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गुरुवार, 10 मई 2018

मा आनंद सीता के गीत-06


06-मेरे प्रभु! मेरे प्रभु!
कण-कण पे तू है छा गया,
मेरे प्रभु! मेरे प्रभु!

खुली दृष्टि में है तू ही तूं,
हे बंद आंखों में भी तू ही तूं
जाती नजर जहां है तूं
अंतर में मेरे रात दिन
आवाज तेरी गूंजती है सदा
स्वांसों में संगीत झनक उठता है
मेरे प्रभु! मेरे प्रभु!


द्वंद्व सुख दुःख आदि के,
आते है ओर चले जाते है
मुझ तक वो पहुंचेगे कहां
अंतर तो तेरा वास है
मुझे मेरे ‘’मैं’’से हटा दिया
मेरे प्रभु! मेरे प्रभु!

रख दिया चरणों में तेरे
अपने को मैंने प्रभु
तु जो करे है तेरी रजा
फिर क्यों घेरे मुझको चिंता
अब मैं नहीं, बस तू ही तू
मैं न रही, अब तू ही तू
मिट गई हूं मैं, बस तू ही हूं
मेरे प्रभु! मेरे प्रभु!
( 7 फरवरी 1974, 10 डायोजिनीस, ओशो युग-21) बंबई



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