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रविवार, 1 जुलाई 2018

अनंत की पुकार—(अहमदाबाद)-प्रवचन-07

सातवां प्रवचन -ध्यान-केंद्र के बहुआयाम

अहमदाबाद -अंतरगंवार्ताएं.....

वह जगह तो किसी भी कीमत पर छोड़ने जैसी नहीं है। हम तो अगर पचास लाख रुपया भी खर्च करें, तो वैसी जगह नहीं बना सकेंगे। दस एकड़ का कंपाउंड है। उसकी जो दीवाल है बनी हुई नौ फीट ऊंची, अपन बनाएं तो पांच लाख रुपये की तो सिर्फ उसकी कंपाउंड वॉल बनेगी। नौ फीट ऊंची पत्थर की दीवाल है। और वह करीब-करीब पंद्रह लाख में मिले तो बिल्कुल मुफ्त है। लेकिन यह सब तो उतना महत्वपूर्ण नहीं जितना महत्व पूर्ण यह है कि वह  बंबई में होते हुए उसके भीतर जाते से ही आपको लगे नहीं कि बंबई में हैं..माथेरान में हैं। इतने बड़े दरख्त हैं, और इतनी शांत जगह है।
तो मुझे तो वह देखकर उसी वक्त जम गई कि यह तो एक वल्र्डसेंटर बन सकता है। और बंबई में ही बन सकता है वल्र्डसेंटर बनाना हो तो।
और अब मुल्क भर में इतने लोग उत्सुक हुए हैं जो मेरे पास आकर रहना चाहते हैं..महीने, दो महीने, तीन महीने रुकना चाहते हैं। उनके लिए कोई न कोई इंतजाम करना जरूरी हो गया है। तो वह हमारी सारी गति  विधि का केंद्र बन सकता है। और एक दस साल ठीक मेहनत की जाए, तो सारी दुनिया से साधक उस केंद्र पर आ सकेंगे। तो साधना का केंद्र बन सकता है और सामाजिक क्रांति के लिए विचार फैलाने के लिए केंद्र बन सकता है।
तो मुझे तो वह उसी दिन ठीक पड़ गया कि यह जगह किसी भी हालत में उपलब्ध हो सके। तो आज तो लगता है कि पंद्रह लाख बहुत है, लेकिन वह जगह को देखकर पंद्रह लाख बिल्कुल ही कोई मतलब का नहीं है।
तो उधर मेरा ख्याल है कि एक तो वहां कोई दो सौविद्यार्थियों के लिए हॉस्टल का इंतजाम कर देना है। दो हॉस्टल तैयार हैं। हॉस्टल ही हैं वे तैयार पूरे। बैचलर्स के लिए, बैचलर ऑफिसर्स के लिए बनाए होंगे। इतने बढ़िया हैं कि कोई भी विद्यार्थी दो सौ या तीन सौ रुपया महीना देकर भी वहां रहे तो भी सस्ता मालूम पड़े उसे। तो एक तो हॉस्टल वहां कर देना है। तो जो दो सौ विद्यार्थी वहां रहें, मैं चाहूंगा कि अपने मित्रों के बच्चे वहां रहें, ताकि मैं जैसा व्यक्तित्व निर्माण करना चाहता हूं, उनके बचपन से उनके व्यक्तित्व को वह दिशा दी जा सके। अब पूरे मुल्क में मुझे, घरों में जहां-जहां ठहरता हूं वहीं मेरे मित्र कहते हैं कि हमारे बच्चे को ले जाएं, हमारी लड़की को ले जाएं, वह आपके पास रहे। लेकिन मैं तो खुद ही घूमता रहता हूं, तो उसको रखने का क्या उपाय हो सकता है! मेरेपासक्याउपायहैकिसीकोरखनेका!
तो वहां मित्रों के दो सौ बच्चों के लिए मैं इंतजाम करना चाहूंगा। वे पढ़ेंगे कहीं भी बस्ती में आकर, रहेंगे मेरे पास, ताकि उनके पूरे व्यक्तित्व को रूपांतरित करने के लिए बचपन से ही प्रयोग किया जा सके। और वह हमारा प्रयोग अगर सफल हो, तो मुझे जगह-जगह प्रॉमिस है मित्रों की कि फिर वैसे हॉस्टल मुल्क के बड़े-बड़े नगरों में, दस-पांच नगरों में हम डाल सकते हैं। बड़े पैमाने पर भी डाल सकते हैं। अभी दो सौ का इंतजाम करते हैं, कल हमको ठीक लगे तो वहां हम दो हजार के हॉस्टल का इंतजाम कर सकते हैं। इतनी जमीन खाली पड़ी है कि उसमें कुछ भी, कितने ही हॉस्टल बनाए जा सकते हैं।
तो एक तो बच्चों पर, उनकी पूरी जीवन चर्या पर प्रयोग हो सके। फिर जो साधक कैंप में आते हैं, मुझे सैकड़ों चिट्ठियां पहुंचती हैं कि तीन दिन में हमारी प्यास जगती है और वहां से तो विदा होने का वक्त आ जाता है। अब उनमें से अनेक लोग चाहते हैं कि कितना ही खर्च पड़े, हम महीने भर आपके पास आकर रहना चाहते हैं, दो महीने रहना चाहते हैं। मैं भी जानता हूं कि अगर दो महीने वे रह जाएं तो उनकी जिंदगी में क्रांति हो जाए। तो वहां इस तरह के साधकों के लिए व्यवस्था हो सकती है। वहां सारा पब्लिकेशन का इंतजाम पूरा हो सकता है। और मेरी दृष्टि हर चीज पर है। यानी मेरी दृष्टि तो जीवन के छोटे-छोटे मसलों पर है।
अब जैसे यह किताब छपती है, इसको मैं कोई छपाई नहीं मानता। वह तो हमारा वहां प्रेस हो, हमारी व्यवस्था हो, तो पिंरटिंग भी एक आर्ट है। अभी कोई जापानी किताब देखें ध्यान की, तो किताब देखकर ध्यान की हालत हो जाए। यानी किताब पढ़ेंगे जब दूसरी बात है, किताब को उलटाएं तो आपको ऐसा लगे कि मन शांत हो गया। उतनी कलात्मक, उतनी व्यवस्थित, उतने ढंग से किताबें होनी चाहिए। वे हाथ में पहुंचें तो आदमी को स्पर्श कर लें।
फिर मेरी इस दिशा में कई दृष्टियां हैं जो वहां मैं प्रयोग करना चाहता हूं। जैसे मेरी दृष्टि है कि संगीत आत्मिक जीवन में प्रवेश के लिए बहुत कीमत का और उपयोगी हो सकता है। लेकिन सारी दुनिया में अभी संगीत का उपयोग सिर्फ वासना को उत्तेजित करने के लिए किया जा रहा है। जिस भांति संगीत वासना का उत्तेजक हो सकता है उसी भांति संगीत वासना को शांत करने वाला हो सकता है। तो वहां उस केंद्र पर मेरी दृष्टि है कि कुछ संगीतज्ञ आकर रुकते रहें और हम उस संगीत की दिशा में थोड़े प्रयोग कर सकें जो कि चित्त को शांति की तरफ ले जाता है। वैसे ही पेंटर वहां रुक सकें, पेंटिंग ऐसी बना सकें जो मनुष्य को आत्मिक जीवन की तरफ ले जाती है। कवि वहां रुकस कें, और उस तरह की काव्य की दिशा में मैं उनसे बात कर सकूं कि कविता उनके जीवन को धर्म की ओर ले जाने वाली बन जाए।
तो जीवन के सब पहलुओं को हम छू सकें वहां से, उसके लिए एक सेंटर की जरूरत है। और उस तरह के लोग सारे मुल्क में हैं जो आकर मेरे पास रहें तो उनसे बहुत काम लिया जा सकता है। अब न मालूम कितने चित्रकार मुझमें उत्सुक हैं, कवि उत्सुक हैं, संगीतज्ञ उत्सुक हैं, वे चाहते हैं कि मेरे पास रहें। लेकिन उसका कोई उपाय हमें इंतजाम करना पड़े।................................

2 टिप्‍पणियां:

  1. कितनी विशाल दृष्टि , पर केवल किताबों में ही रह गई ,
    क्यों ? क्या कारण होंगे ?
    संभोग से समाधी के पुस्तक से जो समंदर उमडा बेहिसाब ,
    फिर तो सरकारी और नेताओं को राजनीती और धर्मो गुरुओ की हुड़दंगई , के कारन गंगोत्री का रुख कहाँ से कहाँ का हो गया

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  2. देव उठनी एकादशी व्रत कथा,पूजा विधि और महत्व के साथ ..
    https://youtu.be/gjP_g-djLQg

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