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बुधवार, 25 अक्टूबर 2017

गीता दर्शन-(भाग-04) ओशो



गीता दर्शन (भाग—4)

ओशो

(ओशो द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता के अध्‍याय आठ अक्षर—ब्रह्म—योग एंव अध्‍याय नौ राजविद्या—राजगुह्म—योग  पर दिए गए चौबीस अमृत प्रवचनों का अपूर्व संकलन।)

कृष्‍ण ने यह गीता कही—इसलिए नहीं कि कह कर सत्‍य को कहा जा सकता है। कृष्‍ण से बेहतर यह कौन जानेगा कि सत्‍य को कहा नहीं जा सकता है। फिर भी कहा; करूणा से कहा।
सभी बुद्धपुरूषों ने इसलिए नहींबोला है कि बोल कर तुम्‍हें समझाया जा सकता है। बल्‍कि इसलिए बोला है कि बोलकर ही तुम्‍हें प्रतिबिंब दिखाया जा सकता है।
प्रतिबिंब ही सही—चाँद की थोड़ी खबर तो ले आयेगा। शायद प्रति बिंब से प्रेम पेदा हो जाए। और तुम असली की तलाश करनेलगो, असलीकी खोज करने लगो, असली की पूछताछ शुरू कर दो।
ओशो

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