जीवन संघर्ष के वो दिन जीवन में कुछ ऐसे आयाम दे गये जिन आयामों को मैं बिना
उनके अंदर से गूजरें हुए उन्हें वैसे कभी नहीं जान सकता था। उन्हीं दिनों मैंने
जाना मनुष्य की उपलब्धि को, उसके प्रेम को, उसकी बौद्धिकता को, उसका स्नेह को, उसका अपनापन और
लगाव मेरे अंतस के गहरे तक उतर गया। कैसे वो सामर्थ है अपने संगी साथी के सहयोग
में। हम दूसरे प्राणी इस विषय में सोच भी नहीं सकते। वो पहली रात मेरे तन मन पर
बहुत भारी गुजरी। मेरे पूरे शरीर मैं इतनी बेचैनी की में एक जगह बैठ ही नहीं सकता
था। लगता था यहां से उठ कर कही दूर चला जाऊं। कितनी बार उठ—उठ कर में कमरे से बहार
गया। एक अजीब सी बेचैनी थी मेरे शरीर में। डा0 ने तो मुझे देख कर ही कह दिया था
कोई उम्मीद नहीं है। फिर भी मनुष्य उम्मीद नहीं छोड़ता। डा0 ने अपना जो अपना
काम करना था वो कर दिया। शायद मेरे शरीर में पानी की कमी हो गई थी।
जोगी तु क्यों आया मेरे द्वारा। तेरी आंखों में नहीं दिखता सपनों का अब वो संसार। जोगी तु क्यों आया मेरे द्वार.......... Mansa
कुल पेज दृश्य
शुक्रवार, 9 जून 2017
गुरुवार, 8 जून 2017
पोनी--(एक कुत्ते की आत्म कथा)-अध्याय-12
शायद सितम्बर का महीना था। बरसात अभी गई नहीं
थी। कभी कभार रिम—झिम फुहार पड़ ही जाती थी। वैसे धूप में गर्मी बहुत दी और बादलों
के बीच से जो छन का धूप आती थी और भी बहुत कर्कश ओर तेज चुभती थी। बरसात के इन दो
महीनों से हम लोग जंगल कम ही गये थे। क्योंकि इन दिनों जंगल में सांप वगैरह का ज्यादा
भय होता था। और खास कर श्याम के समय जब
पुरवा हवा चलती थी जो वह सांप को बहुत प्रिय होती है। दिन भर की तपीस को शांत करे
के लिए इस समय अकसर बिल के बहार निकल आते थे। वैसे कहते है कि हमारे यहां का सांप
बहुत शांत है, कम ही लोगों को डसा था,
जिस तादाद में सांप पाये जाते है उसकी बनस्पत। वरना जितने साँपों की तादाद है उस
हिसाब से बहुत लोगो का डस लेना चाहिए लेकिन कभी कभार ही सुनने में आता था कि फला
आदमी को सांप ने काट लिया।
पोनी--(एक कुत्ते की आत्म कथा)-अध्याय-11
बच्चे ज़िद्द करने लगे की हम आज स्कूल नहीं
जायेगे। मम्मी ने भी उनके साथ जबरदस्ती नहीं की शायद वह भी टोनी की मृत्यु के दुःख से भरी हुई थी। और टोनी की अंतिम
विदाई की तैयारी होने लगी। पापा जी ने टोनी को एक कपड़े से लपेट कर उसे स्कूटर की
जाली में रख दिया। इसी जाली में एक दिन वह बैठ कर कभी इस घर में आया था। इस जाली
में लेट कर आज बिदा हो रहा है। सब बच्चे
उसे बिदा करने जा रहे के। मेरा भी मन कर रहा था मैं भी साथ जाऊं। मैं स्कूटर के
पास खड़ा हो गया। पापा जी ने कहा पोनी तू भी चलेगा। आपने दोस्त को अंतिम विदाई
देने। मेंने पूछ हिलाई। दीदी ने मुझे गोद में बिठा लिया।
हम सब एक ही स्कूटर पर
चल दिये। एक सर्कस की झांकी की तरह। आगे वरूण और हिमांशु भैया खड़े हो गये। फावड़ा
पीछे बाध दिया। और दो नमक की थैलियां डिग्गी में डाल ली। मम्मी ने हमे दुकान से
ही बिदा किया। हम जंगल के अंदर काफी दूर गहरे में निकल गये। पापा जी ने उस गहरे
नाले को भी हमें बैठे—बिठाये पार कर लिया। पहले तो मुझे कुछ डर लगा। पर बाद में
लगा जब बच्चे ही नहीं गिरेगे तो मैं कैसे गिर सकता हूं।
बुधवार, 7 जून 2017
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-10
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
प्रवचन—दसवां
दिनांक 05 अप्रेल सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।
प्रश्न-सार-
1—बिन मांगे सच्चे रत्नों से झोली भर दी
बिन चाहे मेरे जीवन में खुशियां भर दीं
ये कैसे क्या कुछ हुआ, इसे कह दो भगवन
अनहोनी थी जो बात, उसे होनी कर दी
2—प्रार्थना कैसे और कब जन्मती है?
3—मैं ध्यान में गहरा जाना चाहता हूं। पर फिर डर लगता
है कि पत्नी-बच्चों का क्या होगा?
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-09
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
प्रवचन—नौवां
दिनांक 04 अप्रेल सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।
प्रश्न-सार
1—मैं ध्यान करूं या भक्ति?
और चूंकि कुछ तय ही नहीं हो पाता है, इसलिए प्रारंभ भी करूं तो कैसे करूं?
2—आपने एक प्रवचन में कहा था कि पुरुष के लिए
"मैं-भाव' और स्त्री के लिए "मेरा-भाव' अर्थात ममता बाधा है। क्या ममता प्रेम का ही दूसरा रूप नहीं है? क्या इतने प्रेमपूर्ण गुण को छोड़ना ही पड़ेगा रूखा-सूखा होकर रहना पड़ेगा?
3—जीवेषणा है क्या? जीवन में इतना
दुख हम देखते हैं, कुछ-कुछ समझ में भी आता है,
फिर भी जीए जाने का मन क्यों होता है?
4—मैं आपको सुनता हूं तो चकित हो रह जाता हूं। अवाक
होता हूं, आश्चर्यविमुग्ध होता हूं, लेकिन
संन्यास में छलांग नहीं लगा पाता हूं। क्या करूं?
रविवार, 4 जून 2017
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-08
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
प्रवचन—आट्ठवां
दिनांक 03 अप्रेल सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।
प्रश्न-सार
1—तुम बसे नहीं इनमें आकर,
ये गान बहुत रोए।
कब तक बरसेगी ज्योति बार कर मुझको?
निकलेगा रथ किस रोज पार कर मुझको?
किस रोज लिए प्रज्वलित बाण आओगे?
खींचते हृदय पर रेख निकल जाओगे?
किस रोज तुम्हारी आग सीस पर लूंगा?
बाणों के आगे प्राण खोल धर दूंगा?
यह सोच विरह में अकुला कर,
ये गान बहुत रोए।
तुम बसे नहीं इनमें आकर,
ये गान बहुत रोए।
2—आपने कहीं कहा है कि मनुष्य की सुख की खोज ही बताती
है कि मनुष्य दुखी है।
उसका यह बुनियादी दुख क्या है? और क्या इस दुख का निरसन भी है?
3—आप कुछ करें! आदमी रोज-रोज पापों की गर्त में डूबा जा
रहा है।
आदमी ऐसा बुरा तो कभी न था, जैसा आज है। आदमी को आखिर हो क्या गया है?
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-07
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
प्रवचन—सातवां
दिनांक 02 अप्रेल सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।
प्रश्न-सार
1—संन्यास देकर आपने एक नया ही जीवन प्रदान किया
है। सिर्फ एक ही कांटा चुभता है--इतनी सुविधा और सामीप्य होने पर भी मैं आपको पूरा
का पूरा नहीं पी पा रहा हूं। अब दुई खलती है। अब मिटा ही डालें।
2—आश्रम में रह कर बहुत आनंदित हूं; पर कभी-कभी अचानक उदास हो जाती हूं।
यह उदासी क्या है, जो आती है और जाती है?
3—मैं मृत्यु से बहुत डरता हूं। क्या करूं?
4—आपने भीतर के सदगुरु की बात कही। उसका क्या अर्थ है?
वे सदगुरु कब और कैसे जाग्रत होते हैं?
5—आपका संदेश?
शनिवार, 3 जून 2017
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-06
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
प्रवचन—छट्ठवां
दिनांक 01 अप्रेल सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।
प्रश्न-सार
1—आपने वर्तमान प्रवचनमाला को नाम दिया:
प्रेम-पंथ ऐसो कठिन!
आप तो कहते हैं कि प्रेम होता है, किया नहीं जाता। फिर प्रेम का मार्ग कैसे बन सकता है? और वह कठिन कैसे हो गया?
2—प्रेम अव्याख्य क्यों है?
3—आप भारत देश की महानता के संबंध में कभी भी कुछ नहीं
कहते हैं। न ही इस देश के नेताओं की प्रशंसा में कुछ कहते हैं। क्यों?
4—फैलने को है विकल मेरे
हृदय का सिंधु भर कर
छोड़ कर तल आ गई है
आंख में आत्मा उमड़ कर
डोलती दुनिया सम्हालो
ज्वार आकुल फूटता है
शून्य का मैं व्यग्र
हाहाकार होना चाहता हूं
तुम मुझे अपने क्षितिज से
घेर कर बंदी बना लो
मैं तुम्हारे व्योम की
झंकार होना चाहता हूं।
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-05
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
प्रवचन—पांचवां
दिनांक 31 मार्च सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।
प्रश्न-सार:
1—आपसे समाधि कैसे चुराएं?
2—मैं तो परमात्मा की याद बहुत करता हूं, लेकिन मन में प्रश्न उठता है कि परमात्मा भी कभी मेरी याद करता है या नहीं?
3—मैंने संसार के सब सुख-दुख को अनुभव कर देखा है। अभी
आपके कहे "ग्रुप' करके मेरा हृदय बिलकुल आपके प्रति खुल
गया है। दिल होता है आप में पूरा डूब जाऊं और आपके साथ आकाश में उडूं और बहारों
में फूल और आनंद बरसाऊं। मुझे अपना लो!
आपकी अनुकंपा अपार है! बहुत धन्यवाद!
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-04
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
प्रवचन—चौथा
दिनांक 30 मार्च सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।
प्रश्न-सार:
1—एक कौतुक मैंने देखा: मेरी खोपड़ी में खंजड़ी बज
रे लोल!
क्या भक्त को अहंकार होता है? जहां ढूंढा, तो श्री हरि आपको ही पाया।
2—ध्यान की गहराई जैसे-जैसे बढ़ रही है, वैसे-वैसे प्राणों में जैसे अनेक गीत फूट पड़ने को मचल उठे हों। क्या करूं?
3—क्या संकोच अहंकार को पुष्ट करता है?
किसी के चरणों में गिर जाने की चाह होते हुए भी
संकोचवश चरण स्पर्श नहीं करता। संकोच में सोचता हूं कि लोग क्या कहेंगे?
4—क्या आत्मोपलब्धि के लिए सांसारिक जीवन जीना आवश्यक
है?
शुक्रवार, 2 जून 2017
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-03
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
प्रवचन—तीसरा
दिनांक 29 मार्च सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।
प्रश्न-सार:
1—भारतीय संसद में फ्रीडम ऑफ रिलीजन बिल, धर्म-स्वातंत्र्य विधेयक लाया जा रहा है। ईसाई उसका विरोध कर रहे हैं। मदर
टेरेसा ने भी उसका विरोध किया है। आप अपना मंतव्य दें।
2—संन्यास का भाव उठ रहा है और फिर मन भाग रहा
है। मुझे ऐसा लगता है कि मैं संन्यास लेने के योग्य नहीं हूं।
3—पिया मेरे मैं कुछ नहीं जानूं,
मैं तो चुप-चुप चाह रही।
मेरे पिया तुम कितने सुहावन,
तुम बरसो ज्यों मेहा सावन।
मैं तो चुप-चुप नहा रही।
पिया मेरे तुम अमर सुहागी,
तुम पाए मैं बहु बड़भागी,
मैं तो पल-पल ब्याह रही।
पिया मेरे मैं कुछ नहीं जानूं,
मैं तो चुप-चुप चाह रही।
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-02
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
प्रवचन-दूसरा
दिनांक 28 मार्च सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।
प्रश्न-सार:
1—परमात्मा शब्द ही मेरी समझ में नहीं आता है।
परमात्मा यानी क्या?
2—वैसे गत पंद्रह वर्षों से आप निरंतर प्रेरणा के
स्रोत रहे हैं, परंतु यहां आपके ऊर्जा-क्षेत्र में रहते हुए कुछ माह
में ही कुछ-कुछ आश्चर्यचकित घटित होने लगा है। हमें इतने दिनों तक दूर क्यों रहना
पड़ा, जब कि पहली ही पहचान में आपकी भगवत्ता स्पष्ट हो गई थी?
3—संत विरहावस्था की चर्चा बहुत करते हैं। यह
विरह क्या बला है?
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-प्रवचन-01
प्रेम—पंथ ऐसो कठिन-(प्रश्नोत्तर)-ओशो
प्रवचन-पहला
दिनांक 27 मार्च सन् 1979,
ओशो आश्रम, कोरेगांव पार्क पूना।
प्रश्न-सार
1—साधु-संतों से सुना है कि भक्ति-मार्ग ही
एकमात्र सरल और सुगम मार्ग है।
लेकिन रहीम का प्रसिद्ध वचन है:
रहिमन मैन तुरंग चढ़ि, चलिबो पावक माहिं।
प्रेम-पंथ ऐसो कठिन, सब कोई निबहत नाहिं।।
इस विरोधाभास पर कुछ कहें।
2—क्या प्रभु के लिए अभीप्सा पर्याप्त है?
3—क्या भगवान भक्त के बिना हो सकता है?
बुधवार, 31 मई 2017
प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-16
प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो
हंसो, जी भर कर हंसो—(सोलहवां
प्रवचन)
दिनांक २६ मार्च, १९८०; श्री
रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:
1—अजीब लत लगी है रोज सुबह आपके साथ बैठ कर हंसने की!
2—कल किसी प्रश्न के उत्तर में आपने बताया कि क्यों साधारण व्यक्ति की समझ
में आपकी बात आती नहीं। मुझे याद आया, आप पहली बार उन्नीस सौ
चौंसठ में पूना आए थे, दो दिन आपके प्रवचन सुने थे, आप को स्टेशन पर छोड़ने आया था। तब मैंने आपको पूछा था: आपकी बात साधारण
आदमी की समझ में आना मुश्किल लगता है। तब आपने कहा था: माणिक बाबू, कौन व्यक्ति खुद को साधारण समझता है? क्या ज्यादातर
व्यक्ति इसी भ्रांति में होते हैं? यह व्यक्ति की असाधारणता
की कल्पना नष्ट करने के लिए नव संन्यास उपयुक्त है। असाधारण को साधारण बनाने की
आपकी कीमिया अदभुत है! इस पर कुछ प्रकाश डालने की कृपा करें।
3—ईश्वर को देखे बिना मैं पूजा किसकी, कैसे और कहां
करूं? समझाने की अनुकंपा करें!
4—इतना आनंद शुरू हो गया है कि कुछ समझ में नहीं आता, बस
यही लगता है--
आप जो मेरी पेशानी में हाथ लगा देते हैं।
सैकड़ों दीप मुहब्बत के जला देते हैं।।
दिल में आनंद का फूल महक उठता है।
मीरा के गीत जब मुझ को सदा देते हैं।।
हम कलमकार हैं सदाकत के आनंद।
जेरे खंजर भी अनलहक की सदा देते हैं।।
जमाने में रहे हैं वही फनकार जिंदा।
फिक्र को जो एक नई तर्जे अदा देते हैं।।
प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-15
प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो
एक नई मनुष्य-जाति की आधारशिला—(पंद्रहवां
प्रवचन)
पंद्रहवां प्रवचन; दिनांक २५ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:
1—आप सरल, निर्दोष चित्त की सदा प्रशंसा करते हैं। यह
सरलता, यह निर्दोष चित्त क्या है?
2—क्या आप अंग्रेजी भाषा के विरोध में हैं? आप कुछ भी
कहें, मैं तो अंग्रेजी सीखूंगी।
3—पूरब-पश्चिम, विज्ञान-धर्म और बाहर-भीतर का संतुलन
जो आप करने का प्रयास कर रहे हैं, यह साधारण जन की समझ में
क्यों नहीं आता है?
पहला प्रश्न: भगवान,
आप सरल, निर्दोष चित्त की सदा प्रशंसा करते हैं। यह
सरलता, यह निर्दोष चित्तता क्या है?
प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-14
प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो
तथाता और विद्रोह—(चौदहवां प्रवचन)
दिनांक २४ मार्च, १९८०; श्री
रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:
1—आप कहते हैं कि धर्म स्वीकार है, तथाता है
और आप यह भी कहते हैं कि धर्म विद्रोह है। धर्म एक साथ तथाता और विद्रोह दोनों
कैसे है?
2—मीरा के इस वचन पीवत मीरा हांसी रे से कई गुना अदभुत वचन तो
यह है कि म्हारो देश मारवाड़ जिसके कारण मेरे हृदय में अन्य जाग्रत व्यक्तियों की
अपेक्षा मीरा का अधिक सम्मान है। आप क्या कहते हैं?
3—आज तक जाने गए बुद्धपुरुषों को किसी पशु ने मारा हो ऐसा
उल्लेख नहीं है और शास्त्रों में कई ऐसे भी उल्लेख हैं कि नाग या शेर या सिंह जैसे
पशु भी बुद्धपुरुषों के पास आकर बैठते थे। भगवान, इसका राज
क्या है?
4—आपने मुझे नाम दिया है: योगानंद। इसका रहस्य
समझाएं?
5—जब भी मैं आपकी बातें सुनता हूं तो मेरा शादी करने का पक्का
इरादा चकनाचूर हो जाता है। लेकिन जब भी मैं अपनी ओर से सोचता हूं तो मुश्किल में
पड़ जाता हूं कि शादी करूं या न करूं। आपने पिछले दो दिन में बताया कि समझदार आदमी
को शादी करनी ही नहीं चाहिए। अब बताएं भगवान, मैं क्या करूं? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता। कृपया मुझे मार्ग दिखावें!
सोमवार, 29 मई 2017
प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-13
धर्म और विज्ञान की भूमिकाएं-(तेरहवां प्रवचन)
दिनांक २३ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:
1--श्रेष्ठ मानव-शरीर पैदा करने का आयोजन विज्ञान
कैसे कर सकता है, इसकी आपने चर्चा की। लेकिन केवल श्रेष्ठ आत्माएं
विज्ञान कैसे चुन सकता है? और श्रेष्ठ आत्माओं को ही उत्कृष्ट
शरीर में प्रवेश कैसे कराएगा? यह काम तो आप जैसे शुद्ध
प्रबुद्ध आत्मा को ही करना पड़ेगा। विज्ञान कोई वैज्ञानिक या हिटलर पैदा कर सकेगा।
लेकिन कोई कृष्ण, महावीर या बुद्ध पैदा कराने का आयोजन कैसे
हो सकता है? इस बात पर प्रकाश डालने की कृपा करें।
2—क्या संसार में कोई भी अपना नहीं है?
3—आपके आश्रम में तो बिना अंग्रेजी जाने जीना मुश्किल
है। जितने विदेशी मैंने यहां देखे इतने एक स्थान पर तो एकत्रित कहीं न देखे थे। अब
मैं क्या करूं? मैं तो आश्रम में ही रहने आई थी। क्या अब
बुढ़ापे में अंग्रेजी सीखूं?
4—हमने प्रतिभावान व्यक्तियों की क्षमता का क्या उपयोग
किया! आइंस्टीन ने खोज भौतिकी का गूढ़ रहस्य और हमने उससे हिरोशिमा व नागासाकी को
जला कर राख कर दिया। कभी-कभी लगता है कि काश अगर न हुए होते जीसस और मोहम्मद तो इस
पृथ्वी पर लाखों-करोड़ों लोगों का खून न बहा होता! धर्म तथा विज्ञान के जगत में
मिले आज तक के सभी वरदान पंडितों, राजनीतिज्ञों के हाथों में
पड़ कर मनुष्य-जाति के लिए अभिशाप सिद्ध हुए हैं। क्या भविष्य में इस दुर्भाग्य से
बचने की संभावना है? कल आपने प्रतिभा को जन्माने की
प्रक्रिया की चर्चा की, प्रतिभाओं का सम्यक उपयोग कैसे हो,
इस संबंध में आपकी क्या दृष्टि है?
5—मैं कभी-कभी विश्वविद्यालय से स्नातक हुआ हूं। संसार
को बदलने की बड़ी इच्छा है। इस महान कार्य के लिए शहीद भी होना पड़े तो मैं सहर्ष
तैयार हूं। मार्गदर्शन दीजिए।
प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-12
प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रश्नोंत्तर)-ओशो
नियोजित संतानोत्पत्ति—(बारहवां प्रवचन)
दिनांक २२ मार्च, १९८०; श्री
रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:
1—आपने योजनापूर्ण ढंग से संतानोत्पत्ति की बात कही और उदाहरण
देते हुए कहा कि महावीर, आइंस्टीन, बुद्ध जैसी
प्रतिभाएं समाज को मिल सकेंगी। मेरा प्रश्न है कि ये नाम जो उदाहरण के नाते आपने
दिए, स्वयं योजित संतानोत्पत्ति अथवा कम्यून आधारित समाज की
उपज नहीं थे। इसलिए केवल कम्यून से प्रतिभाशाली संतानोत्पत्ति की बात अथवा संतान
का विकास समाज की जिम्मेवारी वाली बात पूरी सही नहीं प्रतीत होती।
2—क्या जीवन-मूल्य समयानुसार रूपांतरित होते हैं?
3—आप कहते हैं: न आवश्यकता है काबा जाने की, न काशी
जाने की। क्या आपकी दृष्टि में स्थान का कोई भी महत्व नहीं है?
4—कल आपने एक कवि के प्रश्न के संबंध में जो कुछ कहा उससे मेरे मन में भी
चिंता पैदा होनी शुरू हुई है। मैं हास्य-कवि हूं। इस संबंध में आपका क्या कहना है?
5—मेरी विनम्र लघु आशा है
बनूं चरण की दासी
स्वीकृत करो कि न करो
पर हूं मैं एक बूंद की प्यासी।
प्रितम छवि नैनन बसी-(प्रश्नोंत्तर)-प्रवचन-11
मेरा संदेश है: ध्यान में डूबो-(ग्यारहवां प्रवचन)
दिनांक २१ मार्च, १९८०; श्री रजनीश आश्रम, पूना
प्रश्नसार:
1—संबोधि क्या है? और संबोधि दिवस पर आपका संदेश क्या है?
2—जैसा आपने कहा कि जब हम सब जाग जाएंगे उस दिन आप
हंसेंगे। क्या इसका यह अर्थ नहीं हुआ कि हम आपको कभी हंसते नहीं देख सकेंगे?
3—जब भी कोई लड़की वाला मुझसे वर के रूप में देखने आता
है तो मैं फौरन अपने कमरे में देववाणी ध्यान या सक्रिय ध्यान शुरू कर देता हूं।
परिवार वाले इससे नाराज हैं। क्या और भी कोई सरल उपाय है?
4—राजनीति की मूल कला क्या है?
5—मैं एक कवि हूं पर कोई मेरी कविताएं पसंद नहीं करता
है--न परिवार वाले, न मित्र, न परिचित।
कविताएं मेरी प्रकाशित भी नहीं होतीं। लेकिन मैं तो अपना जीवन कविता को ही समर्पित
कर चुका हूं। अब आपकी शरण आया हूं। आपका क्या आदेश है?
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