। असल में, जिसे हमने जीवन समझ रखा है, उस पूरे जीवन को ही खोने का खतरा है। जैसे हम हैं, वैसे ही हम कुंडलिनी जाग्रत होने पर न रह जाएंगे; सब कुछ बदलेगा—सब कुछ—हमारे संबंध, हमारी वृत्तियां, हमारा संसार; हमने कल तक जो जाना था वह सब बदलेगा। उस सबके बदलने का ही खतरा है।
लेकिन अगर कोयले को हीरा बनना हो, तो कोयले को कोयला होना तो मिटना ही पड़ता है। खतरा बहुत है। कोयले के लिए खतरा है। अगर हीरा बनेगा तो कोयला मिटेगा तो ही हीरा बनेगा। शायद यह आपको खयाल में न हो कि हीरे और कोयले में जातिगत कोई फर्क नहीं है; कोयला और हीरा एक ही तत्व हैं।

जिन खोजा तिन पाइयां--(प्रवचन--02)

बुंद समानी समुंद में—(प्रवचन—दूसरा)

(कुंडलिनी—योग साधना शिविर)
नारगोल

मेरे प्रिय आत्मन्!

र्जा का विस्तार है जगत और ऊर्जा का सघन हो जाना ही जीवन है। जो हमें पदार्थ की भांति दिखाई पड़ता है, जो पत्थर की भांति भी दिखाई पड़ता है, वह भी ऊर्जा, शक्ति है। जो हमें जीवन की भांति दिखाई पड़ता है, जो विचार की भांति अनुभव होता है, जो चेतना की भांति प्रतीत होता है, वह भी उसी ऊर्जा, उसी शक्ति का रूपांतरण है। सारा जगत—चाहे सागर की लहरें, और चाहे सरू के वृक्ष, और चाहे रेत के कण, और चाहे आकाश के तारे, और चाहे हमारे भीतर जो है वह, वह सब एक ही शक्ति का अनंत—अनंत रूपों में प्रगटन है।

 ऊर्जामय विराट जीवन:

हम कहां शुरू होते हैं और कहां समाप्त होते हैं, कहना मुश्किल है।
हमारा शरीर भी कहां समाप्त होता है, यह भी कहना मुश्किल है। जिस शरीर को हम अपनी सीमा मान लेते हैं, वह भी हमारे शरीर की सीमा नहीं है।

जिन खोजा तिन पाइयां--(प्रवचन--01)

यात्रा कुंडलिनी की (साधना शिविर)—(प्रवचन—पहला)


मेरे प्रिय आत्मन्,

मुझे पता नहीं कि आप किस लिए यहां आए हैं। शायद आपको भी ठीक से पता न हो, क्योंकि हम सारे लोग जिंदगी में इस भांति ही जीते हैं कि हमें यह भी पता नहीं होता कि क्यों जी रहे हैं, यह भी पता नहीं होता कि कहां जा रहे हैं, और यह भी पता नहीं होता कि क्यों जा रहे हैं।

 मूर्च्छा और जागरण:

जिंदगी ही जब बिना पूछे बीत जाती हो तो आश्चर्य नहीं होगा कि आपमें से बहुत लोग बिना पूछे यहां आ गए हों कि क्यों जा रहे हैं। शायद कुछ लोग जानकर आए हों, संभावना बहुत कम है। हम सब ऐसी मूर्च्छा में चलते हैं, ऐसी मूर्च्छा में सुनते हैं, ऐसी मूर्च्छा में देखते हैं कि न तो हमें वह दिखाई पड़ता जो है, न वह सुनाई पड़ता जो कहा जाता है, और न उसका स्पर्श अनुभव हो पाता जो सब ओर से बाहर और भीतर हमें घेरे हुए है।

जिन खोजा तिन पाइयां--ओशो

जिन खोजा तिन पाइयां

ओशो

(कुंडलिनी—योग पर साधना—शिविर, नारगोल में ध्‍यान—प्रयोगों के साथ प्रवचन एवं मुंबई में प्रश्‍नोत्‍तर चर्चाओं सहित उन्‍नीस ओशो—प्रवचनों का अपूर्व संकलन।)

भूमिका:
(मनुष्य का विज्ञान)

सुनता हूं कि मनुष्य का मार्ग खो गया है। यह सत्य है। मनुष्य का मार्ग उसी दिन खो गया, जिस दिन उसने स्वयं को खोजने से भी ज्यादा मूल्यवान किन्हीं और खोजों को मान लिया।
मनुष्य के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण और सार्थक वस्तु मनुष्य के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। उसकी पहली खोज वह स्वयं ही हो सकता है। खुद को जाने बिना उसका सारा जानना अंतत: घातक ही होगा। अज्ञान के हाथों में कोई भी शान सृजनात्मक नहीं हो सकता, और जान के हाथों में अज्ञान भी सृजनात्मक हो जाता है।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-28

हास्य व नृत्य की बात—(अठाईसयवां-प्रवचन)

 प्यारे ओशो,  

यहां पृथ्‍वी पर सबसे बड़ा पाप क्या रहा है? क्या यह उसका कथन नहीं थी जिसने कहा :  'धिक्कार है उनको जो हंसते हैं!'
क्या स्वयं उसने पृथ्वी पर हंसने का कोई कारण नहीं पाया? यदि ऐसा है तो उसने खोज बुरी तरह की। एक बच्चा भी कारण पा सकता है।
उसने — पर्याप्त रूप से प्रेम नहीं किया : अन्यथा उसने हमको भी प्रेम किया होता हसनेवालो को! लेकिन उसने घृणा की और हम पर ताने कसे उसने शाप दिया कि हम बिलखें व दांत
किटकिटाएं
ऐसे समस्त गैर— समझौतावादी मनुष्यों से बचो! वे दीन व रुग्ण प्रकार के हैं भीड़ वाले प्रकार के : वे इस जीवन को दुर्भावना से देखते हैं इस पृथ्वी के प्रति उनके पास कुदृष्टि है। ऐसे समस्त गैर— समझौतावादी मनुष्यों से बचो! उनके पैर बोझिल व हृदय उमसदार हैं — वे नहीं जानते कि नाचना कैसे ऐसे मनुष्यों के लिए पृथ्वी हलकी कैसे हो सकती है!...

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-27

उच्चतर मानव से मुलाकात की बात—(सताईसवां—प्रवचन)  

प्यारे ओशो,  

महीने और बीतते हैं, और जरमुस्त्र के बाल सफेद होते हैं जबकि वह प्रतीक्षा करते हैं उस संकेत की कि यही समय है नीचे उतरकर मनुष्यों तक उनके फिर से जाने का। एक दिन जबकि वह अपनी गुफा के बाहर बैठे हैं जरमुस्त्र के पास वृद्ध पैगंबर आता है जो जरमुस्त्रू को सावधान करता है कि वह उनको उनके चरम पाप के प्रति फुसलाने के लिए आया है — दया खाने का पाप
'उच्चतर मानव' के लिए दया? जरमुस्त्र इससे दहल जाते हैं लेकिन अंतत: राजी होते हैं
उच्चतर मानव की चीख का जवाब देने के लिए उसे खोज निकालने और उसकी मदद करने के लिए

जरयुस्त्र तेजी से आगे बढ़ते हैं और अपने समस्त अभ्यागतों को वहां एकत्र पाते हैं —
राजे— महाराजे सदसद्विवेकी भावना का व्यक्ति जादूगर खा पोप इत्यादि : क्योकि वे ही उच्चतर मानव' हैं।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-26

स्वास्थ्य— लाभ करनेवाला—छब्‍बीसवां-प्रवचन


प्यारे ओशो,  

एक प्रात: अपनी गुफ़ा में अपनी वापसी के थोड़ी देर बाद ही जरमुस्त्र सात दिनों की एक अवधि से गुजरते हैं जब वह मृतवत हैं। जब वह अंतत: अपने—आप में लौटते हैं वह पाते हैं कि वह फलों और मधुरगंधी जड़ी— बूटियों से घिरे हुए हैं जो उनके लिए उनके जानवरों द्वारा लायी गयी हैं। उन्हें जगा हुआ देखकर उनके जानवर जरमुस्त्र से पूछते हैं कि क्या वे अब बाहर दुनिया में कदम नहीं रखेगे जो उनकी प्रतीक्षा कर रही है :

'हवा भारी सुवास से बोझिल है जो आपकी अभीप्सा करती है और सारे नदी— नाले आपके पीछे— पीछे दौड़ना चाहेगे ' वे उनसे कहते हैं..
'क्योंकि देखो हे जरथुस्त्र! तुम्हारे नये गीतों के लिए नयी वीणाओं की जरूरत है। '

......ऐसा जरमुस्त्र ने कहा।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-25

पुरानी व नयी नियम— तालिकाओं की बात भाग—2—(पच्‍चीसवां-प्रवचन)

 प्यारे ओशो ,
जब पानी पर पटरे बिछा दिये जाते हैं ताकि उस पर चला जा सके जब मार्ग और हस्तावलंब (रेलिंग्स ) धारा के आरपार फैल जाते हैं : सच में उस पर कोई विश्वास नहीं करता जो कहता है :  ' सब कुछ प्रवहमान है। '
उलटे बुद्ध भी उसका प्रतिवाद करते हैं। 'क्या? : बुद्ध कहते हैं 'सब कुछ प्रवहमान? लेकिन धारा के ऊपर पटरे और हस्तावलंब लगे हुए हैं!

'धारा के ऊपर सब कुछ सुदृढ़ रूप से जड़ दिया गया है सभी बातों के मूल्य सेतु
अवधारणाएं समस्त ''अच्छाई'' और ''बुराई'' : सब कुछ सुदृढ़ रूप से जड़ दिया गया है!'

..........ऐसा जरथुस्त्र ने कहा।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-24

पुरानी व नयी नियम— तालिकाओं की बात भाग-2  चौबीसवां-प्रवचन


प्यारे ओशो
यहां मैं बैठता और प्रतीक्षा करता हूं, पुरानी छिन्‍न— भिन्न नियम— तालिकाएं मेरे चारों ओर बिखरी
हुईं और नयी अर्द्धलिखित नियम— तालिकाएं भी। कब मेरी घड़ी आएगी? — मेरे नीचे जाने की
घड़ी मेरे अवरोह की : क्योकि एक बार और मैं मनुष्यों तक जाना चाहता हूं।
उसके लिए मैं अब प्रतीक्षा करता हूं : क्योंकि पहले इस बात का संकेत मुझ तक आना
आवश्यक है कि यह मेरी घड़ी है — अर्थात फाख्ताओं के झुंड से युक्त हंसता हुआ शेर।
इस दरम्यान मैं स्वयं से ही बातचीत करता हूं ऐसे व्यक्ति की भांति जिसके पास बहुत सारा
समय है। कोई भी मुझे कुछ भी नया नहीं बताता; इसलिए मैं स्वयं को ही स्वयं को बताता हूं।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-23

भारता—मनोवृति की बात-भाग-2 (तेइसवां-प्रवचन)

प्यारे ओशो

खोजे जाने के लिए मनुष्‍य दुष्कर है, सबसे बढ़कर स्वयं के लिए; मन प्राय: आत्मा के संबंध से झूठ बोलता है

सच में, मैं उनको भी नापसंद करता हूं जो हर चीज को अच्छा कहते हैं और इस दुनिया को
सर्वोत्तम। मैं ऐसे लोगों को सर्व— तुष्ट कहता हूं।
सर्व—तुष्टता जो हर चीज का स्वाद लेना जानती है : वह सर्वोत्तम रुचि नहीं है। मैं हठीली और तुईनुकमिजाज जीभों और पेटों का सम्मान करता हूं जिन्होंने 'मैं' और 'हां' और 'ना' कहना सीखा यह बहरहाल मेरी शिक्षा है : वह व्यक्ति जो एक दिन ल्टना सीखना चाहता है पहले उसे खड़ा होना और चलना और दद्वैना और चढ़ना और नाचना सीखना जरूरी है — तुम उड़कर ही उड़ना नहीं सीख सकते!

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-22

भारता— मनोवृत्ति की बात भाग—1 (बाइसवां-प्रवचन)    


प्‍यारे ओशो,

... मैं भारता की मनोवृत्ति का शत्रु हूं : और सच में घातक शत्रु महा शपूर जन्मजात शत्रु!... मैं उस संबंध में एक गीत गा सकता हूं — और मैं गाऊंगा एक यद्यपि मैं एक खाली मकान में अकेला हूं और उसे मुझे स्वयं के कानों के लिए ही गाना पड़ेगा।
अन्य गायक भी हैं ठीक से कहें तो जिनकी आवाजें मृदु हो उठती हैं जिनके हाथ
भावभंगिमायुक्त हो उठते हैं जिनकी आखें अभिव्यक्तिपूर्ण हो उठती हैं जिनके हृदय जाग उठते हैं केवल जब मकान लोगों से भरा हुआ होता है : मैं उनमें से एक नहीं हूं। वह व्यक्ति जो एक दिन मनुष्यों को उड़ना सिखाएगा समस्त सीमा— पत्थरों को हटा चुका ' होगा; समस्त सीमा— पत्थर स्वयं ही उस तक हवा में उड़ेगे वह पृथ्वी का नये सिरे से बप्तिस्मा करगे? — 'निर्भार' के रूप में।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-21

तीन बुरी बातों की बात (इक्‍किस्‍वां-प्रवचन)


प्यारे ओशो,
... अब मैं सर्वाधिक बुरी बातों को तराजू पर रखूंगा और उनको भलीभांति और
मानवीयता सहित तौलूंगा.........
ऐंद्रिक सुख, शक्ति की लिप्सा, स्वार्थपरायणता : ये तीन अब तक सर्वाधिक कोसे गये हैं और सबसे बुरी तथा सर्वाधिक अन्यायपूर्ण ख्याति में रखे गये हैं — इन तीनों को मैं भलीभांति और
मानवीयता सहित तौलूंगा
ऐंद्रिक सुख : एक मीठा जहर केवल मुरझा गये लोगों के लिए लेकिन सिंह— संकल्पी के लिए महा पुष्टिकर और सम्मानपूर्वक परिरक्षित की गयी शराबों की शराब ।
ऐंद्रिक सुख : महान प्रतीकात्मक सुख एक उच्चतर सुख और उर्च्चतम आशा का....

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-20

धर्मत्यागियों की बात—(बीसवां—प्रवचन)


प्यारे ओशो।

वह व्यक्ति जो मेरी किस्म का है उसे मेरी ही किस्म के अनुभवों का साक्षात भी होगा जिससे कि उसके प्रथम साथी अनिवार्य रूप से लाशें व विदूषक ही होंगे बहरहाल उसके दूसरे साथी अपने आपको उसके माननेवाले कहेगे : एक जीवंत समूह प्रेम से भरा हुआ बेवकूफियों से भरा हुआ बचकानी भक्ति से भरा हुआ
मनुष्यों में वह जो मेरी किस्म का है उसे इन माननेवालों से अपना हृदय नहीं उलझाना चाहिए) वह जो मनुष्य के ढुलमुल— कायरतापूर्ण स्वभाव को जानता है उसे इन बसंतों और इन रंगबिरंगे घास— मैदानों में यकीन नहीं करना चाहिए!
'हम फिर से पवित्रात्मा हो गये हैं— ऐसी ये धर्मत्यागी स्वीकारोक्ति करते हैं और उनमें से बहुत तो अभी भी अति कायरतापूर्ण हैं यह स्वीकारोक्ति करने के लिए....

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-19

आनंदमय द्वीपों की बात—(उन्‍निस्‍वां—प्रवचन)


प्यारे ओशो,  
ओ मेरे जीवन के अपराह्र।
मैने क्या नहीं दे दिया है कि मैं एक चीज पा सकूं : मेरे विचारों की यह जीवित रोपस्थली  (नर्सरी) और मेरी सर्वोच्च आशाओं का यह अरुणोदय!
एक बार स्रष्टा ने साथियों की और अपनी आशा के बच्चों की तलाश की : और लो ऐसा हुआ कि वह उन्हें नहीं पा सका इसके अलावा कि पहले वह स्वयं उनका सृजन करे।

मेरे बच्चे अपने प्रथम वसंत में अभी भी हरे हैं बहुत पास— पास खड़े हुए और हवाओं द्वारा समान रूप से कंपे हुए मेरे बगीचे और मेरी सर्वोत्तम मिट्टी के ये वृक्ष।

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-18

परिव्राजक—(अठरहवां—प्रवचन)


प्यारे ओशो,

जरथुस्‍त्र स्वयं से कहते हैं :
मैं एक परिव्राजक हूं और एक पर्वतारोही.... मुझे मैदान अच्छे नहीं लगते और ऐसा लगता है मै देर तक शांत नहीं बैठ सकता।
और भाग्य और अनुभव के रूप में चाहे जो कुछ भी अभी मुझ तक आने को हो — परिव्रज्या और पर्वतारोहण उसमें रहेगा ही : अंतिम विश्लेषण में व्यक्ति केवल स्वयं को ही अनुभव करता है।

'तुम महानता का अपना मार्ग तय कर रहे हो : अब पहले जो तुम्हारा परम खतरा था वही
तुम्हारी परम शरण बन चुका है!

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-17

मानवोचित होशियादी की बात—(सत्रहवां—प्रवचन)


प्यारे ओशो,

यह ऊंचाई नहीं, अतल गहराई है जो डरावनी है!
अतल गहराई जहां' निगाह नीचे की तरफ गोता लगाती है और हाथ ऊपर की तरफ कसकर पकड़ते हैं। वहां हृदय अपनी दोहरी आकांक्षा के जरीए मुझे से आक्रांत हो उठता है। आह मित्रो क्या तुमने भी मेरे हृदय की दोहरी आकांक्षा का पूर्वाभास पाया है?
मेरी आकांक्षा मनुष्यजाति के साथ चिपकी रहती है मैं स्वयं को मनुष्यजाति के साथ बंधनों सें बांधता हूं क्योकि मैं परममानव (सुपरमैन) में आकृष्ट हो गया हूं : क्योकि मेरी दूसरी आकांक्षा मुझे परममानव तक खीच लेना चाहती है।

कि मेरा हाथ सुदृढ़ता में अपना विश्वास बिलकुल खो ही न दे : यही कारण है कि मैं मनुष्यों के बीच अंधेपन से जीता हूं जैसे कि मैने उन्हें पहचाना ही नहीं.......... 

जरथुस्‍थ--नाचता गाता मसीहा--प्रवचन-16

उद्धार की बात—(सौलहवां—प्रवचन)


प्यारे ओशो,  

सच में मेरे मिखैड़े मैं मनुष्यों के बीच चलता हूं जैसे मनुष्यों के टुल्लों और अंगों के बीच! मेरी आंख के लिए भयावह बात है मनुष्यों को टुकड़ों में छिन्न— भिन्न और बिखरा हुआ पाना जैसे किसी कल्लेआम के युद्ध— मैदान पर।
और जब मेरी आंख वर्तमान से अतीत में भागती है सदा उसे वही बात मिलती है : टुक्ये और अंग और डरावने अवसर — लोइकन मनुष्य नहीं!

पृथ्वी का वर्तमान और अतीत — अफसोस! मेरे मित्रो — वही मेरा सर्वाधिक असह्य बोझ है; और मैं नहीं जानता कि जीना कैसे यदि मैं उसका द्रष्टा न होता जिसे आना ही है।
एक द्रष्टा एक आकांक्षी एक सर्जक स्वयं एक भविष्य ही और भविष्य तक एक सेतु — और अफसोस इस सेतु के ऊपर एक अपंग की भांति भी : जरथुस्‍त्र यह सब कुछ है।