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गुरुवार, 4 जनवरी 2018

जीवन ऊर्जा की गति—ओशो

जीवन ऊर्जा की गति—


      अगर गति अधिक हो जाए तो चीजें ठहरी हुई मालूम पड़ती है। अधिक गति के कारण ठहराव के कारण नहीं। जिस कुर्सी पर आप बैठे हे, उसकी गति बहुत है। उसका एक-एक परमाणु उतनी ही गति से दौड़ रहा है अपने केन्‍द्र पर जितनी गति से सूर्य की किरण चलती है—एक सैकंड में एक लाख छियासी हजार मील। इतनी गति से चलने की वजह से आप गिर नहीं जाते कुर्सी से, नहीं तो आप कभी के गिर गये होते। तीव्र गति आपको संभाले हुए है।
      फिर यह गति भी बहु-आयमी है। मल्‍टी डायमेंशन है। जिस कुर्सी पर आप बैठे हे उसकी पहली गति तो यह है कि उसके परमाणु अपने भीतर धूम रहे है। हर परमाणु अपने न्यूक्लियस पर, आपने केन्‍द्र पर चक्र काट रहा है। फिर कुर्सी जिस पृथ्‍वी पर रखी हे वह पृथ्‍वी अपनी कील पर धूम रही है। उसके घूमने की वजह से भी कुर्सी में दूसरी गति हे। एक गति कुर्सी की आन्‍तरिक है कि उसके परमाणु घूम रहे है दूसरी गति—पृथ्‍वी अपनी की पर घूम रही है इसलिए कुर्सी भी पूरे समय पृथ्‍वी के साथ घूम रही है। तीसरी गति—पृथ्‍वी अपनी कील पर घूम रही है। और साथ ही पूरे सूर्य के चारों और परिभ्रमण कर रही है, घूमते हुए अपनी कील पर सूर्य का चक्र लगा रही है।
यह तीसरी गति है। कुर्सी में वह गति भी काम कर रही है। चौथी गति—सूर्य अपनी कील पर घूम रहा है, और उसके साथ उसका सारा सौर परिवार घूम रहा है। और पांचवी गति—सूर्य वैज्ञानिक कहते है कि माह सूर्य का चक्‍कर लगा रहा है। बड़ा चक्‍कर है वह कोई बीस करोड़ वर्ष में एक चक्‍कर पूरा हो पाता है। जो वह पांचवी गति है कुर्सी की। और वैज्ञानिक कहते है छठवीं गति का भी हमे अहसास मिलता है। वह जिस सूर्य का यह हमार सूर्य परिभ्रमण कर रहा है। वह महा सूर्य भी ठहरा हुआ नहीं है। वह अपनी कील पर घूम रहा है। और सांतवीं गति का भी वैज्ञानिक अनुमान करते है कि वह जिस ओर महा सूर्य का, जो अपनी कील पर घूम रहा है। वह दूसरे सौर परिवार से प्रतिक्षण दूर हटता जा रहा है। कोई और महा सूर्य या कोई महाशून्य सातवीं गति का इशारा करता है। वैज्ञानिक कहते है—ये सात गतिया पदार्थ की है।
       आदमी में एक आठवीं गति भी है, प्राण में, जीवन में एक आठवीं गति भी है। कुर्सी चल नहीं सकती, जीवन चल सकता है। आठवीं गति शुरू हो जाती है। एक नौवीं गति, धर्म कहता है मनुष्‍य में है और वह यह है कि आदमी चल भी सकता है और उसके भीतर जो उर्जा हे वह नीचे ऊपर जा भी सकता है। उस नौवीं गति से ही तप का संबंध है। आठ गतिया तक विज्ञान काम कर लेता है, उस नौवीं गति पर दि नाइन्‍थ, वह जो परम गति है चेतना के ऊपर नीचे जाने की उस पर ही धर्म की सारी प्रक्रिया है।
      मनुष्‍य के भी जो ऊर्जा है, वह नीचे या ऊपर जा सकती है। जब आप कामवासना से भरे होते है तो वह ऊर्जा नीचे जाती है। जब आप आत्‍मा की खोज से भरे होते है तो वह ऊर्जा ऊपर की तरफ जाती है। जब आप जीवन से भरे होते है तो वह ऊर्जा भीतर की तरफ जाती है। और भीतर और ऊपर धर्म की दृष्‍टि में एक ही दिशा का नाम है। और जब आप मरण से भरते है, मृत्‍यु निकट आती है। जो वह ऊर्जा बाहर जाती है। दस वर्षों पहले तक, केवल दस वर्षों पहले तक वैज्ञानिक इस बात के लिए राज़ी नहीं थे कि मृत्‍यु में कोई ऊर्जा मनुष्‍य के बाहर जाती है। लेकिन रूस के डेविड विच किरलियान की फोटोग्राफी ने पूरी धारण को बदल दिया है।
      किरलियान की बात मैंने आपसे पीछे की है। उस संबंध में जो एक बाज आज काम की है आपसे कहना हे। किरलियान ने जीवित व्‍यक्‍ति के चित्र लिए है, तो उन चित्रों में शरीर के आसपास उर्जा का वर्तुल एनर्जी फील्‍ड चित्रों में आता है। हायर सेंसिटिविटी फोटो ग्राफी में, बहुत संवेदनशील फोटोग्राफी में आपके आसपास ऊर्जा का एक वर्तुल आता है। लेकिन अगर मरे आदमी का अभी मर गया आदमी का चित्र लेते है तो वर्तुल नहीं होता। उर्जा के गुच्‍छे आदमी से दूर जाते हुए आते है। उर्जा के गुच्‍छे आदमी से दूर हटते हुए आते है।
      मृत्‍यु में उर्जा आपके शरीर से बहार जा रही है। लेकिन शरीर का वज़न कम नहीं होता है। निश्‍चित ही कोई ऐसी ऊर्जा है जिस पर ग्रैविटेशन का कोई असर नहीं होता। क्‍योंकि वज़न का एक ही अर्थ होता है। कि जमीन में जो गुरुत्वाकर्षण है उसका खिंचाव। आपका जितना वज़न है, आप भूल कर ये मत समझना आपका इतना वज़न है। वह जमीन के खिंचाव का वज़न है। जमीन जितनी ताकत से आपको खींच रही हो, उस ताकत का माप है। अगर आप चाँद पर जाएंगे तो आपका वज़न चार गुणा कम हो जायेगा। क्‍योंकि चाँद भी चार गुणा कम ग्रैविटेशन रखता है। अगर आप....सौ पौंड आपका वज़न है तो पच्‍चीस पौंड चाँद पर होगा। इसे आप ऐसा भी समझ सकते है कि अगर आप जमीन पर छह फीट ऊंचे कूद सकते है तो चाँद पर आप जाकर चौबीस फीट ऊंची कूद लगा सकते है। ग्रैविटेशन नहीं होता। इसलिए यात्री  को पट्टों से बाँध कर उसकी कुर्सी पर रखना पड़ता है। अगर पट्टा जरा छूट जाए तो वह जैसे गैस भरा गुब्‍बारा जाकर ऊपर टकराने लगे, ऐसा आदमी टकराने लगेगा। क्‍योंकि उसमें कोई वज़न नहीं है। जो उसे नीचे खींच सके। वज़न जो है वह जमीन के गुरुत्वाकर्षण से है। लेकिन किरलियान के प्रयोगों ने सिद्ध किया है कि आदमी से ऊर्जा तो निकलती है। लेकिन वज़न कम नहीं होता। निश्‍चित ही इस ऊर्जा पर जमीन के गुरुत्वाकर्षण का कोई प्रभाव न पड़ता होगा। योग के लेविटेशन में जमीन से शरीर को उठाने के प्रयोग से उसी ऊर्जा का उपयोग है।
--ओशो
महावीर वाणी—भाग:1
नौवां प्रवचन
दिनांक 26 अगस्‍त 1971,
पाटकर हाल बम्‍बई

2 टिप्‍पणियां:

  1. नौवीं उर्जा आठो उर्जा का आधार है। और बिना नौवीं ऊर्जा के महासूर्य (परम शून्य) तक नहीं पहुंच पा सकते।

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