मुहर्रम का त्योहार—और मेरी सूई
मेरे बचपन में मेरे गांव में...जब कभी भी मुसलमानों द्वारा मुहर्रम का त्यौहार मनाया जाता है, कुछ लोगों पर पवित्र आत्मा सवार हो जाती है। इस पवित्र आत्मा को वली कहा जाता है। कुछ लोग ऐसे है जिनको बहुत संत स्वभाव का समझा जाता है—उन पर वली सवार हो जाते है। और वे नृत्य करते है और चिल्लाते है, चीखते है और उनसे तुम सवाल भी पूछ सकते हो।
और वे भाग कर दूर न चले जाएं, इसलिए उनके हाथ रस्सी से बांध दिए जाते है, और दो लोग उनको नियंत्रण में रखते है। बहुत सारे वली होते है। और प्रत्येक वली के साथ उसकी अपनी भीड़ होती है। और लोग मिठाइयों और फल उन्हें भेंट करने के लिए आते है—किसी को पिछले साल आशिष मिला था और उसके यहां बच्चे का, लड़के का जन्म हो गया है, किसी को विवाह हो गया है और कोई भविष्य के लिए आर्शीवाद लेने आया है।
इसमें केवल मुसलमान भागीदारी करते है। लेकिन मैंने हमेशा हर प्रकार के मनोरंजन का मजा लिया है। मेरे माता-पिता मुझको कहा करते थे। सुनो यह मुसलमानों का त्योहार है और तुमको वहां नहीं होना चाहिए।
मैं कहता: मैं न हिंदू हूं, न मुसलमान, न जैन और न कुछ और। यह कहने से आपका क्या अभी प्राय है कि मैं किसी चींजे का मजा नहीं ले सकता हूं। सभी त्यौहार किसी न किसी धर्म के होते है। वस्तुत: मैं किसी धर्म का नहीं हूं, इसलिए में सभी त्योहारों में भागीदार हो सकता हूं। इसलिए मैं वहाँ जाता हूं।
एक बार मैंने एक ऐसे वली की रस्सी पकड़ने मे कामयाबी हासिल कर ली जो बस एक साधारण व्यक्ति था और धोखेबाज था। मेंने उससे पहले ही कह दिया था, यदि तुम मुझको अपनी रस्सी नहीं पकड़ने दोगे तो मैं तुम्हारी पोल खोल दूँगा।
उसने कहा: तुम मेरी रस्सी पकड़ सकते हो, और तुम इन मिठाइयों का कुछ हिस्सा ले सकते हो, लेकिन किसी से कुछ कह मत देना।
हम दोनों एक ही व्यायामशाला में जाया करते थे—इसी प्रकार से हम मित्र बन गए थे। और उसने स्वयं ही मुझको बताया था कि यह सभी कुछ दिखावटी था। तो मैंने कहा: इसका अर्थ हुआ कि मैं वहां आर हा हूं, यदि सब कुछ दिखावटी है तो मुझको इससे भागीदारी करनी पड़ेगी।
मैं एक लंबी सूई लेकर वहां पहुंच गया, जिससे मैं उसको उछल-कूद करवा सकूं। वह सबसे प्रसिद्ध वली बन गया क्योंकि कोई और वली इतना ऊँचा नहीं कूद रहा था।
जो कुछ भी घटित हो रहा था उसके बारे में वह कुछ कह भी नहीं सकता था—क्योंकि वह तो वली की गिरफ्त में था और वली एक सूई से भयभीत नहीं हो सकता था। इसलिए वह कुछ कह भी नहीं पाया और मैं उसको सूई चुभोता रहा। उसको करीब-करीब चार गुना अधिक मिठाई, अधिक फल और अधिक रूपये चढ़ावे में मिल गए....उससे दुआ चाहने वाले अधिक लोग आए।
उसने कहा: यह भी खूब रही, लेकिन तुमने मुझको बहुत सताया।
उस दिन से मेरी इतनी मांग हो गई, प्रत्येक वली चाहता ता कि उसकी रस्सी मुझे दे दी जाए, क्योंकि जो भी मुझे अपने सहायक के रूप में पा जाता तुरंत उसी दिन महानतम वली बन जाता।
दस दिन तक उत्सव चलता रहा, और कोई भी वली दुबारा अगले दिन मुझे अपने साथ रखना चाहता था। वे कहा देते, यदि तूम दुबारा आ गए तो मैं यह शहर छोड़ कर भाग जाऊँगा।
मैंने कहा: इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। अन्य मूढ़ों के द्वारा जो यह नहीं जानते कि क्या हो रहा है, मेरी मांग इतनी अधिक है......तुम बस मुझे को अपने हिस्से के चढ़ावे में से आधा दे दो—क्योंकि फिर भी तुम्हारे पास दो गुना शेष रह जाएगा।
और मैंने पाया कि करीब-करीब प्रत्येक व्यक्ति धोखेबाज था—क्योंकि में प्रत्येक को अपनी सूई द्वारा कुदवा रहा था। पूरे नगर में एक भी प्रमाणिक व्यक्ति नहीं था जो कि अवशिष्ट या ऐसा कुछ हो। वे बस दिखावा कर रहे थे—चिल्ला रहे थे, चीख रहे थे, ऐसी बातें कह रहे थे जिनको तुम समझ न सको, लेकिन तुमको इसमें से मतलब निकालना पड़े।
मौलवी लोग , मुस्लिम विद्वान तुमको समझाए गे कि इस बात का अर्थ है: तुम पर कृपा हो रही है। तुम्हारी इच्छा पूरी हो जाएगी। और कौन फ़िकर करता है कि किसकी इच्छा पूरी हुई या नहीं? यदि सौ लोग आते है तो कम से कम पचास लोगों की इच्छा तो पूरी होने वाली है। यह पचास लो वापस लौट कर आएंगे और ये पचास लोग इच्छा पूरी होने वाली इस बात का प्रचार करेंगे। शेष पचास लोग भी लौट कर आएंगे—उसी वली के पास नही, लेकिन अन्य वली यों के पास लौटेंगे जो वहां है, क्योंकि पहला वली जिसके पास वे गए काम न आया: शायद वह इतना शक्तिशाली न हो।
और मेरे वली सर्वाधिक शक्तिशाली थे। उनकी शक्ति इस बात से तय की जाती थी कि वे कितना ऊँचा कूदे है। वे कितना चीखे है। वे कितना चिल्लाए है। सो ये तो में कर ही रहा था।
और प्रत्येक व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि मेरे वली मेरी और ऐसी विचित्र मुखमुद्राएं क्यों बना रहे थे.....
मैंने कहा: वह एक अध्यात्मिक भाषा है, उसको तुम नहीं समझोगे।
--ओशो
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