सतगुरु करहु जहाज—(प्रवचन-नौवां)
दिनांक 29 जनवरी 1979;
श्री ओशो आश्रम, पूना
सारसूत्र :
पांच तत्त की
कोठरी,
तामें जाल जंजाल।
जीव तहां बासा करै, निपट
नगीचे काल।।
दरिया तन से नहिं
जुदा,
सब किछु तन के माहिं।
जोग-जुगति सौं
पाइये,
बिना जुगति किछु नाहिं।।
दरिया दिल दरियाव
है अगम अपार बेअंत।
सब महं तुम, तुम में
सभे, जानि मरम कोइ संत।।
माला टोपी भेष
नहिं,
नहिं सोना सिंगार।
सदा भाव सतसंग है, जो कोई
गहै करार।।
परआतम के पूजते, निर्मल
नाम अधार।
पंडित पत्थल पूजते, भटके जम
के द्वार।।
सुमिरन माला भेष
नहिं,
नाहीं मसि को अंक।
सत्त सुकृत दृढ़
लाइकै,
तब तोरै गढ़ बंक।।
दरिया भवजल अगम
अति,
सतगुरु करहु जहाज।
तेहि पर हंस
चढ़ाइकै,
जाइ करहु सुखराज।।
कोठा महल अटारियां, सुन उ
स्रवन बहु राग।
सतगुरु सबद
चीन्हें बिना, ज्यों पंछिन महं काग।।
दरिया कहै सब्द
निरबाना!