न मालूम किन शांत, हरियाली
घाटियों से आए है। न—मालूम किस और दूसरी दुनिया के हम वासी है। यह जगत हमारा घर
नहीं है। यहां हम अजनबी है। यहां हम परदेशी है। और निरंतर एक प्यास भीतर है अपने
घर लौटने की, हिमाच्छादित शिखरों को छूने की । जब तक परमात्मा
में हम वापस न लौट जाएं तब तक यह प्यास जारी रहती है।
प्यास
सभी के भीतर है—पता हो, या न हो। होश से समझो, तो
साफ हो जाएगी; होश से न समझोगे, तो
धुधंली—धुधली बनी रहेगी और भीतर—भीतर सरकती रहेगी। लेकिन यह पृथ्वी हमारा घर नहीं
है। हमार घर कहीं और है समय के पार स्थान के पार। यहां हम अजनबी है। बहार हमारा
घर नहीं है। भीतर हमारा घर है। और भीतर है शांति, और भीतर है
सुख, और भीतर है समाधि।उसकी ही प्यास है।
ओशो
एस
धम्मो सनंतनो
भाग—9
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