02-मंन्जिल तेरी यही
नैनों ने तेरे ढूंढ लिया है, मुझको इस बार
प्राणों ने तेरे पा लिया है, अपना प्राणाधार
अब पूछने की किससे भी, जरूरत तुझे नहीं
सुनने से देखने से तेरी, प्यास जो जगी।
इससे ही तो पहचानेगी, तू अपने
को कभी
अंतर द्वधा को छोड दे, मंजिल तेरी यहीं
मंजिल तेरी यहीं।
( 4 दिसंबर 1973 बंबई)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें