ध्यान के कमल-(साधना-शिविर)
ओशो
प्रवचन-दूसरा (ध्यान: एक गहन मुमुक्षा)
ध्यान
के संबंध में एक-दो बातें आपसे कह दूं और फिर हम ध्यान में प्रवेश करें।
एक तो
ध्यान में स्वयं के संकल्प के अभाव के अतिरिक्त और कोई बाधा नहीं है। यदि आप ध्यान
में जाना ही चाहते हैं तो दुनिया की कोई भी शक्ति आपको ध्यान में जाने से नहीं रोक
सकती है। इसलिए अगर ध्यान में जाने में बाधा पड़ती हो तो जानना कि आपके संकल्प में
ही कमी है। शायद आप जाना ही नहीं चाहते हैं। यह बहुत अजीब लगेगा! क्योंकि जो भी
व्यक्ति कहता है कि मैं ध्यान में जाना चाहता हूं और नहीं जा पाता, वह मान कर चलता है कि वह जाना
तो चाहता ही है। लेकिन बहुत भीतरी कारण होते हैं जिनकी वजह से हमें पता नहीं चलता
कि हम जाना नहीं चाहते हैं।
अब
जैसे, जो व्यक्ति भी कहता है, मैं ध्यान में जाना चाहता हूं, उसे बहुत ठीक से समझ लेना
चाहिए कि क्या वह सुख और दुख दोनों को छोड़ने को तैयार है?
दुख को
छोड़ने को सभी तैयार हैं। जो ध्यान में जाना चाहते हैं, वे भी इसीलिए जाना चाहते हैं
कि दुख छूट जाए और सुख मिल जाए। लेकिन आपको साफ हो जाना चाहिए: ध्यान में जैसे ही
प्रवेश करेंगे,
सुख-दुख
दोनों ही छूट जाते हैं। और जो उपलब्धि होती है वह सुख की नहीं है, परम शांति की है।
तो यदि
आप सुख पाने के लिए ध्यान में जाना चाहते हैं, तो आप जाना ही नहीं चाहते। क्योंकि सुख एक
तनाव है,
एक
अशांति है। भला प्रीतिकर लगती हो, लेकिन
सुख एक उद्विग्न अवस्था है। दुख भी एक उद्विग्न अवस्था है। सुख में भी नींद नहीं
आती, दुख में भी नींद नहीं आती।
सुख में भी मन बेचैन रहता है, दुख
में भी मन बेचैन रहता है। सुख एक उत्तेजना है। इसलिए सुख भी थका डालता है, तोड़ डालता है। तो यदि आप सुख
पाने के लिए ध्यान में जाना चाहते हैं, तो ध्यान में आप जाना नहीं चाहते। ठीक से
समझ लें कि सुख और दुख दोनों को छोड़ कर ही ध्यान में जा सकते हैं।
दूसरी
बात, ध्यान में अगर कोई कुतूहलवश
जाना चाहता हो तो कभी नहीं जा सकेगा। सिर्फ कुतूहलवश--कि देखें क्या होता है? इतनी बचकानी इच्छा से कभी कोई
ध्यान में नहीं जा सकेगा। न, जिसे
ऐसा लगा हो कि बिना ध्यान के मेरा जीवन व्यर्थ गया है। 'देखें, ध्यान में क्या होता है?' ऐसा नहीं; बिना ध्यान के मैंने देख लिया
कि कुछ भी नहीं होता है और अब मुझे ध्यान में जाना ही है, ध्यान के अतिरिक्त अब मेरे
पास कोई विकल्प नहीं है--ऐसे निर्णय के साथ ही अगर जाएंगे तो जा सकेंगे। क्योंकि
ध्यान बड़ी छलांग है। उसमें पूरी शक्ति लगा कर ही कूदना पड़ता है।
कुतूहल
में पूरी शक्ति की कोई जरूरत नहीं होती। कुतूहल तो ऐसा है कि पड़ोसी के दरवाजे के
पास कान लगा कर सुन लिया कि क्या बातचीत चल रही है; अपने रास्ते चले गए। किसी की
खिड़की में जरा झांक कर देख लिया कि भीतर क्या हो रहा है; अपने रास्ते चले गए। वह कोई
आपके जीवन की धारा नहीं है। उस पर आपका कोई जीवन टिकने वाला नहीं है।
लेकिन
हम कुतूहलवश बहुत सी बातें कर लेते हैं। ध्यान कुतूहल नहीं है। तो अकेली
क्युरिआसिटी अगर है तो काम नहीं होगा। इंक्वायरी चाहिए।
तो मैं
आपसे कहना चाहूंगा कि आप बिना ध्यान के तो जीकर देख लिए हैं--कोई तीस साल, कोई चालीस साल, कोई सत्तर साल। क्या अब भी
बिना ध्यान में ही जीने की आकांक्षा शेष है? क्या पा लिया है?
तो लौट
कर अपने जीवन को एक बार देख लें कि बिना ध्यान के कुछ पाया तो नहीं है। धन पा लिया
होगा, यश पा लिया होगा। फिर भी भीतर
सब रिक्त और खाली है। कुछ पाया नहीं है। हाथ अभी भी खाली हैं। और जिन्होंने भी
जाना है,
वे
कहते हैं कि ध्यान के अतिरिक्त वह मणि मिलती नहीं, वह रतन मिलता नहीं, जिसे पाने पर लगता है कि अब
पाने की और कोई जरूरत न रही, सब पा
लिया।
तो
ध्यान को कुतूहल नहीं, मुमुक्षा--बहुत
गहरी प्यास,
अभीप्सा
अगर बनाएंगे,
तो ही
प्रवेश कर पाएंगे। अगर न जा पाते हों ध्यान में, तो संकल्प की कमी है, इसकी खोज करें।
और
पूछेंगे आप कि संकल्प की कमी को पूरा कैसे करें?
यह जरा
जटिल है बात। क्योंकि जिसमें संकल्प की कमी है, वह संकल्प की कमी को पूरा करने का संकल्प भी
नहीं कर पाता,
यही
उसकी गांठ है। तो वह पूछता है, संकल्प
कैसे पूरा करूं?
वह कमी
कैसे पूरी करूं?
वह
इसमें भी पूरा संकल्प नहीं कर पाता। और अगर वह कोशिश करेगा, तो वह कोशिश भी अधूरी होनी
वाली है,
क्योंकि
वह अधूरे संकल्प का आदमी है। फिर क्या किया जाए?
तो मैं
कहता हूं,
कोशिश
न करें,
कूद
पड़ें। कोशिश तो आपसे होने वाली नहीं, कूद पड़ें। कूदना बड़ी अलग बात है; कोशिश बड़ी अलग बात है। कोशिश
में समय लगता है--वर्ष लगे, छह
महीने लगे। कूदना अभी हो सकता है।
और
इसीलिए मैं मॉस,
समूह-ध्यान
पर जोर देता हूं। क्योंकि जहां इतने लोग ध्यान में जा रहे हों, शायद लहर आपको पकड़ जाए और आप
भी देखें कि कूद जाऊं और देखूं--क्या हो रहा है?
कूद
जाएं। तैयारी आपसे न हो सकेगी। आप बिना तैयारी के कूद जाएं। और मैं आपसे कहता हूं, परमात्मा आपको बिना तैयारी के
भी स्वीकार करने को राजी है, सिर्फ
कूद जाएं।
मेरे
पास लोग आते हैं,
वे
कहते हैं,
हमारी
पात्रता कहां?
ये सब
बहाने हैं। ऐसा मत समझना कि वे विनम्र लोग हैं--कि वे कह रहे हैं, हमारी पात्रता कहां? वे सिर्फ यह कह रहे हैं कि वे
अपने कूदने की कमी को भी छिपाने का उपाय खोज रहे हैं। वे कह रहे हैं, हमारी पात्रता कहां?
मैं
आपसे कहता हूं,
परमात्मा
आपकी अपात्रता में भी आपको स्वीकार करने को राजी है। आप कूदें। खोजें मत बहाने। और
बहाने मन बहुत खोजता है। और ऐसे-ऐसे बहाने खोजता है जिनका हिसाब नहीं। और मन
रेशनेलाइज करना जानता है। वह जानता है कि किस तरकीब से अपने को समझा लो, आर्ग्युमेंट दो, दलील दो और कहो कि बिलकुल ठीक
हूं, यह कैसे हो सकता है?
अगर
आर्ग्युमेंट्स में पड़े रहना है तो यहां आएं ही मत। अगर यहां आ गए हैं तो एक हिम्मत
करें और छलांग लगा कर देखें कि...। स्वाद एक बार मिल जाए तो फिर स्वाद ही खींचता
चला जाता है। एक किरण भी झलक में आ जाए तो फिर आप न रुक सकेंगे।
और
दूसरों की फिक्र मत करें। ध्यान में मैं अनुभव करता हूं, दूसरों की चिंता सबसे बड़ी
बाधा हो जाती है--कोई देख लेगा। पागल ही कहेगा न? इससे ज्यादा तो कुछ और कहने
को नहीं है। तो इसकी तैयारी कर लें कि देखने वाले पागल कहेंगे।
ऐसे भी
आपके देखने-जानने वाले आपको पागल नहीं कहते हैं, इस खयाल में मत रहना। और आपके
सामने वे जो कहते हैं, वैसा
वे मानते हैं,
इस
भ्रांति में भी मत रहना।
फ्रायड
ने अपनी आत्मकथा में कहीं एक छोटी सी बात कही है। उसने कहा है कि अगर हर मित्र और
प्रियजन,
अपने
मित्रों और प्रियजनों के संबंध में जो सोचता है वह सामने कह दे, तो इस दुनिया में एक प्रेमी
और एक मित्र खड़ा नहीं रह सकता। कोई मित्र नहीं रह जाएगा।
बेटा
बाप के संबंध में क्या सोचता है, जब वह
बाप के पैर छूता है, बाप को
बिलकुल पता नहीं चलता। मित्र पीठ के पीछे जाकर आपके बाबत क्या कहता है, आपको कभी पता नहीं चलता।
विद्यार्थी गुरु के बाबत, गुरु
की पीठ मुड़ते ही कैसे चेहरे बनाता है, गुरु को कुछ पता नहीं चलता। आप इस भ्रांति
में रहना ही मत कि आपको कोई बहुत समझदार समझता है।
इस
दुनिया में सब अपने को समझदार समझते हैं, कोई किसी दूसरे को समझदार नहीं समझता। और जो
अपने को समझदार समझता है, वह
सबको गैर-समझदार समझता है। आपकी बड़ी से बड़ी गैर-समझदारी कोई नई घटना न होगी दूसरों
के लिए। वे जानते ही हैं पहले से कि आप गैर-समझदार हैं। इसकी बहुत चिंता न करें।
और
ध्यान रखें,
इस जगत
में सबसे बड़ा पागलपन एक है--अपने को बुद्धिमान जानना और दूसरों को पागल जानना। और
इस जमीन पर सबसे पहले पागलपन उसी आदमी का टूटता है, जो अपने को पागल मान लेता है
और सबको बुद्धिमान। बस पागलपन टूट जाता है।
तो आप
सबको बुद्धिमान समझें, अपने
को पागल समझें। और कोई जब कहे कि क्या पागलपन कर रहे थे? तो कहना कि पागल हूं, और कर ही क्या सकता था! सरलता
से, हिम्मत से कूद जाएं।
एक नई
बात आज के ध्यान में जोड़नी है। क्योंकि जिन लोगों ने इन तीन दिनों में गहरा ध्यान
किया है,
उनके
लिए क्रांतिकारी हो जाएगी। उसके लिए मैं प्रतीक्षा कर रहा था। कुछ लोगों ने बहुत
हिम्मत की है,
उनके
लिए क्रांतिकारी हो जाएगा।
पंद्रह
मिनट कीर्तन चलेगा। उसमें बिलकुल पागल हो जाएं। रत्ती भर बचाएं न। बचाया कि गए, आप बाहर रह गए। दूसरे पंद्रह
मिनट में सामूहिक कीर्तन बंद हो जाएगा, धुन बजती रहेगी। आप उस धुन के साथ तैरते
रहें और बह जाएं। व्यक्तिगत रूप से जो आपके आनंद में आए, करें। जो आपका हर्षोन्माद हो, उसमें उछलते-कूदते रहें, गाते रहें, नाचते रहें। दोनों चरण बहुत
आनंद-भाव से करने हैं।
हमारी
ऐसी हालत हो गई है और हमने शक्लें ऐसी गमगीन और उदास बना ली हैं कि अगर हम हंसते
भी हैं,
तो
हमारी हंसी सिर्फ रोने जैसी मालूम पड़ती है। अगर हम मुस्कुराते भी हैं, तो हमारे ओंठों पर मुस्कुराहट
की जगह उदासी की ही छाया होती है।
आनंद-भाव
से करें। परमात्मा के मंदिर की तरफ नाचते हुए ही कोई जा सकता है, रोते हुए नहीं।
यद्यपि
कभी-कभी आनंद का रोना भी होता है, वह
बिलकुल अलग बात है। जैसा मैंने कहा कि हम ऐसे लोग हैं कि अगर हम हंसते भी हैं, तो वह रोने का ही हिस्सा होता
है। लेकिन अगर कोई सच में आनंदित होना जान ले, तब उसके आंसू भी आनंद के ही आंसू हो जाते
हैं। फिर उसके रोने की क्वालिटी, गुणवत्ता
ही बदल जाती है।
आनंद-भाव
से दोनों चरण करें। और जब तीसरा चरण शुरू होगा तो नई बात जो मुझे आज जोड़नी है वह
यह: दो चरण के बाद मैं आपको सूचना दूंगा कि प्रत्येक व्यक्ति अपना राइट हैंड, अपना सीधा हाथ माथे पर रख ले, दोनों तरफ रगड़े, ऊपर-नीचे रगड़े, और एक मिनट तक रगड़ना जारी रखे, जब तक मैं मना न करूं।
हाथ रख
लेना है माथे पर दोनों आंखों के बीच में, जहां तीसरे नेत्र का क्षेत्र है। दोनों तरफ
रगड़ना है,
ऊपर-नीचे
रगड़ना है और एक मिनट तक रगड़ते रहना है। आजू-बाजू, ऊपर-नीचे। गद्दी आपकी रगड़ती
रहे। इस रगड़ते वक्त सारा ध्यान उसी जगह रखना है जहां गद्दी रगड़ रही है, सारी चेतना वहीं रखनी है।
दो चरण
जिन्होंने ठीक से पूरे किए हैं, उनकी
शक्ति जग जाएगी। और जब वे गद्दी को माथे पर रखेंगे हाथ की, सारी शक्ति माथे की तरफ दौड़नी
शुरू हो जाएगी। और जब वे रगड़ेंगे, तो वह
जो तीसरे नेत्र पर पड़ा हुआ पर्दा है, वह धीमे-धीमे सरकना शुरू हो जाएगा। एक मिनट
के बाद फिर हम तीसरे चरण में प्रवेश कर जाएंगे।
जो लोग
भी दो चरण पूरे कर लेंगे, वे आज
एक अनूठे अनुभव में उतर सकते हैं। अगर आप नहीं उतर पाते हैं, आपके अतिरिक्त और कोई
जिम्मेवार नहीं है।
अब हम प्रयोग के लिए तैयार हो जाएं।
दो
बातें,
कुछ
लोग देखने आ गए हैं, वे
बाहर निकल जाएं। और दूर-दूर खड़ा होना है ताकि आप नाच सकें। और भीड़ लगा कर किसी को
खड़ा नहीं होना है। दूर-दूर फैल जाएं। और यह स्त्रियों का जो समूह है, वे खयाल से दूर-दूर फैल जाएं।
यहां इकट्ठे खड़े नहीं होना है। और जिनको देखना है, वे बाहर हो जाएं। बाहर भी जो
खड़े रहें,
वे बात
नहीं कर सकेंगे।
(पहले चरण में पंद्रह मिनट संगीत की धुन के साथ कीर्तन चलता रहता
है।)
गोविंद बोलो, हरि गोपाल बोलो
गोविंद बोलो, हरि गोपाल बोलो
गोविंद बोलो, हरि गोपाल बोलो...
राधा रमण हरि गोपाल बोलो
राधा रमण हरि गोपाल बोलो
राधा रमण हरि गोपाल बोलो...
(दूसरे चरण में पंद्रह मिनट सिर्फ धुन चलती रहती है और भावों की
तीव्र अभिव्यक्ति में रोना, हंसना, नाचना, चिल्लाना आदि चलता रहता है।
तीस मिनट के बाद तीसरे चरण में ओशो पुनः सुझाव देना प्रारंभ करते हैं।)
शांत
हो जाएं,
शांत
हो जाएं। बैठना हो बैठ जाएं, लेटना
हो लेट जाएं। आंख बंद कर लें और अपना सीधा हाथ दोनों आंखों के बीच माथे पर रख लें
और एक मिनट तक नीचे-ऊपर और दोनों तरफ आजू-बाजू रगड़ें।
पुट
योर राइट हैंड पाम ऑन योर फोरहेड बिट्वीन दि टू आइब्रोज, एंड देन रब इट साइडवेज, अप एंड डाउन, फॉर वन मिनट कंटिन्युअसली। बी
कांशस ऑफ दि स्पॉट एंड लेट योर होल बॉडी एनर्जी फ्लो टुवर्ड्स इट।
एक
मिनट तक दोनों आंखों के बीच में रगड़ें। ऊपर-नीचे, आजू-बाजू। ध्यान उसी जगह रखें, तीसरे नेत्र पर। और सारे शरीर
की शक्ति,
जो जग
गई है,
उसी
केंद्र की तरफ बहने दें।
रब इट, विद फुल कांशसनेस ऑफ दि थर्ड
आई स्पॉट...रब इट,
बी
कांशस ऑफ इट एंड लेट योर बॉडी एनर्जी फ्लो टुवर्ड्स इट...
रगड़ें, तीसरे नेत्र के पर्दे को
हटाने के लिए रगड़ें, ऊपर-नीचे, दोनों ओर...एक द्वार खुल
जाएगा,
जो कि
एक अनजान द्वार है...
रब इट, बी कांशस ऑफ इट, एंड ए न्यू डोर ओपन्स
सडनली...रब इट,
रब इट, एंड ए न्यू डोर ओपन्स
सडनली...रगड़ें,
रगड़ें, और ध्यान तीसरे नेत्र पर बना
रहे... अचानक एक नया द्वार खुल जाएगा और फिर भीतर प्रवेश होगा...
बस अब
रगड़ना छोड़ दें। स्टॉप रबिंग एंड जस्ट बी एज इफ यू आर डेड... बिलकुल मुर्दे की
भांति हो जाएं,
सब छोड़
दें...आवाज नहीं,
नाचना
नहीं, मुर्दे की भांति हो
जाएं...भीतर प्रकाश ही प्रकाश फैल जाएगा। अनंत प्रकाश फैल जाएगा। ऐसा प्रकाश जो
कभी नहीं जाना,
कभी
नहीं देखा। अनंत प्रकाश भीतर फैल जाएगा। जैसे हजार-हजार सूरज एक साथ उग आए हों...
अनंत
प्रकाश...इनफिनिट लाइट एंड लाइट जस्ट गोज ऑन स्प्रेडिंग, एंड स्प्रेडिंग, एंड स्प्रेडिंग...अनंत प्रकाश, अनंत प्रकाश, अनंत प्रकाश...फैलता ही चला
जाता है,
फैलता
ही चला जाता है...जैसे एक बूंद सागर में गिर जाए, ऐसे ही आप एक प्रकाश के सागर
में गिर गए। जस्ट लाइक ए ड्राप यू हैव ड्राप्ड इनटु दिस ओशन ऑफ लाइट।
प्रकाश
ही प्रकाश...अनंत प्रकाश...प्रकाश ही प्रकाश...अनंत प्रकाश...सागर में खो गए
प्रकाश के। और प्रकाश के पीछे ही पीछे आनंद की धारा पूरे तन-प्राण में फैलने
लगी...आनंद की एक धारा तन-प्राण में घूमने लगी...प्रकाश के पीछे ही आता है
आनंद...उस आनंद को अनुभव करें...
फील दि
ब्लिस दैट फालोज दि इनफिनिट मूवमेंट ऑफ लाइट...फील दि ब्लिस जस्ट फ्लोइंग अराउंड
इनसाइड-आउटसाइड...फील दि ब्लिस...
आनंद
को अनुभव करें,
आनंद
को अनुभव करें,
जो
प्रकाश के पीछे-पीछे ही आता है और तन-प्राण में छा जाता है...सब शांत हो गया, सब शांत हो गया, सब मौन हो गया...यू आर इन दि
डीप साइलेंस...सब शांत हो गया, सब मौन
हो गया...
मौन, मौन, जैसे मौन छा गया, सन्नाटा...ए डीप
साइलेंस...प्रकाश ही प्रकाश भर गया और आनंद ही आनंद की धारा बह रही है...डूब जाएं, बिलकुल डूब जाएं, डूब जाएं, डूब जाएं...इस आनंद के साथ एक
हो जाएं...
बी वन
विद दिस ब्लिस,
बी वन
विद दिस लाइट...एक हो जाएं, एक हो
जाएं... ऐसे आनंद को कभी जाना नहीं...समथिंग अननोन, समथिंग एब्सोल्यूटली अननोन
डिसेंड्स...अज्ञात उतरता है...खो जाएं, खो जाएं, खो जाएं...
और
खोते ही चारों ओर बाहर-भीतर परमात्मा की उपस्थिति मालूम होने लगती है। दि मोमेंट
यू आर लॉस्ट इन दिस ब्लिस एंड लाइट, यू विल फील दि प्रेजेंस ऑफ दि डिवाइन अराउंड, इनसाइड एंड आउटसाइड...खो जाएं, खो जाएं और परमात्मा को चारों
ओर अनुभव करें...वही है, बाहर-भीतर
वही है...आती श्वास में वही है, जाती
श्वास में वही है...सब ओर वही है।
आज इतना ही।
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