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बुधवार, 5 अप्रैल 2017

ध्यान के कमल-(साधना-शिविर)-प्रवचन-05



ध्यान के कमल-(साधना-शिविर)
ओशो
प्रवचन-पांचवां-(ध्यान: द्वैत से अद्वैत की ओर)


दोत्तीन मित्रों ने एक ही सवाल पूछा है कि ध्यान का प्रयोग करते समय, जब मैं कहता हूं कि आप अपने शरीर के बाहर निकल जाएं, छलांग लगा लें, और पीछे लौट कर देखें, तो उन्होंने पूछा है, यह हमारी समझ में नहीं आता कि कैसे निकल जाएं और कैसे पीछे लौट कर देखें?

जिनको छलांग लग जाती हो उनके लिए तो किसी विधि की जरूरत नहीं है। इसीलिए मैंने विधि की बात नहीं कही। क्योंकि कुछ लोग सहज ही बाहर निकल जाते हैं, किसी विधि की जरूरत नहीं है। निकलने का खयाल ही उन्हें बाहर ले जाता है। जिनको ऐसा न होता हो, उनके लिए मैं विधि कहता हूं। लेकिन जिनको होता हो उन्हें विधि करने की जरा भी जरूरत नहीं है। जिन्हें यह न होता हो आसानी से कि कैसे बाहर निकल जाएं, वे एक छोटा सा प्रयोग रात सोते समय घर पर करें। तो एक-दो दिन के भीतर आसान हो जाएगा।

रात सोते समय बिस्तर पर बैठ जाएं, अपने दोनों हाथ पैरों पर रख लें, और घुटने तक सोने के पहले पैर ठंडे पानी से धो लें, फिर दोनों हाथ घुटनों पर रख लें और ऐसा अनुभव करें कि दोनों हाथों से बिजली की धारा पैरों में प्रवाहित हो रही है। और दोनों हाथों को नीचे की तरफ ले जाएं, सात बार, पंजों तक ले जाएं। बस ऐसा खयाल करते हुए कि बिजली की धारा हाथ से प्रवाहित हो रही है और पैरों से नीचे उतर रही है। पंजे तक ले जाएं और फिर पैर के...सात बार ऐसा करें, और फिर एक मिनट तक दोनों हथेलियों से पैर के दोनों पंजों को रगड़ते रहें, नीचे तलवों को रगड़ते रहें। और अनुभव करें कि बिजली वहां इकट्ठी हो रही है। फिर सीधे लेट जाएं, माथे पर--जैसा हम प्रयोग कर रहे हैं--हाथ को रख कर, बहुत आहिस्ता से, तेजी से नहीं, बहुत आहिस्ता से हाथ को ऊपर-नीचे और दोनों ओर एक मिनट तक फेरते रहें। फिर दोनों हाथ छोड़ दें और भीतर आंख बंद करके अनुभव करें कि आपके पैर कहां हैं? आंख बंद करके सिर्फ अनुभव करें कि मेरे पैर कहां हैं? मेरे पैर का पंजा कहां समाप्त हो रहा है?
शीघ्र ही आपको अनुभव में आ जाएगा कि आपके पैर इस जगह हैं। तत्काल दूसरी कल्पना करें कि मेरे पैर छह इंच लंबे हो गए हैं। सिर्फ कल्पना करें कि छह इंच लंबे हो गए हैं। और आपको फौरन अनुभव में आना शुरू हो जाएगा कि आपके पैर जहां थे वहां से छह इंच लंबे हो गए हैं।
यह जो लंबाई है, यह सूक्ष्म शरीर की है, यह अनुभव में आ जाएगी एक-दो दिन के भीतर। ऐसा तीन-चार बार करें, फिर वापस लौट आएं अपने पैर के स्थान पर। फिर छह इंच लंबे पैर को ले जाएं, फिर वापस लौट आएं, फिर पैर को ले जाएं।
जब पैर आपका होने लगे, तब दूसरा प्रयोग जोड़ दें। आंख बंद करके अनुभव करें कि सिर कहां है? फिर कल्पना करें कि सिर छह इंच लंबा हो गया, फिर वापस लौट आएं स्थान पर। फिर छह इंच लंबे पर ले जाएं, फिर वापस लौट आएं।
जब यह भी आपको अनुभव होने लगे, तब तीसरा प्रयोग इसमें जोड़ दें कि आपका शरीर बड़ा होकर आपके पूरे कमरे में फैल गया है। आपका यह शरीर तो पड़ा रहेगा बिस्तर पर, लेकिन सूक्ष्म शरीर की अनंत संभावना है, वह कितना ही बड़ा और कितना ही छोटा हो सकता है। जब आपका छह इंच ऊपर सिर जाने लगे और छह इंच पैर नीचे जाने लगें, तो अड़चन न होगी। तब आप तीसरा प्रयोग जोड़ दें। आंख बंद रखें और अनुभव करें कि शरीर पूरे कमरे में फैल गया और दीवाल स्पर्श होने लगी।
जिस दिन यह हो जाए, उस दिन सुबह के ध्यान में आप शरीर के बाहर हो जाएंगे। उसमें कोई अड़चन न होगी। जिनका सहज होता हो उन्हें विधि नहीं करनी है। जिनका न होता हो वे रात सोते वक्त आज से विधि शुरू कर दें, तो मेरे जाने के पहले, सुबह के प्रयोग में वे शरीर के बाहर हो सकेंगे।

दूसरे मित्र ने पूछा है कि जब ध्यान में प्रकाश का अनुभव होता है, तो वह प्रकाश भी तो प्रकृति प्रकाश ही होगा और द्रष्टा तो अलग ही रहेगा!

प्राथमिक रूप से ऐसा ही होगा कि प्रकाश अलग दिखाई पड़ेगा और द्रष्टा अलग दिखाई पड़ेगा। लेकिन एक घड़ी ऐसी आती है जब द्रष्टा और प्रकाश एक ही हो जाते हैं। वही घड़ी परम घड़ी है। जब देखने वाला और दिखाई पड़ने वाला एक ही हो जाता है। या जब दर्शन, दृश्य और द्रष्टा तीनों खो जाते हैं, सिर्फ प्रकाश रह जाता है।
पर वह भाषा में कहना कठिन होगा। क्योंकि भाषा में तो जब भी हम कहेंगे, चीजें दो में टूट जाएंगी। देखने वाला अलग हो जाएगा, दिखाई पड़ने वाली चीज अलग हो जाएगी।
तो जब मैं आपसे कहता हूं, प्रकाश को देखें, तो यह बिलकुल प्राथमिक है। धीरे-धीरे-धीरे देखने वाला और दिखाई पड़ने वाला प्रकाश दो चीजें नहीं रह जाते, एक ही अनुभव हो जाता है। वहां यह भी पता नहीं चलता कि मैं प्रकाश को देख रहा हूं। वहां प्रकाश ही रह जाता है, मैं नहीं रह जाता हूं, या मैं ही प्रकाश हो जाता हूं। यह तो लौट कर ध्यान के बाहर आपको पता चलेगा कि मैंने प्रकाश जाना। ध्यान के भीतर धीरे-धीरे अनुभव भी खो जाएगा कि मैंने प्रकाश जाना। यह अनुभव भी बाधा है। लेकिन प्राथमिक रूप से सीढ़ी है।
सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं और छोड़नी पड़ती हैं।
अगर कोई कहे कि जिन सीढ़ियों को छोड़ना है उन्हें चढ़ें ही क्यों? तो वह नीचे ही रह जाएगा, मंजिल के ऊपर नहीं पहुंचेगा। और कोई अगर यह कहे कि जब सीढ़ियों को इतनी मेहनत से चढ़े तो आखिरी समय इन्हें छोड़ें क्यों? तो वह सीढ़ियों पर रह जाएगा, वह भी मंजिल पर नहीं पहुंचता है।
ध्यान में द्वैत से शुरू करना पड़ता है, क्योंकि हम द्वैत में खड़े हैं। और अद्वैत पर पहुंचना पड़ता है, क्योंकि वही हमारी मंजिल और वही सत्य है।
अंतिम क्षण में प्रकृति और परमात्मा भी दो नहीं हैं। अंतिम क्षण में पदार्थ और परमात्मा भी दो नहीं हैं। अंतिम क्षण में संसार और मोक्ष भी दो नहीं हैं। अंतिम क्षण में दो ही नहीं हैं। दुई और द्वैत नहीं है। लेकिन उस अंतिम क्षण को अगर पहले से आपसे कहा जाए तो खतरे की संभावना है।
झेन फकीर जापान में निरंतर कहते रहे हैं: निर्वाण और संसार एक है, पदार्थ और परमात्मा एक है।
लेकिन इसका एक दुष्परिणाम भी हुआ। इसका फिर यह हुआ कि जो आदमी संसार में खड़ा है, वह कहता है, जब एक ही है तो छोड़ना क्या? बदलना क्या? जाना कहां? फिर ठीक है, भोगे चले जाओ। शराब भी परमात्मा है फिर। तो पीए चले जाओ। जब द्वैत है ही नहीं, तो हम परमात्मा को ही पी रहे हैं, शराब कहां पी रहे हैं! फिर जुआ खेल रहे हैं, तो हम प्रार्थना ही कर रहे हैं। भेद कहां है?
यह जो अंतिम वक्तव्य है, यह पहले न दिया जाए तो अच्छा। क्योंकि यह अंतिम वक्तव्य उस आदमी को देना, जिसे कुछ भी पता नहीं है, खतरे में ले जाएगा। हम ज्ञान से भी नरक में उतर सकते हैं। हम इतने अदभुत लोग हैं कि हम ज्ञान को भी नरक में उतरने के लिए मार्ग बना सकते हैं।
ऐसा हुआ। ऐसा इस देश में भी हुआ। वेदांत के जो चरम सत्य हैं, वे आम आदमी के हाथ में पड़ कर लाभ नहीं पहुंचाए, नुकसान पहुंचाए। चरम सत्य अनुभव से ही प्रकट होते हैं। और उन तक पहुंचने के लिए बहुत से हाइपोथेटिकल ट्रुथ, बहुत से प्रयोगात्मक सत्य स्वीकार करने पड़ते हैं, जो कि सत्य नहीं हैं। जो कि सत्य नहीं हैं, लेकिन सत्य तक पहुंचाने में भी कुछ असत्य सहयोगी होते हैं।
यह बहुत कठिन मालूम पड़ेगा। दुनिया में जितने भी धर्म विकसित हुए हैं, उनमें निन्यानबे प्रतिशत कल्पित सत्य हैं। लेकिन वे कल्पित सत्य इसीलिए हैं ताकि उस एक सत्य तक पहुंचने के लिए रास्ता बन जाए। हम असत्य में घिरे हुए लोग, असत्य के ही सहारे सत्य की तरफ जा सकते हैं। और इसीलिए परम सत्य की जो घोषणा है वह खतरनाक सिद्ध होती है। क्योंकि समझ में तो आ जाती है बात, लेकिन जब हम प्रयोग करने उतरते हैं, तब अड़चन खड़ी होती है।
अगर सब एक है, तो कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। और अगर परमात्मा सब जगह व्याप्त है, तो कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। लेकिन हम जैसे हैं, वैसे ही रह जाएंगे फिर। और हम जैसे हैं, उसमें हमें परमात्मा का कहीं कोई अनुभव नहीं है। हमें कुछ करना पड़ेगा, ताकि हम बदल जाएं और यह जो परम सत्य है कि सभी कुछ परमात्मा है, यह हमारी प्रतीति, हमारा अनुभव बन जाए। यह अनुभव अभी नहीं है।
द्वैत अनुभव होगा प्रारंभ में ध्यान में। आनंद भी अनुभव होगा तो आनंद अलग मालूम पड़ेगा, आप अलग मालूम पड़ेंगे। परमात्मा की भी जो पहली स्पर्शणा होगी, उसमें आप अलग और स्पर्श अलग मालूम पड़ेगा। फिर धीरे-धीरे डूबते-डूबते-डूबते...
अगर हम एक नमक की डली को पानी में डाल दें, तो डालते ही नहीं घुल जाती है। अलग बनी रहती है पानी से। लेकिन घुलना शुरू हो गया, पानी के छूते ही घुलना शुरू हो गया। अभी तो अलग है, वक्त लगेगा। थोड़ा पानी के सत्संग में रहने पर धीरे-धीरे गलेगी-गलेगी-गलेगी। पहले तो समझेगी कि मैं अलग हूं और पानी अलग है। फिर धीरे-धीरे गलती जाएगी और वह वक्त आएगा जब कि डली खोजने से नहीं मिलेगी, पानी में सब तरफ फैल गई होगी और एक हो गई होगी। और अब डली और पानी अलग नहीं होंगे। अब अगर आपको डली खोजनी है तो पानी को चखना पड़ेगा। तो ही पता चलेगा कि वह है--छिपी हुई, व्यापक होकर, फैल कर। लेकिन प्रथम क्षण में तो नमक की डली पानी से अलग ही रहेगी।
आप भी जब परमात्मा में पहले क्षण में उतरेंगे तो अलग होंगे, परमात्मा अलग होगा। लेकिन उतर गए तो अब फिक्र न करें, परमात्मा जल्दी ही आपको गला लेगा। जल्दी ही आप पिघल जाएंगे और खो जाएंगे।
ध्यान के संबंध में दोत्तीन बातें कह दूं।
रोज ध्यान की गति तीव्र होती जाती है। इसलिए कोई भी व्यक्ति जो देखने आ गया हो, वह कुर्सियों पर बैठ जाएगा। कंपाउंड में, इस मेरे सामने के घेरे में, कोई भी व्यक्ति देखने के लिए नहीं रहेगा। लेकिन मैं रोज कहता हूं, फिर भी इस कोने पर कुछ लोग खड़े होकर देखना शुरू कर देते हैं। फिर बीच में उन्हें अलग करवाना भी अशोभन मालूम पड़ता है। उन्हें खुद ही समझ लेनी चाहिए। इस कोने पर नियमित रूप से कुछ लोग खड़े होकर देखना जारी रखते हैं। तो आज हमें अलग करना पड़ेगा। इस कोने पर ऐसे लोग अगर हों, तो वे कुर्सियों पर चले जाएं।
कोई भी छोटे बच्चे बीच में आप बिठा लेते हैं। आपको अंदाज नहीं है कि वे बच्चे वहां बैठ कर क्या करेंगे। उन बच्चों को हटा दें और कुर्सियों पर बिठा दें। जो भी प्रयोग कर रहा हो वही यहां अंदर रहे, बाकी लोग बाहर हो जाएं। देखने की मनाही नहीं है, कुर्सी पर बैठ जाएं और जाकर देख लें।
जो लोग कुर्सियों पर बैठे हों और प्रयोग करना चाहते हों, वे वहां न बैठे रहें। वह सिर्फ नासमझों के लिए है। जिनको प्रयोग करना हो वे नीचे कंपाउंड में आ जाएं। जिनको भी हटना हो वे एकदम हट जाएं, वहां बैठ जाएं। और संकोच न करें कि कोई क्या कहेगा, आप हट रहे हैं! आपकी मौजूदगी खतरनाक है, आप हट जाएं।
जिनको प्रयोग करना हो वे कुर्सियों से नीचे आ जाएं। और जिनको देखना हो वे कुर्सियों पर चले जाएं। देखने वालों को बातचीत नहीं करनी है, इतना सहयोग दें, वहां बैठ कर चुपचाप देखते रहें।
अब ये इतने लोग यहां अगर बैठे रहते तो एक उपद्रव का कारण था। जल्दी कर लें। इसमें भी सोच-विचार करना है क्या कि जाएं कि न जाएं?
दूसरी बात का खयाल रखें कि आपको काफी दूर-दूर फैल जाना चाहिए, जगह काफी है, तभी आप आनंद से नाच सकेंगे और लीन हो सकेंगे। दूर-दूर फैल जाएं, दूर-दूर फैल जाएं, बहुत पास खड़े न हों। यहां पास खड़े होने की कोई जरूरत नहीं है। महिलाएं दूर-दूर फैल जाएं, यह पास खड़े होना नहीं चलेगा। फासला लें थोड़ा। फासले पर हो जाएं, दूर-दूर फैल जाएं। और जो लोग देखने बैठे हैं, वे कृपा करके बातचीत नहीं करेंगे, चुपचाप देखते रहेंगे।

(पहले चरण में पंद्रह मिनट संगीत की धुन के साथ कीर्तन चलता रहता है।)

गोविंद बोलो, हरि गोपाल बोलो
गोविंद बोलो, हरि गोपाल बोलो
गोविंद बोलो, हरि गोपाल बोलो...
राधा रमण हरि गोपाल बोलो
राधा रमण हरि गोपाल बोलो
राधा रमण हरि गोपाल बोलो...

(दूसरे चरण में पंद्रह मिनट सिर्फ धुन चलती रहती है और भावों की तीव्र अभिव्यक्ति में रोना, हंसना, नाचना, चिल्लाना आदि चलता रहता है। तीस मिनट के बाद तीसरे चरण में ओशो पुनः सुझाव देना प्रारंभ करते हैं।)

शांत हो जाएं, शांत हो जाएं। बैठ जाएं, लेट जाएं या खड़े रहें, लेकिन बिलकुल शांत हो जाएं। सब गति छोड़ दें, आवाज छोड़ दें। जो शक्ति जाग गई है उसे भीतर काम करने दें। आंख बंद कर लें। आंख खुली रहे तो शक्ति व्यर्थ चली जाती है। आंख बंद कर लें। जो शक्ति जाग गई है उसे भीतर काम करने दें। आंख बंद कर लें। क्लोज योर आइज, नाउ बी साइलेंट, नो मूवमेंट...शांत हो जाएं, बिलकुल शांत हो जाएं...शांत हो जाएं, आवाज छोड़ दें, हिलना-डुलना छोड़ दें, आंख बंद कर लें...
अब तीसरे चरण में प्रवेश करना है। अपने दाएं हाथ को माथे पर रख लें, दोनों ओर और ऊपर-नीचे आहिस्ता से रगड़ें। जो लोग पहली बार रगड़ रहे हों, वे जोर से रगड़ें। जो तीन दिन से रगड़ने का प्रयोग कर रहे हों, वे बहुत आहिस्ता से रगड़ें।
नाउ पुट योर राइट हैंड पाम ऑन दि फोरहेड बिट्वीन दि आइब्रोज एंड रब इट साइडवेज, अप एंड डाउन...फॉर वन मिनट रब इट, एंड मेनी थिंग्स विल बिगिन टु हैपन इन यू...बहुत कुछ भीतर होने लगेगा, रगड़ें, एक मिनट तक माथे पर हाथ से रगड़ते रहें...भीतर बहुत कुछ होने लगेगा, होने दें...
रब इट फॉर वन मिनट, सडनली ए डोर ओपन्स, अचानक ही कोई द्वार खुल जाता है और दूसरी दुनिया में प्रवेश हो जाता है...

ठीक है, अब हाथ छोड़ दें और मुर्दे की भांति हो जाएं...नाउ स्टॉप रबिंग, बी जस्ट एज इफ यू आर डेड...परमात्मा के द्वार पर गिर पड़े, उसकी मंदिर की सीढ़ियों के पास गिर गए सब छोड़ कर...उसकी मर्जी होगी भीतर उठा लेगा...सब छोड़ दें और मुर्दे की भांति हो जाएं...
भीतर प्रकाश ही प्रकाश फैल गया है...भीतर प्रकाश ही प्रकाश फैल गया है, अनंत प्रकाश...ऐसा प्रकाश जो कभी नहीं जाना...भीतर प्रकाश ही प्रकाश फैल गया है...इस प्रकाश में एक बूंद की भांति खो जाएं जैसे सागर में बूंद खो जाए...प्रकाश ही प्रकाश, प्रकाश ही प्रकाश...भीतर अनंत प्रकाश का सागर फैल जाएगा और उसमें खो गए...प्रकाश ही बचा, आप नहीं बचे...यू आर नॉट नाउ, ओनली दि लाइट रिमेन्स... लाइट, मोर लाइट, इनफिनिट लाइट...जस्ट ड्राप इन इट एंड बी वन विद इट...
डूबें, खो दें अपने को प्रकाश में और एक हो जाएं...प्रकाश ही प्रकाश का सागर रह गया और आप एक बूंद की तरह उसमें खो गए...
प्रकाश का एक सागर बचा है और उसमें खो गए...डूब जाएं, खो दें अपने को, बिलकुल लीन हो जाएं...प्रकाश ही प्रकाश शेष रह गया...प्रकाश ही प्रकाश शेष रह गया...छोड़ दें, छोड़ दें, डूब जाएं, प्रकाश के साथ एक हो जाएं...प्रकाश ही प्रकाश है, प्रकाश ही प्रकाश है, बूंद की तरह खो जाएं...डू नॉट विदहोल्ड योरसेल्फ, ड्राप योरसेल्फ टोटली, बी वन विद दि लाइट दैट इज़ इन...
छोड़ें, छोड़ें, प्रकाश के साथ एक हो जाएं...और प्रकाश के पीछे ही आ जाता है आनंद और रोएं-रोएं में भर जाता है, जैसे झरना फूट पड़े हृदय के किसी कोने से और आनंद की लहरें सब तन-मन में व्याप्त हो जाती हैं...एंड लाइट इज़ फालोड बाइ ब्लिस--ब्लिस डिवाइन...फील इट, फील इट...अनुभव करें, अनुभव करें आनंद का...आनंदित हों, अनुभव करें आनंद का...आनंदित हों, रोएं-रोएं तक तन-प्राण पर आनंद को फैल जाने दें...प्रकाश के पीछे-पीछे ही आता है आनंद और हृदय की धड़कन-धड़कन को भर जाता है...भर जाएं आनंद से, भर जाएं आनंद से, भर जाएं आनंद से...बी फिल्ड विद दिस ब्लिस, बी फिल्ड विद दिस ब्लिस...भर जाएं, भर जाएं, भर जाएं...कोई कोना शेष न रह जाए, सब तरफ आनंद से भर जाएं...प्रकाश के पीछे ही आता है आनंद--अपने आप, छाया की भांति...
आनंद, आनंद और आनंद ही शेष रह गया...आनंद को अनुभव करें...नहीं जाना जिस आनंद को--अनुभव करें, डूब जाएं, एक हो जाएं...आप मिट गए, आनंद ही शेष रह गया...आप शून्य हो गए और उस शून्य में आनंद ही भर गया...
नाउ यू आर नॉट, यू हैव बिकम ए नथिंगनेस एंड दि ब्लिस हैज फिल्ड इट, दि ब्लिस हैज फिल्ड दि नथिंगनेस...नाउ यू आर नॉट एंड दि ब्लिस हैज फिल्ड दि नथिंगनेस...नहीं बचे आप, शून्य हो गए और आनंद ही भर गया...भर जाएं, भर जाएं, भर जाएं, भर जाएं...जैसे कोई खाली घड़ा वर्षा में रखा हो और बूंदें उसमें भरती जाएं, भरती जाएं, ऐसे एक खाली घड़े हो गए और उसमें आनंद की वर्षा हुई जा रही है, आनंद भरता जा रहा है...
आनंदित हों, अनुभव करें, अनुभव करें, आनंद से भर जाएं, भर जाएं, भर जाएं...बी एन एंप्टी वेसल एंड लेट इट बी फिल्ड विद ब्लिस...खाली घड़े हो गए और आनंद से भरते जा रहे हैं...आनंदित हों, आनंद से भर जाएं...भर जाएं, जैसे खाली घड़े में वर्षा की बूंदें भरती जाती हैं, ऐसे खाली घड़े हो गए हैं और आनंद उसमें भरता जा रहा है...
अनुभव करें, आनंद को भरता हुआ अनुभव करें, रोएं-रोएं तक फैल जाने दें... और आनंद के पीछे ही परमात्मा की प्रतीति शुरू हो जाती है...आनंद के पीछे ही परमात्मा सब ओर मौजूद मालूम होने लगता है...आनंद द्वार खोल देता है परमात्मा के...अनुभव करें, परमात्मा चारों ओर मौजूद है...वही मौजूद है, सब ओर से उसी ने घेर रखा है, वही बाहर है, वही भीतर है...आनंद खोल देता है द्वार प्रभु के...उसकी निकटता को अनुभव करें...
फील दि प्रेजेंस ऑफ दि डिवाइन आल अराउंड...ब्लिस ओपन्स दि डोर...नाउ दि डोर इज़ ओपन, फील दि प्रेजेंस, फील दि प्रेजेंस ऑफ दि डिवाइन...प्रभु की उपस्थिति अनुभव करें...प्रभु की उपस्थिति अनुभव करें...चारों ओर वही है, चारों ओर वही है...अनुभव करें, परमात्मा चारों ओर से घेरे खड़ा है...यही मौका है, इस क्षण को न खोएं...अनुभव करें, स्पष्ट अनुभव करें, उसकी मौजूदगी अनुभव करें...वही आती श्वास में है, वही जाती श्वास में है...अनुभव करें, वही मौजूद है, परमात्मा ही मौजूद है...आनंदित हों, उसकी मौजूदगी को अनुभव करें...परमात्मा चारों ओर से घेरे खड़ा है...वही मौजूद है, और कुछ भी नहीं है...

अब फिर से एक बार अपने हाथ को माथे पर रख लें। नाउ वंस मोर रब योर फोरहेड विद दि राइट हैंड पाम बिट्वीन दि आइब्रोज, रब साइडवेज, अप एंड डाउन। आजू-बाजू, ऊपर-नीचे। सिर पर हाथ की हथेली को रख लें माथे पर और रगड़ें। दोनों आंखों के बीच की जगह महत्वपूर्ण है, वहीं रगड़ें, वही तीसरी आंख की जगह है...
रब दि थर्ड आई स्पॉट बिट्वीन दि आइब्रोज, एंड ए डोर ओपन्स सडनली, एंड यू आर इन ए डिफरेंट वर्ल्ड...एक द्वार खुल जाता है अचानक और एक दूसरे लोक में प्रवेश हो जाता है...रगड़ें...जो लोग नये हैं, वे जोर से रगड़ें। दोज हू आर न्यू, रब इट फोर्सफुली। जो लोग तीन दिन से, चार दिन से कर रहे हैं, वे आहिस्ता करें...

अब दोनों हाथ आकाश की ओर ऊपर उठा लें। आंखें खोल दें अचानक और आकाश को देखें। नाउ रेज़ योर बोथ हैंड्स टुवर्ड्स दि स्काई, सडनली ओपन दि आइज, नाउ सी दि स्काई एंड लेट दि स्काई सी यू...सडनली ओपन दि आइज, रेज़ योर बोथ हैंड्स, दोनों हाथ उठा लें, आकाश को देखें और आकाश को देखने दें आपके भीतर...
और अब अपने आनंद को प्रकट करें, नाउ एक्सप्रेस योर ब्लिस, जो भी भीतर अनुभव हो रहा है उसे प्रकट करें...नाउ बी मैड, कंप्लीटली मैड एंड एक्सप्रेस इन इट...बिलकुल पागल होकर, जो भीतर दबा है, उसे प्रकट हो जाने दें...जो कुछ भी भीतर हो रहा है उसे प्रकट होने दें...जो भी भीतर है उसे बह जाने दें, आनंद से प्रकट कर दें...रोकें नहीं, छिपाएं नहीं, जो भी भीतर है उसे प्रकट हो जाने दें...हंसना हो हंसें, रोना हो रोएं, चिल्लाना हो चिल्लाएं, नाचना हो नाचें, लेकिन दो मिनट के लिए पूरा प्रकट कर दें, जो भी भीतर है...डू नॉट विदहोल्ड, एक्सप्रेस इट कंप्लीटली...

अब दोनों हाथ जोड़ लें और परमात्मा के चरणों में सिर रख दें उसे धन्यवाद देने के लिए...अब दोनों हाथ जोड़ लें और परमात्मा के चरणों में सिर रख दें उसे धन्यवाद देने के लिए...आदमी से अकेले तो कुछ भी न होगा, आदमी अकेला काफी नहीं, परमात्मा की सहायता चाहिए, उसकी कृपा और अनुकंपा चाहिए...दोनों हाथ जोड़ लें, उसके चरणों में सिर रख दें और हृदयपूर्वक भीतर कहें: प्रभु की अनुकंपा अपार है, प्रभु की अनुकंपा अपार है, प्रभु की अनुकंपा अपार है, प्रभु की अनुकंपा अपार है।
उसे धन्यवाद दे दें: दाइ ग्रेस इज़ इनफिनिट, दाइ ग्रेस इज़ इनफिनिट, दाइ ग्रेस इज़ इनफिनिट। प्रभु की अनुकंपा अपार है, तेरी अनुकंपा अपार है, तेरी अनुकंपा अपार है, तेरी अनुकंपा अपार है।

अब दो-चार गहरी श्वास ले लें और ध्यान से वापस लौट आएं। दो-चार गहरी श्वास ले लें और ध्यान से वापस लौट आएं। हमारी सुबह की बैठक पूरी हो गई। दो-चार गहरी श्वास ले लें और ध्यान से वापस लौट आएं।

आज इतना ही।


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