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मंगलवार, 7 नवंबर 2017

गीता दर्शन--(भाग--4) प्रवचन—110



खोज की सम्‍यक दिशा—प्रवचन—दसवां

गीता दर्शन--(भाग--4) प्रवचन—110
अध्‍याय9
सूत्र
येऽम्मन्यदेक्ता भक्तयजन्ते श्रद्धायान्त्रिता।
तेऽयि मामेव कौन्तेय यजन्‍त्यविधिपूर्वकम् ।। 23।।
अहं हि सर्वज्ञानां भोक्‍ता च प्रभुरेव च।
न तु मामीभजानन्ति तत्‍वेनातश्व्यवन्ति ते।। 24।।
यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृक्ता।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ।। 25।।

और हे अर्जुन यद्यपि श्रद्धा युक्त हुए जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैवे भी मेरे को ही पूजते हैं। किंतु उनका यह पूजन। अविधिपूर्वक हैअर्थात अज्ञानपूर्वक है। क्योंकि संपूर्ण यज्ञों का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूं।

परंतु वे मुझे अधियज्ञस्वरूप परमेश्वर को तत्‍व से नहीं जानते है। इसी से गिरते हैअर्थात पुनर्जन्म को प्राप्त होते हैं।
कारण यह है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैपितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते है। भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैऔर मेरे भक्त मेरे को ही प्राप्त होते हैं।  हसलिए मेरे भक्तों का पूनर्जन्म नही होता।


 नुष्य की खोज चाहे हो कुछ भीचाहे माग हो कोईचाह हो कोईकिसी भी दिशा में दौड़ता होकुछ भी पाना चाहता होलेकिन अंततः मनुष्य परमात्मा को ही पाना चाहता है। उसकी सब चाहो में परमात्मा की ही चाह छिपी होती है। उसकी सब वासनाओं में उस प्रभु की तरफ पहुंचने की ही आकांक्षा का बीज छिपा होता है। और जरूरी नहीं है कि यह उसे ज्ञात होइसका ज्ञान न भी हो। नहीं होता है। तो भी बीज परमात्मा की ही तलाश का है।
हम एक बीज को बोते हैं जमीन मेंउस बीज को पता भी नहीं होगा कि वह किस लिए टूट रहा है और किस लिए अंकुरित हो रहा है। उसे यह भी पता नहीं होगा कि इस अंकुरण की प्रक्रिया का अंतिम रूप क्या होने को है। उसे यह भी पता नहीं है कि यह जो आकाश की तरफ उसकी दौड़ चल रही हैयह जो आकाश में शाखाओं को फैला देने का आयोजन चल रहा है,यह किस लिए हैवह किसे पाना चाहता हैउसे उन फूलों का तो कोई भी स्मरण न होगाकोई भी स्वप्न भी नहीं होगाजो फूल उसकी शाखाओं पर खिलेंगे। और उन बीजों की उसे कोई खबर नहीं हो सकती हैजो उसके ऊपर लगने वाले हैं। उस जीवन का भी उसे कोई अंदाज नहीं हो सकताजो कि वृक्ष का जीवन होगा।
ठीकआदमी भी बीज की तरह परमात्मा की तरफ बढ़ता हैअनजाने। उसे पता भी नहीं कि वह क्या खोज रहा है! क्यों खोज रहा है! उसकी सब खोजों में अंतर्निहित खोज क्या है! इसे हम थोड़ा आदमी की इच्छाओं को समझेंतो समझना आसान हो जाएगा।
एक आदमी हैजो धन चाहता हैधन के पीछे दौड़ रहा है। उससे अगर हम कहें कि वह भी परमात्मा को खोज रहा है,तो वह भी मानने को राजी नहीं होगादूसरे तो राजी होंगे ही नहीं। एक आदमी पद की तलाश कर रहा हैप्रतिष्ठा कीयश की। अगर हम कहें कि वह भी प्रभु को खोज रहा हैतो कौन तैयार होगा इस असंगत बात को स्वीकार करने कोएक आदमी प्रेम को खोज रहा हैऔर हम कहें परमात्मा को खोज रहा हैतो कोई तालमेल नहीं मालूम पड़ता। लेकिन अगर थोड़ा गहरे उतरेंतो सीढ़ियां दिखाई पड़नी शुरू हो जाएंगीश्रृंखला साफ होने लगेगी।
एक आदमी धन खोजता हैकिस लिएऔर धन से क्या उसका प्रयोजन है ग्र
धन खोजता है तीन कारणों से। पहलासुरक्षा के लिएफार सिक्योरिटी। कल की कोई सुरक्षा नहीं है। अगर धन पास में हैतो कल की सुरक्षा हो जाएगी। अगर धन पास में हैतो कल के लिए निश्चित हो सकता है। अगर धन पास में हैतो कल की फिक्र छोड़ी जा सकती है।
इसका अर्थ हुआ कि धन खोज रहा है इसलिए कि एक ऐसा जीवन मिल जाएजहां फिक्र न होचिंता न हो। एक ऐसा जीवन मिल जाए जहां सुरक्षा होअसुरक्षा न होजहां भय न होजहां मैं असहाय अनुभव न करूं अपने को। वह एक ऐसा जीवन खोज रहा है। लेकिन धन खोज रहा है इस जीवन के लिए। धन से यह जीवन नहीं मिलेगालेकिन आकांक्षा यही है।
एक आदमी जब धन खोज रहा हैतो वह भी ऐसा धन खोजता हैदूसरी बातजो छीना न जा सके। इसलिए तो इतना इंतजाम करता है तिजोडियों काबैंकों कासेफ्टी कासारा इंतजाम करता है कि छीना न जा सके। आकांक्षा यह है कि धन हो तो ऐसाजो कोई छीन न सके। हालाकि जो भी धन हम इंतजाम करते हैंवह छीना जा सकता है। छीना जाता है। अब तक आदमी कोई उपाय नहीं कर पाया कि ऐसा धन खोज लेजो छीना न जा सके। सब उपाय व्यर्थ हो जाते हैं।
लेकिन आदमी की आकांक्षा को खोजेंतो वह जरूर ऐसा धन खोजना चाहता हैजो फिर उसका ही होऔर फिर कभी भी ऐसा न हो कि पराया हो जाए। हर आदमी एक ऐसी संपदा खोजना चाहता हैजो सदासदा के लिए शाश्वत उसकी अपनी हो। परमात्मा के सिवाय ऐसी कोई संपदा हो नहीं सकतीजो छीनी न जा सके। सिर्फ वही हैजो छीना नहीं जा सकता।
आदमी जब धन खोजता हैतोतीसरे नंबर परभीतर वह खालीपन अनुभव करता हैरिक्तता अनुभव करता हैउसे भर लेना चाहता है। पूरी जिंदगी दौड़कर भीधन की राशि लग जाती हैभीतर का खालीपन नहीं भरता। लेकिन आदमी खोजता इसीलिए है कि भीतर भर जाएएक आंतरिक फुलफिलमेंट होएक भीतर तृप्ति हो जाए भरापन आ जाएऐसी कोई कमी न मालूम पड़ेकोई अभाव न मालूम पड़ेसंतुष्ट हो जाए भीतरतृप्ति आ जाएक्षणभर को भी ऐसा न लगे कि मुझे कुछ और चाहिए। यह तीसरी बात है।
आदमी धन इसलिए खोजता है कि ऐसी अवस्था आ जाए कि कुछ उसे मांगने को न बचेकुछ चाहने को न बचेऐसा न रहे उसे कि फला चीज मेरे पास नहीं हैअभाव न खटकेखालीपन न खटकेसब मेरे पास हैऐसी तृप्ति हो। लेकिन कितना ही धन मिल जाएऐसी तृप्ति होती नहीं। ऐसी तृप्ति तो केवल उसी को होती हैजिसे परमात्मा का धन मिल जाता है।
तो धन की भी खोज कितनी ही गलत होदिशा कितनी ही भ्रांत होआकांक्षा बिलकुल सही है। वह जो भीतर बीज है,वह बिलकुल सही है। मार्ग चाहे अंकुर का कितना ही विकृत हो जाएलेकिन उसकी अनजानी खोज बिलकुल प्रामाणिक है।
एक आदमी पद चाहता है। पद चाहता है तीन कारणों सेकिसी से हीन न मालूम पडुं किसी से नीचा न मालूम पडूं। लेकिन कितना ही कोई पद खोजेंसदा कोई न कोई आगे मौजूद रहता है। अब तक ऐसा एक भी आदमी किसी पद पर नहीं पहुंच पायाजहां जाकर वह कह सकेअब मेरे आगे कोई भी नहीं है। कुछ भी हो जाएकितनी ही बड़ी सीढ़ी चढ़ जाएजितनी बड़ी सीढ़ी चढ़ता हैपाता है कि आगे और सीढ़ियों पर लोग पहले से चढ़े हुए हैं।
और ऐसा सभी को अनुभव होता है। अनुभव होने के कई जटिल कारण हैं। एक तो जिंदगी इकहरी सीढ़ी नहीं हैअनेक सीढ़ियों का जोड़ है। अगर आप एक सीढ़ी पर चढ़ जाते हैंतो अनेक बार उसी में चढ़ने की वजह से दूसरी सीढ़ी पर नीचे उतर जाते हैं। अगर दो सीढ़ियों पर चढ़ जाते हैंतो चार पर नीचे उतरना पड़ता है। वह कीमत चुकानी पड़ती है।
एक आदमी अगर एक बड़े पद पर पहुंच जाता हैतो पद पर पहुंचने के लिए जो बेचैनी और परेशानी उठानी पड़ती है,उसमें स्वास्थ्य खो देता है। तब एक दिन देखता है कि सड़क पर एक फकीर जा रहा हैजिसके पास स्वास्थ्य की अपार संपदा हैतब मन ईर्ष्या से भर जाता है। एक सीढ़ी पर कोई चढ़ा हुआ हैजहां वह नीचे पड़ गया है।
एक आदमी पद की दौड़ में प्रतिभा को खो देता है। असल में पद की दौड़ अगर पूरी करनी होतो प्रतिभा की जरूरत भी नहीं है।
प्रतिभा होतो खतरा है। उतनी दौड़ में जाना मुश्किल होगा। एक गहरी मूढ़ता चाहिए तो पद की दौड़ में आदमी अंधा होकर लग जाता है। वह योग्यता है। प्रतिभा खो देता है। इधर प्रतिभा खो जाती हैजिस दिन पद पर पहुंचता हैउस दिन पाता है कि चारों ओर प्रतिभा के दीए जल रहे हैंऔर सीढ़ियों में वह पिछड़ गया है। जिंदगी अनेक सीढ़ियां हैं। अगर कोई एक सीढ़ी पर चढ़ता हैदूसरों पर नीचे उतर जाता है। और किसी भी सीढ़ी पर कितना भी चढ़ जाएफिर भी पाता है कि उससे भी ऊपर सीढ़ियों पर लोग चढ़े हुए हैं!
लेकिन आदमी की आकांक्षा सही है। आदमी चाहता है ऐसी अवस्थाजहां वह किसी से नीचा न रह जाए।
सिवाय परमात्मा को पाए और कोई उपाय नहीं है।
लेकिन एक मजे की बात है। आदमी चाहता है कि मैं किसी से नीचे न रह जाऊंइसलिए दूसरों को नीचा करने में लग जाता है! पर उसे पता नहीं है कि जो वह कर रहा हैवही सारे लोग भी कर रहे हैं! मैं एक आदमी हूंतीन अरब आदमी जमीन पर हैं। मैं भी इस कोशिश में लगा हूं कि किसी से नीचे न रह जाऊं। और इसके लिए दूसरों को नीचा करने में लगा हूं। तीन अरब आदमीइसी कोशिश में वे भी लगे हैं! वे भी दूसरों को नीचा करने में लगे हैंताकि वे ऊपर हो जाएं। एकएक आदमी तीनतीन अरब आदमियों के खिलाफ लड़ रहा है! हारेगा नहींतो क्या होगातीन .अरब आदमी मुझे नीचा करने में लगे हैंमैं तीन अरब आदमियों को नीचा करने में लगा हूं! एक पागलों की भीड़ हैजिसमें कोई कहीं पहुंच नहीं सकता।
लाओत्से ने कहा है कि मैंने तो शांति का सूत्र इसी में जाना कि उस जगह बैठ जाओजिससे नीची कोई जगह न हो,अन्यथा उठाए
जाओगे। उस गड्डे में गिर जाओजिससे नीचा कोई गड्डा न होअन्यथा लतियाए जाओगे। लाओत्से ने कहामैंने तो शांति और संतुष्टि इसमें पाईजब मैंने दूसरे को नीचा करना तो दूरअपने को सबसे नीचा स्वीकार कर लिया। उस दिन के बाद मुझे कोई नीचा नहीं कर सका है।
जीसस ने कहा हैजो आदमी पंक्ति में सबसे अंतिम खडे होने को राजी हैवही प्रथम हो जाएगा।
लेकिन हमारा क्या होगाजो पंक्ति में प्रथम खड़े होने के लिए आतुर हैं! हम संघर्ष करेंगेलड़ेंगेपरेशान होंगे और आखिर में पाएंगेआगे नहीं पहुंच पाए हैं। संभवत: पंक्ति सीधी नहीं हैसर्कुलर हैगोल घेरे में है। इसीलिए तो कोई आदमी अनुभव नहीं कर पाता कि मैं आगे आ गया। कितना ही दौड़ता हैलेकिन क्यू के आगे नहीं पहुंच पाता। क्यू गोलाकार है,अन्यथा कोई न कोई पहुंच जाता। कोई सिकंदरकोई नेपोलियनकोई हिटलरकोई स्टैलिन कहीं न कहीं पहुंच जाताऔर एक दिन कह देता कि ठीक हैमैं क्यू! के आखिरी हिस्से में आ गयानंबर एक हो गया! लेकिन कहीं भी कोई पहुंच जाए वह पाता है कि उसके आगे लोग मौजूद हैं।
इसका एक ही मतलब हो सकता है कि जिंदगी सीधी रेखा में नहीं चल रही हैवर्तुलाकार हैसर्कुलर है। इसलिए आप एक गोल घेरे में अगर दसबारह लोग खड़े हैंउनमें से कोई कितना ही दौड़ेऔर कितनी ही कोशिश करेजिंदगी गंवा दे नंबर एक होने के लिएकभी नंबर एक नहीं हो पाएगा। क्योंकि गोले में कोई नंबर एक होता ही नहीं। हमेशा कोई आगे होता हैकोई पीछे होता है। कहीं भी जाएहमेशा कोई आगे होता हैकोई पीछे होता है। लेकिन आकांक्षा ठीक है और आकांक्षा उचित खबर देती है। वह खबर यह है कि जब तक कोई व्यक्ति अपने को परमात्मा के साथ एक. न समझ लेतब तक हीनता नहीं मिटती। और जब तक हीनताइनफीरिआरिटी नहीं मिटती हैतब तक ईर्ष्या भी नहीं मिटती। और जब तक हीनता और ईर्ष्या नहीं मिटती हैतब तक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश भी नहीं मिटती। और इस सबका अंतिम परिणाम चिंता और संताप के सिवाय और कुछ भी नहीं होता है। लेकिन आदमी चाहता है परम पद। वह परमात्मा को चाहता है। इसका उसे बोध न होइसका उसे होश न होयह हो सकता है।
एक और तरफ से देखें।
हर आदमी मृत्यु से भयभीत हैकंपित है। हर आदमी डरा हुआ है। चाहे कितना ही सुरक्षित होमौत कहीं किनारे पर खड़ी हुई मालूम पड़ती हैऔर किसी भी क्षण गर्दन को दबा ले सकती है। हर व्यक्ति डरा हुआ है मृत्यु से।
छोटासा बच्चा पैदा होता हैवह भी डरता हैडरता हुआ पैदा होता है। जोर की खटके की आवाज हो जाएकैप जाता है। अंधेरा होभयभीत होने लगता है। कोई पास न होअकेला होचीखनेचिल्लाने लगता है। पहले दिन से ही भय में जन्मा हुआ है। पूरा जीवन एक भय से कंपता हुआ पत्ता है। हम उपाय करते हैंहम कई तरह के उपाय करते हैंताकि मृत्यु से बच सकें। आकांक्षा बिलकुल ठीक हैलेकिन अब तक कोई मृत्यु से बच नहीं पायाऔर बच भी नहीं पाएगा।
और अक्सर तो यह होता हैजो मृत्यु से बचने का जितना इंतजाम करते हैंउतने ही जल्दी अपने ही इंतजाम में दबकर मर जाते हैं। ऐसी हालत हो जाती हैजैसे कोई आदमी मौत न आएतो अपने चारों तरफ लोहे का एक बख्तर बनाकर पहन ले,लोहे।के कपड़े पहन लेकहीं से मौत न घुस जाए! तो अभी मर जाएगा। कल के लिए प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। हम सब अपनी जिंदगी को चारों तरफ से इतना सुरक्षित कर लेते हैं कि जिंदगी मर जाती है। जिंदगी असुरक्षा में है। जिंदगी तो असुरक्षा में हैअनसर्टेंटी मेंअनिश्चय में। हम सब निश्चित करकेसब व्यवस्था ठीक से बिठाकरउसके भीतर मुर्दे की तरह बैठ जाते हैं। मौत से केवल मुर्दा बच सकता हैजो मर ही चुका हैवह भर बच सकता है। जो जिंदा है वह तो मरेगा ही।
इसलिए कितना ही हम उपाय करेंउपाय करने में मौत तो नहीं रुकतीजिंदगी गंवा बैठते हैं। उपाय में ही जिंदगी खो जाती है। मौत से बचने का उपाय करतेकरतेकरतेकरते जिंदगी का समय चुक जाता है। घड़ी का कांटा घूम जाता है और मौत आ जाती है। और हम तब घबड़ाकर कहते हैं कि अभी तो हम सिर्फ मौत से बचने का इंतजाम कर रहे थे! यह समय तो हमने मौत से बचने में गंवा दिया! अभी हम जीए कहां थे?
जीना समाप्त हो जाता है जीने के इंतजाम में। जीने का मौका ही नहीं मिलताअवसर नही मिलतासुविधा नहीं मिल पाती। लेकिन आकांक्षा दुरुस्त है। मौत से बचने की आकांक्षा दुरुस्त हैलेकिन दिशा गलत है।
मौत से बचने का एक ही उपाय है कि हम उसे जान लेंजो अमृत हैहम उसे पहचान लेंजो मरता ही नहींहम उसके साथ अपनी एकता को खोज लेंजिसकी कोई मृत्यु नहीं है। यह तो ठीक  दिशा होगी। हम इंतजाम करते हैं मौत से बचने का,और उससे जुड़े जिसमें अंतर्निहित हैमृत्यु जिसका हिस्सा है। उसका हम इंतजाम करते हैं बचाने का! इंतजाम में समय व्यतीत हो जाता है और मौत आ जाती है। उसकी खोज नहीं कर पातेजो कि कभी मरा ही नहीं है और कभी मरेगा ही नहीं। वह भी मौजूद है।
अगर यह आकांक्षा ठीक होतो अमृत की खोज बनेगीअगर यह आकांक्षा गलत होतो मृत्यु से बचाव बनेगी। अगर धन की खोज ठीक होतो उस परम धन की खोज बन जाएगीपरम संपदा की। अगर गलत होतो हम धातु के ठीकरे इकट्ठे करने में जिंदगी व्यतीत कर देंगे। अगर पद की खोज सही होतो परमात्मा के सिवाय और कोई पद नहीं है। अगर गलत होतो हम आदमियों को नीचेऊंचे बिठालने में अपनी सारी शक्ति को व्यय कर देंगे। यह मनुष्य की।
(बीच से उठकर किसी ने कुछ पूछा।)
लिखकर कुछ भी दे देंइतनी दूर से सुनाई नहीं पड़ेगा। लिखकर दे देंऔर लोगों को बाधा न डालें। लिखकर पहुंचा दें।
कृष्ण ने कहा है इस सूत्र में कि हे अर्जुनयद्यपि श्रद्धा से युक्त हुए जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैंवे भी मेरे को ही पूजते हैं।
चाहे पूजा किसी की भी हो रही होअंततोगत्वा पूजा मेरी ही होती हैकृष्‍ण कहते हैं। पूजने वाले को भी पता न हो कि वह किसकी पूजा कर रहा हैलेकिन पूजा मेरी ही हो सकती है। कारणपूजा करने वाले को भी जब पता नहीं हैतो कृष्ण किस अर्थ में कह रहे होंगे कि पूजा मेरी ही होती है?
वे इसी अर्थ में कह रहे है कि तुम्हारी वासनाए कहीं भी दौड़े और तुम्हारी पूजा किन्हीं चरणों में पड़ेऔर तुम श्रद्धा से कहीं भी सिर रखोतुम मेरी ही तलाश में हो। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि कहां तुम्हारी आंख जा रही है। अंततः तुम्हारी आंख मुझे ही खोज रही है। तुम कहीं भीखोजोतुम्हारी आँख की आंत्यतिक शरण मैं ही हूं।
किंतु उनका वह पूजना अविधि पूर्वक हैअज्ञान पूर्वक है।
पूजते वे मुझे ही हैंफिर भी ज्ञानपूर्वक नही। क्योंकि उन्हें स्वयं ही पता नहीं है कि वे क्या खोज रहे हैं। उन्हें स्वयं ही पता नहीं है।
सकाम पूजा का अर्थ हैधन के लिएपद के लिए जीवन के मांग रहा है परमात्मा से कुछकिसी भी देवता के सामने मांग रहा हैइसलिए की गई पूजासुख के लिए की गई पूजा। मंदिर में खड़ा कोई पूजास्थल हैंलेकिन जब भी किसी पूजास्थल पर और किसी भी देवता की प्रतिमा के समक्ष कोई कुछ मांग रहा हैतब वह अज्ञान से भरा हुआ है। क्योंकि जिसके पास होने से ही सब मिल जाता हैअगर उससे भी मांगना पड़ेतो उसका अर्थ है कि हमें पास होना ही पता नहीं है। जिसके निकट होने से ही सब मिल जाता हैउसके पास भी जाकर मांगना पड़ेतो उसका अर्थ हैहम पास पहुंचे ही नहींउपासना हुई ही नहीं।
इसलिए कृष्ण कहते हैंअविधिपूर्वक है। उसे विधि का भी पता नहीं है कि वह क्या कर रहा है!
अगर सूरज के सामने कोई हाथ जोड़कर खड़ा हो और कहे कि हे सूरज मुझे प्रकाश दे। तो एक बात पक्की है कि वह आदमी अंधा होगा। क्योंकि सूरज के सामने आंख खोलकर खड़े होने से प्रकाश . मिलता ही हैअब इसकी मांग की कोई जरूरत न रही। लेकिन अगर कोई आदमी मांग रहा है सूरज के सामने हाथ जोड़करगिड़गिड़ा रहा हैरो रहा हैघुटने टेके खडा हैऔर कह रहा है कि हे सूरजमुझे प्रकाश दे! तो एक बात तय है कि वह आदमी अंधा है। उसे यह भी पता नहीं है कि वह सूरज के सामने खड़ा है। और सूरज के सामने होने का मतलब ही प्रकाश का मिल जाना हो जाता है। और कुछ मांगने की जरूरत नहीं।
तो जो व्यक्ति परमात्मा के सामने भी कुछ मांगता हुआ पहुंचता हैएक बात पक्की हैउसे पता नहीं है कि जहां वह मांग रहा हैवहां परमात्मा है। उसकी मांग ही बता रही है कि उसे परमात्मा के पास होने का खयाल भी नहीं है। वह अपनी मांग में ही घिरा हुआ चल रहा है। चारों तरफ मांग ही उसको घेरे हुए है। उपासना संभव नहीं है उसे। वासना में ही दबा हुआ है।
इसलिए कृष्ण कहते हैंचाहे वह कितनी ही विधि करता हो। विधि बहुत करता है। सच तो यह है कि जो विधि बिलकुल नहीं जानता हैवह बहुत विधि करता है। कितनी विधियां नहीं पूजा और प्रार्थना करने वाले लोग करते हैं! सकाम विधियां हजार हैंलाख हैं। कितनाकितना उपाय करना पड़ता है! क्याक्या सामग्री जुटानी पड़ती है! एकएक व्यवस्था से एकएक कदम उठाना पड़ता है।
पूजा एक पूरा रिचुअल हैएक क्रियाकाड हैउसमें जरा भी भूलचूक नहीं होनी चाहिएगणित की पूरी व्यवस्था है। जब कोई भी उपासक सकाम वासना से भरकर पूजा में लगता हैतो रत्तीरत्ती हिसाब रखता हैपूरी विधि का पालन करता है। और कृष्ण कहते हैंअविधिपूर्वक! हालांकि वे खुद ही कह रहे हैं कि हे अर्जुनयद्यपि श्रद्धा से युक्त हुए जो सकाम भक्त दूसरे देवताओं को पूजते हैंवे भी मेरे को ही पूजते हैंकिंतु उनका वह पूजना अविधिपूर्वक है।
विधि तो उन्हें भी पता है। विधि की कोई कठिनाई नहीं है। एकएक चरण विधि का ज्ञात हैऔर चरण पूरा किया जाता है। लेकिन फिर भी कृष्ण अविधिपूर्वक कहते हैं!
अविधिपूर्वक कहने का कारण है। परमात्मा के पाससिर्फ पास होना ही पर्याप्त विधि हैऔर किसी विधि का अर्थ नहीं है। बाकी सब विधियां स्वयं को दिए गए धोखे हैं। उसके पास होने की कला ही आ जाएउसकी मौजूदगी को अनुभव करने का द्वार खुल जाएतो पर्याप्त विधि हो गई। लेकिन विधि तो वे करते हैं!
कृष्ण कहते हैंअज्ञानपूर्वक।
अज्ञान भी विधि कर सकता हैअक्सर करता हैकरेगा हीऔर उसको कुछ उपाय भी नहीं होता। हम सारे लोग अज्ञानपूर्वक न मालूम कितनी विधियों को विकसित कर लिए हैं! बडा जटिल जाल निर्मित किया है।
बुद्ध को हम चलते देखते हैंउठते देखते हैंबैठते देखते हैंहम विधि का निर्माण कर लेते हैं। हम सोचते हैंअगर ऐसे ही हम उठेऐसे ही हम चलेऐसे ही हम बैठेतो बुद्ध को जो हुआ हैवह हमें भी हो जाएगा।
हम मीरा को नाचते देखते हैंगीत गाते देखते हैंआनंद से विभोर देखते हैं। हम सोचते हैंमीरा ने जैसे कपडे पहने,मीरा ने जैसा तिलक लगायामीरा जिस मंदिर के सामने खड़ी हैमीरा ने जो कृष्ण की मूर्ति बनाईमीरा का जो पूजा का ढंग हैअगर वही ढंग हमने भी पूरापूरा पालातो जो मीरा को मिला हैवह हमें भी मिल जाएगा!
और यह हो सकता है कि हम मीरा की विधि का पूरापूरा अनुगमन कर लेंलेकिन जो मीरा को मिला हैवह हमें इससे नहीं मिल जाएगा। क्योंकि जो दिखाई पड़ रहा थावह तो केवल ढांचा थाआत्मा नहीं थीजो नहीं दिखाई पड़ रही हैविधि,उपासनानिकट होने की क्षमतावह ढांचा नहीं है। वह दिखाई नहीं पड़ता। वह आंतरिक है। वह भीतरी है।
रामकृष्ण को पुजारी के पद पर रखा था दक्षिणेश्वर मेंतो आठ दिन बाद ही ट्रस्टियों की कमेटी को रामकृष्ण को बुलाना पड़ा। शिकायतें बहुत आईं कि रामकृष्ण को पूजा करने की विधि नहीं आती। रामकृष्ण से ज्यादा गहरा पुजारी खोजना मुश्किल है पूरे मनुष्य के इतिहास में। लेकिन ट्रस्टियों की कमेटी नेजो केवल चौदह रुपया महीना रामकृष्‍ण को तनख्वाह देते थेनिश्चित हीवे मालिक थेउन्होंने रामकृष्ण को बुला लिया अदालत में। ट्रस्टियों की अदालत बैठ गई। और उन्होंने कहा कि तुम्हें हमें निकालना पड़ेगाक्योंकि पता चला है कि तुम्हें पूजा की विधि नहीं आती। रामकृष्‍ण ने कहापूजा और विधि का संबंध क्या है?पूजा आती हैविधि की फिक्र क्या हैऔर विधि आती होपूजा न आती होतो विधि का करोगे क्या?
लेकिन ट्रस्टियों को समझ में नहीं आया। आने की बात भी न थी। यह कोई बात हुई! शिकायत गहरी थी। ट्रस्टियों ने कहा कि इतनी ही नहीं हैशिकायत थोड़ी ऐसी है कि अपराधपूर्ण है। खबर हमें मिली है कि फूल पहले तुम सूंघ लेते हो और फिर चढ़ाते हो! और खबर हमें मिली है कि भोग पहले तुम लगा लेते होफिर भगवान को लगाते हो!
रामकृष्ण ने कहाअपनी नौकरी सम्हालोमैं तो ऐसे ही पूजा करूंगा। क्योंकि मेरी मां जब कुछ बनाती थीतो पहले खुद चख लेती थी। अगर मेरे खाने योग्य ही न होतो मुझे नहीं देती थी। मैं भगवान को बिना चखे नहीं लगा सकता हूं। अगर खाने योग्य न होतो फेंक दूंगाफिर बनाऊंगा। लेकिन यह असंभव है कि मैं पहले उन्हें चढ़ा दूं और मुझे पता ही न हो कि मैं क्या चढ़ा रहा हूं! अब यहां विधि तो पूरी टूट गई। निश्चित हीफूल सूंघकर कैसे चढ़ाना! लेकिन रामकृष्ण कहते हैंबिना सूंघे मैं चढ़ा ही नहीं सकता हूं। अगर फूल में सुगंध ही न होमुझे कैसे पता चलेऔर मैं तो भगवान को वही चढ़ाऊंगाजो मुझे प्रीतिकर हो। तो मुझे पहले पता लगा लेना होगा कि प्रीतिकर मुझे है या नहीं?
रामकृष्ण ने कहाया तो मैं पूजा ऐसी ही करूंगा और या अपनी नौकरी आप सम्हाल ले सकते हैंक्योंकि नौकरी के लिए पूजा नहीं छोड़ी जा सकती।
अब यह जो आदमी हैकृष्ण इसको कहेंगेविधिपूर्वक है। हालांकि विधि सब टूट गई। लेकिन फिर भी इसकी विधि में एक आत्मीयता हैऔर इसकी विधि में एक रस हैऔर इसकी विधि में एक हार्दिक प्रेम हैऔर इसकी विधि में फूल महत्वपूर्ण नहीं रहाभोजन महत्वपूर्ण नहीं रहाबाहरी औपचारिकता महत्वपूर्ण न रहीअंतस का निवेदन महत्वपूर्ण हो गया है। यह जब खड़ा है सामने भगवान केतो सब मिट गया बाहर का। इसके भीतर का आंतरिक लगाव ही सब कुछ है।
एक दिन ऐसा हुआ कि रामकृष्ण खड़े हुए रो रहे हैं। पूजा के फूल कुम्हला गएपूजा के लिए जलाया गया दीप बुझ गया,और रामकृष्ण खड़े रो रहे हैंपूजा शुरू ही नहीं हुई है। जो पूजा देखने चले आए थेवे थोड़ी देर में ऊबकर जाने लगे कि यह किस भांति की पूजा है! दीया बुझ गयाफूल कुम्हला गएभोग भी रखारखा ठंडा हो गयारामकृष्ण खड़े होकर आंख बंद किए रो रहे हैं। यह कब तक चलेगा!
लोग चले गएमंदिर खाली हो गयाआंधी रात हो गई। रामकृष्ण ने आंखें खोलींऔर काली के सामने लटकी थी तलवारउसको खींचकर निकाल लिया। और कहा चिल्लाकर कि बहुत चढ़ाए फूल और बहुत चढ़ाया भोगअब तक कुछ हुआ नहीं उससेआज अपने को ही चढ़ाता हूं!
तलवार गर्दन के पास आ गई एक झटके मेंऔर जैसे बिजली कौंध गई। किसने हाथ से तलवार छीन लीपता नहीं! कैसे तलवार नीचे गिर गईपता नहीं! सुबह रामकृष्ण बेहोश मिले। बेहोश तो थेलेकिन चेहरे पर उनके जो स्वर्ण आभा आ गई थीवह कभीकभी सदियों में एकाध आदमी के चेहरे पर आती है।
तीन दिन लगे होश में आने में। तीन दिन बाद जब होश में आएतो लोगों ने पूछाक्या हुआरामकृष्ण ने कहापूजा हुई। पूजा पूरी हो गई।
उस दिन के बाद रामकृष्ण ने फूल नहीं चढ़ाएउस दिन के बाद भोग नहीं लगायाउस दिन के बाद दिनों बीत जाते थे,मंदिर के भीतर भी नहीं जाते थे। फिर तो दूसरा पुजारी रख लेना पड़ाजो जब वे नहीं आते थेतो पूजा कर देता था। कभीकभी रामकृष्ण जाते थेऔर जाकर ऐसी बातचीत कर लेते थेजैसी मित्रों के बीच होती है। कोई पूछता कि आपने पूजा बंद कर दीरामकृष्ण कहते कि अपने को ही चढ़ा दियाअब बचा नहीं वहजो पूजा करे।
पूजा की आत्यंतिकता तो तब हैजब कोई अपने को ही समर्पित कर देता और चढ़ा देता है। लेकिन विधिया औपचारिक हैंफार्मल हैंबाहर हैं। कृष्ण जानते हैं भलीभांति कि यह जो देवताओं की पूजा चलती हैविधिपूर्वक चलती हैलेकिन उसे वे अविधि कहते हैं। इसलिए क्योंकि अज्ञान में अविधि ही हो सकती है। ज्ञान में ही विधि का जन्म होता है। और वह विधि विधियों जैसी नहीं होतीवैयक्तिक होती हैनिजी होती हैएकएक व्यक्ति की अपनी होती है।
क्योंकि संपूर्ण यज्ञों का भोक्ता और स्वामी भी मैं ही हूं।
चढ़ाओ तुम कहीं से फूलमुझ तक पहुंच जाते हैंऔर गाओ। तुम गीत कहींवह मेरे पास चला आता हैऔर करो तुम कुछसभी कुछ मुझे समर्पित हो जाता है।
कृष्ण यह कह रहे हैं कि मैं केंद्र हूं अस्तित्व का। तुम कहीं भी कुछ करोगेतुम्हारा बुरा भीतुम्हारा भला भीतुम्हारा ठीक भीतुम्हारा गलत भीसब मुझ तक पहुंच जाता हैतुम्हें पता हो या न पता हो। फर्क पड़ेगाअगर तुम्हें पता हो। तो तुम्हारी जिंदगी में क्रांति हो जाएगी।
परंतु वे मुझ अधियज्ञस्वरूप परमेश्वर को तत्व से नहीं जानते
वे जो सारा जीवन मेरे आसपास घूमते हैंउन्हें तत्व से पता नहीं है कि वे किसकी परिक्रमा कर रहे हैंकिसका परिभ्रमण कर रहे हैंकिसके आसपास घूम रहे हैंघूमते रहते हैं पागल की तरहपर उन्हें पता नहीं कि जहां वे घूम रहे हैं,वह प्रभु का मंदिर हैउसकी परिक्रमा है।
इसी से गिरते हैंअर्थात पुनर्जन्म को उपलब्ध होते हैं।
इस संबंध में दोतीन बातें समझ लेनी जरूरी हैंजो कि भारतीय चिंतन के आधार कहे जा सकते हैं।
एकभारतीय चिंतन सदा से विकासवादी हैएवोल्‍यूशनरी है। भारतीय चिंतन मानता है कि व्यक्ति को लौटलौटकर उसी अवस्था में बारबार नहीं गिरना चाहिएक्योंकि उसका अर्थ हुआ कि उसके जीवन में कोई विकास नहीं हो रहा है। कल मैंने जो किया थाअगर वही भूल मैं आज भी करता हूं और कल भी करता हूं तो मेरी चेतना में कोई विकास नहीं हो रहा है। अगर जिंदगीभर मैं एक सर्किल में घूमता रहता हूंबारबार वही करता हूं बारबार वही भोगता हूं तो मेरी जिंदगी विकासमान नहीं है,मेरी जिंदगी वर्तुलाकार है और चाक की भांति घूमती चली जाती है। विकासमान तो वह हैजो नए को उपलब्ध होता है और पुराने को पुनरुक्त नहीं करता। रिपीटीशन नहीं करता पुराने कातो आगे जाता है।
एडीसन ने अपने एक पत्र में किसी को लिखा है कि रोज सांझ को सूरज से यह प्रार्थना करता हूं कि जहां तूने सुबह मुझे पाया थावहां सांझ मुझे मत पानारात यह प्रार्थना करके सोता हूं कि सूरजसांझ तू मुझे जहां छोड़ गया हैकुछ ऐसा हो कि सुबह तू मुझे वैसा ही न पाए कुछ बदल जाएकुछ नया हो जाए।
लेकिन जैसा हमारा मन हैवह पुनरुक्त करता है। मन रिपिटीटिव है। मन की कुछ बातें मैंने आपसे पीछे कही हैं। यह बात भी आप खयाल में ले लें कि मन एक रिपीटीशनएक पुनरुक्ति है। वहीवही रोज करता है। एक घेरा बना लेता है। जैसे छोटे बच्चों की रेलगाड़ी होती हैएक गोल पटरी पर चलती है। चाबी भर दीपटरी का चक्कर लगा लेती है। चाबी चुक गईफिर चाबी भर दीफिर पटरी का चक्कर लगा लेती है। हमारी चाबी चुकती रहती है। रोज हम भरते रहते हैं भोजन से। चक्कर रोज पूरा होता रहता है। स्थूल डाल दियाईंधन डाल दिया शरीर मेंवह अपना रोज का चक्कर पूरा कर लेता है।
कभी आप अपने चौबीस घंटे के वर्तुल का अध्ययन करेंतो आप बहुत चकित हो जाएंगे कि रोजरोज आप वही करते हैं। रोजरोज!
मेरा मतलब यह नहीं है कि रोज आप अलगअलग दफ्तर में जाएं। यह भी मतलब नहीं है कि रोजरोज नई दुकान खोलें। दुकान तो वही रहेगीदफ्तर वही रहेगा। नहींलेकिन रोजरोज आपके मन की जो चित्तदशाएं हैंवे भी वही होती हैं। चौबीस घंटे में आपको कितनी बार क्रोध करना हैउतनी बार आप रोज कर लेते हैं। कितनी बार उत्तेजित होना हैआप उतनी बार उत्तेजित हो लेते हैं। कितनी बार दुखी होना हैआप उतनी बार दुखी हो लेते हैं। कई बार आप चकित भी होते हैं कि अभी तो दुख का कोई कारण नहीं थामैं दुखी क्यों हो रहा हूं?
वक्त आ गया! जैसे वक्त पर चाय पीनी पड़ती हैया सिगरेट पीनी पड़ती हैवैसे ही वक्त पर दुखी भी होना पड़ता है। वक्त आ गया। भीतर से दशा लौट आई।
मन चौबीस घंटे दोहराए चला जाता है यंत्रवत। इस मन के दोहराने को अगर हम लंबा फैलाएं पूरे जीवन के विस्तार पर,तो इसके कई वर्तुल हैं। रोज घूमता हैवर्ष प्रतिवर्ष घूमता हैफिर जीवन से दूसरे जीवन में घूमता चला जाता है। इसको पुनर्जन्म कहता है भारत।
भारत कहता है कि आदमी जैसा हैअगर वह अपने को रोजरोज विकासमान न करेतो वह फिर पूरा का पूरा जीवन वापस दोहर जाएगा। जन्म के बाद हम मृत्यु तक जहां तक पहुंचे हैंमृत्यु हमें वापस पुरानी जगह पर खडा कर देगीहम फिर से जन्म शुरू कर देंगेफिर वही का वहीफिर वही का वही।
बुद्ध और महावीर ने एक अनूठा प्रयोग अपने साधकों के लिए खोजा था। वे तब तक किसी व्यक्ति को साधना में नहीं ले जाते थेजब तक उसको पिछले जन्मों का स्मरण न करा दें।
बुद्ध से कोई पूछता है कि पिछले जन्म को स्मरण करने से क्या प्रयोजन हैमैं तो अभी शांत होना चाहता हूं उसका मुझे कोई रास्ता बताइए। बुद्ध ने कहा कि इसलिएकि पहले भी पिछले जन्मों में तू यह बात किन्हीं और बुद्धों से कह चुका है कि मैं शांत होना चाहता हूं मुझे कोई रास्ता बताइए। और रास्ते तुझे पिछले जन्मों में भी बताए गए हैंकभी तूने उनका पालन नहीं किया। तो तू मेरा समय नष्ट मत कर। मैं तुझे रास्ता बताऊंगापहले भी दूसरे बुद्धों से तूने रास्ते इसी तरह पूछे हैंकभी तूने उनका पालन नहीं किया। तू सिर्फ अपनी आदत दोहरा रहा है। तू वही करेगाजो तूने पीछे किया था। इसलिए पहले मैं तुझे याद दिला दूं। तू अपने दो चार जन्मों का पहले स्मरण कर लेताकि तुझे साफ हो जाए कि तू उसी वर्तुल को फिर से तो नहीं दोहरा रहा है!
उस आदमी को बात समझ में पड़ी। एक वर्ष तक वह बुद्ध के पास पिछले जन्मों के स्मरण के लिए रुका। हैरान हुआ। पिछले जन्म में भी जब उसकी पत्नी मरी थीतभी वह एक बुद्धपुरुष के पास गया था! उसके पहले भी उसकी पत्नी जब मरी थीतब वह एक बुद्धपुरुष के पास गया था! और अभी भी इस जन्म में उसकी पत्नी मर गई थीतो वह फौरन बुद्ध के पास आ गया थाकि मेरा मन बड़ा अशांत हैमुझे शांति चाहिए! और मजा यह है कि पहले जन्म में भी शांति की तलाश करतेकरते नई स्त्री के मोह में पड़ गया था। और दूसरे जन्म में भी शांति की तलाश करने गया था और एक भिक्षुणी के प्रेम में पड़ गया था।
तब वह बहुत घबड़ाया। उसने बुद्ध से कहा कि यह क्या हैयह मैं कर रहा हूं या मुझसे जबरदस्ती करवाया जा रहा है?
बुद्ध ने कहाअगर तू जानता नहीं हैतो तू करता ही चला जाएगा। क्योंकि तुझे पता ही नहीं है कि तू सिर्फ दोहर रहा हैतू सिर्फ पुनरुक्ति कर रहा है। लेकिन स्मरण नहीं हैइसलिए हम बारबार वही दोहरा लेते हैंबारबार वही दोहरा लेते हैं।
छोड़ेपिछले जन्म का स्मरण तो थोड़ा कठिन पड़ेगालेकिन रोज का तो स्मरण है बीता कल तो आपको पता है। कल भी आपने जिस बात पर क्रोध किया थाऔर पछताए भी थे कि अब क्रोध नहीं करूंगाआज भी उसी बात पर क्रोध किया है और आज भी पछताए हैं कि क्रोध नहीं करूंगा! और आज भी आप सोच रहे हैं कि अब कल क्रोध नहीं होगाक्योंकि मैं पछता लिया हूं। लेकिन पछताए तो आप कल भी थेपरसों भी थे।
आप सिर्फ पुनरुक्त कर रहे हैं। क्रोध भी करते हैंपछता भी लेते हैं। फिर क्रोध करते हैंफिर पछता लेते हैं।
एक मित्र मेरे पास आते हैंक्रोधी हैं। ऐसे तो कौन नहीं हैथोड़े ज्यादा हैं। कहते हैं कि किसी तरह मेरा क्रोध छूट जाए। बहुत पछताते हैंरोते हैंछाती पीटते हैजब क्रोध कर लेते हैं।
मैंने उनसे कहाक्रोध की फिक्र छोड़ोतुम पछताना बंद कर दो। एक काम करो। तुम जिंदगीभर से क्रोध छोड़ने की कोशिश कर रहे होवह तो नहीं छूटातुम मेरी मानोक्रोध की फिक्र छोड़ोतुम पछताना बंद कर लो। एक बात पक्की कर लो कि अब क्रोध होगातो पछताऊंगा नहीं।
उन्होंने कहाआप कैसे खतरनाक आदमी हैं! मैं आया हूं क्रोध छोड़नेआप मेरा पछतावा भी छुड़ा देना चाहते हैं! फिर तो मैं महानर्क में पड़ जाऊंगा।
मैंने उनसे कहाकोई भी तो आदत तोड़ो। अगर क्रोध की नहीं टूटतीपछतावे की तोडोसर्किल टूट जाएगापछतावा ही तोड़ो। तो दूसरे क्रोध को आने का मौका नहीं रहेगाक्योंकि बीच की एक सीढ़ी हट गयी। अब तक की व्यवस्था यह है तुम्हारीक्रोधपछतावाक्रोधपछतावाक्रोध। यह तुम्हारा सर्किल है। कहीं से भी सर्किट तोड़ोकहीं से भी तार को अलग खींच लो। क्रोध से नहीं खींच सकतेपछतावे से खींच लो। अगर पछतावा नहीं कर पाएतो मैं वचन देता हूं कि दूसरा जो क्रोध इसके पीछे आना चाहिएउसके लिए रास्ता नहीं मिलेगा।
यह आप चकित होंगे जानकर कि आप इसलिए नहीं पछताते हैं कि आप जानते हैं कि क्रोध बुरा है। आप इसलिए पछताते हैंताकि क्रोध की पहली अवस्था फिर से पा ली जाएऔर फिर से आप क्रोध करने में समर्थ हो जाएं।
पछतावा जो हैवह क्रोध की ट्रिक है। पछतावा जो हैपश्चात्ताप जो हैवह क्रोध की होशियारी हैवह अहंकार की उस्तादी हैचालाकी है। जब आप क्रोध कर लेते हैंतो आपको लगता हैउतना अच्छा आदमी नहीं हूं जितना मैं अपने को समझता था। पछतावा करके आप फिर समझते हैं कि उतना ही अच्छा आदमी हूं जितना अपने को समझता था। अहंकार अपना पुराना लेबल फिर से पा लेता हैवहीं पहुंच जाता हैजहां क्रोध के पहले था।



 क्रोध के कारण एक गड्डे में पड़ गए थेक्रोध के कारण थोड़ी दीनता आ गई थी। क्रोध के कारण मन को लगा कि उतना अच्छा आदमी नहीं हूंजितना दावा करता था। पछतावा करके वापस अपनी जगह खड़ा हो गयाउसी जगहजहां क्रोध के पहले था। अब आप फिर क्रोध कर सकते हैंक्योंकि उसी जगह से आपने क्रोध किया था।
मन एक पुनरुक्ति है। और मन के आधार पर जीने वाला आदमी अपने पूरे जीवन को एक पुनरुक्ति बना लेता हैजस्ट ए रिपीटीशनए मैकेनिकल रिपीटीशनयंत्रवत घूमते चले जाते हैं। इसका जो बड़े से बड़ा वर्तुल हैवह पूरा जीवन है। सिर्फ भारत को इस बात का खयाल आ पाया।
भारतीय धर्मों के अतिरिक्त दुनिया का कोई धर्म पुनर्जन्म का खयाल नहीं करतारिबर्थ का खयाल नहीं करता। क्योंकि भारत के अलावा दुनिया के किसी धर्म ने मनुष्य के मन की इस कीमिया को ठीक से नहीं समझा कि अगर मनुष्य का मन पुनरुक्त करता हैतो पूरा जीवन भी एक वृहदकाय वर्तुल होगा और आदमी फिर पुनरुक्त करेगा! और हमने बारबार किया है!
हम बारबार उसी तरह लोभ में पड़े हैंअनेक जन्मों में। बारबार उसी तरह वासना में गिरे हैंअनेक जन्मों में। बारबार मकान बनाएधन कमायापद कमाया। बारबार असफल हुएअनेक जन्मों में। और हर बार फिर वहीहर बार फिर वही!
कृष्ण कहते हैं कि ऐसे जो देवताओं को भजते हैंबिना मुझे जानेअर्थात जो अपनी वासनाओं को ही उपासना बना लेते हैंजो किसी माग से प्रार्थना करते हैंवे बारबार गिरते हैं और पुनर्जन्म को उपलब्ध होते हैं। कारण यह है कि देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं।
यह बहुत कीमती सूत्र है।
कारण यह है कि पितरों को पूजने वाले पितरों को प्राप्त होते हैं। कारण यह है कि भूतों को पूजने वाले भूतों को प्राप्त होते हैं। कारण कि व्यक्ति जो भी पूजता हैअंततः वही हो जाता है। और व्यक्ति जो भी पूजता हैअंततः उससे ऊपर नहीं जा सकता। कोई भी व्यक्ति अपने श्रद्धेय से ऊपर नहीं जा सकता।
इसे थोड़ा हम समझ लें।
आप जिसको श्रद्धा करते हैंवह आपका मैक्सिममआपका श्रेष्ठतमअंतिम बिंदु हो गया। श्रद्धा जरा सोचकर करना,क्योंकि श्रद्धा आपके भविष्य की लकीर हो जाएगी। जिसको आप श्रद्धा
करते हैंउससे ऊपर आप कभी नहीं जा सकते हैं। आपकी श्रद्धा आपका अंतिम बिंदु बन जाती है। वह आपके व्यक्तित्व के विकास का लक्ष्य हो जाती है। तो आदमी जिसको पूजता हैअनजाने तय कर रहा है कि यही मैं होना चाहता हूं।
ध्यान रखेंआज अगर सड़क से एक संन्यासी जा रहा होतो कोई भीड नहीं लग जाती उसके आसपास। कभी लगती थी। आज से दो हजार साल पीछेबुद्ध अगर गांव से गुजरतेसंन्यासी गाव से गुजरतातो भीड़ लग जाती थी। सारा गांव इकट्ठा हो जाता था। क्योंकि चाहे कोई दुकान कर रहा होचाहे कोई खेती कर रहा होअंतिम श्रद्धा यही थी कि एक दिन मुझे भी संन्यासी हो जाना है। चाहे न हो पाएतो इसकी पीड़ा रह जाएगीदंश रह जाएगा। लेकिन आज संन्यासी को देखकर कोई भीड़ इकट्ठी नहीं होती। हीअभिनेता निकलता होतो भीड़ इकट्ठी हो जाती है। वह हमारी श्रद्धा है। वही हम होना चाहते हैं। भला न हो पाएंभला न हो पाएंहोना वही चाहते हैं।
जो हम होना चाहते हैंवह हमारा श्रद्धापात्र हो जाता है। श्रद्धापात्र का अर्थ हैवह मेरे भविष्य की तस्वीर हैयही मैं होना चाहता हूं। और जो व्यक्ति जिसको श्रद्धा करता हैधीरेधीरे वैसा ही हो जाता है। हो ही जाएगाक्योंकि श्रद्धा से हमारी आत्मा निर्मित होती हैऔर श्रद्धा हमारी आत्मा का गठन करती हैऔर श्रद्धा हमारी आत्मा को रूपांतरित करती है। श्रद्धा सोचकर करना! बहुत होशियारी सेबहुत बुद्धिमानी से। क्योंकि श्रद्धा ढांचा बनेगीजिसमें अंततः आप ढल जाएंगे।
तो कृष्ण कहते हैंजो देवताओं को पूजते हैंवे देवताओं को प्राप्त होते हैं।
लेकिन देवता तो स्वयं ही वासनाओं से घिरे हुए जीते हैं! चाहे इंद्र होतो भी वासनाओं से भरा हुआ जीता है! हम सबको कथाएं पता हैं कि अगर पृथ्वी पर कोई आदमी बहुत तपश्चर्या करेतो इंद्र का सिंहासन डोलने लगता है। इसका मतलब यह है कि ईर्ष्या से वह भर जाता हैक्योंकि उसे डर होता है कि कोई दूसरा समर्थ आदमी इंद्र होने की स्थिति में आया जा रहा है। अगर यह सफल हो गया तपश्चर्या मेंतो मुझे पद से हट जाना पड़ेगाऔर यह आदमी मेरे पद पर बैठ जाएगा।
तो इंद्र बेचारा चौबीस घंटे अपने सिंहासन को बचाने में ही लगा हुआ है! कहीं कोई तपश्चर्या करेकठिनाई उसे होती है! भेजता है उर्वशियों कोअप्सराओं को कि जाकर भ्रष्ट करो! इस आदमी को डांवाडोल करो! यह थोडा डांवाडोल हो जाएतो मेरा सिंहासन स्थिर हो जाए।
जो भी सिंहासन पर हैवह सदा डरा हुआ रहेगा हीघबड़ाया रहेगा।
मैंने सुना हैइटली में एक बहुत पुराना मंदिर हैअभी भी है। उसकी बड़ी पुरानी कथा है और बड़ी हैरानी की है। उस मंदिर का इतिहास अनूठा है। एक पहाड़ की तलहटी में एक छोटीसी झील के पास वह मंदिर हैएक बड़े वृक्ष के नीचे। उस मंदिर का जो पुजारी हैवह दुनिया के इतिहास में अनूठे ढंग का पुजारी है। उस मंदिर का पुजारी बनने का एक ही उपाय है;अगर कोई व्यक्ति मौजूद पुजारी की हत्या कर देतो ही वह व्यक्ति वहां का पुजारी बन सकता है।
तो तलवार लिए पुजारी खड़ा रहता है चौबीस घंटे। क्योंकि पूरे वक्त सोना मुश्किल हो जाता है। सो नहीं सकता। सोएकि गए! जिंदगी हराम हो जाती हैक्योंकि पूरे वक्त.। और कोई नहीं है उस जंगल मेंउस वृक्ष के नीचे एक पुजारी अपनी तलवार लिए अपनी रक्षा करता रहता है। और आज नहीं कलउसे पता है कि मौत तो होगी ही। क्योंकि वह भी इसी तरह पुजारी बना है! वह भी किसी को इसी तरह मारा हैतभी पुजारी बना है। और यह सतत परंपरा है। कोई उसे मारेगा और पुजारी बनेगा। और जो बनेगा पुजारीवह भलीभांति जानता है कि वह जिस जगह जा रहा हैवहां तलवार लिए खड़े रहना हैऔर कोई उसकी हत्या करेगा।
यह बड़ी महत्वपूर्ण बात है! सभी पदों की हालत ऐसी ही है। जो भी वहा पहुंचता हैकिसी को मारकरहटाकरपरेशान करके पहुंचता है। पहुंचते से ही फिर उसको चौबीस घंटे तलवार लिए खड़े रहना पड़ता हैक्योंकि जिस रास्ते से वह आया है,उसी रास्ते से दूसरे भी आएंगे। और उसे पक्का मालूम है कि वह सदा वहां नहीं रह सकताकोई आएगा पीछे। क्योंकि अगर सदा वहां कोई रह सकता होतातो वह खुद भी वहां नहीं पहुंच सकता होता। कोई और ही रहा होता। वह पहुंच गयाकोई और पहुंच जाएगा।
हर पद के पासहर धन के पासहर प्रतिष्ठा केहर सिंहासन के पास मौत की घबड़ाहट है। इंद्र घबड़ाया हुआ हैदेवता घबडाए हुए हैं। वासना से भरे हुए हैंइच्छाओं से भरे हुए हैं। कृष्ण कहते हैं कि देवताओं को पूजकर ज्यादा से ज्यादा अगर कोई आदमी पूरी तरह सफल हो गयातो देवता हो जाएगाइससे ऊपर नहीं जा सकता।
लेकिन देवता कोई बहुत ऊंची अवस्था नहीं है। यह भी बहुत हैरानी की बात है कि भारत अकेला देश हैजो देवताओं की अवस्था को बहुत ऊंची अवस्था नहीं मानता! और यह भी मानता है कि देवताओं को भी अगर मुक्त होना होतो उन्हें पहले मनुष्य होना पड़ेगा। मनुष्य चौराहा है। देवता का एक रास्ता हैमनुष्य से जाता है आगे। मालूम पड़ता हैआगे जाते। लेकिन अगर देवता को भी मुक्त होना हैतो उसे वापस चौराहे पर लौटकर मुक्ति का रास्ता पकड़ना पड़ेगा।
मनुष्य चौराहा हैक्रासरोड है। पशु को भी अगर मुक्त होना हैतो मनुष्य होना पड़ेगादेवता को भी मुक्त होना हैतो मनुष्य होना पड़ेगा। एक अर्थ में देवता ऊपर मालूम पड़ सकता हैक्योंकि ज्यादा सुख में है। लेकिन एक अर्थ में नीचे हैक्योंकि देवता की स्थिति से अंतिम ट्रासफामेंशनअंतिम क्रांति नहीं हो सकतीउसे मनुष्य तक वापस लौटना पड़ेगा।
मनुष्य से ही कोई क्राति संभव है। इस अर्थ में भी भारत ने. देवताओं के पास मनुष्य से ज्यादा शक्ति हैज्यादा उम्र है,ज्यादा इच्छाओं की पूर्ति का साधन हैज्यादा सुख हैसब कुछ हैलेकिन आत्मक्रांति का उपाय नहीं है। उन्हें वापस लौट आना पड़ेगा।
इसलिए भारत ने मनुष्य को एक अर्थ में चरम माना है। मनुष्य की इतनी गरिमा दुनिया में कहीं भी नहीं है। इस अर्थ में चरम माना है कि सिर्फ मनुष्य की ही आत्मा में मुक्त होने की आत्यंतिक घटना घट सकती हैपरम स्वतंत्रता और प्रभु का दर्शन मनुष्य के साथ ही घटित हो सकता है। पशु के साथ नहीं हो सकताक्योंकि वे भी अज्ञान में हैंऔर देवताओं के साथ भी नहीं हो सकताक्योंकि वे भी अज्ञान में हैं। पशु दुख में होगादेवता सुख में होंगेलेकिन दोनों अज्ञान में हैं। मनुष्य के साथ घटना घट सकती हैं तीनों।
भारत कहता है कि मनुष्य नीचे गिरना चाहेतो पशुओं से नीचे गिर सकता हैऊपर उठना चाहेतो देवताओं से पार जा सकता हैऔर मुक्त होना चाहेतो समस्त घेरे के बाहर छलाग लगा सकता है।
कृष्ण कहते हैंजो पूजा करेगा पितरों कीवह पितरों को प्राप्त हो जाएगा। जो भी पूजा होगीअगर सफल हो गएतो वही हो जाओगे।
और मेरे भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं। इसलिए मेरे भक्तों का पुनर्जन्म नहीं है। मेरे भक्त मुझको ही प्राप्त होते हैं! जो मुझे भजता हैवह धीरेधीरेधीरेधीरे मुझमें ही एक हो जाता है।
सिर्फ परमात्मा की पुनरुक्ति नहीं होतीबाकी सब चीजें पुनरुक्त होती हैं। सिर्फ परमात्मा का कोई रिपीटीशन नहीं होता,बाकी सब चीजें दोहरती हैं। जो शाश्वत हैवही पुनरुक्त नहीं होता।
इसे समझना कठिन पड़ेगापर दोतीन बातें खयाल में लेंतो शायद समझ में आ जाए।
दुनिया में सब चीजें नई होती हैंक्योंकि सभी चीजें पुरानी पड़ जाती हैं। जो भी नई हैवह कल पुरानी हो जाएगी। जो आज पुरानी हैध्यान रखनावह कल नई थी। सिर्फ परमात्मा न नया है और न पुराना। वह सिर्फ है। वह कभी पुराना नहीं पड़ेगाक्योंकि वह कभी नया नहीं था।
जो चीज नई हैवही पुरानी हो सकती है। जो नई नहीं हैउसके पुराने होने का कोई उपाय न रहा। तो परमात्मा न नया हैन पुराना। इसलिए हमने एक अलग शब्द गढ़ा हैवह है सनातनवह है शाश्वतवह है अनादिअनंत। इस भाषा में हमने उसे कहा है कि वह सदा है। परमात्मा पुराना नहीं होतानया नहीं होताबस होता है।
जो चीज नई हैवह कल पुरानी हो जाएगी। और जब पुरानी हो जाएगीतो फिर नए होने के लिए संभावना शुरू हो जाएगी। जो चीज पुरानी हैवह कल पुरानी हो होकर नष्ट हो जाएगीखो जाएगीफिर नए होने का मौका मिल जाएगा।
दुनिया में सब चीजें दोहरती रहती हैं। कई दफे बहुत हैरानी की बातें होती हैं। अगर आप दुनिया के फैशन का इतिहास देखेंतो बहुत चकित हो जाएंगे! दसपांच साल में फैशन वापस आ जाते हैं। जिन कपड़ों को दसपांच साल पहले पुराना समझकर छोड़ दियादसपांच साल बाद वे लौट आते हैं। जिन बालों के ढंग को दसपांच साल पहले पुराना समझकर छोड़ा था,दसपांच साल बाद वे वापस लौट आते हैं!
दसपांच साल काफी वक्त है। पुरानी चीजें भूल जाती हैंफिर नई हो जाती हैं। और आदमी की स्मृति इतनी कमजोर है कि वह देख ही नहीं पातावह खयाल भी नहीं कर पाता कि हम क्या कर रहे हैं! फिर वही चुनकर ले आता हैफिर वही चुनकर ले आता है। आदमी के मन के साथ नए और पुराने का खेल चलता रहता हैपुनरुक्ति चलती रहती है।
कृष्ण कहते हैंजो मुझे उपलब्ध होता हैवह पुनर्जन्म को उपलब्ध नहीं होताक्योंकि वह शाश्वतता के साथ एक हो गया।
इसका दूसरा अर्थ भी है। पुनर्जन्म तो उसका ही होता हैजो समझता हो कि मेरा जन्म होता है। और जो समझता है कि मेरा जन्म होता हैफिर उसे मृत्यु की भी पीड़ा भोगनी पडती है। परमात्मा को जो जानने लगता हैवह तो जानता है कि न मेरा जन्म होता है और न मेरी मृत्यु होती है। तो जन्म और मृत्यु साधारण घटनाएं रह जाती हैंहवा के बबूलों की तरह। और वह तो जन्म के भी पहले होता है और मृत्यु के भी बाद होता है। अब उसका कोई जन्म और मृत्यु नहीं होती।
बुद्ध से कोई पूछता हैमरने के दिनकि क्या आप मृत्यु के बाद कहीं होंगे या बिलकुल खो जाएंगेतो बुद्ध कहते हैं,अगर मैं मृत्यु के पहले कहीं थातो रहूंगा। अगर पहले ही खो गयातो पीछे भी बचेगा क्या?
सुनने वाले की समझ में नहीं आया हैउसने फिर दूसरी तरह से पूछा। उसने पूछा कि छोड़ेयह जरा कठिन है। मैं यह पूछता हूं जन्म के पहले आप कहीं थे या जन्म के बाद ही आप हुए?
बुद्ध ने कहाअगर जन्म के पहले मैं कहीं थातो जन्म के बाद भी कहीं रहूंगाऔर अगर जन्म के बाद भी कहीं नहीं थातो जन्म के पहले भी कहीं नहीं था।
पर उस आदमी की समझ में नहीं आया। उसने कहापहेली में मत जवाब दें। मुझे सीधासीधा कहें। तो बुद्ध ने कहा,जिसे तुम देखते होवह तो जन्म के साथ पैदा हुआ है और मृत्यु के साथ मर जाएगा। लेकिन जिसे मैं देखता हूं वह कभी पैदा नहीं हुआ और कभी मरेगा भी नहीं। लेकिन वह देखना आंतरिक हैवह देखना भीतर है। वह सिर्फ मैं ही देख सकता हूंतुम्हें वह दिखाई नहीं पड़ेगा। तुम भी देख सकते होअगर तुम अपने भीतर देखने में समर्थ हो जाओ।
लेकिन हम सबका देखना बाहर है। बाहर जो हमें दिखाई पड़ता हैवह तो जन्म और मृत्यु का घेरा है। भीतर कोई हमारे जरूर छिपा हैजो न जन्मता है और न मरता है। उसकी अगर पहचान हो जाएतो फिर कोई पुनर्जन्म नहीं हैफिर कोई लौटना नहीं है।
लौटने को एक तीसरी तरह से भी समझें।
अगर कुछ बच्चे एक क्लास में पढ़ रहे होंऔर हर साल उन्हें वापस परीक्षा के बाद उसी क्लास में भेज दिया जाएतो इसका क्या मतलब होगाइसका एक ही मतलब होगा कि पढ़ालिखा उन्होंने बहुत होगालेकिन गुना बिलकुल नहींपढ़ालिखा बहुत होगालेकिन समझा बिलकुल नहींपढ़ालिखा बहुत होगामेहनत बहुत की होगीलेकिन कोई ग्रोथकोई विकासकोई बढ़ती उनके भीतर नहीं हुई। वापस उसी क्लास में लौटा दिए गए।
जीवन तभी हमें वापस भेजता है किसी स्थिति मेंजब हम उससे बिना कुछ सीखे गुजर जाते हैं। जिस स्थिति से आप बिना सीखे गुजर जाएंगेआपको वापस लौटना पड़ेगा। सिर्फ उसी स्थिति में आप वापस नहीं लौटेंगेजिससे आप सीखकर गुजर जाएंगे।
लेकिन हम हर चीज से बिना सीखे गुजर जाते हैं! कितनी बार क्रोध कियासीखा क्याकितनी बार प्रेम कियासीखा क्याकितनी बार कामवासना में डूबेसीखा क्याकितनी बार ईर्ष्या कीसीखा क्याकितना लोभ कियाजिंदगी में बहुत कुछ कियासीखा क्यासंपत्ति क्या हैसार क्या हैहाथ में निचोड़ क्या है?
अगर निचोड़ कुछ भी नहीं हैतो आपको लौटना पड़ेगा। जिंदगी किसी को क्षमा नहीं करतीजिंदगी फिर अवसर देगी। जिंदगी फिर कहेगी कि वापस उसी जगह लौट जाओ!
और हम ऐसे हैं कि बारबार लौटकर हम पुख्ता होते चले जाते हैं। धीरेधीरे हमको लगता है कि इस क्लास में वापस आनायह तो अपना घर है! उसमें हम वापस आए चले जाते हैं। सीखना शायद और मुश्किल होता चला जाता है। हम अभ्यासी हो जाते हैं। हम अभ्यासी हो जाते हैं। और हममें जो अभ्यासी हैंवे कभीकभी आगे निकल जाते हैं। मैं जानता हूं।
मैं एक क्लास में नयानया पहुंचाबाकी सब विद्यार्थी तो एक ही उम्र के थेएक विद्यार्थी बहुत उम्र का था। तो मैंने शिक्षक को पूछातो उन्होंने कहा कि यह छ: साल से इसी क्लास में हैंलेकिन अब कैप्टन हो गए हैं। क्लास के कैप्टन हैं! और वह लड़का अकड़कर खड़ा था। निश्चित ही। छ: साल वापस उसी क्लास में लौटने का चुकता परिणाम इतना हुआ है कि वे अब कैप्टन हो गए हैं! अब वे उस क्लास से शायद जाना भी न चाहेंक्योंकि दूसरी क्लास में कैप्टन वे न हो पाएंगे।
इस जिंदगी में भी जो बहुत तरह के कैप्टन दिखाई पड़ते हैंराजनीति मेंधन मेंयहांवहांउनमें अधिक लोग इसी तरह के हैंजो पुख्ता हो गए हैंमजबूत हो गए हैंदोहरदोहरकर जिंदगी में इतने यंत्रवत मजबूत हो गए हैंकि जो नए बच्चे आ रहे होंगे जिंदगी मेंउनके सामनेकोई राष्ट्रपतिकोई प्रधानमंत्रीकोई कुछ होकर खड़ा हो जाता है। उनसे अगर कहो भी कि जन्ममरण से छुटकारावे कहेंगे कि नहींहम तो बारबार किसी तरह इसी पद पर लौटते रहेंयही आकांक्षा है!
जिंदगी में जो कई बार सफल दिखाई पड़ते हैंउनका एक ही कारण हो सकता है गहरे में कि जिंदगी के असली लक्ष्य से वे असफल हो गए हैं। मगर यह बड़ा कठिन है समझना। जो जिंदगी में तथाकथित सफलता दिखाई पड़ती हैसोकाल्ड सक्सेस,इसके पीछे जिंदगी की बड़ी गहरी असफलता कारण हो सकती है! बहुत बार लौटलौटकर इसी जगह वे काफी ज्ञानी और अनुभवी हो गए हैं! इसी क्लास में उन्हें सब रट गया हैसब कंठस्थ हो गया हैकुशलचालाक हो गए हैं। यद्यपि अनुभव उन्हें कुछ भी नहीं हुआक्योंकि अनुभव हो जाए तो लौटने का कोई उपाय नहीं है।
जिस चीज को हम जान लेते हैंहम उसको ट्रासेंड कर जाते हैंउसके पार निकल जाते हैं। लेकिन जो आदमी परमात्मा को ही जान लेगाफिर तो उसके कहीं भी लौटने का कोई उपाय न रहाक्योंकि जीवन की अंतिम शिक्षा पूरी हो गई।
परमात्मा का अर्थ हैजीवन का अंतिम निष्कर्षअस्तित्व का सारअस्तित्व का केंद्रअस्तित्व का आखिरी कमल खिल गयाअस्तित्व ने आखिरी गीत गा लियाअस्तित्व ने आखिरी नृत्य देख लियाअस्तित्व की जो गहनतम संभावना थीवह अभिव्यक्त हो गईअब लौटने का कोई उपाय न रहा।
तो परमात्मा जो हैवह प्‍वाइंट आफ नो रिटर्न है। वहां से आप वापस नहीं गिर सकते। और जहां से भी आप वापस गिर सकते हैंवहां तक जानना कि परमात्मा नहीं हैवहां तक संसार है। और जहां से भी आप वापस गिर सकते हैंतो समझ लेना कि आप छलांग लगाकर उचकने की कोशिश किए होंगेलेकिन वह नई अवस्था आपके लिए सहज नहीं थी। आप अपनी पुरानी अवस्था में गिर गए हैं।
एक आदमी छलांग लगाए आकाश मेंतो क्षणभर के लिए उचक सकता है। फिर जमीन खींच लेगी। अपनी जगह फिर खड़ा हो जाएगा। अगर आकाश में छलाग ही लगानी होतो फिर जमीन का गुरुत्वाकर्षण तोड्ने का कोई उपाय करना पड़ेगा। हवाई जहाज कोई उपाय करता हैतो जमीन के गुरुत्वाकर्षण के बाहर हो जाता हैया जमीन के गुरुत्वाकर्षण के रहते भी आकाश में सदा रह जाता है। हम सब ऐसे हवाई जहाज हैंजिनको यह पता ही नहीं है कि हम जमीन के गुरुत्वाकर्षण से ऊपर उठ सकते हैं। और हमारा उपयोग लोकवाहक की तरहपब्लिक कैरियर की तरह किया जा रहा है!

 समान ढो रहे हैंजमीन पर ही। हवाई जहाज से हम चाहें तो ठेले का काम भी ले सकते हैंलारी काट्रक का। और अगर हवाई जहाज के पायलट को खयाल ही न हो कि यह हवाई जहाज जमीन को छोड़कर भी उड़ सकता हैतो बेचारा जमीन पर ही ट्रक का काम करता रहेगाजमीन पर ही सामान ढोता रहेगा!
ध्यान रहेट्रक तो आकाश में नहीं उड़ सकतालेकिन हवाई जहाज जमीन पर चल सकता है। श्रेष्ठ में निकृष्ट तो समाया होता हैलेकिन अगर आप निकृष्ट के आदी हो जाएंतो श्रेष्ठ का खयाल ही मिट जाता है।
परमात्मा के स्मरण का इतना ही अर्थ हैउसकी पूजा का इतना ही अर्थ हैकि तुम्हीं हो मेरे गंतव्यकि जब तक मैं तुम्हीं न हो जाऊंतब तक मेरे लिए कोई भी ठहराव नहीं हैतुम्हीं हो मुकामऔर जब तक तुम्हीं न मिल जाओतब तक मेरे लिए कोई पड़ाव पड़ाव नहीं है। रुकूंगारातभर ठहरूंगासिर्फ इसलिए कि सुबह चल सकूं! रुकूंगाविश्राम कर लूंगासिर्फ इसलिए कि पैर थक गएऔर पैरों की ताकत लौट आई तो फिर चल पडूगा।
लेकिन हम भीचलते तो हम भी बहुत हैंलेकिन हमारा चलना ऐसा है कि जिस जमीन पर हम बारबार चल चुके हैं,हम उसी पर लौटलौटकर चलते रहते हैं। एक ही जगह को हम कई बार पार करते रहते हैं। हमारी जिंदगी गति नहीं करती;जैसे कि मालगाड़ी के डब्बे शंटिंग करते हैं स्टेशन परवैसी हमारी जिंदगी हैवहींवहीं शंटिंग करते रहते हैं। कहीं कोई अंतिम मुकाम नहीं आता। बसदौड़धूप मेंआखिर में यह शंटिंग होतेहोते हम टूटते और चुक जाते हैं।
पुनर्जन्म का अर्थ हैशंटिंग। उसका अर्थ है कि यात्रा पर नहीं निकल पा रहे हैं आप। फिर वहीं लौट आने का अर्थ है कि आगे कोई गति नहीं सूझ रही है आपको।
कृष्ण कहते हैंलेकिन जो मुझे भजता हैवह फिर नहीं लौटता है। क्योंकि वह भजन अंतिम है।
परमात्मा अंतिम निष्कर्ष हैआखिरीदि अल्टिमेटपरम। उसके पार कुछ नहीं है। या हम ऐसा कहेंजिसके पार हमारी कोई समझ नहीं जातीवही परमात्मा है। जिसके पार हम सोच भी नहीं सकतेजिसके अतीत और जिसके पार की कल्पना भी नहीं बनतीवही परमात्मा है।
इस परमात्मा के भजनेइस परमात्मा के पूजने का क्या अर्थकैसे कोई पूजेगातीन बातें अंत में आपसे कहूं।
एकजीवन को पुनरुक्ति न बनने देंस्मरणपूर्वक पुनरुक्ति से बचें। डोंट गो ऑन रिपीटिगदोहराए मत चले जाएं। कहीं से भी ढांचे को तोडे। और कहीं से भी इस दोहरती हुई यांत्रिक प्रक्रिया के बाहर हो जाएं। छोटेमोटे प्रयोग से भी आदमी बाहर होना शुरू हो जाता हैबहुत छोटेमोटे प्रयोग से!
हमारी सबकी प्रतिक्रियाएं बंधी हुई हैं। अगर मैंने आपको गाली दीतो प्रेडिक्टेबल है कि आप क्या करोगे! जो आपको जानते हैंवे भलीभांति बता सकते हैं कि आप क्या करोगे! एक पत्नी बीस साल पति के साथ रहकर भलीभांति जानती है कि अगर वह यह कहेगीतो पति यह जवाब देगा! आदमी प्रेडिक्टेबल हो जाता है। पति भलीभांति जानता है कि घर पहुंचकर पत्नी क्या पूछने वाली है! उत्तर भी रास्ते में तैयार कर लेता है कि वह यह कहेगीयह उत्तर हो जाएगा! और यह भी जानता है कि इस उत्तर को वह मानने वाली नहीं है। पत्नी भी जानती है कि मैं यह पूछूंगीतो क्या उत्तर मिलेगा! जानते हुए भी कि यह उत्तर मिलेगावह पूछेगीउत्तर पाएगीमानेगी नहीं। लेकिन कहीं से भी हम अपनी यंत्रवत व्यवस्था को तोड़ेंगे नहीं।
कहीं से भी तोड़े। कोशिश करें अनप्रेडिक्टेबल होने की। कोशिश करें कि आपके बाबत भविष्यवाणी न हो सके। कोई यह न कह सके कि अगर हम चांटा मारेंगेतो वे क्या करेंगे!
जिस दिन आप अनप्रेडिक्टेबल हो जाते हैंजिस दिन आपके बाबत कोई प्रतिक्रिया को पूर्वघोषित नहीं किया जा सकता,आप पहली दफा मनुष्य होते हैं। उसके पहले आप यंत्रवत होते हैं।
कुछ नहीं कहा जा सकताअगर जीसस के गाल पर आप चांटा मारेतो जीसस क्या करेंगेकुछ भी नहीं कहा जा सकता। अगर बुद्ध को आप पत्थर मारेतो बुद्ध क्या करेंगेकुछ भी नहीं कहा जा सकता।
एक आदमी ने बुद्ध के ऊपर आकर थूक दिया थातो वह आदमी सोच भी नहीं सकता था कि बुद्ध क्या करेंगे। बुद्ध ने अपनी चादर से उस आदमी के थूक को पोंछ लिया और उस आदमी से कहातुम्हें कुछ और भी कहना है?
उस आदमी ने कहाआप क्या कह रहे हैंमैंने थूका हैकुछ कहा नहीं!
बुद्ध ने कहामैं समझ गया। कई बार ऐसा हो जाता है कि आदमी इतने भाव से भर जाता है कि शब्दों में नहीं कह पातातो

 किसी चेष्टा से कहता है। तुम शायद ज्यादा क्रोध से भर गए हो कि गाली भी कम पड़ती होगीतुमने थूककर कहा। मैं समझ गया। अब तुम बोलोतुम्हें और क्या कहना है?
अब यह अनप्रेडिक्टेबल है। इस आदमी को हम यांत्रिक नहीं कह सकते। इस आदमी को यांत्रिक कहना मुश्किल है। यह आदमी दोहरा नहीं रहा है।
लेकिन वह दूसरा आदमी तो मुश्किल में पड़ गया। रातभर उसने सोचासो नहीं पाया। अगर ये बुद्ध उसको गाली दे देते,या उसके ऊपर यूक देतेतो ज्यादा दया होती। एक अर्थ में वह रात सो सकता। अगर ये भी नाराज हो जातेतो वह रात निश्चित सो जाताक्योंकि दिक्कत ही खतम हो गई थी। सर्किल पूरा हो जाता। घटना पूरी हो जाती। बुद्ध ने पोंछकर पूछ लिया कि और कुछ कहना हैतो अटक गई बात अधूरी। मन रातभर बेचैन रहा कि यह आदमी कैसा हैफिर मन को यह भी होने लगा कि मैंने गलत आदमी के ऊपर थूक दिया! यह ठीक नहीं किया मैंने थूककर! ऐसे आदमी पर तो कम से कम नहीं फना था!
रातभर जागता रहा। बेचैन रहा। सुबह ही भागा हुआ आया। बुद्ध के पैर पर गिर पड़ा। पैर पर उसके आंसू टपकने लगे। बुद्ध ने उसे उठायाचादर से पैर के आंसू पोंछे और पूछाऔर कुछ कहना हैक्योंकि आज तुम फिर उसी हालत में आ गए। कुछ कहना चाहते होनहीं कह पा रहेशब्द ओछे पड़ते हैंआंसू टपकाकर कहते हो। बोलोक्या कहना है?
उस आदमी ने कहामैं क्षमा मांगने आया हूं।
बुद्ध ने कहाछोड़ो भी। कल तो कब का बह गयातुम किससे क्षमा मांगने आए होवह आदमी अब तुम्हें कहां मिलेगा,जिसके ऊपर तुमने थूका था?
उस आदमी ने कहाक्या आप वह आदमी नहीं हैंक्या कह रहे हैंक्यों मुझे मुसीबत में डाल रहे हैं! आप ही वे आदमी हैंजिन पर मैं यूक गया था।
बुद्ध ने कहालेकिन चौबीस घंटे मेंजानते होगंगा का कितना पानी बह जाता हैचौबीस घंटेभर बाद अगर तुम उसी गंगा से क्षमा मांगने जाओगेजिसमें थूक गए थेतो वह गंगा कहेगीमुझे पता ही नहीं। किस में तुम यूक गए थेपानी कितना बह गया चौबीस घंटे में! छोड़ो भी। भूलो भी। क्यों रुक गए हो उस परथूककर जितनी गलती की थीउससे बडी गलती यह कर रहे हो कि अब उसी पर रुके हुए होरातभर खराब की! छोड़ो।
लेकिन वह आदमी कैसे छोड़ देवह दूसरे दिन फिर आता है कि मुझे क्षमा कर दो। वह तीसरे दिन फिर आता है कि मुझे क्षमा कर दो। वह चौथे दिन फिर आता है कि मुझे क्षमा कर दो!
वह पुनरुक्त कर रहा हैएक घेरे में घूम रहा है। वह एक घेरे में घूम रहा है। और बुद्ध आनंद से कहते हैं कि अगर इसे मैं क्षमा कर दूं तो यह फिर यूक सकता है। यह प्रेडिक्टेबल हैइसकी घोषणा की जा सकती है। यह बेचैन हो रहा है सिर्फ इसीलिए कि एक क्रिया पूरी नहीं हो पा रही है। इसको बेचैनी मालूम हो रही है।
मन पूरा करना चाहता है कोई भी कामपूरा हो जाए तो निश्चित हो जाता है। इनकंप्लीटकोई चीज अधूरी रह गईतो मन ऐसे ही बेचैन होता हैजैसे दांत गिर जाए आपका एकतो जीभ वहां बारबार जाती हैखाली जगह को बारबार छूती है।'लाख कोशिश करो कि मत छुओपता तो है कि गिर गया दांतफिर जीभ वहीं चली जाती है। वह जीभ यह कहती हैसमथिंग इनकंप्लीटकोई चीज अधूरी हैइसको पूरा करोभरो।
ठीकमन ऐसे ही पूरे समय कोशिश करता है भरने की। लेकिन बुद्ध जैसे व्यक्ति अघोष्य हो जाते हैंअनप्रेडिक्टेबल हो जाते हैं। उनके बाबत कुछ कहा नहीं जा सकता। इतने ज्यादा हो जाते हैं।
एक आदमी सुबह बुद्ध से पूछता हैईश्वर हैबुद्ध कहते हैंनहीं है। दोपहर दूसरा आदमी पूछता हैईश्वर हैबुद्ध कहते हैंहै। तीसरा आदमी शाम पूछता हैईश्वर हैबुद्ध कुछ भी नहीं कहतेचुप रह जाते हैं।
रात आनंद घबड़ा जाता है। उनके साथ था वह दिनभर। वह रात पूछता है कि मेरी मुश्किल कर दी। मैं सो न सकूंगा। पहले मुझे समझा दो। सुबह एक आदमी से कहा ईश्वर नहीं हैदोपहर एक आदमी से कहा हैसांझ बिलकुल चुप रह गएकुछ भी न कहा! बुद्ध ने कहाजो उत्तर तुझे दिए नहीं गएवे तूने लिए क्योंवे जिनको दिए गए थेउनके और मेरे बीच का मामला है।
आनंद ने कहालेकिन मैं बहरा तो नहीं हूं! मुझे सुनाई पड़ गए। और अब मैं सोच रहा हूं कि सही बात क्या है?
बुद्ध ने कहासही बात तो तीनों में ही नहीं है। तू सो जा।
उसने कहाअब मैं बिलकुल न सो सकूंगा। वह सही बात क्या हैरातभर मेरे मन में यही दोहरता रहेगा कि वह सही बात क्या हैबुद्ध ने कहासही बात कुल इतनी है कि जो आदमी सुबह आया था और पूछता थाईश्वर हैवह आस्तिक था;पर वैसा ही आस्तिकजैसे अक्सर आस्तिक होते हैं। उसका अपना कोई अनुभव नहीं थासिर्फ मान्यता थी। और वह इसलिए नहीं आया था कि ईश्वर को जानना चाहता था। सिर्फ इसलिए आया था कि बुद्ध और उसके मत और विश्वास के सहायक हो जाएं। वह अपने विश्वास को मजबूत करने आया थाजानने नहीं। जानने की उसकी कोई तैयारी न थी। वह तो सिर्फ यह कहने आया था कि किसी दिन वह कह सके कि मैं तो मानता ही हूंबुद्ध भी मानते हैं! वह मुझे भी अपनी कतार में खड़ा करने आया था!
तो उससे मुझे कहना पड़ा कि नहींईश्वर नहीं है। उसके अहंकार को तोडना जरूरी था। और उससे कहना जरूरी था कि ऐसे मानने से कुछ भी न होगा। है ही नहींमानकर क्या करेगा! देखा तूने कि वह कैसे कैप गयाजैसे झंझावात में कोई वृक्ष की जड़ें कंप जाएं। देखा तूनेउसका चेहरा कैसा लाल आग से भर गया! देखा तूने कि उसके अहंकार को कैसी भयंकर चोट लगी! अब वह किसी से अपने अहंकार की पुष्टि में मेरा नाम नहीं ले पाएगा। और अब एक बेचैनी की तरह मैं उसका पीछा करूंगा। अब उसे पता तो है नहीं कि ईश्वर है या नहींबुद्ध ने कहा कि नहीं है। अब उसे खोजना ही पड़ेगा। इसके पहले अब वह हिम्मत से कभी न कह सकेगा कि है।
दोपहर जो आदमी आया थावह नास्तिक था। वह मेरे से गवाही लेने आया था कि मैं भी कह दूं कि नहीं हैताकि वह जाकर लोगों से कहे कि मैं ही नहीं कहताबुद्ध भी कहते हैं कि ईश्वर नहीं है। उससे मुझे कहना पड़ा कि है। उसे भी हिलाना जरूरी था।
झूठी श्रद्धाएं जब तक हिले नतब तक सच्ची श्रद्धाएं पैदा नहीं होतीं। थोथे विश्वास जब तक उखाड़ें न जाएंतब तक आत्मगत भरोसों का जन्म नहीं होता।
और सांझ जो आदमी आया थावह सीधासरलनिर्दोष आदमी था। उसकी कोई मान्यता न थी। न वह मानता था कि हैन वह मानता था कि नहीं है। वह बच्चों की तरह भोला था। उसे कोई भी उत्तर देना उचित न था। चुप रह जाना उचित था। वह मेरी बात समझ गया। वह आनंदित वापस लौट गया। वह समझ गया कि ईश्वर के संबंध में चुप होने से ही उसका पता चलेगा। मौन रह जाने से ही। कुछ मत कहो। है और नहीं में उसे नहीं कहा जा सकता। वह मेरी चुप्पी को समझ गयावह मेरे पैर छूकर गया है। आनंदतूने देखा! वह पैर छूकर गया है। पैर छूते वक्त तूने उसकी आंखें देखी थींवे जैसे शांत झील की तरह हो गई थीं। और वह आदमी जल्दी ही प्रभु को पा लेगा।
      अब ऐसे आदमी से अगर आप जाकर पूछेंतो उत्तर तक निश्चित नहीं है कि वह क्या कहेगा! स्पाटेनियस होगा,रिपिटीटिव नहीं होगा। सहज होगापुनरुक्ति नहीं होगी। वह वही कहेगाजो उस क्षण में उसकी पूरी अंतरात्मा से निकलेगा। वह वही करेगा उस क्षण मेंजो उसके पूरे प्राणों से जन्म लेगा। वह किसी चीज को दोहराएगा नहीं। और अगर हमें दोहराता हुआ भी दिखाई पड़ेतो वह हमारी ही भूल होगी।
हमको रोज लगता है कि सुबह सूरज निकलता हैवही सूरज। लेकिन जो सूर्योदय को देखते हैंवे जानते हैं कि दुबारा एक सूर्योदय फिर नहीं होतान तो वैसे बादल होतेन वैसे रंग होतेन वैसी सुबह होतीन वे गीत होतेन वह आकाश होता। हर रोज सुबह नया सूरज उगता है। नए सूरज का मतलबसब नया होता है।
ऐसा व्यक्ति प्रतिपल नया होता है।
तो एक बात ध्यान रखेंपुनरुक्ति को तोड़े। दूसरी बात ध्यान रखेंजो कुछ भी चाहेंगहरे खोजेंतो हर चाह में परमात्मा की चाह छिपी हुई मिलेगी। अपनी हर चाह में अंततः परमात्मा को खोजने का उपाय करें। तो धीरेधीरे चाहें गिर जाएंगी और परमात्मा की मौलिक चाह ही शेष रह जाएगीऊपरी चाहें गिर जाएंगी और भीतरी चाह प्रकट हो जाएगी।
और तीसरी बातअंतिम को ही लक्ष्य बनाएंबीच का कोई पड़ाव मंजिल नहीं हो सकता। परमात्मा से कम को लक्ष्य मत बनाएं। क्योंकि जो लक्ष्य हैअंततः आपकी चेतना का तीर उसी लक्ष्य में बिंध जाएगाऔर उसी के साथ एक हो जाएगा। इसलिए छोटे लक्ष्य मत बनाएं।
हम सबकी जिंदगी बहुत छोटीछोटी रह जाती हैछोटेछोटे लक्ष्यों के कारण। हम क्षुद्र रह जाते हैंक्षुद्र लक्ष्यों के कारण।
अब एक आदमी की जिंदगी का लक्ष्य अगर रुपया ही इकट्ठा करना हैतो इस आदमी के पास जो आत्मा होगीवह आत्मा बहुत बड़ी नहीं हो सकती। कैसे होगीइसकी आत्मा इसकी अभीप्सा ही तो है। यह धन इकट्ठा करना ही इसकी कुल जमा दौड़ है। तो इसकी आत्मा ज्यादा से ज्यादा एक लोहे की तिजोड़ी हो सकती है। और क्या हो सकती हैइसकी आत्मा का और क्या होगा मूल्यइसकी आत्मा रुपए से भी छोटी होगी। तभी तो रुपए के प्रति इतनी आकर्षित और आंदोलित है।
एक आदमी बड़ी कुर्सी पर पहुंचना चाहता हैतो पहुंच जाएगा एक दिन। लेकिन इसकी आत्मा एक मुर्दा कुर्सी से ज्यादा बड़ी नहीं हो सकती!
अंतिम को लक्ष्य बनाएंक्योंकि अंतत: वही आप हो जाएंगे। उस पर श्रद्धा रखें जो आखिरी हैचाहे वह असंभव ही क्यों न मालूम पड़े। क्योंकि संभव को जो चुनता हैवह क्षुद्र हो जाता है। असंभव को चुनें।
और ईश्वर से ज्यादा असंभव कुछ भी नहीं है। अदृश्यअरूपनिराकार असंभव मालूम पड़ता है। उसे चुनें। उसकी तरफ उपासना को बढ़ाते चलें। एक दिन पाएंगे कि वह तो मिल गयाआप खो गए। एक दिन पाएंगेआप तो नहीं बचेवही रह गया। एक दिन पाएंगेआप वही हो गए हैं।

आज इतना ही।
लेकिन पांच मिनट रुके। कोई बीच में उठे न। कीर्तन पूरा हो जाएफिर जाएं।

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