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मंगलवार, 15 अगस्त 2017

देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—प्रवचन-10



देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—ओशो

दसवां प्रवचन
मेरी दृष्टि में रचनात्मक क्या है?
मेरे प्रिय आत्मन्!

बहुत से प्रश्न पूछे गए हैं। एक मित्र ने पूछा है कि मैं बोलता ही रहूंगा, कोई सेवा कार्य नहीं करूंगा, कोई रचनात्मक काम नहीं करूंगा, क्या मेरी दृष्टि में सिर्फ बोलते ही जाना पर्याप्त है?

इस बात को थोड़ा समझ लेना उपयोगी है। पहली बात तो यह कि जो लोग सेवा को सचेत रूप से करते हैं, कांशसली, उन लोगों को मैं समाज के लिए अहितकर और खतरनाक मानता हूं। सेवा जीवन का सहज अंग हो छाया की तरह, वह हमारे प्रेम से सहज निकलती हो, तब तो ठीक; अन्यथा समाज-सेवक जितना समाज का अहित और नुकसान करते हैं, उतना कोई भी नहीं करता है।
समाज-सेवा भी अहंकारियों के लिए एक व्यवसाय है। दिखाई ऐसा पड़ता है कि समाज-सेवक विनम्र है; सबकी सेवा करता है; लेकिन सेवक के अहंकार को कोई देखेगा तो पता चलेगा कि सेवक भी सेवा करके मालिक बनने की पूरी चेष्टा में संलग्न होता है।

रविवार, 13 अगस्त 2017

देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—प्रवचन-09



देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—ओशो

नौवां प्रवचन
गांधी का चिंतन अवैज्ञानिक है

...व्यवहार करते हैं। ये दोनों तरकीबें हैं। जिंदा आदमी को मार डालो और मरे हुए आदमी की पूजा करो। ये छूटने के रास्ते हैं, ये बचने के रास्ते हैं। फिर पूजा भी हम उसी की करते हैं जिसे हमने बहुत सताया हो। पूजा मानसिक रूप से पश्चात्ताप है। वह प्रायश्चित्त है। जिन लोगों को जीते जी हम सताते हैं, उनके मरने के बाद पूरा समाज उनकी पूजा करता है; ऐसे प्रायश्चित्त करता है। वह जो पीड़ा दी है, वह जो अपराध किया है, वह जो पाप है भीतर, उस पाप का प्रायश्चित्त चलता है, फिर हजारों साल तक पूजा चलती है। पूजा किए गए अपराध का प्रायश्चित्त है। लेकिन वह भी अपराध का ही दूसरा हिस्सा है।
गांधी को जिंदा रहते में हम सताएंगे, न सुनेंगे उनकी, लेकिन मर जाने पर हम हजारों साल तक पूजा करेंगे। यह गिल्टी कांसियंस, यह अपराधी चित्त का हिस्सा है यह पूजा। और फिर इस पूजा के कारण हम सोचने-विचारने को राजी नहीं होंगे। पहले भी हम सोचने-विचारने को राजी नहीं होते। गांधी जिंदा हों तो हम सोचने-विचारने को राजी नहीं हैं।

शनिवार, 12 अगस्त 2017

देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—प्रवचन-06



देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—ओशो

छठवां-प्रवचन
तोड़ने का एक और उपक्रम

मेरे प्रिय आत्मन्!
मित्रों ने बहुत से प्रश्न से पूछे हैं। एक मित्र ने पूछा है: महापुरुषों की आलोचना की बजाय उचित होगा कि सृजनात्मक रूप से मैं क्या देखना चाहता हूं देश को, समाज को, उस संबंध में कहूं।

लेकिन आलोचना से इतने भयभीत होने की क्या बात है। क्या यह वैसा ही नहीं है हम कहें कि पुराने मकान को तोड़ने की बजाय नये मकान को बनाना ही उचित है? पुराने को तोड़े बिना नये को बनाया कब किसने है? और कैसे बना सकता है? विध्वंस भी रचना की प्रक्रिया का हिस्सा है। तोड़ना भी बनाने के लिए जरूरी हिस्सा है। अतीत की आलोचना भविष्य में गति करने का पहला चरण है और जो लोग अतीत की आलोचना से भयभीत होते हैं, वे वे ही लोग हैं जो भविष्य में जाने में सामर्थ्य भी नहीं दिखा सकते हैं।
लेकिन इतना भय क्या है? सृजनात्मक आलोचना, एक क्रिएटिव क्रिटिसिज्म से इतना भय क्या है? क्या हमारे महापुरुष इतने छोटे हैं कि उनकी आलोचना से हमें भयभीत होने की जरूरत पड़े। और अगर वे इतने छोटे हैं तब तो उनकी आलोचना जरूर ही होनी चाहिए, क्योंकि उनसे हमारा छुटकारा हो जाएगा। और अगर वे इतने छोटे नहीं हैं तो आलोचना से उनका कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं है।

देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—प्रवचन-05



देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—ओशो
पांचवां-प्रवचन
अतीत के मरघट से मुक्ति

मेरे प्रिय आत्मन्!
आज ही एक पत्र में मुझे स्वामी आनंद का एक वक्तव्य पढ़ने को मिला। और बहुत आश्चर्य भी हुआ, बहुत हैरानी भी हुई। स्वामी आनंद से किसी ने पूछा कि मैं जो कुछ गांधीजी के संबंध में कह रहा हूं उसके संबंध में आपके क्या खयाल हैं? स्वामी आनंद ने तत्काल कहा, उस संबंध में मैं कुछ भी नहीं कहना चाहता हूं। शिष्टाचार वश शायद उनके मुंह से ऐसा निकल गया होगा, क्योंकि यह कहने के बाद वे रुके नहीं और जो कहना था वह कहा। ऊपर से ही कह दिया होगा कि कुछ नहीं कहना चाहता हूं, लेकिन भीतर आग उबल रही होगी वह पीछे से निकल आई, इससे रुकी नहीं। आश्चर्य लगा मुझे कि पहले कहते हैं कि कुछ भी नहीं कहना चाहता हूं और फिर जो कहते हैं! आदमी ऐसा ही झूठा और प्रवंचक है। शब्दों में कुछ है, भीतर कुछ है। कहता कुछ है, कहना कुछ और चाहता है। उन्होंने जो कहा वह और भी हैरानी का है।
स्वामी आनंद तो मुझसे भलीभांति परिचित हैं। लेकिन, ऐसी जानकारी भी उनकी होगी, यह मुझे पता नहीं था। उन्होंने कहा कि नहीं कुछ कहना चाहता हूं, और फिर कहा कि अगर एक कौआ मस्जिद पर बैठ कर अपने को मुल्ला समझने लगे, तो इसमें कुछ कहने की बात नहीं। स्वामी आनंद से मैं परिचित हूं। लेकिन मुझे इसका परिचय नहीं था कि उनका कौओं से परिचय है।

देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—प्रवचन-04



देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—ओशो

चौथा-प्रवचन
लकीरों से हट कर

मित्रों ने बहुत से प्रश्न पूछे हैं। एक मित्र ने पूछा है कि गांधीजी ने दरिद्रों को दरिद्रनारायण कहा, इससे उन्होंने दरिद्रता को कोई गौरव-मंडित नहीं किया है, कोई ग्लोरीफाई नहीं किया है।

शायद आपको पता न हो, दरिद्रनारायण शब्द गांधीजी की ईजाद है। हिंदुस्तान में एक शब्द चलता था, वह था लक्ष्मीनारायण। दरिद्रनारायण शब्द कभी नहीं चलता था, चलता था लक्ष्मीनारायण। मान्यता यह थी कि लक्ष्मी के पति ही नारायण हैं। ईश्वर को भी हम ईश्वर कहते हैं, ऐश्वर्य के कारण। वह शब्द भी ऐश्वर्य से बनता है। लक्ष्मी के पति जो हैं वह नारायण हैं। समृद्धनारायण, ऐसी हमारी धारणा थी। हजारों साल से वही धारणा थी। धारणा यह थी कि जिनके पास धन है उनके पास धन पुण्य के कारण है, परमात्मा की कृपा के कारण है। धन का एक महिमावान रूप था, धन गौरव-मंडित था, धन की ग्लोरी थी हजारों वर्षों से। दरिद्र दरिद्र था पाप के कारण, अपने पिछले जन्मों के पापों के कारण दरिद्र था। धनी धनी था अपने पिछले जन्मों के पुण्यों के कारण। धन प्रतीक था उसके पुण्यवान होने का, दरिद्रता प्रतीक थी उसके पापी होने का। यह हमारी धारणा थी।

शुक्रवार, 11 अगस्त 2017

देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—प्रवचन-03



देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—ओशो

तीसरा प्रवचन
एक और असहमति
मेरे प्रिय आत्मन्!

मैं कोई राजनीतिज्ञ नहीं हूं और न ही मैंने अपने किसी पिछले जन्म में ऐसे कोई पाप किए हैं कि मुझे राजनीतिज्ञ होना पड़े। इसलिए राजनीतिज्ञ मुझसे परेशान न हों और चिंतित न हों। उन्हें घबड़ाने की और भयभीत होने की कोई भी जरूरत नहीं है। मैं उनका प्रतियोगी नहीं हूं, इसलिए अकारण मुझ पर रोष भी प्रकट करने में शक्ति जाया न करें। लेकिन एक बात जरूर कह देना चाहता हूं, हजारों वर्ष तक भारत के धार्मिक व्यक्ति ने जीवन के प्रति एक उपेक्षा का भाव ग्रहण किया था।
गांधी ने भारत की धार्मिक परंपरा में उस उपेक्षा के भाव को आमूल तोड़ दिया है। गांधी के बाद भारत का धार्मिक व्यक्ति जीवन के और पहलुओं के प्रति उपेक्षा नहीं कर सकता है। गांधी के पहले तो यह कल्पनातीत था कि कोई धार्मिक व्यक्ति जीवन के मसलों पर चाहे वह राजनीति हो, चाहे अर्थ हो, चाहे परिवार हो, चाहे सेक्स हो--इन सारी चीजों पर कोई स्पष्ट दृष्टिकोण दे। धार्मिक आदमी का काम था सदा से जीवन जीना सिखाना नहीं, जीवन से मुक्त होने का रास्ता बताना। धार्मिक आदमी का स्पष्ट कार्य था लोगों को मोक्ष की दिशा में गतिमान करना।

देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—प्रवचन-02



देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—ओशो

दूसरा प्रवचन
संचेतना के ठोस आयाम

कुछ मित्रों ने कहा है कि गांधीजी यंत्र के विरोध में नहीं थे। और मैंने कल सांझ को कहा कि गांधीजी यंत्र, केंद्रीकरण विकसित तकनीक के विरोध में थे।

गांधीजी की उन्नीस सौ अठारह से लेकर उन्नीस सौ अड़तालीस तक की चिंतना को हम देखेंगे तो उसमें बहुत फर्क होता हुआ मालूम पड़ता है। वे बहुत सजग आब्जर्वर थे। वे रोज-रोज, जो उन्हें गलत दिखाई पड़ता, उसे छोड़ते, जो ठीक दिखाई पड़ता उसे स्वीकार करते हैं। धीरे-धीरे उनका यंत्र-विरोध कम हुआ था, लेकिन समाप्त नहीं हो गया था।
अगर वे जीवित रहते और बीस वर्ष, तो शायद उनका यंत्र-विरोध और भी नष्ट हो गया होता। लेकिन वे जीवित नहीं रहे, और हमारा दुर्भाग्य सदा से यह है कि जहां हमारा महापुरुष मरता है वहीं उसका जीवन-चिंतन भी हम दफना देते हैं। महापुरुष तो समाप्त हो जाते हैं, उनकी जीवन-चिंतना आगे बढ़ती रहनी चाहिए। जहां महापुरुष समाप्त होते हैं वहीं उनका जीवन-दर्शन समाप्त नहीं हो जाना चाहिए। महापुरुष का शरीर समाप्त हो जाता है, उसका जीवन-चिंतन देश को आगे बढ़ाते रहना चाहिए। लेकिन हम इतने भयभीत हैं, हम इतने डरे हुए लोग हैं कि हम चिंतन को आगे ले जाना नहीं चाहते, हम चिंतन को वहीं ठोंक कर रोक देना चाहते हैं, जहां महापुरुष का शरीर गिर जाता है वहीं हम उसके चिंतन को भी दफना देना चाहते हैं। उसके ही विरोध में मैं कह रहा हूं।

गुरुवार, 10 अगस्त 2017

देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—प्रवचन-01



देख कबीरा रोया-(राष्ट्रीय ओर सामाजिक)—ओशो

पहला प्रवचन
एक मृत महापुरुष का जन्म
मेरे प्रिय आत्मन्!
वेटिकन पोप अमेरिका गया हुआ था। हवाई जहाज से उतरने के पहले उसके मित्रों ने उससे कहा, एक बात ध्यान रखना, उतरते ही हवाई अड्डे पर पत्रकार कुछ पूछें तो थोड़ा सोच-समझ कर उत्तर देना। और "हां' और "न' में तो उत्तर देना ही नहीं। जहां तक बन सके, उत्तर देने से बचने की कोशिश करना; अन्यथा अमेरिका में आते ही परेशानी शुरू हो जाएगी।
पोप जैसे ही हवाई अड्डे पर उतरा, वैसे ही पत्रकारों ने उसे घेर लिया और एक पत्रकार ने उससे पूछा, वुड यू लाइक टु विजिट एनी न्युडिस्ट कैंप, वाइल इन न्यूयार्क? क्या तुम कोई दिगंबर क्लब, कोई न्युडिस्ट क्लब, कोई नग्न रहने वाले लोगों के क्लब में, न्यूयार्क में रहते समय जाना पसंद करोगे?

उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-10



उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो
सावन आया अब के सजन-(प्रवचन-दसवां)
दिनांक 10 जनवरी सन् 1979 ओशो आश्रम पूना।
प्रश्नसार:

     भगवान,
            पल भर में यह क्या हो गया,
            वह मैं गई, वह मन गया!
            चुनरी कहे, सुन री पवन
            सावन आया अब के सजन।
      फिर-फिर धन्यवाद प्रभु!

     भगवान, जीवन के हर आयाम में सत्य के सामने झुकना मुश्किल है
      और झूठ के सामने झुकना सरल! ऐसी उलटबांसी क्यों है?

     भगवान, क्या मौत पर विजय नहीं पाई जा सकती है?

     भगवान, आप सत्य को बांटने में सदा संलग्न रहते हैं।
      आपकी अथक चेष्टा देख बस मैं चकित हूं!
      आप कहते हैं चमत्कार नहीं होते।
      मैं कैसे मानूं? आप तो जीवित चमत्कार हैं!
      मनुष्य की चेतना को जगाने का ऐसा प्रयास न पहले हुआ और न आगे होगा!
      मैं इस चमत्कार को नमस्कार करती हूं।

बुधवार, 9 अगस्त 2017

उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-09



उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो
वेणु लो, गूंजे धरा-(प्रवचन-नौवां)
दिनांक 09 जनवरी सन् 1979 ओशो आश्रम पूना।

प्रश्नसार:
     भगवान, आपका मूल संदेश क्या है?

     भगवान,
            जाने क्या ढूंढती रहती हैं निगाहें मेरी
            राख के ढेर में न शोला है न चिनगारी।
      जिंदगी में है तो बहुत कुछ, लेकिन जीत कर कुछ भी न मिला, कुछ न रहा।
      जिसकी आस किए बैठी हूं, वह बार-बार क्यों फिसल जाता है?

     भगवान, आपके आश्रम को देख कर दूसरे लोक की अनुभूति हुई।
      यह हमारे भारत देश में कहां तक सार्थक है?

     भगवान, मैं आचार्य तुलसी के जाने-माने श्रावकों के परिवार से हूं।
      कुछ दिनों पहले आपने उनके पंडितराज शिष्य, मुनि नथमल,
      जिनको महाप्राज्ञ युवराज की उपाधि से अभिषेक किया गया है,
      उनको मुनि थोथूमल की उपाधि दी।
      उसके बाद उनका एक लेख अणुव्रत नाम की पत्रिका में देखा
      "कितना सच, कितना झूठ' शीर्षक से,
      जिसमें उन्होंने संभोग से समाधि की चर्चा की है, जो कि उनके अधिकार का विषय नहीं है।
      मेरे देखे, न तो उनको संभोग का कोई अनुभव है, समाधि का अनुभव होने की तो बात ही दूर।
      फिर भी आप जैसे अनुभूतिपूर्ण विवेचन की ऐसी बचकानी चर्चा करते हैं--
      काम के दमन की नहीं, उदात्तीकरण की बात करते हैं।
      बड़ा ही रोष आता है। कई बार मन उनसे जाकर बात करने का होता है।

मंगलवार, 8 अगस्त 2017

उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-08



उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

मेरी आंखों में झांको-(प्रवचन-आठवां)
दिनांक 08 जनवरी सन् 1979 ओशो आश्रम पूना।
प्रश्नसार:

     भगवान, क्या भारतीय संस्कृति विश्व की श्रेष्ठतम संस्कृति नहीं है?

     भगवान, मनुष्य इतना दुखी और इतना उदास क्यों हो गया है?

     भगवान, जनता जिस ईश्वर को पूजती है वह ईश्वर और आपका ईश्वर क्या एक ही है?

पहला प्रश्न: भगवान, क्या भारतीय संस्कृति विश्व की श्रेष्ठतम संस्कृति नहीं है?

सुरेंद्र कुमार, मनुष्य का अहंकार बहुत से रूप लेता है। अहंकार के खेल बड़े सूक्ष्म हैं। मैं बड़ा हूं, ऐसा सीधा कहना तो मुश्किल है, परोक्ष रूप से ही कहा जा सकता है। मेरा धर्म बड़ा है, मेरा देश बड़ा है, मेरी संस्कृति बड़ी है, इन सबके पीछे घोषणा एक ही है: मैं बड़ा हूं!
और तुम सोचते हो, तुम्हीं सोचते हो कि भारतीय संस्कृति श्रेष्ठतम है? चीनी सोचते हैं चीनी संस्कृति श्रेष्ठतम है। और अमरीकी सोचते हैं कि अमरीकी संस्कृति श्रेष्ठतम है। दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है जो ऐसा ही न सोचता हो।

रविवार, 6 अगस्त 2017

उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-07



उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

संन्यास : परमात्मा का संदेश-(प्रवचन-सातवां)
दिनांक 07 जनवरी सन् 1979 ओशो आश्रम पूना।
प्रश्नसार:

     भगवान, उन्नीस सौ चौंसठ के माथेरान शिविर में आपसे प्रथम मिलन हुआ था।
      माथेरान स्टेशन पर जिस प्रेम से आपने मुझे बुलाया था, वे शब्द आज भी कान में गूंजते हैं।
      उन दिन जो आंसू झर-झर बह रहे थे, वे आंसू अब तक आते ही रहते हैं।
      आपको सुनते समय, आपके दर्शन के समय यही स्थिति रहती है।
      आपके साथ रहने का, उठने-बैठने का सौभाग्य काफी सालों तक मिलता रहा है।
      आपसे प्राप्त प्रेम की जो परिपूर्ण अवस्था उस दिन थी वही परिपूर्ण अवस्था आज भी है।
      यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी और आश्चर्यजनक घटना मानती हूं।
      यह प्रेम की अवस्था मेरे जीवन के अंत समय तक रहे, ऐसा आशीर्वाद आपसे चाहती हूं!

     भगवान, एक प्रश्न के उत्तर में आपने कहा कि पत्नी को दुख मत दो। संन्यास की जल्दी न
      करो। अगर जल्दी करोगे तो तुम ही मेरे और तुम्हारी पत्नी के बीच दीवार बनोगे।
      भगवान, ठीक यही मेरे साथ हुआ है।
      आखिर पत्नी को साथ ले चलना इतना असंभव सा क्यों लगता है?
      क्या यह आकांक्षा ही गलत है?

शनिवार, 5 अगस्त 2017

उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-06



उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

आनंद स्वभाव है-(प्रवचन-छटवां)
दिनांक 06 जनवरी सन् 1979 ओशो आश्रम पूना।
प्रश्नसार:

     भगवान, कभी सोचा भी नहीं था कि जीवन इतना स्वाभाविकता से, आनंदपूर्ण जीया जा
      सकता है! शाम को गायन-समूह में इतनी नृत्यपूर्ण हो जाती हूं! जिस जीवन की खोज थी मुझे,
      वह मिलता जा रहा है। कहां थी--और कहां ले जा रहे हैं आप!
      जितना अनुग्रह मानूं उतना कम है। ऐसा प्यार बहा रहे हो भगवान, चरणों में झुकी जाती हूं मैं!

     भगवान, आप अमृत दे रहे हैं और अंधे लोग आपको जहर पिलाने पर आमादा हैं।
      यह कैसा अन्याय है?
     
     भगवान, कोकिल की कुहू-कुहू और आपका प्रवचन, दोनों इकट्ठे चलते हैं।
      किस पर ध्यान करें? कृपया बताएं।

     भगवान, सत्य कहां है?

उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-05



उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

मैं सिर्फ एक अवसर हूं-(प्रवचन-पांचवां)
दिनांक 05 जनवरी सन् 1979 ओशो आश्रम पूना।
प्रश्नसार:

भगवान, अनेक संतों और सिद्धों के संबंध में कथाएं प्रचलित हैं कि वे जिन पर प्रसन्न होते थे
उन पर गालियों की वर्षा करते थे। परमहंस रामकृष्ण के मुंह से ऐसे ही बहुत गालियां
निकलती थीं, बात-बात में गालियां। यही बात प्रख्यात संगीत गुरु अलाउद्दीन खां       के जीवन में भी उल्लेखनीय है। क्या इस पर कुछ प्रकाश डालने की अनुकंपा करेंगे?

भगवान, आप कल की भांति हमेशा ही मेरी झोली खुशियों से भर देते हैं।
मेरे प्रभु, कैसे आपको धन्यवाद दूं! देखो न यह धन्यवाद शब्द ही कितना छोटा है,
कितना असमर्थ! आपने जो दिया है वह विराट!
कैसे कहूं दिल की बात! पर कहे बिना रहा भी नहीं जाता।
आंखें आपके प्रेम में आंसुओं से भर गई हैं, हृदय आनंद से और रोम-रोम अनुग्रह से।
      मेरे प्यारे प्रभु, इसी तरह मुझमें समाए रहना! मैं तो बार-बार आपको भूल-भूल जाती हूं,
      पर आप इसी भांति याद बन कर मेरी सांस-सांस में समाए रहना!

भगवान, हम कैसे जीएं कि जीवन में कोई भूल न हो?

शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-04



उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

सरस राग रस गंध भरो-(प्रवचन-चौथा)
दिनांक 04 जनवरी सन् 1979 ओशो आश्रम पूना।
प्रश्नसार:

    भगवान, आनंद क्या है? उत्सव क्या है?

     भगवान, क्या जीवन मात्र संघर्ष ही है--संघर्ष और संघर्ष? या कुछ और भी?

भगवान, इस जीवन में मैंने दुख ही दुख क्यों पाया है?

भगवान, आपका संदेश घर-घर पहुंचाने का संकल्प अपने आप ही सघन होता जा रहा है।
      समाज हजार बाधाएं खड़ी करेगा, कर रहा है। जीवन भी संकट में पड़ सकता है।
      मैं क्या करूं?

पहला प्रश्न: भगवान, आनंद क्या है? उत्सव क्या है?

गुरुवार, 3 अगस्त 2017

उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-03



उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

प्राण के ओ दीप मेरे-(प्रवचन-तीसरा)
दिनांक 03 जनवरी सन् 1979 ओशो आश्रम पूना।
प्रश्नसार:

     भगवान, परमात्मा जिनका अनुभव नहीं बना है, उनकी प्रार्थना क्या हो? उनका भजन क्या हो?

     भगवान, चार्वाक-दर्शन की ग्रंथ-संपदा को क्यों नष्ट किया गया?
      चार्वाक के बारे में आपके क्या विचार हैं?

     भगवान, आप ऐसी भाषा में क्यों नहीं बोलते जो मेरी समझ में आ सके?
      आपको सुनता हूं, रोता हूं, लेकिन कुछ समझ में नहीं आता है।

     भगवान, आपको सुनता हूं तो परमात्मा के लिए बहुत तड़फ उठती है,
      विरह का अनुभव होता है। रोता हूं, बहुत रोता हूं।
      अब आगे क्या होगा?

     भगवान, पत्नी संन्यास लेने से रोकती है,
      उसे दुख भी नहीं देना चाहता हूं और संन्यास भी लेना ही है।
      अब आपने ही उलझाया, आप ही सुलझावें।

बुधवार, 2 अगस्त 2017

उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-02



उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो

डूबो-(प्रवचन-दूसरा)
दिनांक 2 जनवरी सन् 1979 ओशो आश्रम पूना।
प्रश्नसार:
     भगवान, स्त्री तो बिना प्रेम के नहीं पहुंच सकती। स्त्री तो सिर्फ डूबना जानती है।
      और आप में डूब कर ही जाना हो सकता है। मुझे डुबा लें और उबार लें।

     भगवान, सुना है श्री मोरारजी भाई को गीता पूरी कंठस्थ याद है।
      फिर भी वे राजनीति में इतने उत्सुक क्यों हैं?

     भगवान, मेरी होने वाली पत्नी मुझे छोड़ना चाहती है, यह बात ही मुझे कटार की भांति चुभती है।
      मैं उसे प्रेम करता हूं और जीते जी कभी छोड़ नहीं सकता हूं। वह किसी और के प्रेम में है।
      कृपया, आप ऐसा कुछ करें कि वह मुझे छोड़े नहीं।
      मैं उसके डर के कारण अपना नाम भी नहीं लिख रहा हूं।

     मैं कौन हूं? भगवान, क्या आप बता सकते हैं?

मंगलवार, 1 अगस्त 2017

उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-01

उत्सव आमार जाति आनंद आमार गोत्र-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो
जग-जग कहते जुग भये-(प्रवचन-पहला)
दिनांक 1 जनवरी सन् 1979 ओशो आश्रम पूना।

प्रश्न-01     भगवान, नव-आश्रम के निर्माण में इतनी देर क्यों हो रही है?
      हम आस लगाए बैठे हैं कि कब हम भी बुद्ध-ऊर्जा के अलौकिक क्षेत्र में प्रवेश करें।
      और हम ही नहीं, हजारों आस लगाए बैठे हैं। अंधेरा बहुत है, प्रकाश चाहिए।
      और प्रकाश के दुश्मन भी बहुत हैं। इससे भय भी लगता है कि कहीं
      यह जीवन भी और जीवनों की भांति खाली का खाली न बीत जाए!

प्रश्न-02     भगवान, संग का रंग लगता ही है या कि यह केवल संयोग मात्र है? कृपा कर समझावें!

प्रश्न-03     भगवान,
            काल करंते आज कर, आज करंते अब।
            पल में परलय होयगी, बहुरि करोगे कब।।
                  और
            आज करंते काल कर, काल करंते परसों।
            जल्दी-जल्दी क्यों करता है, अभी तो जीना बरसों।।
      आपके हिसाब से तो दोनों कहावतें सच होंगी, पर हमारे लिए कौन सा निदान है?
      कृपा करके समझाएं!

प्रश्न-04     भगवान, हम संन्यासियों का परिचय क्या?