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सोमवार, 25 दिसंबर 2017

कुछ काम ओर ज्ञान की बातें-01

चिड़िया और मानव मस्‍तिष्‍क का बोलना-

      वाशिंगटन, ऐजेंसी: वैज्ञानिको ने पता लगया है कि एक नन्‍हीं चिड़िया की आवाज सुनकर मानव मस्‍तिष्‍क कैसे कार्य करता है। वैज्ञानिकों का कहना है, चिड़ियाँ कि ध्वनि सुन कर मानव मस्‍तिष्‍क की प्रतिक्रिया का जानने का राज जाने के बाद यह पता लगा की मानव बोलता कैसे है। चिड़िया की आवाज सुन कर मस्‍तिष्‍क की तंत्रिका कोशिकाओं में गायन जैसे व्‍यवहार के संकेत कैसे जाते है। उनका कहना है कि ध्‍वनि सुन कर मानव मस्‍तिष्‍क के प्रतिक्रिया जताने का राज जानने के बाद, मानव की वाणी संबंधी विकृति का भी पता लगया जा सकता है। उसके बोलने के अवरोधों की तंत्र कोशिकाओं को ठीक किया जा सकता है। की मानव कैसे आसानी से बोलना सिख सके।
      बड़ी अजीब घटाना है जिन का एक दूसरे से कोई ताल मेल नहीं है। उन में पीढ़ी का, भाषा का, समय का, कोई ताल मेल नहीं है। वो एक दूसरे से कितनी दुरी है। फिर भी कुछ ऐसा था कि वो बुर्जुग किस अनुभव के आधार पर वो सब करते थे। जो आज वैज्ञानिक शोध कार्य कर-कर के जानने की कोशिश करता है। मैंने देखा जब कोई बच्‍चा ज्‍यादा बड़ा होने पर भी नहीं बोलता तो मां एक चिड़िया को पकड़ कर उस के पास ला उस की जीभ छुआ देती, उसे अंगन में बिठा कर उस के आस पास खाने का सामन रख देती। कुछ ही देर में चिड़िया उसे घेर लेती थी। वो अपने खाना खोन के साथ कुछ बोलती भी रहती।
बच्‍चा बार-बार उसे खिलौना समझ कर पकड़ कर खेलने की कोशिश भी करता। और वो फुर..र..र. से उड़ कर दुर चली जाती। ओर जो खाने का सामन डाल रखा है उसे दुर बैठ कर खाने लग जाती थी। खूब चहकती, वो बच्‍चा उन्‍हें बार-बार पकड़ने की कोशिश करता। उनके पास जाता और एक चमत्कार  घट जाता। देखते ही देखते जो बच्‍चा तीन-चार साल तक भी नहीं बोल सकता था। क्‍योंकि कहते थे कि उसकी जीभ थोड़ी मोटी है। इसलिए उसे बोलने में अड़चन आ रही है। वो ही बच्‍चा हफ्ते भर में ही चहकने लगा जाता उन्‍हीं चिड़ियों की तरह,बोलने लग जाता। मां...पापा..दादा...मामा...कहते-कहते हुए शब्‍दों की लम्‍बी फहरिस्त का मालिक हो जाता था।
      कुछ सालों तक वही गौरैया चिड़ियाँ जो सरा दिल आँगन में चहकती रहती थी। अब उन की तादाद धीरे-धीरे कम होती जा रही है। श्‍याम सुर्य अस्‍त से पहले कैसे उन के झुंड के झुंड कैसे आसमान का चक्‍कर लगाते थे। और फिर कोई पेड़ देख उस में शोर मचाती सोने के लिए बैठ जाती थी। लेकिन अब वो दृश्‍य खत्‍म होते रहे है। हर साल हमारे आँगन में पेड़ों की टहनियों पर तीन चार चिडिया अपने बच्‍चे लेकर आ जाती थी। अब नहीं आ रहीं। ये मोबाईल के टावर उन की प्रजनन शक्‍ति को खत्‍म कर रहे है। क्‍या ये मनुष्‍य के उपर भी उसी अनुपात पर असर नहीं दिखा रहे होगें। वो अनुपात में हम से जितनी छोटी है असर उतनी जल्‍दी नजर आ रहा है। होता हम पर भी होगा क्या मानव धीरे-धीरे अपने आस पास जीवित सब खत्‍म कर लेगा और होगी उसके आस पास सब मशीनी। एक बात का ध्‍यान रहे हम जिस से भी प्रेम करते है, उसे अपने अन्‍दर एक खास स्थान दे देते है। इस लिए जो लोग मशीनों से प्रेम करते है। वो धीरे-धीरे वही होते चले जाते है। प्रेम जीवंतता से करो पेड़, पौधों, पशु, पक्षी, मनुष्‍य.....। लेकिन हम करते है। पैसे, मकान, गाड़ी, ......कितनी खतरनाक स्थिति में मानव फंस गया है।
मनसा आनंद मानस

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