अध्याय—35-(मां के अवशेष)
आज मैं दिन भर खुब सोता रहा....परंतु पापा जी का काम तो अधिक बढ़ गया था। उन्हें तो वरूण भैया को जाकर स्कूल से भी लाना और दूकान के लिए दूध भी लाना होता था। परंतु पापाजी मेहनत से कभी नहीं डरते थे। रात को जब पापा जी दूकान से आये तो आप शनिवार था और कल बच्चों के स्कूल की छूट्टी थी। इसलिए आज वह रात का ध्यान भी नहीं कर सकते थे....आज दिन का ध्यान मैंने खराब कर दिया और अब रात के ध्यान को बच्चे नहीं करने देंगे क्योंकि वह कहानी सुनाने की जिद्द कर रहे है। इतने बड़े हो गये है फिर भी कहानी बच्चों की तरह से सुनने की जिद्द करते है। सच पापा जी कहानी बहुत मजेदार सुनाते है....मैं भी उस संगत का आनंद मैं भी लेता था। पापा जी शब्दों के साथ जो भाव और उतेजना भरते है उस सब को केवल पीता हूं....ओर सब के बीच अपना अधिकार समझ कर घुस जाता हूं। एक बात और है अगर अपनी कहानी का आनंद लेना है तो आपको उसमें डुबना ही होगा। तब आपको पानी के बहार अपनी गर्दन नहीं निकालनी अपनी बुद्धि को एक तरफ ताक पर रखना होगा...एक सरलता एक सहजता ही आपको उसमें डुबो सकती है। तब आपको बच्चा बनना ही होगा।
पापा जी बोले शब्द तो कम ही मेरी समझ में आते थे परंतु वो संगत बहुत ही सुंदर होती है.....छत पर बिखरी चांद की रोशनी.....दूर कही कभी किसी पक्षी की आवाज शांति को ओर गहरा कर देती थी। बच्चों के मन में एक टीस थी कि आज पोनी ओर पापा अकेले जंगल में गए थे। पापा जी की तो कोई बात नहीं परंतु पोनी ये तो हमसे बाजी मार गया। हमें तो स्कूल में जाने से इस लिए गर्व होता है कि हम कुछ है.....ओर इसने आज जंगल का बहुत आनंद लिया तब पापा जी को शुरू से ही जंगल की कहानी सुनानी पड़ी....कि किस तरह से कुछ गिदड़ो ने एक मामा की गाय को घेर लिया था। और ऐन वक्त पर पोनी उनके बीच हीरों की तरह से कुद पडा और उस सब को वह से मार भगाया। बच्चें बीच बीच में मेरे सर पर भी हाथ फेर रहे थे मैं समझ रहा हूं मुझे शाबाशी और बहादुरी की दाद मिल रही है। मैं अपनी पूछ को धीरेसे हीला देता था। कहानी खत्म होने पर तालियों का कलरव नाद से मैं झूठ उठा ओर सब ने मेरे काम ओर साहस की भूरी-भूरीप्रसन्नसा कि। मैं गर्व से फूला नहीं समा रहा था।
बच्चें सोच रहे है कि जब सुनने में इतना रौमांच लग रहा है तो देखने में कितना आनंद आता....काश इस दृश्यको वो देख पाते.....परंतु उन्हेंनहीं मालूम की पापा जी की जान को कितनी मुशिबत आ जाती.....उन के उपर कितने प्राणीयों की जान बचाने का भार आ जाता था। और जंगल का मामला है कुछ का कुछ ही हो जाता। अच्छा ही हुआ की बच्चे नहीं थे। परंतु ये बातें अब मेरी समझ में आ रही है; ये बाते मैं जंगल में थोडा ही सोचता। बच्चे बार—बार कह रहे थे जा पोनीतू बहुत खराब है हमे अपने साथ ले कर नहींगया आज के बाद हम तुझेअपने खाने में से कुछ भी नहीं देंगे। परंतु ये इर्षा तो पल भर के लिए थी। लेकिन कहानी खत्मकरते—करते बच्चोंनेठान लियाकी कल हमारे स्कूल की छूट्टी है......ओर हम सब को भी जंगल में ले जाना होगा। और कल देखना पोनी तुझेहम नहीं ले कर जायेगे। परंतु ऐसा हो सकताहै में तो सबसे आगे सबका रक्षक बन जाता ही हूं और जाता ही रहूंगा। मम्मी ने तब कहा की कल दूकान पर बहुत काम है और किसी का पनीर और दही—और दूध का आडर भी है इस लिए सब का जाना कठिन है....तब सबके चेहरेपर उदासी छा गई। परंतु मैं आनंद से लेटा हुआ था। जंगल जाये तो ठीक न जाये तो ठीक। क्योंकि बच्चों के पास तो एक दिन है....अपनेपास तोअनेक है कभी और किसी भी दिन जंगल में जा सकते थे।
परंतु पापा ने बच्चो के उदास मन को समझाया की दही और दूध का आड़र देने के बाद हम सब चलेगें। मम्मी जी नौकर के साथ दूकान देख लेगी और बाद में आकर खाना बना कर आराम कर लेगी। इस लिए मम्मी का जंगल में जाना कैंसिल हो गया। ठीक भी था देर से आज कल धूप भी बहुत तेज हो जाती है। और पिकनिक करने का मजा तो मीठीसुहानी धूप में ही है। तेज गर्मी में जंगल में जाना ठीक नहीं है।
प्रोग्राम के अनुसार बच्चें सो गये। और अगले दिन सब काम खत्म कर के पापा जी घर आये तब सब बच्चे और मैं एक दम से तैयार थे जंगल में जाने के लिए। उधर दादा जी तो रोज ही जंगल में दूर दराज तक घूमने जाते थे वह हमे कभी कभी मिलते थी थे। आज बच्चेपूरे जोश खरोश के साथ जंगल में जा रहे थे। हम सब तेजी से दोड़—दौड कर एक दूसरेको पीछेछोड़ रहे थे। मेरे साथ तो एक वरूण भैया ही कुछ दुर तक दौड़ लेते थे। बाकी तो बहुत पीछे रह जाते थे। दीदी कुछ दूर तो हमारे साथ आई फिर कहने लगी तुम जाओं में तो पापा जी के साथ आती हूं। हम सब पानी वाले पहले खाल के पास पहूच गये। देखा तो वहाँ पर दादा जी एक पत्थर पर बैठ कर नहा रहे थे। मैं दोड़ कर उनके पास सबसे पहले पहूंचा। मुझे देख कर दादा जी बहुत खुश हुए और मुझे प्यार करने लगे मैं उनके सामने ही पानी में बैठ गया इतनी देर में वरूण भैया भी जोर से आवाजलगाता नीचे ढलानपर दौड़े आ रहे थे....दादा जी.....दादा जी....तब दादाजीसमझ गये कि हम सब घूमने आये है। परंतु एक शंका उनके मन में थी कि दूकान पर फिर अकेलीतुम्हारीमम्मी जी है। हम कुछ देर वहां पर रूकेओर फिर आगे की मंजिल कीओर चल दिये।
दादाजी का शरीर अभी भी बहुत बलिष्ठहै। वह नित नियम से 5—6 मील हर सुबहश्यामधुमने आते थे कभी कभी बच्चे भी उनके साथ आजाते थे। परंतु आजकल गिदड़ो का प्रभाव कुछ अधिक हो गया था। वह दिन में भी दिखाई देने लगे थे। वैसे तो गिदड़ बहुत डरपोक प्राणी है परंतु पशु प्रकृति के सवभाव समय के साथ बदलते है। वह मोका देख कर अपनानिर्णय लेते है। तब दादा जी ने जो सब को आदेश दिया खास कर पापा जी को की ज्यादा अंदर नहीं जाना।क्योंकिवह मेरेओर पापा जी के स्वभाव को जानतेहै कि हम बहुत ओरान है....अच्छे बुरे की हमे कम पहचान है क्योंकि अभी हम जवान है। ये बाते दादा जी कहते थे मैं थोड़े ही कहता हूं।
आज जंगलमे बहुत मजा आ रहा था। क्योंकि आज हम सब साथ थे....बच्चे इधर—उधर होते तो मेरी जिम्मेदारी अधिक बढ़ जाती थी। कुछ दूरीपरमैंनेदेखा की एक तीतरों का झूंड कुछ मिट्टी से निकाल कर खा रहा था....मैं दबे कदम से उनकी और बढ़ा पास की झाडी का सहारा ले कर मैं घूम कर उनके काफीनजदीकपहुंच गया....ओर अचानक तेजीसे झपटा। इस सब के लिए बैचारे तीतरतैयार नहीं थे....ओर एक तीतर को लगभग मैने पकड़ लिया था उसकेपंखमेरे मुहं के पास थे अगर मैं अपने जबड़ेबंदकर देता तो वह मेरे मुहं में ही रह जाते.....परंतु न जाने क्या सोच कर मुझसे ऐसा नहीं हुआ और केवल मैंने अपना खूला मुंह खुला ही रखा और वह बैचार इतना डर गये की कि.....कि.....कि.......कि कर के उड़ गये। ये सब वरूपभैया भी दूर से देख रहे थे। और फिर मैं दोड़ कर वरूण भैया कि तरफ गया। तब उन्होंने कुछ अचरज से मेरी और देखा डाटने के अंदाज में कहा तू बहुत खराब है उन बच्चारेतीतरों को क्या डरा दिया ओरएक तीतर को तुने पकड़ ही लिया था। तब मैं अपनी पूछ हिलाने लगा।
और सच ही ये मेरेलिए एक खेल था.....मन में मेरे हिंसा नहीं थी और खाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता....ओर सच ही मैं चाहकर भी उन्हेंखा नहीं सकता था। ये सोच कर ही मुझे मितली सी आती है। कि किस तरह से मैंने एक मरा हुआ खरगोश खा लिया था। अब एक बात और मेरे साथ होने लगी थी....घर का कोई प्राणी जैसे ही घर बहुत नजदीक आता जब वह 100—500 मीटर दूर ही होता मुझे भान होने लगता की कोई आरहा है। और घंटीकेबजने से पहले दरवाजे के पास पहुंच कर उसके स्वागत के लिए तैयार रहा था। इस बात से पूरे घर के लिए परेशान थे कि पोनी को न जोने कैसे पता चल जाता है की कोई आने वाला है।
आग चलने के बाद बच्चों ने जंगलीफल खाये। एक फल दीदी ने मुझे भी दिया....इन दिनों पील और राम चला लगा होता है....कहीं कही जहां पर नमी अधिक होती है वह काली मेवा भी लगी होती है। हिंगोट की तो इस समय बहार थी। लेकिन वह एक जंगली और कड़वा फल था जो शायद किसीदवा के काम आता था इस लिए उसे कोई तोड़ता नहीं था...जानवर भी उसे आसानी से खा नहीं सकते थे क्योंकि उसकी गुठली पर पहले तो एक चिपचिपा कडवा—कसैला गौंद की तरह एक परत होती थी और उसकीगुठली भी बहुत पक्की होती थी शायद जमींन पर गिरी रहनेपर भी वह एक दो बरसातके बाद ही उग पाती थी। पील वाला फल जो एक रसीला बैर की तरह से होता है....उसका एक खट्टा मीठा स्वाद बहुत अच्छा था। तब मैने एक दो ही खाये और देर जाकर सुधने का आनंद लेने लगा। दूर मोरों का एक झूंड नाच रहा था। मेरा मन कर रहा था कि उनके बहुत पास जाकर उन्हें एक बार चौंका दूं। तब वह किस तरह से प्याऊ..... प्याऊ......कर के फूर से उड जायेंगे उस सब में मुझे बहुत आनंद आता था। मरने का मन नहीं होताथा।परंतु उनके पास जाकर उन्हें डराने में मजा आता था।
परंतु ऐसा मैने नहीं किया क्योंकि एक तो वह बहुत दूर थे और दूसरे पापा जी मुझे डाटते तब सब बच्चेबहुत खुश होते आज मैं ऐसा कुछ नहीं करना चाहता था जिससे आज मेरा हीरोपना कम हो जाये....आगे चलने के बाद बच्चे जिद्द करने लगे कीपापा जी पौनी की मम्मी का घर हमे भी दिखाओ। हम भी पोनी के घर देखनाचाहते है। और सब बच्चे मुझे घेर कर कहनेलगे पोनी तू हमें अपने घर नहीं ले जाना चाहता। हम तेरे घर को देखना चाहतेहै।तब मैं भी पापा जी की टांगोंसेअपने सर को रगडनेलगा कि चलों आज भी अपने घर चलतेहै अबतोहमने देख ही लिया है। तब वह दूर ही कितनाहै जब यहांतक आ ही गये तो दस कदम और सहीं। तब पापा जी एक न चली। क्योंकी हम अनेक और पापा जी अकेले।
तब पहले तो हम उस जगह को खोजने लगे जिस जगह पर गाय को गिदड़ो ने घेर रखा था। कितनी जिद्दो जहद के बाद वह स्थान हम मिला। तब वहां बच्चों ने पास जाकर देखाकि वहां पर कुछ गिदड़ो के पैरो के निशान रेत में छपे है....ओर एक तरफ गाय के खुरो के निशान जो कुछ गहरे घंसे है जमीन में और बहुत पास—पास थे। शायद वह अपने बचाव के लिए बार बार इधर से उधर हो रही होगी। उनकीपकड़ से बचनेके लिए अपने को आगे पीछे कर रही होगी। तब वहां पर कुछ इधर आने के बाद मेरे पैरों के निशान और साथ ही अनेक गिदड़ो के पैरो के निशान थे....परंतु रात में भी कुछ नये निशान बन गये थे मोर...तीतर...नील गाये....क्योंकि नीलगाय को नील गाये कहते है परंतु उसके पैर एक दम घोड़े की तरह से बंध होते है...गाय...बकरी...भैस...आदि जानवरों के खूर बीच से उँगली की तरह फटे होते है जिससे उन्हे तेज दोड़ने में रूकावट होती है इन सब में मनुष्य अति महान है उसके पैर पाँच जगह से चीरे होते है...फिर भी वह अति द्रुत गति से दौड़ लेता है...शायद उसकी उनंलियां कुछ छोटी होती है। पर है चमत्मकार। वहां घोड़ों की तरह परंतु कुछ छोटे निशान भी थे...जो खच्चर या गधे....या नील गाय के हो सकते थे।
अब हमारी अगली मंजिल मेरा जन्म स्थान था जिसमें हम कल आये थे....हम उपर की और चल दिये....घनिझाडियां आई....पानी का वह सरोवर भी आया.....जहां पापाजी ने पैर धोये और मैं नाहाया था। परंतु इसके आगे जंगल अति गहरा हो गया....हम दो बार इधर मुड़ और दो बार इधर मुझे—ज्यादा आगे तक जाकर देख भी नहीं सकते थे क्योंकि बच्चे अकेले रह जाते....पापा जी तो नहीं परंतु मैं कितनी ही दूर तक गया....अपने पैरो को सूंधने की कौशिश भी जो कल की गंध मुझे मिल जाये....परंतु रात में बारिश आई थी तेज नहीं थी परंतु फिर भी जमींन गिली जरूर हो गयी थी। इस वजह से आज मौसम सूहाना था। परंतु हमारा तो काम खराब हो गया था। बच्चे कुछ देर तो सांस रोक कर देखते रहे....फिर उन्हें ये सब अच्छा नहीं लग रहा था। अब वह कहने लगे पोनी तू बैकार है अपने घर को भी नहीं जानता कल तो तु आया था और आज भूल गया सच ही तु बहुत बुद्धु है.....फिर पापा जी को देख कर भी कहने लगे की आप तो यहाँ सालों से आते है आप तो जंगल का एक—एक कोना जानते हो...फिर आप कैसे भूल गये। घर का रास्ता ढूंढना एक बात है...वहां पर लीख बनी होती है....आप उसके सहारे से मैंने रास्ते से आ सकते हो। परंतु आप जंगल में एक स्थान को खोजते हो यह बहुत कठिन है परंतु अचरज की अभी कोई ज्यादा देर नहीं हुई है....वह स्थान कुछ बदला नहीं है...कुछ महीने हो तो घास और पेड़ पौधों की वजह से कुछ बदल सकता है....पंरतु अभी तो ऐसा कुछ हुआ नहीं है।
तब पापा जी ने कुछ निर्णय लिया और बच्चों के हाथ में अपना डंडा दे कर कहने लगे तुम यहां पानी के पास ही बैठ जाओ....ओर पोनी तू भी यहीं पर रह....मैं देखने की कौशिश करता हूं....परंतु मैं कहा रहनेवाला था....मैं तो पापा जी की पूछ था....बच्चे मुझे चम्मच कह कर चिडाते थे। लेकिन मैं ज्यादा दूर नहीं जा रहा था क्योंकि मैं जानता था कि जंगल यहां बहुत घना है। और सच पापा जी को भी दूर नहीं जाना चाहिए। पापा जी बस देख रहे थे दूर—दूर तक आंखेंफैलाकर शरीर उनका पानी के आसपास ही था। और अच्छा भी था। मैं बच्चों के पास वापसआकर भौंकनेलगा। मैराभौंकना सून कर बच्चों को कुछ राहत थी। पापाजी भी पास ही है। यह मैं महसूस कर रहा था। करीब आधा घंटा तक हम इधर उधर भटकते रहने के बाद......तब कहीं पापा जी को वह उंचे पत्थर दिखाई दिये....ओर पापा जी वापस हमें लेने के लिए आ गये। उन्होंने हैमांशु भैया की उँगली पकडी और हम उन पत्थरों की और चल दिये......मैं खुश था क्योंकि अब हम सब साथ थे और कम से कम बच्चों के पास पापाजी तो थे ही मैं मुक्तथा दूर—दूर तक देखने के लिए....मैं उन पत्थरों के पास पहुंच कर सुधने लगा....बारिश जरूर हुई थी परंतु यहां घनी झाडियोंके बीच उस बुंदा बांदी का कोई विशेष प्रभाव नहीं हुआ था।
बार—बार पीछे मुड कर भी देख रहा था कि सब लोग आ रहे या नहीं। मैंने सोचा हम इतने बुद्धु थोड़े हो सकतेहै कि जिस जगह कल आये और आज भूल जाये....भटक जरूर सकतेहै। परंतु उसे पा जरूर लेगे। अब मेरेअंदर एक विशेष साहास था। और में झाडियों के अंदर से पार चला गया। वहां पर मुझे अपने पैरों की और पापा जी के पैरोंकी गंध महसूस हुई। बस अब तो मैंनेअपना नाक जमींन को छुआ लिया चाहे वह छील ही क्यों न जाये। परंतु अब तो अंदर तक की गंद को मैंने सुंघना ही था। और कुछ ही उपर जाकर वह खान नजर आ गई। मैं जोर से भौंका की यहां आ जाओ। और पापा जी मेरे भौंकने को समझ गये....की जरूर पोनी ने फतह कर लिया किला। करीब 10—15 मिनट तक इधर उधर झाडियोंका चक्कर लगा कर पापा जी बच्चोंको लेकर उस स्थान पर पहूंचे तब तक तो मैं नीचे तक पहुंच गया था। उपर जाकर मुझे आवाज सूनाई दि पोनी तू कहां है.....तब मैंने भौंक कर कहा की यहां......ओर दौड़ता हुआ उपर की और चल दिया।
सब उस खान के मुहाने पर खड़े थे। परंतुवह स्थान इतनाविचित्र था कि इतने पास आकर भी उसे पहचाना नहीं जा सकता था। मानों वह अलकुफा बना गया जैसे वहां जा कर आंखों को भ्रमहोने लगत जाता था। परंतु सच उसकी बनावटही इतनी विचित्र थी। चारोंओर देखने से भी गहरी खान का ढलान दिखाई नहीं देता था। एक जैसी झाडियां और गहरे उंचे वृक्ष लगताहीनहीं था कि वहां गहरी खान होगी। तब में पापा जी के पास पहुंच कर अपनी पूंछ को जोर—जोर से हिलाने लगा। पापा जी ने मेरे सर पर हाथ फैरा और पूछा की मिल गया....ओर मेरी आंखों में देखने लगे। मेरी आंखों में पाने की एक खास खुशी थी और मेरी पूछ फतह की झंडी लहरा रही थी। उसे पापा जी ने देख लिया और मुझे बहुत प्यार किया और बच्चोंको कहनेलगे पोनी ने अपना घर पहचान लिया चलो हम सब भी उसे देखते है। बच्चों को अचरज हो रहा था यहां तो हमें कुछ देखाई नहीं दे रहा। और हम सब नीचेउतरने लगे। घुमाव दार ढ़लान और बजरी के बरीक कण...पैर जमने नहींदे रहे थे। पापा जी आगे हो खड़े हो गये और बारी—बारी सबका हाथ पकड़ कर घीरे...धीरे नीचे उतारने लगे। लेकिन वरूण भैया तो सबसे आगे था और खुद ही उतरना चाहता था तब पापा जी कहा बैठ कर और साथ की घास को पकड़ कर उतर। धीरे—धीरे और सच यह ढलान बहुत खड़ी थी। में तो उतर गया। और आगे जा कर सब का इंतजार करने लगा। आज सब जान गये की मैं कितना बहादुर हूं....किसीभी जगह सबसे पहले पहुंच सकता हूं। सब नीचे उतर कर इक्कठे हो गये। और पापा जी लगभग सब का हाथ पकड़े थे। अभी जमीन सपाट नहीं आई थी। लेकिन ढलान खत्म हो गई थी। हमारे चलने के कारण कल की घास भी दबी हुई थी।
वहीं हमारी मार्ग दर्शक थी। पापा जी अपने जूतो से दबी घास को चिंहित करते आगे बढ़ रहे थे। पास की दो तीन झाडियों के चक्करलगा एक एकपत्थरके पास से गुजरते हुए पापा जी ने बच्चों से कहा की थक गये हो तो आराम कर लो इस पत्थर पर। वह पत्थर उपर से गिर कर एक पेड़ के तने के सहारेसेरूका था। इतना बड़ा पत्थर और इतने छोटे से पेड़ ने किस तरह से उसे रोक रखा था। उसे देख कर डर भी लग रहा था। परंतु अब तो उसकेआस पास कुछ और पेड़ उग गये थे और उन्हें घेर लिया था। परंतु बच्चे थके नहीं थे वह जल्दी से जल्दी मेरा घर देखना चहाता थे। और अब वह स्थान दिखाई दे रहा था जिसे कल पापा ने बनायाथा।और लो हम पहुंच गये। सुखी मूलाय घास कैसे सौने की तरह से दमक रही थी। कल पत्थरों से बनी कब्र दूर से दिखाईदेनेलगी थी।
हम पास पहुंच कर बैठ गये। बच्चे इधर उधर देखने लगे की पोनी का घर कहांहै। मेरा यहांकोई महल थोड़ाही होगा। परंतु पापा जी ने आज उस जगह को और आगे जाकर ध्यान से देखा मुझे भी कुछ—कुछ याद आ रहा था। सच ही वह खौ थी जिस हम पैदा हुए थे। और वह तो बहुत बड़ी नहीं थी। बचपन में जो खानेबहुत गहरी और डरावनी लगती है बड़ा होने पर वह कितनी उथली और छोटी हो जातीहै। मेरी खो भी मुझे कुछ छोटी लगा। परंतु फिर भी अंदर से बहुत बड़ी थी चाहे तो आज भी मैं उस में अंदर जा सकता हूं। और मैं अंदर जाना चाहता था। पापा जी ने कहा ध्यान से पोनी अंदर कुछ हो ने। और मैं उसे सुधने लगा। और अंदर जाकर देखनेलगा।बच्चे एक—एक चीज को बड़े ध्यान से देख रहे थे। कितनी विचित्र दुनिया है पोनी ने जन्मइस स्थान पर लिया और हमारे घर आ गया। तब पापा जी से पूछने लगे पापा जी ऐसा क्यों हुआ। पोनी हमारे घर आया और इसके दूसरेभाई बहन तो न जाने कहां गये होगे।
तब पापाजी ने कहा आओ बैठो.....ओर सब पानी पीया और खाने का जो समान हम लाये थे बाट चूट कर सब खाने लगे। वहां पर खाना भी बहुत सवादिस्ष्ट लग रहा था। सबने मम्मी के हाथ के बने परंठे और खुब मजे में खाये। और पानी पीआ। सब वहां उस स्थानपर कुछ देर रहना चहाते थे। और बच्चों ने फिर वही बात दोहरा दी....कि पोनी यहां जन्मलेने के बाद भी हमारे घर आया क्या ऐसा लिख हुआ था। या यह एक घटना है जो अकस्मात ही घट गई। तब पापा जी ने कहा नहीं यह कर्मका सिद्धांतहै हिुदु इसे ही कर्म का सिद्धांत कहतेहै कि आज तुमने कुछ भी अच्छा या बुरा किया वह तुम्हारा रास्ता निर्मित करता है। तुम्हारीचेतना उसी रास्ते से गुजरती है....जैसे पानी को एक फर्श पर छोड़ोओरसूख जाने पर भी आपने वहां से पानी को छोड़ा तो सूखे होने पर भी पानी उसी स्थान से होकर चलेगा।
पोनी ने पीछे जन्म में कुछ ऐसा किया था....जिससे इसकी चेतना में वह रास्ता था और फिर कहीं भी जन्मलिया और पानी तो वही बहना था। और हजारों हजार कुत्तो को तुम गली में देख सकते हो। सब तो किसी के घर नहींजा सकते। तब इसे क्या ईश्वर का अन्याय कहोगे। नहीं ईश्वर किसी पर क्यों अन्याय करनेलगा। हम तो खुद ही अपना चूनाव करते है। हिंदुओं का दर्शन सबसे महान है कोई तुम्हें जन्म देनेवाला है तो तुम गुलाम हो तुम्हारामहात्वही क्या है। तुम्हारीमहानताही क्या है। तुम कुछ भी बन गये इसमें तुम्हारा गौरव क्या है। लेकिन अपने जन्म कर्म के मालिक अगर तुम खूद हो तो यही तुम्हारी स्वत्रंता है। ओर यही ठीक है नहीं तो एक बच्चाजन्मलेते ही मर जाता है तब एक बच्चा बीमार पैदा होताहै एक बच्चा राजाके घर ऐश्वर्य को भोग करता है।
तब तो सच ही कर्म प्रधान है ओर ठीक है। पापा जी कितनी अच्छे बाते करते है हम सब वह बहुत देर तक बैठे रहे। ओर तब पापा जी ने कहा देखा यह पोनी की मां की कब्र है। पोनी जब एक बार दो दिन के लिए गायब हो गया था ओर हम उस कहां—कहां नहीं खोजते रहे...तब वह अपनी मां के संग था। उसकी मां ने उसके सामने ही प्राण त्यागेथे। ओर हम सब ने वहां कुछ दे ध्यान किया। चारों ओर सीतल पवन बह रही थी। अभी दूर सेमल के वृक्ष पर जो फूल सूख गये थे वहां पर बरीक महीन रूई उन बीजों को उड़ा—उड़ाकर दूर दराज ले जा रही थी। जंगल में जो अमल ताश थे उनकी पूरानीफली अभी भी पेड़ से लटकी पड़ी थी। ओर नई पत्ते आ गये थे। कहीं कहीं तो फूलो से भी लद गये थे। कितने कम फूल है जो गर्मी में अपना सौंदर्य बिखते हे उनमें अमलताश भी एक है। पील-पील गुच्छे कितना रमणीय बना देते है। प्रकृति में आप देखना फूलों के कुदरती रंगों में पीला ही एक ऐसा रंग जो अधिक पाया जाता है। जैसे प्रकृति के पास सबसे अधिक पीला ही रंग है। केर ने लाल—पिंक फूलों से अपने आप को सजा लिया था। ढाक के फूल सब झड गये थे। हां आखटे ने अपने सफेद ओर परपल फूलो को खिलाना शुरू कर दिया था। परंतु कोयल दूर कहीं बैठी मधुर गान कर रही थी। तोते तो जंगली किकर की फलियों को कुतर—कुतर कर फैक रहे थे। वह खाते कम थे ओर बरबाद ज्यादा ही करतेथे।
कुछ ही देर में मन कितना ताजा हो गया मानों मन भर वजन एक रूई की रह रह गया। जब मन पर भार नहींहोता तो कितनानिर्भार लगता है यह तन। क्या मन में भी भार होता है या हमारे विचारों में भार होता है। जब हम प्रसन्न होते है तो कितनी हलके होते है ओर तनावके समय हम कितने भारी हो जाते है। यानिकी विचरों में भी भार हो है। तनव दूख के विचार भारी होते है। ओर आनंद ओर खुशी के क्षण हम हलके हो जाते है। बच्चों ने उठ कर मुझे खुब प्यार किया। ओर मैंने भी उनके हाथ चाटे ओर खूब पूछ हिला—हिला कर उन्हेंधन्यवाद दिया। देखो पशु का जन्म ले कर भी मैं कितना भाग्य शालीहूंकि मैं एक परिवार का सदस्य हूं। मुझे वो सब सुख सविधामिलती है ओर परिवारके सदस्य को।
तब हम खुशी ओर आनंद से दौड़ते घर की ओर चल दिये थे। रात की बारिश के कार हवा ठंडी थी। कहीं—कहीं दूर दराज आसमान पर बादल भी थे। लेकिन वह सफेद मखन जैसे थे इतना तो मै समझ गया था कि इनमें पानी नहीं होता। पानी वाले बादल तो एक दम काले ओर घने होतेहै ओरउसके साथ बिजली भी चमकती है। जिससे मुझे बहुत डर लगता है। तब हम अपने घर की ओर चल दिये। आज बच्चे बहुतखुश थे आज का पिकनिक सच ही बहुत याद था सब के लिए।
समाप्त... भौं.....भौं....
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