05-बाहु पसारे प्रभु खड़ा
प्रभु प्रेम में पागल बने ये जीव सब कोई यहां
बह-बह के आता है सभी जल सब ओर से सागर जहां
जब दे रहा सागर निमंत्रण, कैसे कोई रूक सके
तट तोड़कर नदियां बहेंगी, प्रियतम के अंक समा सके
सब देश के व्यक्ति यहां आकर समर्पित हो रहे है
बाहु पसारे प्रभु खड़ा, बाहु पसारे प्रभु खड़ा।
(1975 ओशो युग पूना)
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