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शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

एस धम्मो सनंतनो-(भाग-06) ओशो



  एस धम्मो सनंतनो (भाग—6) ओशो


 (ओशो द्वारा भगवान बुद्ध की सुललित वाणी धम्मपद पर दिए गए नौ अमृत प्रवचनों का संकलन)
 मैं तुम्हें अपने पर नहीं रोकना चाहता। मैं तुम्हारे लिए द्वार बनूं र दीवार न बनूं। तुम मुझसे प्रवेश करो, मुझ पर रुको मत। तुम मुझसे छलांग लो, तुम उड़ो आकाश में। मैं तुम्हें पंख देना चाहता हूं, तुम्हें बाध नहीं लेना चाहता। इसीलिए तुम्हें सारे बुद्धों का आकाश देता हूं। मैं तुम्हारे सारे बंधन तोड़ रहा हूं। इसलिए मेरे साथ तो अगर बहुत हिम्मत हो, तो ही चल पाओगे। अगर कमजोर हो, तो किसी कारागृह को पकड़ो, मेरे पास मत आओ।

वस्तुत: मैं तुम्हें कहीं ले जाना नहीं चाहता, उड़ना सिखाना चाहता हूं। ले जाने की बात ही ओछी है। मैं तुमसे कहता हूं? तुम पहुंचे हुए हो। जरा परों को तौलो, जरा तूफानों में उठो, जरा आंधियों के साथ खेलो, जरा खुले आकाश का आनंद लो। मैं तुमसे यह नहीं कहता कि सिद्धि कहीं भविष्य में है। अगर तुम उड़ सको तो अभी है, यहीं है।
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बुद्ध के साथ धर्म ने वैज्ञानिक होने की क्षमता जुटायी। बुद्ध के साथ विज्ञान की गरिमा धर्म को मिली। जैसे—जैसे विज्ञान प्रतिष्‍ठित हुआ है। मनुष्‍य की आंखों में, वैसे—वैसे बुद्ध की गरिमा बढ़ती गया है। बुद्ध की गरिमा एक क्षण को भी घटी नहीं है। और तो सत्‍पुरूष पुराने पड़ गये मालूम पड़ते है, बुद्ध ऐसा लगता है कि अब उनका युग आया है।
ओशो
एस धम्मो सनंतनो भाग 6

एक अनोखा अनुभव--
(ये एक अनोखा और अद्भुत अनुभव था। जब मैंने देखा की पुस्तक के कुछ पृष् अन छपे रह गये। तब मेरी समझ में नहीं आया कि क्या करूं। फिर मैंने उसे ओशो की आवज के साथ लिखा। वो एक घंटा बड़ा ही आनंद दाई किसीकिसी और लोक का अनुभव था। ओशो बोल रहे है और में किताब लिख रहा हूं। ये मेरा सौभाग् था....वैसे तो ये काम जाने कितने सौभाग्य शाली संन्यासियों कि किस्मत था।
ओशो जी जब जीवित थ। तब ये काम कितने ही सन्यासी ध्यान की तरह करते होंगे। क्योंकि ओशो के सारे प्रवचन जो आप और हम पढ़ रहे है। वह सब के सब बोले हुए है। तब उन्हें लिखा तो संन्यासियों ने ही होगा। शायद उनमें कुछ र्शाटहेंड जानते होंगे। परंतु आनंद कितना आता होगा।
कभीकभी तो मैं भूल ही जाता था कि ये बात 20 साल बाद कर रहा हूं। मुझे लगता था ये पुस्तक मैं आज ही पहली बार लिख रहा हूं। खार कर वो पृष् जो अन छपे रह गये थे। कि ओशो ने कल ही ये प्रवचन बोला गया है और मैं उसे टाईप कर रहा हूं। बार-बार उसे पीछे करना...फिर सुनना, फिर सुनना.......सुनते ही सुनते लिखते जाना। मधुर रस घार आंखे से होकर ह्रदय की अनुगूँज बन गई। सच ओशो तु महान है...अपने साधक की हर इच्छा पूरी कर देता है।
आप भी उन शब्दों का आनंद  ले लो मेंने सून कर लेखे थे...प्रवचन : 60 के अंतिम और अंतिम से चार पृष्‍ठ छोड़ कर
एस परसथिमं लोकं चित् राजरथूपमं
यत् बाला विसीदन्ति नत्थि संगो विजानतं।।
ओओ वह देखो इस संसार को कैसे सज़ा..................

स्‍वामी आनंद प्रसाद

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