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रविवार, 31 दिसंबर 2017

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-19



ज्‍योतिष:  अद्वैत का विज्ञान—8(अन्‍तिम)

     ज्‍योतिष सिर्फ नक्षत्रों का अध्‍ययन नहीं हे। वह तो है ही वह तो हम बात करेंगे—साथ  ही ज्‍योतिष और अलग-अलग आयामों से मनुष्‍य के भविष्‍य को टटोलने की चेष्‍टा है कि वह भविष्‍य कैसे पकड़ा जा सके। उसे पकड़ने के लिए अतीत को पकड़ना जरूरी है। उसे पकड़ने के लिए अतीत के जो चिन्‍ह है, आपके शरीर पर और आपके मन पर भी छुट गये है। उन्‍हें पहचानना जरूरी हे।  और जब से ज्‍योतिषी शरीर के चिन्‍हों पर बहुत अटक गए है तब से ज्‍योतिष की गिराई खो गई है, क्‍योंकि शरीर के चिन्‍ह बहुत उपरी है।
      आपके हाथ की रेखा तो आपके मन के बदलने से इसी वक्‍त भी बदल सकती हे। आपके आयु की जो रेखा है, अगर आपको भरोसा दिलवा दिया जाए हिप्रोटाइज करके की आप पन्‍द्रह दिन बाद मर जाएंगे और आपको रोज बेहोश करके पन्‍द्रह दिन तक यह भरोसा पक्‍का बिठा दिया जाए की आप पन्‍द्रह दिन बाद मर जाओगे, आप चाहे मरो या न मरो, आपके उम्र की रेखा पन्‍द्रह दिन के समय पहुंचकर टूट जाएगी। आपकी अम्र की रेखा में गैप आ जाएगा। शरीर स्‍वीकार कर लेता है कि ठीक है, मौत आती है।

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-18



ज्‍योतिष अद्वैत  का विज्ञान—7


टाईम ट्रैक और—हुब्‍बार्ड
      भविष्‍य एकदम अनिश्‍चित नहीं है। हमारा ज्ञान अनिश्‍चित है। हमारा अज्ञान भारी है। भविष्‍य में हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ता। हम अंधे है। भविष्‍य का हमें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। नहीं दिखाई पड़ता है इसलिए हम कहते है कि निश्‍चित नहीं है। लेकिन भविष्‍य में दिखाई  पड़ने लगे....ओर ज्‍योतिष भविष्‍य में देखने की प्रक्रिया है।
      तो ज्‍योतिष सिर्फ इतनी ही बात नहीं है कि ग्रह-नक्षत्र क्‍या कहते है। उनकी गणना क्‍या कहती है। यह तो सिर्फ ज्‍योतिष का एक डायमेंशन है, एक आयाम है। फिर भविष्‍य को जानने के और आयाम भी है।
      मनुष्‍य के हाथ पर खींची हुई रेखाएं है, मनुष्‍य के माथे पर खींची हुई रेखाएं है, मनुष्‍य के पैर पर खींची हुई रेखाएं है। पर ये भी बहुत उपरी है। मनुष्‍य के शरीर में छिपे हुए चक्र हे। उन सब चक्रों को अलग-अलग संवेदन है। उन सब चक्रों की प्रति पल अलग-अलग गति है। फ्रीक्‍वेंसी है। उनकी जांच है। मनुष्‍य के पास छिपा हुआ, अतीत का पूरा संस्‍कार बीज है।

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-17



ज्‍योतिष अद्वैत  का विज्ञान—6

     
      जैसा मैं आपसे कह रहा था पैरासेल्‍सस के संबंध में। आधुनिक चिकित्‍सक भी इस नतीजे पर पहुंचे रहे है। कि जब भी सूर्य पर अनेक बार धब्‍बे प्रकट होते है....ऐसे भी सूर्य पर कुछ धब्‍बे है, डाट्स, स्‍पाट्स होते है—कभी वे बढ़ जाते है, कभी वे कम हो जाते है। जब सूर्य पर स्पाट्स बढ़ जाते है तो जमीन पर बीमारियां बढ़ जाती है। और जब सुर्य पर काले धब्‍बे कम हो जाते है, तो जमीन पर बीमारियां कम हो जाती है। और जमीन से हम बीमारियां कभी न मिटा सकेंगे जब तक सूर्य के  स्पाट्स कायम है।
      हर ग्‍यारह वर्ष में सूरज पर भारी उत्‍पात होता है, बड़े विस्‍फोट होते है। और जब ग्‍यारह वर्ष में सूरज पर विस्‍फोट होता है, और उत्‍पात होते है तो पृथ्‍वी पर युद्ध ओर उत्‍पात होते है। पृथ्‍वी पर युद्धों का जो क्रम है वह हर दस वर्ष का है। महामारी का जो क्रम है वह दस वर्ष के बीच का है। क्रान्ति यों का जो क्रम है दस वर्ष और ग्‍यारह वर्ष के बीच का है।

गीता दर्शन--(भाग--7) प्रवचन--185

जीवन की दिशा(प्रवचनसातवां)

अध्‍याय—16
सूत्र:

अत्मसंभाविता: स्तब्धा धनमानमदान्विता:।
यजन्ते नामयज्ञैस्ते दम्भेनाविधिपूर्वकम्।। 17।।
अहंकारं बलं दर्प कामं क्रोध च संश्रता:।
मामत्‍मपरहेहेषु प्रद्धईषन्तोऽभ्यसूक्का:।। 18।।
तानहं द्विषत: क्रूरान्संसारेषु नराधमान्।
क्षियाम्यजस्रमशुभानासुरीष्येव योनिषु।। 19।।
आसुरी योनिमापन्‍ना मूढा जन्मनि जन्मनि।
मामाप्राप्‍यैव कौन्तेय ततो यान्‍त्‍यधमां गतिम्।। 29।।

 वे अपने आपको ही श्रेष्ठ मानने वाले घमंडी पुरुष बन और मान के मद से युक्‍त हुए, शास्त्र— विधि से रहित केबल नाममात्र के यज्ञों द्वारा पाखंड से यजन करते हैं।
तथा वे अहंकार, बल, धमंड, कामना और क्रोधादि के परायण हुए एंव दूसरों की निंदा करने वाले पुरुष अपने और दूसरों के शरीर में स्थित मुझ अंतर्यामी से द्वेष करने वाले हैं। ऐसे उन द्वेष करने वाले पापाचारी और क्रूरकर्मी नराधमों को मैं संसार में बारंबार आसुरी योनियों में ही गिरता हूं।

इसलिए हे अर्जुन, वे मूढ पूरूष जन्म— जन्म में आसुरी योनि को प्राप्त हुए, मेरे को न प्राप्त होकर, उससे भी अति नीच गति को ही प्राप्त होते हैं।

गीता दर्शन--(भाग--7) प्रवचन--184

शोषण या साधना(प्रवचनपांचवां)

अध्‍याय—16
सूत्र—

            काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विता:।
मोहाङ्गाहींत्त्वीसद्ग्राहागर्क्तन्‍तेउशुचिव्रता:।। 10।।
चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुयश्रिता:।
कामोयभोगपरमा एतावदिति निश्चिता: ।। 11।।
आशापाशशातैर्बद्धा: कामक्रोधयरायणा ।
ईहन्‍ते कामभोगार्थमन्यायेनार्श्रसंचयान्।। 12।।

और वे मनुष्य दंभ, मान और मद से युक्त हुए किसी प्रकार भी न पूर्ण होने वाली कामनाओं का आसरा लेकर तथा मोह से मिथ्‍था सिद्धांतों को ग्रहण करके भ्रष्ट आचरणों से युक्‍त हुए संसार में बर्तते हैं।
तथा वे मरणपर्यत रहने वाली अनंत चिंताओं को आश्रय किए हुए और विषय— भोगों को भोगने के लिए तत्‍पर हुए, इतना मात्र ही आनंद है, ऐसा मानने वाले हैं।

इसलिए आशारूप सैंकड़ों फांसियों से बंधे हुए और काम— क्रोध के परायण हुए विषय—भोगों की पूर्ति के लिए अन्यायपूर्वक धनादिक बहुत— से पदार्थो को संग्रह करने की चेष्टा करते हैं।

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-16



ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—5

 
      शायद पहला जन्‍म काई, वह जो पानी पर जम जाती है—वह जीवन का पहला रूप है, फिर आदमी तक विकास। जो लोग पानी के ऊपर गहन शोध करते है, वे कहते है पानी सर्वाधिक रहस्‍यमय तत्‍व है। जगत से, अन्‍तरिक्ष से तारों का जो भी प्रभाव आदमी तक पहुंचता है उसमें मीडियम, माध्‍यम पानी है। आदमी के शरीर के जल को ही प्रभावित करके कोई भी रेडिएशन कोई भी विकीर्णन मनुष्‍य में प्रवेश करता है। जल पर बहुत काम हो रहा है और जल के बहुत से मिस्‍टीरियस, रहस्‍यमय गुण खयाल में आ रहे है।
      सर्वाधिक रहस्‍य गुण जो जल का जो ख्‍याल में अभी दस वर्षों में वैज्ञानिकों को आया है वह यह है कि सर्वाधिक संवेदनशीलता जल के पास है—सबसे ज्‍यादा सेंसिटिव। और हमारे जीवन में चारों और से जो भी प्रभाव गतिमान होते है वह जल को ही कम्‍पित करके गति करते है।

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-15



सत्र-4 ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—4

           इनके रुझान, इनके ढंग, इनके भाव समानांतर है। अगर करीब-करीब ऐसा मालूम पड़ता है कि ये दोनों एक ही ढंग से जीते है। एक दूसरे की कापी की भांति होते है। इनका इतना एक जैसा होना और बहुत सी बातों से सिद्ध होता है।
      हम सबकी चमड़ियां अलग-अलग हैं, इण्‍डीवीजुअल है। अगर मेरा हाथ टुट जाए और मेरी चमड़ी बदलनी पड़े तो आपकी चमड़ी मेरे हाथ के काम नहीं आयेगी। मेरे ही शरीर की चमड़ी उखाड़ कर लगानी पड़ेगी। इस पूरी जमीन पर कोई आदमी नहीं खोजा जा सकता, जिसकी चमड़ी मेरे काम आ जाए। क्‍या बात है? शरीर शास्‍त्री से पूँछें कि क्‍या दोनों की चमड़ी की बनावट में कोई भेद है—तो कोई भेद नहीं है।
      चमड़ी में जो तत्‍व निर्मित करते है चमड़ी को उसमें कोई भेद है तो कोई भेद नहीं है। चमड़ी के रसायन में कोई भेद नहीं? चमड़ी में जो तत्‍व निर्मित करते है चमड़ी को उसमें कोई भेद है—तो कोई भेद नहीं।

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-14



ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—3

     तो साधारणत: देखने पर पता चलता है कि इन ग्रह-नक्षत्रों की स्‍थिति का किसी के बच्‍चे के पैदा होने से, होरोस्‍कोप से क्‍या संबंध हो सकता है। यह तर्क सीधा और साफ मालूम होत है। फिर चाँद तारे एक बच्‍चे के जन्‍म की चिन्‍ता तो नहीं करते? और फिर एक बच्‍चा  ही पैदा नहीं होता, एक स्‍थिति में लाखों बच्‍चें पैदा होते है। पर लाखों बच्‍चे एक से नहीं होते, इन तर्कों से ऐसा लगने लगा....। तीन सौ वर्षों  से यह तर्क दिये जा रहे हे कि कोई संबंध नक्षत्रों से व्‍यक्‍ति के जन्‍म का नहीं है।
      लेकिन ब्राउन, पिकाडी और इन सारे लोगों की, तोमा तो....। इन सबकी खोज का एक अद्भुत परिणाम हुआ है और वह यह कि ये वैज्ञानिक कहते है कि अभी हम यह तो नहीं कह सकते कि व्‍यक्‍तिगत रूप से कोई बच्‍चा प्रभावित होता है। लेकिन अब हम यह पक्‍के रूप से कह सकते है, लेकिन जीवन निश्‍चित रूप से प्रभावित होता है। और अगर जीवन प्रभावित होता है तो हमारी खोज जैसे-जैसे सूक्ष्‍म होगी वैसे-वैसे हम पाएंगे कि व्‍यक्‍ति भी प्रभावित होता हे।

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-13



ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—2


और पाइथागोरस जब यह बात  कह रहा था तब वह भारत और इजिप्‍ट इन दो मुल्‍कों की यात्रा करके वापस लौटा था। और पाइथागोरस जब भारत बुद्ध और महावीर के विचारों से तीव्रता से आप्‍लवित लौटा था। पाइथागोरस ने भारत से वापस लौटकर जो बातें कहीं है उसमें उसने महावीर ओ विशेषकर जैनों के संबंध में बहुत सी बातें महत्‍वपूर्ण कहीं है। उसने जैनों का मतलब तो जैन,तो जैन दार्शनिकों पाइथागोरस ने जैनोसोफिस्‍ट कहा है। वे नग्‍न रहते हैं, यह बात भी उसने की है।
      पाइथागोरस  मानता था कि प्रत्‍येक नक्षत्र या प्रत्‍येक ग्रह या उपग्रह जब यात्रा कहता है, अंतरिक्ष में, तो उसकी यात्रा के कारण एक विशेष ध्‍वनि पैदा होती है। प्रत्‍येक नक्षत्र की गति विशेष ध्‍वनि पैदा करती है। और प्रत्‍येक नक्षत्र की अपनी व्‍यक्‍तिगत निजी ध्‍वनि है। और इन सारे नक्षत्रों की ध्‍वनियों का एक ताल-मेल है, जिसे वह विश्‍व की संगीतवद्धता, हार्मनी कहता था।

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-12



ज्‍योतिष: अद्वैत का विज्ञान—1


     ज्‍योतिष शायद सबसे पुराना विषय है और एक अर्थ में सबसे ज्‍यादा तिरस्‍कृत विषय भी है। सबसे पुराना इसलिए कि मनुष्‍य जाति के इतिहास की जितनी खोजबीन हो सकी उसमें ऐसा कोई भी समय नहीं था जब ज्‍योतिष मौजूद न रहा हो। जीसस से पच्‍चीस हजार वर्ष पूर्व सुमेर में मिले हुए हडडी के अवशेषों पर ज्‍योतिष के चिन्‍ह अंकित है। पश्‍चिम में,पुरानी से पुरानी जो खोजबीन हुई है। वह जीसस से पच्‍चीस हजार वर्ष पूर्व इन हड्डियों की है। जिन पर ज्योतिष के चिन्‍ह और चंद्र की यात्रा के चिन्ह अंकित है। लेकिन भारत में तो बात और भी पुरानी है।
      ऋग्‍वेद में पच्‍चान्‍नबे हजार वर्ष पूर्व-नक्षत्रों की जैसी स्‍थिति थी उसका उल्‍लेख है। इसी आधार पर लोकमान्‍य तिलक ने यह तय किया था कि ज्‍योतिष नब्‍बे हजार वर्ष से ज्‍यादा पुराने तो निश्चित है। क्‍योंकि वेद में यदि पच्‍चान्‍नबे हजार वर्ष पहले जैसे नक्षत्रों की स्‍थिति थी, उसका उल्‍लेख है, तो वह उल्‍लेख इतना पुराना तो होगा ही।

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-11



तीर्थ—11 (वृक्ष के माध्‍यम से संवाद)

     तीर्थ है, मंदिर  है, उनका सारा का सारा विज्ञान है। और उस पूरे विज्ञान की अपनी सूत्रबद्ध प्रक्रिया है। एक कदम उठाने से दूसरा कदम उठना है, दूसरा उठाने से तीसरा उठता है। पीछे चौथा उठता है और परिणाम होता है। यदि एक भी कदम बीच में खो गया तो, एक भी सूत्र बीच में खो गया तो। परिणाम नहीं होता। एक और बात इस संबंध में ख्‍याल में ले लेनी चाहिए कि जब भी कोई सभ्‍यता बहुत विकसित हो जाती है और जब भी कोई विज्ञान बहुत विकसित हो जाता है। तो ‘’रिचुअल’’ सिम्‍पलीफाइड़ हो जाता है। काम्प्लैक्स नहीं रह जाता। जब वह काम विकसित होता है तब उसकी प्रक्रिया बहुत जटिल होती है। पर जब पूरी बात पता चल जाती है। तो उसके क्रियान्‍वित करने की जो व्‍यवस्‍था है वह बिलकुल सिम्पलीफाइड़ और सरल जो जाती है।

गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

स्वर्णिम बचपन-(ओशो आत्मकथा)-सत्र-19

सत्र—19 पिता के घर में                   

      नाना की मृत्‍यु के बाद मुझे फिर नानी से दूर रहना पडा, लेकिन मैं जल्दी ही अपने पिता के गांव वापस आ गया। मैं वापस आना तो नहीं चाहता था, लेकिन वह इस के ओ. के. की तरह था जो कि मैंने शुरूआत में कहा, नहीं के मैं ओ. के. कहना चाहता था। लेकिन में दूसरों की चिंता की उपेक्षा नहीं कर सकता। मेरे माता-पिता मुझे अपने मृत नाना के घर भेजने को तैयार नहीं थे। मेरी नानी भी मेरे साथ जाने को तैयार नहीं थी। और मैं सिर्फ सात साल का बच्‍चा था, मुझे इसमें कोई भविष्‍य नहीं दिखाई दे रहा था।
      बार-बार मैं कल्‍पना में अपने आप को उस पुराने घर को वापस जाते देखता, बैलगाड़ी में अकेले....भूरा बैलों से बात करते हुए। कम से कम उसको तो संग-साथ मिल जाता। मैं बैलगाड़ी के भीतर अकेले बैठे हुए भविष्‍य के बारे में सोच रहा होता। वहां मैं करूंगा भी क्‍या? हां, मेरे घोड़े वहां पर है। लेकिन उनको खिलाएगा कौन? और मुझे भी कौन खिलाएगा? मैं तो एक कप चाय भी नहीं बना सकता।

स्वर्णिम बचपन-(ओशो आत्मकथा)-सत्र-18



सत्र—18 सेक्‍स या मृत्‍यु से मनोग्रस्‍त
     

     
      पूरब‍ मृत्‍यु से मनोग्रस्‍त है और पश्चिम सेक्‍स से। पदार्थवादी को सेक्‍स से मनोग्रस्‍त होना ही चाहिए और आध्‍यात्मिक को मृत्‍यु से । और ये दोनों मनेाग्रस्‍तताएं ही है।  और किसी भी मनोग्रस्‍तता के साथ जीवन जीना—पूर्वीय या पश्चिमी—न जीने के समान है, यह पूरे मौके को चूकता है। पूरव और पश्चिम एक ही सिक्‍के के दो पहलु है। और इसी प्रकार मृत्यु और सेक्‍स है। सेक्‍स ऊर्जा है—जीवन का आरंभ‍; और मृत्‍यु जीवन का चरम बिंदु है, पराकाष्‍ठा है।
      यह केवल संयोग नहीं है कि हजारों लोगों को कभी ऑर्गेज़म का कोई अनुभव नहीं होता। इसका सीधा सा कारण यह है जब तक तुम मृतयु जैसे अनुभव में से गुजरने के लिए तैयार नहीं होते तब‍ तक तुम ऑर्गेज़म को नहीं जान सकते। और कोई मरना नहीं चाहता; सब जीना चाहते है। बार-बार जीवन को आरंभ करना चाहते है।

गीता दर्शन--(भाग--7) प्रवचन--183

आसुरी व्‍यक्‍ति की रूग्‍णताएं(प्रवचनचौथा)

अध्‍याय—16
सूत्र—

प्रवृत्तिं च निवृत्ति च जना न विदरासरा:।
न शौचं नापि चाचारो न सत्यं तेषु विद्यते।। 7।।
असत्यमप्रितष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्।
अपरस्थरसंभूतं किमन्यत्काकैक्कुम्।। 8।।
एंता दृष्टिमवष्टथ्य नष्टमानोऽल्पबुद्धय:।
प्रभवन्‍ज्युक्कर्माण: क्षयाय जगतीऽहिता:।। 9।।

और हे अर्जुन, आसुरी स्वभाव वाले मनुष्य कर्तव्य—कार्य में प्रवृत्त होने को और अकर्तव्य—कार्य से निवृत्त होने को भी नहीं जानते हैं। इसलिए उनमें न तो बाहर—भीतर की शुद्धि है, न श्रेष्ठ आचरण है और न सत्य भाषण ही है।
तथा वे आसुरी प्रकृति वाले मनुष्य कहते हैं कि जगत आश्रयरहित है और सर्वथा झूठा है एवं बिना ईश्वर के अपने आप स्त्री—पुरुष के संयोग से उत्पन्‍न हुआ है। इसलिए जगत केवल भोगों को भोगने के लिए ही है। इसके सिवाय और क्या है?

हम प्रकार इस मिथ्या—ज्ञान को अवलंबन करके नष्ट हो गया है स्वभाव जिनका तथा मंद है बुद्धि जिनकी, ऐसे वे सब का अहित करने वाले क्रूरकर्मी मनुष्य केवल जगत का नाश करने के लिए ही उत्पन्‍न होते हैं।

गीता दर्शन--(भाग--7) प्रवचन--182

आसुरी संपदा(प्रवचनतीसरा)

अध्‍याय—16
सूत्र:

दम्भो दयोंऽभिमानश्च क्रोध: पारूष्‍यमेव च।
अज्ञानं चाभिजातस्म पार्थ संपदमासुशँम्।। 4।।
दैवी संयद्विमोक्षाय निबन्धायासुरी मता।
मा शुचः संपदं दैवीमीभजातोऽसि पाण्डव।। 5।।
द्वौ भूतसगौं लस्कैऽस्मिन्दैव आसुर एव च ।
दैवो विस्तरश: प्रोक्त आसुरं पार्थ मे मृणु।। 6।।

और है पार्थ, पाखंड, घमंड और अभिमान तथा क्रोध और कठोर वाणी एवं अज्ञान, ये सब आसुरी संपदा को प्राप्त हुए पुरुष के लक्षण हैं।
उन दोनों कार की संपदाओं में दैवी संपदा तो मुक्‍ति के लिए और आसुरी संपदा बांधने के  मानी गई है। इसलिए है अर्जुन, तू शोक मत कर, क्योंकि तू दैवी संपदा को प्राप्त हुआ है।
और हे अर्जुन, हम लोक में भूतों के स्वभाव दो कार के बताए गए हैं। एक तो देवों के जैसा और दूसरा असुरों के जैसा। उनमें देवों का स्वभाव ही विस्तारपूर्वक कहा गया, इसलिए अब असुरों के स्वभाव को भी विस्तारपूर्वक मेरे से सून।

गीता दर्शन--(भाग--7) प्रवचन--181

दैवीय लक्षण(प्रवचनदूसरा)

अध्‍याय—16
सूत्र—181

अहिंसा सत्‍यमक्रोधस्‍त्‍याग: शान्‍तिरपैशुनम्।
दया भूतेष्‍वलोलुप्‍त्‍वं मार्दवं ह्ररिचापलम्।। 2।।
तेज: क्षमा धृति: शौचमद्रोहोनातिमानिता ।
भवन्ति संपदं दैवीमीभिजातस्य भारत।। 3।।

दैवी संयदायुक्‍त पुरुष के अन्य लक्षण हैं : अहिंसा, सत्य, अक्रोध, त्याग, शांति और किसी की भी निंदादि न करना तथा सब भूत प्राणियों में दया, अलोलुपता, कोमलता तथा लोक और शास्त्र के विरुद्ध आचरण में लज्जा और व्यर्थ चेष्टाओं का अभाव; तथा तेज, क्षमा, धैर्य और शौच अर्थात बाहर— भीतर की शुद्धि एवं अद्रोह अर्थात किसी में भी शत्रु— भाव का न होना और अपने में पूज्‍यता के अभिमान का अभाव— ये सब तो हे अर्जुन, दैवी संपदा को प्राप्त हुए पुरूष के लक्षण हैं।

बुधवार, 27 दिसंबर 2017

स्वर्णिम बचपन-(ओशो आत्मकथा)-सत्र-17



सत्र—17  जित सरस्‍वती मेरे महाकाश्यप है 
 


      पिछली रात अजित सरस्‍वती ने जो पहले शब्‍द मुझसे कहे, वे थे: ‘ओशो मुझे आशा नहीं थी कि मैं कभी भी ऐसा कर पाऊगा।’
      जो लोग वहां उपस्थित थे उन्‍होंने सोचा कि वे कम्‍यून में आकर रहने की बात कर रहे है। एक प्रकार से यह भी सच था। क्‍योंकि मुझे याद है बीस वर्ष पहले जब‍ वे पहली बार मुझसे मिलने आए थे तब मुझसे कुछ मिनट मिलने कि लिए उनको अपनी पत्‍नी से इजाजत लेनी पड़ी थी। इसलिए जो उपस्थित थे स्‍वभावत: उन्‍होंने समझा होगा कि उन्‍हें इस‍ बात की आशा नहीं थी कि वे अपना काम-धाम और बीबी-बच्‍चों को छोड़ कर यहां आ जाएंगे—सब कुछ छोड़-छाड़ कर सिर्फ यहां मेरे साथ होने के लिए। इसी को सच्‍चा त्‍याग कहते है। लेकिन उनका यह अर्थ नहीं था। और मैं समझ गया।
      मैंने उनसे कहा: ‘अजित, मैं भी हैरान हूं। ऐसा नहीं कि मुझे इसकी आशा नहीं थी—मुझे तो सदा इस क्षण की आशा, इच्‍छा और अपेक्षा थी। और मैं खुश हूं कि तुम आ गए।’

स्वर्णिम बचपन-(ओशो आत्मकथा)-सत्र-16

सत्र—16  नानी प्रथम शिष्‍या और बुद्धत्‍व

 
      संसार में छह बड़े धर्म है। इनको दो वर्गों में बटा जा सकता है। पहला वर्ग है: यहूदी, ईसार्इ, और इस्‍लाम धर्म है। ये एक ही जीवन में विश्‍वास करते है। तुम सिर्फ जीवन और मृत्‍यु के बीच हो—जन्‍म और मृत्‍यु के पार कुछ भी नहीं है—यह जीवन ही सब कुछ है। जब कि ये स्‍वर्ग, नरक और परमात्‍मा में विश्‍वास करते है। फिर भी ये इनको एक ही जीवन का अर्जन मानते है। दूसरे वर्ग के अंतर्गत हैं: हिंदू, जैन, और बौद्ध धर्म। वे पुनर्जन्‍म के सिद्धांत में विश्‍वास करते है। आदमी को तब तक बार-बार जन्‍म होता है। जब ते कि वो बुद्धत्‍व, एनलाइटेनमेंट, पाप्‍त नहीं कर लेता है, और तब यह चक्र रूक जाता है।
      मरते समय मेरे नाना यही कह रहे थे, लेकिन उस समय मैं इसके महत्‍व को, इसके अर्थ को नहीं जानता था। हालांकि मैंने मशीन की तरह बारूदों को दोहराया, बिना यह समझे कि में क्‍या कह रहा हूं। या क्‍या कर रहा हूँ। मैं नाना की चिंता को समझ सकता हूं—इसको तुम चरम या अंतिम चिंता भी कह सकते हो। अगर यह रोग बन जाता है, जैसा कि पूर्व में हो गया है, तब यह एक सनक और मनो ग्रस्तता है और तब इसकी मैं निंदा करता हूं। तब यह एक तरह का रोग है तब यह सराहनीय नहीं बल्कि निंदनीय है।

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-10



तीर्थ—10 ( कैलाश अलौकिक निवास है)

      दो तीन बातें सिर्फ उल्‍लेख कर दूँ जो घटित होती है। जैसे कि आप कहीं भी जाकर एकांत में बैठकर साधना करें तो बहुत कम संभावना है कि आपको अपने आस पास किन्‍हीं आत्‍माओं की उपस्थिति का अनुभव हो। लेकिन तीर्थ में करें तो बहुत जोर से होगा। कहीं भी करें वह अनुभव नहीं होगा, लेकिन तीर्थ में आपको प्रेजेंस मालूम पड़ेगी—थोड़ी बहुत जोर से होगा। बहुत गहरा होगा। कभी इतनी गहन हो जाती है कि आप स्‍वयं मालूम पड़ेंगे कि कम है, और दूसरे की प्रेजेंस ज्‍यादा है।
      जैसे कि कैलास—कैलास हिंदुओं का भी तीर्थ रहा है और तिब्‍बती बौद्धों का भी। पर कैलास बिलकुल निर्जन है, वहां कोई  आवास नहीं है। कोई पुजारी नहीं है। कोर्इ पंडा नहीं है। कोई प्रगट आवास नहीं है कैलास पर। लेकिन जो भी कैलास पर जाकर ध्‍यान का प्रयोग करेगा वह कैलाश को पूरी तरह बसा हुआ पाएगा। जेसे ही कैलाश पर पहुँचेगा अगर थोड़ी भी ध्यान की क्षमता है तो कैलाश से कभी वह खबर लेकर लौटे गा कि वह निर्जन है। इतना सधन बसा है, इतने लोग है और इतने अदभुत लोग है। ऐसे कोई बिना ध्‍यान के कैलाश जाएगा, तो कैलाश खाली हे।

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-09



तीर्थ—काशी पूण्यनगरी  

      आखिरी बात जो तीर्थ के बाबत ख्‍याल ले लेना चाहिए, वह यह कि सिंबालिक ऐक्‍ट का, प्रतीकात्‍मक कृत्‍य का भारी मूल्‍य है। जैसे जीसस के पास कोई आता है और कहता है। मैंने यह पाप किए। वह जीसस के सामने कन्‍फेस कर देता है, सब बता देता है मैंने यह पाप किए। जीसस उसके सिर पर हाथ रख कर कह देते है कि जा तुझे माफ किया। अब इस आदमी न पाप किए है। जीसस के कहने से माफ कैसे हो जाएंगे? जीसस कौन है,और हाथ रखने से माफ हो जाएंगे, जिस आदमी ने खून किया, उसका क्‍या होगा, या हमने कहा, आदमी पाप करे और गंगा में स्‍नान कर ले, मुक्‍त हो जाएगा। बिलकुल पागलपन मालूम हो रहा है। जिसने हत्‍या की है, चोरी की है, बेईमानी की हे, गंगा में स्‍नान करके मुक्‍त कैसे हो जाएगा।
      यह दो बातें समझ लेनी जरूरी है। एक तो यह, कि पाप असली घटना नहीं है। स्‍मृति असली घटना है—मैमोरी । पाप नहीं, ऐक्‍ट नहीं असली घटना जो आप में चिपकी रह जाती है। वह स्‍मृति है। आपने हत्‍या की है। यह उतना बड़ा सवाल नहीं है। आखिर में। आपने हत्‍या की है, यह स्‍मृति कांटे की तरह पीछा करेगी।

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-08



तीर्थ—8 कुंभ और स्‍नान   
   
     
      तीसरी बात एक और थी। यह हमारा भ्रम ही है आमतौर से कह हम अलग-अलग व्‍यक्‍ति है—यह बड़ा थोथा भ्रम है। यहां हम इतने लोग बैठे है, अगर हम शांत होकर बैठे तो यहां इतने लोग नहीं रह जाते, एक ही व्‍यक्‍तित्‍व रह जाता है। और हम सब की चेतनाएं एम दूसरे में तरंगित और प्रवाहित होने लगती है।
      तीर्थ मास एक्‍सपेरीमेंट एक वर्ष में विशेष दिन, करोड़ों लोग एक तीर्थ पर इकट्ठे हो जाएंगे; एक ही आकांक्षा ,एक ही अभीप्‍सा से सैकड़ों मील की यात्रा करके आ जाएंगे। वह सब एक विशेष घड़ी में , एक विशेष तारे के साथ, एक विशेष नक्षत्र में एक जगह इकट्ठे हो जाते है। इसमें पहली बात समझ लेने की यह है, कि यह करोड़ों लोग इकट्ठा होकर एक अभीप्‍सा, एक आकांक्षा, एक पार्थ ना से एक धुन करते हुए आ गए है, यह एक पुल बन गया है। चेतना का। अब यहां व्‍यक्‍ति नहीं है।

मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

स्वर्णिम बचपन-(ओशो आत्मकथा)-सत्र-15



सत्र—15—मग्गा बाबा और मोज़ेज   


      ब‍ मैं कमरे से बाहर जा रहा था तो तुम मुस्‍कुरा रहे थे। लेकिन तुम्‍हारी मुस्‍कुराहट में उदासी थी। मैं इसको नहीं भूल सका। जब कि मैं सब कुछ आसानी से भूल जाता है। लेकिन जब‍ कभी मैं कठोर हाता हूं तो मैं इसे नहीं भूल सकता। में दुनिया में सब‍को क्षमा कर सकता हूं, लेकिन अपने आप को नहीं कर सकता। शायद मेरे न सोने का यही कारण था। मेरी नींद तो सिर्फ एक पतली पर्त है। उसके नीचे मैं सदा जागता रहता हूं। इस झीनी सी पर्त  बड़ी आसानी से विचलित किया जा सकता है। लेकिन केवल मैं ही ऐसा कर सकता हूं कोई और नहीं।
      मुझे थोड़ा अफसोस हुआ। मैं ‘थोड़ा’ कह रहा हूं, क्‍योंकि मेरे लिए थोड़ा अफसोस भी बहुत ज्‍यादा हो जाता है। मेरा सिर्फ एक आंसू ही बहुत है। मुझे घंटों रो-रो करा अपने बाल नोचने की जरूरत नहीं है जो कि अब हैं ही नहीं। कभी किसी ने यह नहीं सुना कि कोई अपनी दाढ़ी नोचता है। मैं नहीं सोचता कि किसी भी भाषा में, यहां तक कि हिब्रू में भी ऐसा कोई मुहावरा है, अपनी दाढ़ी नोचना और तुमको मालूम है कि यहूदियों और उनके बाइबिल के सब पैगंबरों की दाढि़यां थी। यह तो एक प्राकृतिक नियम है कि अगर किसी को दाढ़ी है तो वह गंजा हो जाएगा, क्‍योंकि प्रकृति सदा संतुलन बनाए रखती है।