देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर
सामाजिक)—ओशो
दसवां प्रवचन
मेरी दृष्टि में रचनात्मक क्या है?
मेरे प्रिय आत्मन्!
बहुत से प्रश्न पूछे गए हैं। एक मित्र ने पूछा है
कि मैं बोलता ही रहूंगा, कोई सेवा कार्य नहीं करूंगा,
कोई रचनात्मक काम नहीं करूंगा, क्या मेरी
दृष्टि में सिर्फ बोलते ही जाना पर्याप्त है?
इस बात को थोड़ा समझ लेना उपयोगी है। पहली बात तो यह कि जो लोग सेवा को
सचेत रूप से करते हैं, कांशसली, उन लोगों को मैं समाज
के लिए अहितकर और खतरनाक मानता हूं। सेवा जीवन का सहज अंग हो छाया की तरह, वह हमारे प्रेम से सहज निकलती हो, तब तो ठीक;
अन्यथा समाज-सेवक जितना समाज का अहित और नुकसान करते हैं, उतना कोई भी नहीं करता है।
समाज-सेवा भी अहंकारियों के लिए एक व्यवसाय है। दिखाई ऐसा पड़ता है कि
समाज-सेवक विनम्र है; सबकी सेवा करता है; लेकिन सेवक
के अहंकार को कोई देखेगा तो पता चलेगा कि सेवक भी सेवा करके मालिक बनने की पूरी
चेष्टा में संलग्न होता है।