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सोमवार, 14 मई 2018

जीवन का खेल—(कविता)


जीवन का खेल—(कविता)
जीवन करता नित-नुतन खेल।
घूप-छांव का अदभुत मेल।।

स्वर्ण चमक सी ये मुस्कार।
सुरमयी कालीमा गाती गान।
जीवन की इस दीप शीखा से
नित-नित घटता जाता तेल...
घूप-घांव का अदभुत मेल...


दबी-घुटी आहों का नाद।
स्वांस-स्वांस पर बेठी आस।
विनिचक बिंदु तक बढता दु:ख
प्रित-पीड़ा का ये लंम्बा खेल
घूप-छांव का अदभुत मेंल.....

समीर-मधुर सा कोकिल गान।
प्रकृति में समरस को  जान।
मृदुल राग का विरल श्रृंगार,
टूटे छंदो का हे कैसा मेल।
घूप-छांव का अदभुत मेल।।
मनसा-मोहनी


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