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गुरुवार, 14 जून 2018

अष्‍टावक्र महागीता (भाग-5)-ओशो

अष्‍टावक्र महागीता—(भाग—5)
ओशो
ष्‍टावक्र के सूत्र ऐसे नहीं है कि पूरा शास्‍त्र समझें तो काम के होंगे। एक सूत्र भी पकड़ लिया तो पर्याप्‍त है। अष्‍टावक्र की सारी चेष्‍टा है: रोशनी। आँख खोलकर देख लो। थोड़े शांत बैठकर देख लो। थोड़े निश्‍चल मन होकर देख लो। कहीं कुछ बंधन नहीं है। वासना नहीं है।.....

 'जीवन तो जैसा है वैसा ही रहेगा। वैसा ही रहना चाहिए। हां, इतना फर्क पड़ेगा... और वही वस्तुत: आमूल क्रांति है। आमूल का मतलब होता है : 'मूल से'।... आमूल क्रांति का अर्थ होता है : जो अब तक सोये—सोये करते थे, अब जाग कर करते हैं। जागने के कारण जो गिर जाएगा, गिर जाएगा; जो बचेगा, बचेगा—लेकिन न अपनी तरफ से कुछ बदलना है, न कुछ गिराना, न कुछ लाना। साक्षी है मूल।
'मैं वस्तुत: तुम्हें मुक्त कर रहा हूं। मैं तुम्हें क्रांति से भी मुक्त कर रहा हूं। मैं तुमसे यह कह रहा हूं: ये सब कुछ करने की बातें ही नहीं है। तुम जैसे हो  — भले हो, चंगे हो, शुभ हो, सुंदर हो। तुम इसे स्वीकार कर लो। तुम जीवन की सहजता को व्यर्थ की बातों से विकृत मत करो। विक्षिप्त होने के उपाय मत करो, पागल मत बनो।

ओशो

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